हैं , गैर के लिए !
साँसे हैं, कितनी पास
हमें खुद , पता नहीं ?
जीवन में कई मोड़ ,
बड़े खतरनाक है !
रास्ता कहाँ जायेगा, किसी को पता नहीं !
आँखों में बाँध पट्टियां
गाड़ी चला रहे !
टकरायेंगे , कहाँ पर ?
हमें खुद पता नहीं !
जब तक जियेंगे,
हम भी, जलाये रहें दिया !
कब आसमान रो पड़े , हमको पता नहीं !
चोटों को भुलाकर तेरे
बड़े खतरनाक है !
रास्ता कहाँ जायेगा, किसी को पता नहीं !
आँखों में बाँध पट्टियां
गाड़ी चला रहे !
टकरायेंगे , कहाँ पर ?
हमें खुद पता नहीं !
जब तक जियेंगे,
हम भी, जलाये रहें दिया !
कब आसमान रो पड़े , हमको पता नहीं !
चोटों को भुलाकर तेरे
हम , साथ चल दिए !
इस बार क्या करोगे ?
तुम्हें भी , पता नहीं !
इक जिंदगी काफी नहीं ,
जो आग बुझ सके !
जो आग बुझ सके !
सौ बार जनम लेंगे ? यह हमको, पता नहीं !
ताकत अभी बाकी है
इस बांके शरीर में !
कितने ही घाव लग
चुके,हमको पता नहीं !
मासूमियत पर लोग
तरस खा रहे , यहाँ
चुके,हमको पता नहीं !
मासूमियत पर लोग
तरस खा रहे , यहाँ
कैसे चला था तीर ? तुम्हे ही पता नहीं !
लोगों का क्या है रस्म
निभाकर निकल पड़े !
मौत आएगी मिलन
को,हमें ही पता नहीं !
कब जायेंगे घर छोड़ कर,
सोंचा नहीं सनम ,
सोंचा नहीं सनम ,
मरने का समय तय है, पर हमको पता नहीं !
चोटों को भुलाकर तेरे
ReplyDeleteहम , साथ चल दिए !
इस बार क्या करोगे
हमें ही , पता नहीं !
इक जिंदगी काफी नहीं , यह आग बुझ सके !
सौ बार जनम लेंगे ? यह हमको पता नहीं !
waah , kya baat hai
लोगों का क्या है रस्म
ReplyDeleteनिभाकर निकल पड़े
मौत आएगी मिलन
को, हमें ही पता नहीं
कब जायेंगे घर छोड़कर ,सोंचा नहीं सनम !
मरने का समय तय था पर हमको पता नहीं !
क्यों नफरतें हैं पालते
ReplyDeleteहम लोग प्यार से !
साँसे हैं कितनी पास
हमें खुद पता नहीं ?
जीवन में कई मोड़ , बड़े खतरनाक है !
रस्ता कहाँ जाता है,हमें खुद पता नहीं !
सतीश जी
कमाल की रचना लिखी है आज्………ज़िन्दगी का पूरा फ़लसफ़ा गढ दिया…………हर पंक्ति दिल को छू गयी।
लोगों का क्या है रस्म
ReplyDeleteनिभाकर निकल पड़े
मौत आएगी मिलन
को, हमें ही पता नहीं
कब जायेंगे घर छोड़कर ,सोंचा नहीं सनम !
मरने का समय तय था पर हमको पता नहीं !
जीवन के अनिश्चय से भरे रास्तों का सफर बहुत ही दुरूह है. जिंदगी के दर्शन को बहुत मासूमियत से पेश किया है, सुंदर कविता के माध्यम से. बधाई और शुभकामनायें.
jab tak hai aash tab tak hai sans....
ReplyDeleteapki sundar rachna ke liye sukriyakya............
dhoondh rahe ho antas me....
is jagat ka bimb liye...........
ye duniya to hai kasht bhara....
o' duniya bahut madhurtam hai...
pranam.
सांसे हैं कितने पास, हमें खुद पता नही, सचमुच जीवन आज है कल नहीं रहेगा, इस बहुमूल्य जीवन को सदा बहार गीतों को लिखते-पढते हुए गुजार सकें और जितना हो सके जगत को खुशियाँ दे सकें यही प्रार्थना है, शुभकामनायें !
ReplyDeleteजो थे आशावादी, जीवट से भरे हुए।
ReplyDeleteअब साँसो की गिनती? हमें पता नहीं!!
हम रोज नए जोश में
ReplyDeleteमगरूर थे , बहुत !
