शोध ग्रन्थ , कैसे समझेंगे ?
हानि लाभ का लेखा लिखते ,
कवि का मन कैसे जानेंगे ?
ह्रदय वेदना की गहराई,
तुमको हो अहसास, लिखूंगा !
तुम कितने भी अंक घटाओ, अनुत्तीर्ण का दर्द लिखूंगा !
आज जोश में, भरे शिकारी
जहर बुझे कुछ तीर चलेंगे !
विष कन्या संग रात बिताते
कल की सुबह, नहीं देखेंगे !
वेद ऋचाएं समझ न पाया,
मैं ईश्वर का ध्यान लिखूंगा !
विषम परिस्थितियों में रहकर, हंस हंसकर शृंगार लिखूंगा !
शिल्प, व्याकरण, छंद, गीत ,
सिखलायें जाकर गुरुकुल में
हम कबीर के शिष्य, सीखते
बोली , माँ के आँचल से !
धोखा, अत्याचार ,दर्द में ,
डूबे, क्रन्दन गीत लिखूंगा !
जो न कभी जीवन में पाया, मैं वह प्यार दुलार लिखूंगा !
हमने हाथ में, नहीं उठायी ,
तख्ती कभी क्लास जाने को !
कभी न बस्ता, बाँधा हमने,
घर से, गुरुकुल को जाने को !
काव्य शिल्प, को फेंक किनारे,
मैं आँचल के गीत लिखूंगा !
प्रथम परीक्षा के, पहले दिन, निष्कासित का दर्द लिखूंगा !
हानि लाभ का लेखा लिखते ,
कवि का मन कैसे जानेंगे ?
ह्रदय वेदना की गहराई,
तुमको हो अहसास, लिखूंगा !
तुम कितने भी अंक घटाओ, अनुत्तीर्ण का दर्द लिखूंगा !
आज जोश में, भरे शिकारी
जहर बुझे कुछ तीर चलेंगे !
विष कन्या संग रात बिताते
कल की सुबह, नहीं देखेंगे !
वेद ऋचाएं समझ न पाया,
मैं ईश्वर का ध्यान लिखूंगा !
विषम परिस्थितियों में रहकर, हंस हंसकर शृंगार लिखूंगा !
शिल्प, व्याकरण, छंद, गीत ,
सिखलायें जाकर गुरुकुल में
हम कबीर के शिष्य, सीखते
बोली , माँ के आँचल से !
धोखा, अत्याचार ,दर्द में ,
डूबे, क्रन्दन गीत लिखूंगा !
जो न कभी जीवन में पाया, मैं वह प्यार दुलार लिखूंगा !
हमने हाथ में, नहीं उठायी ,
तख्ती कभी क्लास जाने को !
कभी न बस्ता, बाँधा हमने,
घर से, गुरुकुल को जाने को !
काव्य शिल्प, को फेंक किनारे,
मैं आँचल के गीत लिखूंगा !
प्रथम परीक्षा के, पहले दिन, निष्कासित का दर्द लिखूंगा !
प्राण प्रतिष्ठा गुरु की कब
से, दिल में, करके बैठे हैं !
काश एक दिन रुके यहाँ
हम ध्यान लगाये बैठे हैं !
जब तक तन में जान रहेगी,
एकाकी की व्यथा लिखूंगा !
कितने आरुणि, मरे ठण्ड से, मैं उनकी तकलीफ लिखूंगा !
कल्प वृक्ष के टुकड़े करते ,
जलधारा को दूषित करते !
तपती धरती आग उगलती
सूर्य तेज का, दोष बताते !
जड़बुद्धिता समझ कुछ पाए,
ऐसे मंत्र विशेष लिखूंगा !
तान सेन, खुद आकर गाएँ, मैं वह राग मेघ लिखूंगा !
भाव अर्थ ही समझ न पाए ,
विद्वानों का वेश बनाए !
क्या भावना समझ पाओगे
धन संचय के लक्ष्य बनाए !
माँ की दवा, को चोरी करते,
बच्चे की वेदना लिखूंगा !
श्रद्धा तुम पहचान न पाए, एकलव्य की व्यथा लिखूंगा !
