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Wednesday, May 25, 2011

अगर हम न होंगे तो फिर कौन होगा -सतीश सक्सेना

गुडिया के साथ 
         पिछले सप्ताह मेरे एक मित्र वी के गुप्ता का फोन आया कि उनके किसी मित्र का एस्कोर्ट हॉस्पिटल में ऑपरेशन है और उन्हें खून चाहिए चूंकि आप नियमित खूनदाता हैं, आपसे खून मिलने की उम्मीद है ! मुझे पिछला खून दिए ३ माह हो चुके थे,अतः  मैंने उन्हें तुरंत पंहुचने का आश्वासन दिया और साथ में अनुरोध किया कि वे खुद भी खून दें ! जब मैंने हॉस्पिटल पंहुचकर,झिझकते और अपनी उम्र,बीमारियाँ बताते लोगों के बीच,हँसते हुए खून देने में पहल की तो विनोद गुप्ता एवं अन्य साथी भी तैयार हो गए !उनको बहुत सारी  भ्रांतियां थीं और झिझक टूटने के साथ, वे अपने आपको हल्का भी महसूस कर रहे थे !

         घर पर पंहुचा तो अन्य परिजन कहने लगे अब इस उम्र(५६ वर्ष +) में खून नहीं देना चाहिए ! मेरा एक प्रश्न था कि तुममें से, किसी ने स्वेच्छा से खून देने की हिम्मत की है अगर नहीं, तो यही स्थिति बाहर, पास पड़ोस में सबकी है ! अगर एक आदमी मदद करने में पहल करे तो और लोग भी घर से निकल पड़ते हैं ! मदद देने वाले बहुत हैं, कमी यहाँ सिर्फ पहल करने वाले की है ! 

          एक दिन हमें भी किसी की जरूरत पड़ सकती है और किसी को मदद के लिए आगे आना पड़ेगा सो यहाँ मैंने पहल करने की कोशिश की थी और सफल रहा ! आज जो घबराए हुए लोग हॉस्पिटल में मेरे साथ थे, वे मेरे द्वारा, हँसते हुए रक्त देने ,को आसानी से भुला नहीं पायेंगे और यही मेरा ध्येय था, जो  पूरा हुआ ! 

         आखिरी दिन से पहले, अगर हम किसी जरूरतमंद के काम आ सकें तो मानव जीवन सफल लगता है अन्यथा विश्व में और जीव भी रहते हैं !लोग हमारा नाम अवश्य याद रखेंगे बशर्ते किसी के काम आते समय, दिखावा और तारीफ की चाह  नहीं होनी चाहिए !

         हमारे मरने की खबर सुनकर, अगर कुछ लोग रो पड़ें तो जीवन सार्थक होगया, समझ लें  !

Wednesday, June 23, 2010

वह शक्ति मुझे दो दयानिधि - सतीश सक्सेना

बचपन में प्रायमरी पाठशाला की वह कविता मुझे बेहद अच्छी लगती है  .... अर्चना चावजी जी की मधुर आवाज में  आपके समक्ष है !  

" वह शक्ति मुझे दो दयानिधि , कर्तव्य मार्ग पर डट जाएँ  !
  पर सेवा कर उपकार मुझे, निज जीवन सफल बना जावें !

आज भी  कहीं न कहीं एक ही आत्मविश्वास की कमी से ग्रसित हो जाता हूँ कि मरते समय तक इतना धन और शारीरिक शक्ति अवश्य बनाए रखे कि कोई दरवाजे से खाली न जा पाए ! किसी वास्तविक ज़रूरतमंद की मदद करने से जो सुख मिलता है वह दोस्तों के साथ किसी भी दुर्लभ स्थान पर मौज करने से अधिक बेहतर है !

अक्सर जीवन रक्षा के लिए आवश्यकता पड़ने पर, लोग शरीर के अंगों अथवा खून को खरीदने के प्रयत्न में भागते देखे जाते हैं ! अपने प्यारों को भयानक, मरणासन्न अवस्था में पाकर , लोग खुद को ना देख, इधर उधर देखते हैं कि कोई मदद कर दे या कोई जरूरत मंद, पैसे  के लालच में उनके काम आ जाये ! जिन्होनें खुद किसी को प्यार नहीं किया वे इस हालत में प्यार को खरीदने निकलते हैं , और अक्सर उनका काम यहाँ भी हो जाता है जब कोई शारीरिक तौर पर निकम्मा अथवा बेहद गरीब मजबूर व्यक्ति अपने शरीर का कोई अंग अथवा खून बेचने पर मजबूर हो जाता है ! और अपना अंग अथवा खून न देना पड़ा , इस ख़ुशी में झूमते ये लोग , एक बीमार कमज़ोर से खरीदा हुआ अंग या खून, खुशी खुशी स्वीकार करके जश्न मनाते हैं !

मैं एक नियमित खून दाता ( ओ प्लस ) हूँ और दिल्ली के कई हास्पिटल में अपना नाम लिखवा रखा है कि अगर किसी को मेरे खून की जरूरत पड़े तो मुझे किसी भी समय बुलाया जाए, मैं उपलब्द्ध रहूँगा ! बीसियों मौकों पर जब मैं अनजान लोगों को खून देने पंहुचा तो भरे पूरे परिवार के लोग कृतार्थ भाव से हाथ जोड़े खड़े पाए जाते हैं , कि चलो एक यूनिट मुर्गा तो फंसा ! और रक्तदान के बाद मैं अक्सर इन स्वार्थी ,डरपोक रिश्तेदारों और तथाकथित दोस्तों पर हँसता हुआ ब्लड बैंक से बाहर आता हूँ !

३५० एम् एल  खून देने के बाद मुझे कभी कमजोरी महसूस नहीं हुई , और अक्सर मेरे साधारण शरीर ने इस खून  भरपाई २-३ दिनों में, और हिमोग्लोबिन की कमी एक सप्ताह में पूरी कर ली !

ऐसे ही सोच के चलते एक दिन अपोलो हास्पिटल में अपनी मृत्यु के बाद शरीर के सारे अंग दान करने की इच्छा प्रकट की जिसे हास्पिटल अथोरिटी ने सहर्ष स्वीकार कर लिया , शायद यह कार्य  मेरे जीवन के सबसे अच्छे कार्यों में से यह एक है !  
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