यह समय कब बीता
हमें खुद ही पता नहीं
चुपचाप आती मौत में , आवाज भी नहीं !
उस तीर और समय का हमें कुछ पता नहीं
एक एक शब्द से दिल पर गहरी चोट की है आपने सतीश भाई.
एक पुराना गाना याद आ रहा है
'जिंदगी का सफर ,है ये कैसा सफर
कोई समझा नहीं,कोई जाना नहीं '
अति उत्तम भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार.
kaash stish bhai ki bat sbhi jaan len or sbhi man len to duniya me hi svrg kaa vatavaran bn jaye .....akhtar khan akela kota rajsthan
ReplyDeleteताकत अभी बाकी है
ReplyDeleteइस बांके शरीर में !
अब कितने घाव लग
चुके, हमको पता नहीं !
.........................सुन्दर भाव....सुन्दर गीत
बहुत ही सटीक, जिंदगी को दर्शाता गीत.
ReplyDeleteसतीश भाई, प्यार ही तो जीवन है।
ReplyDeleteचोटों को भुलाकर तेरे
ReplyDeleteहम , साथ चल दिए !
इस बार क्या करोगे
हमें ही , पता नहीं !
इक जिंदगी काफी नहीं , यह आग बुझ सके !
सौ बार जनम लेंगे ? यह हमको पता नहीं !
एक -एक शब्द जेसे दर्द में लिपता हुआ ..सतिश जी !बहुत खूब ...
"क्या खबर थी की कभी तेरी तमन्ना ऐ दोस्त!
अश्क बन कर मेरी पलको पर उतर आएगी !! "
बहुत सुन्दर कविता ... जीवन मरण के इस्खेल के बारे में किसीको कुछ पता नहीं !
ReplyDeleteलोगों का क्या है रस्म
ReplyDeleteनिभाकर निकल पड़े
मौत आएगी मिलन
को, हमें ही पता नहीं
कब जायेंगे घर छोड़कर ,सोंचा नहीं सनम !
मरने का समय तय था पर हमको पता नहीं !
बहुत सुंदर, बस यही एक शाश्वत सत्य है, कौन आएगा और रुकेगा नहीं जानते लेकिन मौत जरूर आएगी और लेकर ही जायेगी.
कब जायेंगे घर छोड़कर ,सोंचा नहीं सनम !
ReplyDeleteमरने का समय तय था पर हमको पता नहीं !
-एक संपूर्ण दर्शन.
बहुत बेहतरीन भावाव्यक्ति.
क्यों नफरतें हैं पालते
ReplyDeleteहम लोग प्यार से !
साँसे हैं कितनी पास
हमें खुद पता नहीं ...
सच कहा है सतीश जी ... इसलिए तो कहते हैं ...प्यार बाँटते चलो .... दो पल का जीवन है ये ....
ReplyDeleteगीत बेशक अच्छा है
ताला है क्यों पता नहीं
टिप्पणी जो देने आये थे
अब क्या दें पता नहीं
:)
सत्यवचन।
ReplyDeleteसब तय है, लेकिन पता नहीं है कब, कैसे और कहाँ।
हम रोज नए जोश में
ReplyDeleteमगरूर थे , बहुत !
यह समय कब बीता
हमें खुद ही पता नहीं
चुपचाप आती मौत में , आवाज भी नहीं !
उस तीर और समय का हमें कुछ पता नहीं !
भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार....
चुपचाप आती मौत में,आवाज भी नहीं!
ReplyDeleteउस तीर और समय का हमें कुछ पता नहीं!
लोगों का क्या है रस्म निभाकर निकल पड़े
मौत आएगी मिलन को,हमें ही पता नहीं
कब जायेंगे घर छोड़कर ,सोंचा नहीं सनम!
मरने का समय तय था पर हमको पता नहीं!
संपूर्ण रचना में कलात्मक अभिव्यक्ति मगर उपरलिखित ने मन ही मोह लिया है.
पति द्वारा क्रूरता की धारा 498A में संशोधन हेतु सुझावअपने अनुभवों से तैयार पति के नातेदारों द्वारा क्रूरता के विषय में दंड संबंधी भा.दं.संहिता की धारा 498A में संशोधन हेतु सुझाव विधि आयोग में भेज रहा हूँ.जिसने भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए के दुरुपयोग और उसे रोके जाने और प्रभावी बनाए जाने के लिए सुझाव आमंत्रित किए गए हैं. अगर आपने भी अपने आस-पास देखा हो या आप या आपने अपने किसी रिश्तेदार को महिलाओं के हितों में बनाये कानूनों के दुरूपयोग पर परेशान देखकर कोई मन में इन कानून लेकर बदलाव हेतु कोई सुझाव आया हो तब आप भी बताये.
