ऐसे ही एक भावुक क्षण , निम्न कविता की रचना हुई है जिसमें एक स्नेही भाई और पिता की वेदना का वर्णन किया गया है .....
बेटी की विदाई के साथ ही , उसका घर, मायके में बदल जाता है , हर लड़की के लिए और उसके भाई के लिए, एक कमी सी घर में हर समय कसकती है कि कहाँ चला गया इस घर का सबसे सुंदर टुकड़ा ...फिर एक मुस्कान कि हमारी लाडो अपने घर में बहुत खुश है ...
हम दोनों जन्मे इस घर में
औ साथ खेल कर बड़े हुए
अपने इस घर के आंगन में
घुटनों बल, चलकर खड़े हुए
तू विदा हुई शादी करके
पर इतना याद इसे रखना
घर में पहले अधिकार तेरा,
मैं रक्षक हूँ , तेरे घर का !
अब रक्षा बंधन के दिन पर , घर के दरवाजे , बैठे हैं !
पहले तेरे जन्मोत्सव पर
त्यौहार मनाया जाता था !
रंगोली और गुब्बारों से !
घरद्वार सजाया जाता था !
होली औ दिवाली उत्सव
में, पकवान बनाये थे हमने
लेकिन तेरे घर से जाते ही
सारी रौनक ही चली गयी
राखी के प्रति , अनुराग लिए , उम्मीद लगाए बैठे हैं !
पहले इस घर के आंगन में
संगीत , सुनाई पड़ता था !
मुझको घर वापस आने पर ,
ये घर रोशन सा लगता था !
झंकार वायलिन की सुनकर
मेरे घर में उत्सव लगता था
जब से तू जिज्जी विदा हुई
झाँझर पायल भी रूठ गयीं
आहट पैरों की, सुनने को, हम कान लगाए बैठे हैं !
पहले घर में , प्रवेश करते ,
एक मैना चहका करती थी !
चीं चीं करती, अपनी बातें
सब मुझे सुनाया करती थी !
तेरे जाते ही चिड़ियों सी
चहकार न जाने कहां गयी !
जबसे तू विदा हुई घर से ,
हम लुटे हुए से , बैठे हैं !
टकटकी लगाये रस्ते में, घर के दरवाजे बैठे हैं !
पहले घर के, हर कोने में ,
एक गुड़िया खेला करती थी
चूड़ी, पायल, कंगन, झुमका
को संग खिलाया करती थी
पापा की लाई चीजों पर
हर बात पे झगड़ा करती थी
जबसे गुड्डे, संग विदा हुई ,
हम ठगे हुए से बैठे हैं !
कौवे की बोली सुननें को, हम कान लगाये बैठे हैं !
पहले इस नंदन कानन में
एक राजकुमारी रहती थी
हम सब उसके आगे पीछे
वो खूब लाडली होती थी
तब राजमहल सा घर लगता
हर रोज दिवाली होती थी !
तेरे जाने के साथ साथ ,
चिड़ियों ने भी, आना छोड़ा !
चुग्गा पानी को लिए हुए , उम्मीद लगाए बैठे हैं !