निपट जाहिलों को भरमाते
अज्ञानी को मूर्ख बनाते !
अज्ञानी को मूर्ख बनाते !
पैसे दे दे कर लोगों से ,
अपनी तारीफें , करवाते !
घरों में बैठे, सीधे साधे ,
सम्मोहित हो जाते लोग !
श्वेत दुशाला, सुंदर पगड़ी, पर होते बलिहारी लोग !
भोली जनता इज्ज़त देती
वेश देख , बनवासी को !
घर में लाकर उन्हें सुलाए
भोजन दे , सन्यासी को !
अलख निरंजन गायें, डोलें,
मुफ्त की खाएं डाकू लोग !
पाखंडी को, गुरू मान कर , पैर दबाएं मूरख लोग !
अपनी तारीफें , करवाते !
घरों में बैठे, सीधे साधे ,
सम्मोहित हो जाते लोग !
श्वेत दुशाला, सुंदर पगड़ी, पर होते बलिहारी लोग !
भोली जनता इज्ज़त देती
वेश देख , बनवासी को !
घर में लाकर उन्हें सुलाए
भोजन दे , सन्यासी को !
अलख निरंजन गायें, डोलें,
मुफ्त की खाएं डाकू लोग !
पाखंडी को, गुरू मान कर , पैर दबाएं मूरख लोग !
अनपढ़,अज्ञानी दुनियां में
गुरु ढूँढने, घर से निकले !
वेद, पुराणों में लिखा है
गुरु ही तेरे , कष्ट मिटायें !
टीवी पर जयकार धूर्त की,
खुश हो जाते भोले लोग !
सौम्य समाज, प्रदूषित करके, पैसा खूब बनाते लोग !
पहले चोर, उचक्के, डाकू,
जंगल गुफा, ढूंढने जाते !
बाल बढाये,राख लगाए
जैसे तैसे,शकल छिपाते !
असली संत ठगे से बैठे ,
नकली प्रवचन सुनते लोग !
गंदे चरणामृत को पीकर , जीवन सफल बनाएं लोग !
गुरु ढूँढने, घर से निकले !
वेद, पुराणों में लिखा है
गुरु ही तेरे , कष्ट मिटायें !
टीवी पर जयकार धूर्त की,
खुश हो जाते भोले लोग !
सौम्य समाज, प्रदूषित करके, पैसा खूब बनाते लोग !
पहले चोर, उचक्के, डाकू,
जंगल गुफा, ढूंढने जाते !
बाल बढाये,राख लगाए
जैसे तैसे,शकल छिपाते !
असली संत ठगे से बैठे ,
नकली प्रवचन सुनते लोग !
गंदे चरणामृत को पीकर , जीवन सफल बनाएं लोग !
सुन्दर प्रस्तुति-
ReplyDeleteआभार आदरणीय-
गजब आकलन नहीं नव चलन अच्छे लगते ढोंगी ढोंग |
श्वेत दुशाला,सुंदर पगड़ी,पर होते बलिहारी लोग ! ekdam theek bole.....
ReplyDeleteकाश लोगों को सत्य समझ में आये।
ReplyDeletesatish bahi kabita ke sath sath aapki photo jam rahi hai
ReplyDeleteऐसे लोग..कैसे लोग..जाने कैसे कैसे लोग.....
ReplyDeleteबढ़िया रचना...
सादर
अनु
bahut sunder, pahle ke daku valmiki ki tarah ho jate the, ab ..... ban jate hain.
ReplyDeleteढोंगी बाबाओं ने धर्म को सबसे ज़्यादा नुक्सान पहुँचाया है और इसी कारण इंसानियत को भी।
ReplyDeleteबेहतरीन ...
ReplyDeleteचोर उचक्के डाकू अक्सर
जंगल गुफा में शरण ढूँढ़ते
बाल बढाकर,राख रगड़ कर
जैसे तैसे , शकल छिपाते !
मौका देख कर चाले चलते, पक्के अवसरवादी लोग !
चरण गुरु के धोके पीते,जन्म को सफल बनाते लोग !
ऐसे लोग..वैसे लोग..जाने कैसे कैसे लोग.....
ReplyDeleteपढे लिखे होकर भी...मूरख क्यूँ बन जाते लोग...
सुंदर रचना !!
सतीश जी । बिल्कुल सच्ची व्यंग्य रचना ।
ReplyDeleteगोस्वामी जी ने मानस में लिखा है—
'बहु दाम संवारहि धाम जती
विषया हरि लीन्हि न रहि विरती
तपसी धनबंत दरिद्र गृही————''
और भी —
'मारग सोइ जा कहुं जोइ भावा
पंडित सोइ जो गाल बजावा
मिथ्यारंभ दंभ रत जोई
ता कहुं संत कहइ सब कोई '
sacchi bat .....
ReplyDeletesacchi bat ..
ReplyDeleteसुंदर और सत्य!
ReplyDeleteबहुत खूब,सुंदर सटीक व्यंग !
ReplyDeleteRECENT POST : हल निकलेगा
बहुत खुबसूरत !!
ReplyDeleteइन ''बाबाओं'' की वजह से भी ये समाज दूषित हो रहा है ..कटु सत्य
ReplyDeleteबाबाओं ने न जाने क्या चमत्कार कर रखा है कि अच्छे पढ़े-लिखे लोग भी उनके चरण दबाते देते जाते हैं।
ReplyDeleteV E R Y N I C E
ReplyDeleteKhoob kahi aapne. Satik vyakhya aaj ke lobhi jamane ki.
ReplyDeleteये जमाना ही बाबाओं का है. सटीक व्यंग रचना.
ReplyDeleteरामराम.
शायद पूरी दुनिया में एक हमारा ही देश होगा जहाँ हजारों साल से एक ही धंधा चलता है बाबाओं का प्रवचन देना और लोगों का सुनना, सबसे ज्यादा सुनने वालों में महिलाओं की संख्या सबसे ज्यादा है और महिलाओं को ही इन बाबाओं ने निन्दित किया है पता नहीं कैसे सुन लेती होंगी, सटीक रचना है !
ReplyDeleteआपने अंतर मन को झंझोड़ दिया
ReplyDeleteसुन्दर रचना!
ReplyDeleteशुभकामनाएं!
सटीक व्यंग
ReplyDeleteसबसे पढ़े लिखे समाजों में मूर्ख लोग पाए ही जाते हैं
ReplyDeletebaba-giri ek aisa dhandha ho gya hi,jisme nuksaan ho hi nhi skta,aisa isliye kyunki log inka anusaran nhi chhor rahen hi |
ReplyDeleteबहुरूपियों के रूप हज़ार ...
ReplyDeleteसामयिक प्रस्तुति
ReplyDeleteकाटजू बाबा सत्य बोले हैं, ९९ % मुर्ख हे भारतीय ! अभी उस निर्मल की दुकान देखो, धड़ल्ले से चल रही हैं
ReplyDeleteBang Bang :]
ReplyDelete