ताकत अभी बाकी है
ReplyDeleteइस बांके शरीर में !
अब कितने घाव लग चुके,
हमको पता नहीं !
समूची रचना बेमिसाल...
लिखते रहे कहते रहे
ReplyDeleteअपने हृदय की बात.
रो रहा गोदी शिशु
पर, कारण पता नहीं.
मरने की चिंता भूल नव जीवन का स्वागत कर.
गुड़िया है कितनी पास, तुम्हें खुद पता नहीं.
[... फोटो देखकर सूझा]
मौत आएगी तो एक पल की ना मोहलत देगी,
ReplyDeleteसांस लेने की भी कमबख्त न फुर्सत देगी,
जीते जी किसलिए फिर आपको नाशाद करें
ज़िंदगी एक भी पल क्यूं तेरा बर्बाद करें.
एक और बेहतरीन गीत लेकर आए हैं सतीश जी । प्रथम चंद पंक्तियाँ ही कोई समझ ले तो जिंदगी बड़ी आसान हो जाए । बधाई इस सुन्दर गीत के लिए ।
ReplyDeleteकिसी एक पंक्ति को भी छोड़ नहीं सकती
ReplyDeleteहर पंक्ति दिल को छू गई !
बहुत सुंदर रचना है !
क्यों नफरतें हैं पालते
ReplyDeleteहम लोग प्यार से !
साँसे हैं कितनी पास
हमें खुद पता नहीं ?
जीवन में कई मोड़ , बड़े खतरनाक है !
रस्ता कहाँ जाता है,हमें खुद पता नहीं !
बहुत सुंदर..... जीवन का यही फलसफा तो समझना है हम सबको.....
जीवन की क्षण भंगुरता याद आयी
ReplyDeleteवाह दार्शनिक अंदाज़...
ReplyDeleteबढ़िया लगा.
दर्शन बाँचती पक्तियाँ, भा गयीं।
ReplyDeleteवाह एक और सुंदर नवगीत
ReplyDeletesatish ji Pranaam ! You have powerful writing in your pen. Simple lines & power packed meanings . Each line has its own strengths , which goes deep into the heart. I searched the dictionary for words to comment, but i had to cut a sorry figure, for not finding an apt one. A Touchy delicate post !
ReplyDeletezindagi ka falsafa hai ye geet
ReplyDeletebahut sundar
zindagi ka falsafa hai ye geet
ReplyDeletebahut sundar
अगर सांसों की गिनती होती तो आदमी के पास नफरत के लिए समय ही कहां होता ॥
ReplyDeleteभाई सतीश जी, एक शेर अर्ज़ है...बेशक मेरे नसीब पे रख अपना इख्तियार...लेकिन मेरे नसीब में क्या है बता तो दे...यदि सब पता चल गया तो इस स्टोरी का सुस्पेंस ख़तम हो जायेगा...इस लिए...हर पल यहाँ...जी भर जियो...जो है समां...कल हो ना हो...
ReplyDeleteप्यार और साथ ना जाने कब छुट जाये
ReplyDeleteफिर नफरत का क्या करेगे
जब कोई साथ ही नहीं होगा
एक जिन्दगी कम है इस प्यार के लिए
नफरत कहाँ से पाले ...
कब जायेंगे घर छोड़कर ,सोंचा नहीं सनम !
ReplyDeleteमरने का समय तय था पर हमको पता नहीं !
वाह
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
अति सुंदर रचना, सती्श जी कुर्ते मे तो आप पुरे हीरो लगते हे, भारतिया फ़िल्मो मे एक कलाकार योगेंदर आते थे, दाडी ओर मुंछो मे ओर आप वो ही लग रहे हे, ऒर खुब जंचे थे अपने रोल मे ओर एक्टिंग भी कमाल की थी
ReplyDeleteमौत का जहर है फिजाओं में ..........लेकिन जीवन का सौन्दर्य कहीं न कहीं मौत के इस प्रत्यक्षीकरण से ही शुरू होता है!