:):):)
ReplyDeletepranam.
बढ़िया |
ReplyDeleteबधाई महोदय ||
ह्रदय वेदना की गहराई, तुमको हो अहसास, लिखूंगा !
ReplyDeleteतुम कितने भी अंक घटाओ,अनुत्तीर्ण का दर्द लिखूंगा !
जड़बुद्धिता समझ में आये , मैं वह मंत्र विशेष लिखूंगा !
तान सेन, खुद आकर गाएँ , मैं वह राग मेघ लिखूंगा !
जब तक तन में जान रहेगी, एकाकी की व्यथा लिखूंगा !
कितने आरुणि मरे ठण्ड से,मैं उनकी तकलीफ लिखूंगा !
माँ की दवा को चोरी करते , बच्चे की वेदना लिखूंगा !
श्रद्धा तुम पहचान न पाए, एकलव्य की व्यथा लिखूंगा !
..जब कुछ नया कर दिखने का जज्बा हो तभी मन में उमंग -तरंग होकर उर्जा का संचार होता है .
बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति ..
आभार आपका...
Deleteमन में इतना कुछ मचलता है...इतने विचार उमड़ते हैं......लिखना तो होगा ही......
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सतीश जी.
सादर
अनु
शुक्रिया अनु
Deleteवाह वाह जीवन के हर रूप को सहेज दिया।
ReplyDeleteबहुत ही संवेदनशील रचना ... एकलव्य को एक अलग ही पहलू से देखने का प्रयास है ... बहुत ही लाजवाब रचना ... काव्यमय अनुपम गीत ...
ReplyDeleteशुक्रिया दिगंबर भाई...
Deleteएकलव्य की व्यथा .... कितनी लिख पायेंगे ? उतनी ही , जितनी आपने जिया है
ReplyDeleteठीक कहा आपने ...
Deleteसतॊश जी बहुत सुन्दर भाव लिए सुन्दर रचना..
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteइंतजार रहेगा आपके उस लिखने का |
ReplyDeleteआभारी हैं शिल्पा जी .. ...
Deleteबहुत बढ़िया सतीश भाई ! कापी पेस्ट को माइंड ना करें सिर्फ ये बतायें कि ये कविता सही बनी या नहीं :)
ReplyDeleteहानि लाभ का लेखा करते ,
कवि का मन कैसे जानेंगे ?
नागिन के संग रात बिताते
कल की सुबह, नहीं देखेंगे
हम कबीर के शिष्य,सीखते
बोली , माँ के आँचल में !
कभी ना बस्ता बाँधा हमने,
घर से,गुरुकुल को जाने को !
तपती धरती आग उगलती
सूर्य तेज का, दोष बताते !
काश एक दिन रुके यहाँ
हम ध्यान लगाये बैठे हैं !
क्या वेदना समझ पाओगे
जग में जाते,नाम कमाने !
बहुत सही सुरताल मिलाया
Deleteसृजन इसी को कहते हैं !!
बढ़िया अंदाज़ अली भाई ...
Deleteबस लिखते रहिये ऐसे भाव प्रणय गीत..
ReplyDeleteशुक्रिया शिखा जी ..
Deleteवेद ऋचाएं समझ ना पाया,मैं ईश्वर का ध्यान करूंगा !
ReplyDeleteविषम परिस्थितियों में जीकर,मैं हंसकर श्रंगार लिखूंगा !
main bhi aisa hi kuchh chahta hoon:)
bahut behtareen sir!
शुक्रिया मुकेश ...
Deleteआरुणी , एकलव्य , और माँ की दवा को चुराता बच्चा .... बहुत भाव पूर्ण गीत ...
ReplyDeleteआभार आपका ध्यान देने के लिए ...
Deleteसतीश जी अनुतीर्ण के दर्द और एकलव्य की व्यथा कहाँ समझती है यह मतलबी दुनिया.. एक बार फिर बढ़िया गीत..
ReplyDeleteध्यान देने के लिए आभार अरुण भाई ...
Deleteजड़बुद्धिता समझ में आये ,
ReplyDeleteमैं वह मंत्र विशेष लिखूंगा !
