गुडिया के साथ |
पिछले सप्ताह मेरे एक मित्र वी के गुप्ता का फोन आया कि उनके किसी मित्र का एस्कोर्ट हॉस्पिटल में ऑपरेशन है और उन्हें खून चाहिए चूंकि आप नियमित खूनदाता हैं, आपसे खून मिलने की उम्मीद है ! मुझे पिछला खून दिए ३ माह हो चुके थे,अतः मैंने उन्हें तुरंत पंहुचने का आश्वासन दिया और साथ में अनुरोध किया कि वे खुद भी खून दें ! जब मैंने हॉस्पिटल पंहुचकर,झिझकते और अपनी उम्र,बीमारियाँ बताते लोगों के बीच,हँसते हुए खून देने में पहल की तो विनोद गुप्ता एवं अन्य साथी भी तैयार हो गए !उनको बहुत सारी भ्रांतियां थीं और झिझक टूटने के साथ, वे अपने आपको हल्का भी महसूस कर रहे थे !
घर पर पंहुचा तो अन्य परिजन कहने लगे अब इस उम्र(५६ वर्ष +) में खून नहीं देना चाहिए ! मेरा एक प्रश्न था कि तुममें से, किसी ने स्वेच्छा से खून देने की हिम्मत की है अगर नहीं, तो यही स्थिति बाहर, पास पड़ोस में सबकी है ! अगर एक आदमी मदद करने में पहल करे तो और लोग भी घर से निकल पड़ते हैं ! मदद देने वाले बहुत हैं, कमी यहाँ सिर्फ पहल करने वाले की है !
एक दिन हमें भी किसी की जरूरत पड़ सकती है और किसी को मदद के लिए आगे आना पड़ेगा सो यहाँ मैंने पहल करने की कोशिश की थी और सफल रहा ! आज जो घबराए हुए लोग हॉस्पिटल में मेरे साथ थे, वे मेरे द्वारा, हँसते हुए रक्त देने ,को आसानी से भुला नहीं पायेंगे और यही मेरा ध्येय था, जो पूरा हुआ !
आखिरी दिन से पहले, अगर हम किसी जरूरतमंद के काम आ सकें तो मानव जीवन सफल लगता है अन्यथा विश्व में और जीव भी रहते हैं !लोग हमारा नाम अवश्य याद रखेंगे बशर्ते किसी के काम आते समय, दिखावा और तारीफ की चाह नहीं होनी चाहिए !
हमारे मरने की खबर सुनकर, अगर कुछ लोग रो पड़ें तो जीवन सार्थक होगया, समझ लें !