ReplyDeleteआँखों पे पट्टी बाँध के गाडी चला रहे ,
ReplyDeleteटकरायेंगे कहाँ पर हमें खुद पता नहीं ।
क्यों नफरतें हैं पालते हम लोग प्यार से ,
साँसे हैं कितनी पास हमें खुद पता नहीं ।
बेहद सोते सी फूटती आवेग पूर्ण गेय रचना -
साँसे हैं कितनी पास
ReplyDeleteहमें खुद पता नहीं ?
ine prashno ke uttar kisee ke paas nahee.......
ashay hai insaan prakruti ke samne koi maane ya na maane .
anahsthiti ka darpan hai ye rachana.
सुज्ञ जी,
ReplyDeleteआप नाराज ना हों.... ऐसा कुछ नहीं है जो आप चिंतित हों :-)
जीवन के उतार चढ़ावों में, समय समय पर, मानसिक स्थिति में तरह तरह के बदलाव आते रहते हैं जो अक्सर क्षणिक होते हैं !
यह रचना उसी सोंच का परिणाम है !
सादर
@ प्रतुल वशिष्ठ ,
ReplyDeleteवाकई मरने की चिंता न करके नव निर्माण में लगना चाहिए, इस कविता में जीवन दर्शन है जो हमें याद रखना चाहिए !
@ राज भाटिया,
शुक्रिया भाई जी , मगर एक्टिंग में बुरी तरह फेल हूँ , किसी से क्लास लेनी पड़ेगी :-(
मौत का इक दिन मुअय्यन है, नींद क्यों रातभर नहीं आती (ग़ालिब)- बहुत ही दार्शनिक कविता। पूरा जीवन जी लें तब भी गुत्थी नहीं सुलझती है। ऊहा पोह ता ज़िंदगी बनी रहती है।
ReplyDeleteबधाई।
ज़िंदगी तो बेवफ़ा है,
ReplyDeleteएक दिन ठुकराएगी,
मौत महबूबा है,
जो साथ लेकर जाएगी,
मरके जीने की अदा,
जो दुनिया को सिखलाएगा,
वो मुकद्दर का सिकंदर,
वो मुकद्दर का सिकंदर,
जानेमन कहलाएगा....
आज देशनामा पर न जाने कौन सा मंत्र हुआ है कि औरों को दिख रहा है, बस मेरे लैपटॉप पर ही नहीं खुल रहा...
जय हिंद...
bahut badhiya rachana bhaav. aabhaar
ReplyDeleteJitni chabi bhari ram ne,
ReplyDeleteUtana chale khilauna....
Sadiyon ka samana aur pal ki khabar nahi.
Bahut gahri bat kahi satish bhai.
चोटों को भुलाकर तेरे
ReplyDeleteहम , साथ चल दिए !
इस बार क्या करोगे
हमें ही , पता नहीं !
badi achchi baat kahi aapne.....
.
ReplyDelete.
.
पढ़ लिया है मैंने
एक एक लाइन को
अब कहा क्या जाये
यह मुझको पता नहीं !
...
क्यों नफरतें हैं पालते
ReplyDeleteहम लोग प्यार से !
साँसे हैं, कितनी पास
हमें खुद पता नहीं ?
जीवन में कई मोड़ , बड़े खतरनाक है !
रास्ता कहाँ जाता है, हमें खुद पता नहीं !
सांसों का क्या ठिकाना, कब इसकी गिनती की लय टूट जाए।
चिंतन के लिए बाध्य करती सशक्त रचना।
शुभकामनाएं, सतीश जी।
आपके गीत और चित्र में नन्हीं सी मुस्काती परी..दोनों ही बहुत कुछ कहते हुए...
ReplyDeleteलोगों का क्या है रस्म
ReplyDeleteनिभाकर निकल पड़े
मौत आएगी मिलन
को , हमें ही पता नहीं
कब जायेंगे घर छोड़ कर, सोंचा नहीं सनम ,मरने का समय तय है, पर हमको पता नहीं !
भावपूर्ण प्रस्तुति,सुन्दर गीत सतिश जी
जब तक जियेंगे, हम भी जलाये रहें दिया !
ReplyDeleteकब आसमान रो पड़े ?हमको पता नहीं !
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ! कमाल का रचना लिखा है आपने जिसके बारे में जितना भी कहा जाए कम है! शानदार प्रस्तुती!
'कब जायेंगे घर छोड़ कर, सोचा नहीं सनम ,
ReplyDeleteमरने का समय तय है, पर हमको पता नहीं !'
लापरवाह शब्द, आवारा पंक्तियाँ और एक दीवानी सी कविता जिसे सबकुछ पता होकर भी जो सबकुछ से अनजान मस्ती में चली जा रही है...बेहतरीन..