तान सेन, खुद आकर गाएँ ,
मैं वह राग मेघ लिखूंगा !
शिल्प,व्याकरण फेंक किनारे,
मैं आँचल के गीत लिखूंगा !
प्रथम परीक्षा के पहले दिन,
निष्काषित का दर्द लिखूंगा !....आभार उपरोक्त बेहतरीन प्रस्तुति हेतु ...
( पी.एस. भाकुनी )
शुक्रिया भाकुनी जी ...
Delete'भेद, गीत और कविता में ,
ReplyDeleteबतलायें जाकर गुरुकुल में
हम कबीर के शिष्य,सीखते
बोली , माँ के आँचल में !'
वाह!
सुन्दर गीत!
शुक्रिया आपका ..
Deleteविषम परिस्थितियों में जीकर,मैं हंसकर श्रंगार लिखूंगा !
ReplyDeleteबहुत सुंदर गीत दद्दा...
आभार दीपक बाबा ..
DeleteVah!
ReplyDeleteप्राण प्रतिष्ठा गुरु की कब
ReplyDeleteसे, दिल में करके बैठे हैं !
काश एक दिन रुके यहाँ
हम ध्यान लगाये बैठे हैं !
जब तक तन में जान रहेगी, एकाकी की व्यथा लिखूंगा !
कितने आरुणि मरे ठण्ड से,मैं उनकी तकलीफ लिखूंगा !
बहुत सुन्दर गीत है सतीश जी. आभार.
शुक्रिया विनीता जी ...
Deleteक्या बात है!!!!
ReplyDeleteशुक्रिया वंदना जी ..
Deleteकल्प वृक्ष के टुकड़े करते ,
ReplyDeleteजलधारा को दूषित करते !
तपती धरती आग उगलती
सूर्य तेज का, दोष बताते !
जड़बुद्धिता समझ में आये , ऐसे मंत्र विशेष लिखूंगा !
तान सेन, खुद आकर गाएँ,मैं वह राग मेघ लिखूंगा !
सतीश जी,
बहुत सुंदर रचना मन को मोह गई !
स्वागत है आपका ..
Deleteबहुत सुंदर गीत लिखा है सतीश भाई। शब्द शब्द मोती जैसे पिरोए हैं। आभार
ReplyDeleteध्यान देने के लिए आभार आपका !
Deleteवेदना हो या व्यथा बस आप लिखते रहिये... शुभकामनायें...
ReplyDeleteसुन्दर कविता...बहुत सुंदर..
ReplyDeleteआज तो हुंकार ही उठा है कवि-खुदा खैर करे..
ReplyDeleteएक उत्कृष्ट गीत !
गहरी व्यथा -- मन की गहराई से लिखा गीत .
ReplyDeleteहमेशा की तरह अपने अंदाज़ में सुन्दर रचना .
ह्रदय वेदना की गहराई, तुमको हो अहसास, लिखूंगा !
ReplyDeleteतुम कितने भी अंक घटाओ,अनुत्तीर्ण का दर्द लिखूंगा !
बहुत सुंदर मनमोहक गीत. खूबसूरत हृदयोदगार.
एकलव्य की व्यथा लिखूंगा !
ReplyDeleteएकलव्य प्रतीक्षारत है व्यथा की अंतर्कथा पहचानने वाले की
माँ की दवा, को चोरी करते , बच्चे की वेदना लिखूंगा !
ReplyDeleteश्रद्धा तुम पहचान न पाए, एकलव्य की व्यथा लिखूंगा !
.....अद्भुत भावमयी रचना...शब्दों और भावों का अद्भुत संयोजन...नमन आपकी लेखनी को..
आभार भाई जी,
Deleteआपका आशीर्वाद फलीभूत होगा !
शब्द अर्थ ही जान न पाए
ReplyDeleteवाचक्नवी का वेश बनाए !
क्या वेदना समझ पाओगे
जग में जाते,नाम कमाने !
माँ की दवा, को चोरी करते , बच्चे की वेदना लिखूंगा !
श्रद्धा तुम पहचान न पाए, एकलव्य की व्यथा लिखूंगा !
