दिवाली, जन्मदिन और वर्षगांठों पर तोहफों की सौगात, अधिकतर लोगों के चेहरों पर, रौनक लाने में कामयाब रहती है ! मगर इन चमकीले बंद डिब्बों में मुझे, स्नेह और प्यार की जगह सिर्फ मजबूरी में खर्च किये गए श्रम और पैसे , की कडवाहट नज़र आती है ! पूरे वर्ष आपस में स्नेह और प्यार से न मिल पाने की कमी, त्योहारों पर बेमन खर्च किये गए, इन डिब्बों से, पूरी करने की कोशिश की जाती है !
भारतीय समाज की यह घटिया, मगर ताकतवर रस्में, हमारे समाज के चेहरे पर एक कोढ़ हैं जो बाहर से नज़र नहीं आता मगर अन्दर ही अन्दर प्यार और स्नेह को खा जाता है !
एक समय था जब त्योहारों पर, अपने प्यारों के घर, हाथ के बने पकवान भिजवाए जाते थे उनमें प्यार की सुगंध बसी थी ! आज उन्हीं भेंटों को लेने के लिए बाज़ार जाने पर 500 रुपये से लेकर 1 लाख रुपये तक के उपहार सजे रखे होते हैं और वे डिब्बे पूंछते हैं कि बताइये कितने पैसे का प्यार चाहिए ?? जैसे सम्बन्ध वैसी गिफ्ट हाज़िर है ! बिस्कुट के डिब्बे से लेकर, पिस्ते की लौंज अथवा 600 रुपये (हूबहू बनारसी साडी) से लेकर लगभग 50000/= ( असली बनारसी ) हर रिश्ते के लिए !
प्यार भेजने में आपकी मदद करने के लिए, प्यार के व्यापारी हर समय तैयार हैं, आपकी मदद करने को !इन डिब्बों में अक्सर सब कुछ होता है , केवल नेह नहीं होता ! काश भेंट में भेजे गए, इन डिब्बों की जगह हाथ के बनाए गए ठन्डे परांठे होते तो कितना आनंद आता ... :)
इस वर्ष बेटे और बेटी के रिश्तों के ज़रिये, दो परिवार मिले हैं, मेरा प्रयास रहेगा कि इन दोनों घरों में दिखावे की भेंटे न भेजी जाएँ, न स्वीकार की जाए ! मेरा मानना है कि भेंट देने, लेने से, प्यार में कमी आती है , शिकवे शिकायते बढती हैं ! जीवन भर के यह रिश्ते अनमोल हैं, जब तक मन में प्यार की ललक न हो, पैसे खर्च कर इनका अपमान नहीं करना चाहिए !
इस पोस्ट का उद्देश्य उपहारों का विरोध नहीं हैं , उपहार प्यार और स्नेह का प्रतीक हैं, जिनके ज़रिये, हम स्नेह और लगाव प्रदर्शित करते हैं , बशर्ते कि इन डिब्बों में विवशता और दिखावे की दुर्गन्ध न आये !
आज
सुदामा के चावल याद आ रहे हैं जिनके बदले में द्वारकाधीश ने, सर्वस्व देने का मन बना लिया था !वह प्यार अब क्यों नहीं दिखता ??