शिवमंगल सिंह जी की कविता है न सांसों का हिसाब दो।
ReplyDeleteवो तो टकरायेंगे ही सामने वाले को भी टक्कर मार देगे।
इक जिन्दगी काफी नहीं है गालिब साहेब भी कहते थे बहुत निकले मगर कम निकले।
कितने घाव लग गये हमे भी पता नहीं और किसी दूसरे को पता चलने नहीं देते।
तमाम जिस्म ही घायल था घाव ऐसा था
कोई न जान सका रख रखाव ऐसा था ।
मौत का एक दिन निश्चित है सही बात ।मगर सतीश जी कुछ लोग ऐसे भी है कि ’’मौत जब आयेगी तब आयेगी उनकी खातिर, मौत से पहले बहुत पहले ही मर जाते है। उत्तम रचना
क्यों नफरतें हैं पालते हम लोग प्यार से ! साँसे हैं, कितनी पास हमें खुद पता नहीं
ReplyDeleteअति सुंदर रचना
सच कहा है सतीश जी भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार.
क्यों नफरतें हैं पालते
ReplyDeleteहम लोग प्यार से !
साँसे हैं कितनी पास
हमें खुद पता नहीं ?
जीवन में कई मोड़ , बड़े खतरनाक है !!
सच इंसान बेवजह किसी से भी नफरत कर लेता हैं जबकि प्यार बेवजह नहीं करता ...
बहुत बढ़िया प्रस्तुति
satesh bhai ji
ReplyDeleteaapki kavita ki jitni bhi tarrif karun shayad shabd hi kam pad jayen .
koi ek pankti nahi balki puri ki puri
kavita ke shabd kkhud -b khud apne aapko charitarth kar rahen hain.
koi bhi pankti aisi nahijo dil ko na chue.kiski kiski tarrif karun------
हम रोज नए जोश में
मगरूर थे , बहुत !
यह समय कब गया
हमें खुद ही पता नहीं
चुपचाप आती मौत में , आवाज तक नहीं !
उस तीर और समय का, हमें कुछ पता नहीं
bahut bahut hi jyada pasand aai
hardik naman
poonam
चोटों को भुलाकर तेरे
ReplyDeleteहम , साथ चल दिए !
इस बार क्या करोगे
हमें ही , पता नहीं !
इक जिंदगी काफी नहीं , यह आग बुझ सके !
सौ बार जनम लेंगे ? यह हमको पता नहीं !
सतीश जी
कमाल की रचना लिखी है आज् ………ज़िन्दगी का पूरा फ़लसफ़ा गढ दिया…………हर पंक्ति दिल को छू गयी।
सतीश जी
ReplyDeleteकमाल की रचना लिखी है आज्………ज़िन्दगी का पूरा फ़लसफ़ा गढ दिया…………हर पंक्ति दिल को छू गयी।
सब कुछ समझते हुए हम सब नफरत पालते है जानते हुए .... आपकी रचना अच्छी लगी
ReplyDeleteहर बार जनम लेंगे ,
ReplyDeleteअभी ,मन भरा नहीं !......बहुत सुंदर बात कहे है |
कमाल की रचना है..बेहतरीन भावाव्यक्ति
ReplyDeleteजिंदगी प्यार का गीत है...
ReplyDeleteयही सबसे बड़ा आश्चर्य है कि हमें सब कुछ पता है फिर भी हम दंभ को छोड़ नहीं पाते चाहे भले इससे हमारे मानवीय और आत्मीय रिश्ते कुर्बान हो जाएँ !
ReplyDeleteमौत आएगी मिलन
ReplyDeleteको , हमें ही पता नहीं
कब जायेंगे घर छोड़ कर, सोंचा नहीं सनम ,
मरने का समय तय है, पर हमको पता नहीं !
बहुत सुंदर......... एक शाश्वत सत्य है
सच्ची बात, न जीवन का भरोसा, न हमराहियों का।
ReplyDeleteचित्र में यह नन्ही गुड़िया कौन है?
यह टिनी है....
ReplyDeleteपरिवार की एक प्यारी सी सदस्य
:-)
वाह.........
ReplyDeleteरहस्य के आवरण में लिपटी जिंदगी अबूझ पहेली ही तो है। कोई गर सुलझा ले तो बैचनी-बेकली से ही तो भरा रहेगा। मौत तो पैदा होते साँसों के साथ चलती है,कब गले लगायेगी क्या पता। आशा और जीने की जिजीविषा ही मनुष्य की राह प्रशस्त करती है --सभी भावों को समेटे सार्थक और सुन्दर आपके गीत।
ReplyDelete