बहुत बढ़िया गीत !! सच है एकलव्य की कथा ,उस का दु:ख मन को बहुत व्यथित करता है
मनभावों की प्रवाहमयी सरिता..
ReplyDelete"एकलव्य की व्यथा " इसी में सब कुछ समाहित कर दिया आपने | उत्कृष्ट संरचना भावों की |
ReplyDeleteआभार आपका ...
Deleteआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 05 -07-2012 को यहाँ भी है
ReplyDelete.... आज की नयी पुरानी हलचल में .... अब राज़ छिपा कब तक रखे .
माँ की दवा, को चोरी करते बच्चे की वेदना लिखूंगा !
ReplyDeleteश्रद्धा तुम पहचान न पाए,एकलव्य की व्यथा लिखूंगा !
बहुत उम्दा अभिव्यक्ति,,,उत्कृष्ट रचना,,,,सतीस जी
MY RECENT POST...:चाय....
विषम परिस्थितियों की मनोदशा और मनोव्यथा का जीवंत और सजीव चित्रण।
ReplyDeleteगुरु ही पार लगाएगा।
शुक्रिया मनोज भाई ..
Deleteविषम परिस्थितियों में जीकर,मैं हंसकर श्रंगार लिखूंगा !
ReplyDeleteआपकी सकारात्मक और जीवंत सोच हमेशा प्रभावित करती है.....
आभार डॉ मोनिका ...
Delete..इस कविता में एक संकल्प और तड़प है जिससे लगता है कि आगे आने वाले दिनों में हमें और अच्छी रचनाएँ मिलेंगी !
ReplyDeleteपता नहीं संतोष जी,
Deleteअच्छी रचनाएं तब हैं जब लोग समझ पायें , तरह तरह से लोग कविताओं में भी शाब्दिक अर्थ तलाशते हैं यह कष्ट दायक है और अर्थ का अनर्थ निकलते हैं !
आभार आपकी आशाओं के लिए !
.
ReplyDelete.
.
जो जो लिखने का आप वादा कर रहे हैं इस रचना में, वह सब आप लिखें... शुभकामनायें...
...
स्वागत है आपका प्रवीण भाई ...
Deleteप्राण प्रतिष्ठा गुरु की कब
ReplyDeleteसे, दिल में करके बैठे हैं !
काश एक दिन रुके यहाँ
हम ध्यान लगाये बैठे हैं !
जब तक तन में जान रहेगी, एकाकी की व्यथा लिखूंगा !
कितने आरुणि मरे ठण्ड से,मैं उनकी तकलीफ लिखूंगा !
अनुपम प्रस्तुति .बढ़िया प्रस्तुति सतीश जी .
Read more: http://satish-saxena.blogspot.com/2012/07/blog-post.html#ixzz1zw4B30hY
शुक्रिया वीरू भाई ...
Deleteबहुत ही संवेदनशील रचना "एकलव्य की व्यथा "...बहुत बढ़िया
ReplyDeleteव्यथा को वाणी और श्रद्धा को संकल्प देता गीतकार
ReplyDeleteहानि लाभ का लेखा करते कवि का मन कैसे जानेंगे ?
ReplyDeleteतुम कितने भी अंक घटाओ,अनुत्तीर्ण का दर्द लिखूंगा !
शिल्प,व्याकरण फेंक किनारे,मैं आँचल के गीत लिखूंगा !
प्रथम परीक्षा के पहले दिन, निष्काषित का दर्द लिखूंगा !
इतना सब कुछ ख़ास लिख तो दिया है !
बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ ...
हानि लाभ का लेखा करते कवि का मन कैसे जानेंगे ?
ReplyDeleteतुम कितने भी अंक घटाओ,अनुत्तीर्ण का दर्द लिखूंगा !
बेहद सशक्त भाव ...आभार आपका
जड़बुद्धिता समझ में आये , ऐसे मंत्र विशेष लिखूंगा !
ReplyDeleteतान सेन, खुद आकर गाएँ,मैं वह राग मेघ लिखूंगा !........बहुत बढ़िया
duniya ke dard ke alawa bhee duniya main bahut kuch hai ....
ReplyDeletejai baba banaras....
जय हो ... जय हो ...
ReplyDeleteआपके इस खूबसूरत पोस्ट का एक कतरा हमने सहेज लिया है क्रोध की ऊर्जा का रूपांतरण - ब्लॉग बुलेटिन के लिए, पाठक आपकी पोस्टों तक पहुंचें और आप उनकी पोस्टों तक, यही उद्देश्य है हमारा, उम्मीद है आपको निराशा नहीं होगी, टिप्पणी पर क्लिक करें और देखें … धन्यवाद !
बहुत श्रेष्ठ गीत है सतीश भाई।
ReplyDeleteआभार आपका ...
Deleteवाह, विषम परिस्थितियों से उपजे दर्द को कितनी भावुकता से शब्दों में ढाला है । आपकी लेखनी को नमन आप और सुंदर सुंदर गीत लिखते जायें ।
ReplyDeletejiske hisse jitna dard aaya,
ReplyDeleteuse vah shabdo me dhalega....
aaj ek bin guru (maa) ka baccha
ek-lavy ka dard sawaarega.....!!
badhayi.....ham intzaar karenge....
आपकी कविता पढ़ते पढ़ते खो जाता हु. बहुत आनंद आता है. प्रेरणा मिलती है की मैं भी कुछ ऐसा ही लिखु जी. जीवन के बहुत गहरे ,तीखे, अनुभवों को अपनी कविता मे बहुत ही सरल शब्दों मे व्यक्त करते है आप. शब्दों के साथ चित्र भी चलते रहते है . . . . बहुत खूब जी .
ReplyDeleteशुक्रिया रावत भाई ,
Deleteआपके शब्द प्रेरणास्पद हैं !
बहुत ही प्रशंसनीय कविता जो कई काथाओं के प्रति संवेदना जगाती चलती है. आप की यह कविता भा गई भाई जी.
ReplyDeleteमेरा ये मानना हैं कि हर इंसान इस जीवन में एकलव्य हैं ......और ये ही जीवन का सार भी हैं ...सादर
ReplyDeleteकल्प वृक्ष के टुकड़े करते ,
ReplyDeleteजलधारा को दूषित करते !
तपती धरती आग उगलती
सूर्य तेज का, दोष बताते !
जड़बुद्धिता समझ कुछ पाए,ऐसे मंत्र विशेष लिखूंगा !
तान सेन, खुद आकर गाएँ,मैं वह राग मेघ लिखूंगा
बहुत सुन्दर भावमय हृदय को आंदोलित करता गीत.
पढकर भाव विभोर हो उठा हूँ.
बहुत ही मार्मिक एवं ह्रदय को छु लेने वाली रचना .एक पुत्र की टीस अपने अधूरे ज्ञान की आपने अच्छे तरीके से उकेरने में सफलता पाई है .मैंने आपको अपने ब्लाग के पठनीय सामग्री में जोड़ लिया है ,जिससे भविष्य में भी आपके सुन्दर रचनाओं का स्वाद ले सकूं.
ReplyDeleteबहुत ही मार्मिक एवं ह्रदय को छु लेने वाली रचना .एक पुत्र की टीस अपने अधूरे ज्ञान की आपने अच्छे तरीके से उकेरने में सफलता पाई है .मैंने आपको अपने ब्लाग के पठनीय सामग्री में जोड़ लिया है ,जिससे भविष्य में भी आपके सुन्दर रचनाओं का स्वाद ले सकूं.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना !
ReplyDeleteजीवन की सच्चाई और कविता के रूप में...बहुत ही सशक्त भाव प्रकट किये हैं, शुभकामनाएं.रामराम.
ReplyDeleteवाह सतीश जी गजब की कविता, गजब के अंदाज में ।
ReplyDeleteबेहतरीन रचना है आपकी
ReplyDeleteमाँ की दवा, को चोरी करते , बच्चे की वेदना लिखूंगा !
ReplyDeleteश्रद्धा तुम पहचान न पाए,एकलव्य की व्यथा लिखूंगा--क्या मोहक अभिव्यक्ति है।