निर्णयकारी मुस्कान तेरी, निश्छल निर्मल निर्झरिणी सी !
ध्रुवनंदा सी विशुद्ध मोहक ,मंदिर में, पद्मज्योति जैसी !
अनुराग मयी जब से आयी, जीवन में बही ,मंदाकिनि सी !
नैसर्गिक प्रतिभा, की स्वामिनि, मेधावी, वीणावादिनि सी !
कंठस्थ ऋचाएँ , मद्धम स्वर, दिखती है, क्षीर केसरी सी !
तस्बीह के दानों जैसी वह ,लगती है सदा, पाकीज़ा सी !
मरियम सी लगे, सीता सी लगे, लगती है कभी ज़हरा जैसी !
सज़दे में झुके सिर, मस्जिद में, मंदिर में नमे ,गंगा जैसी !
घंटियों ,अज़ान के आवाहन, कानों में मधुर गुरुवाणी सी !
आनंदमयी!
ReplyDeletebahut sundar .aaj aapka blog mil hi gaya .....sundar rachna hardik badhai aapko follow kar liya hai ab :)
Deleteयह अनहद नाद और नैसर्गिक मुस्कान कहाँ से भाई -यह तो लौकिक नहीं है !
ReplyDeleteशुक्रिया आपका ..
Deleteवाह वाह बहोत खुब ....आनंदमयी!
ReplyDeleteवाह...
ReplyDeleteसुन्दर...अति सुन्दर.........
सादर
अनु
आदरणीय सतीश जी,
ReplyDeleteनिः शब्द करती रचना है , आप ही रच सकते हैं। आभार हम सभी के साथ साझा करने के लिए।
सादर
इंदु
बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteआदरणीय सतीश जी,
ReplyDeleteनिः शब्द करती रचना है , आप ही रच सकते हैं। आभार हम सभी के साथ साझा करने के लिए।
सादर
इंदु
वाह बहुत ही मनमोहक शब्दों में रची पंक्तियाँ....
ReplyDeleteएक एक शेर, एक एक शब्द मोतियों जैसा गुंथा हुआ है. बिल्कुल अलौकिक सा.
ReplyDeleteआपकी सर्वश्रेष्ठ रचनाओं में से एक.
रामराम.
धन्यवाद ताऊ ...
Deleteबार बार पढने का मन कर रहा है. ऐसी रचनाएं अनायास ही जन्म ले लेती हैं.
ReplyDeleteरामराम.
सज़दे में झुके सिर,मस्जिद में ,मंदिर में नमे,गंगा जैसी !
ReplyDeleteघंटियों, अज़ान के आवाहन ,कानों में मधुर गुरुवाणी सी !
वाह !!! बहुत उम्दा मन मोहक प्रस्तुति,,,
RECENT POST: गुजारिश,
मनमोहक .......अति सुंदर रचना
ReplyDeleteअति सुन्दर.
ReplyDeleteअति सुन्दर.
ReplyDeleteमुस्कान किसे नहीं अच्छी लगती
ReplyDeleteऔर जब वरदान में मुस्कान मिले तो बात ही कुछ और है
बहुत ही सुन्दर
सादर आभार !
बहुत बार मन होता है कोई अच्छी-सी रचना लिखी जाय लेकिन शब्दों के साथ कई बार भाव साथ ही नहीं देते किन्तु कभी कभी अनायास ऐसी रचना लिखने से ज्यादा मै कहूँगी झर जाती है ह्रदय से,कुछ ऐसे ही इस रचना में पढने को मिला है .....एक उत्कृष्ट रचना पढ़ने का आनंद ही कुछ और होता है .....शब्द योजना भाव संयोजन सब कुछ उत्कृष्ट लगा, मन प्रसन्न हुआ पढ़कर ....बहुत बहुत बधाई सतीश जी,
ReplyDeleteआपके ह्रदय से निकले शब्द उत्साहवर्धक हैं ..
Deleteवाकई कई बार शब्द झर जाते हैं ! यह रचना खुद मुझे भी अच्छी लगी है ..
आभार !
ध्रुवनंदा सी विशुद्ध मोहक ,मंदिर में, पद्मज्योति जैसी !
ReplyDeleteअनुराग मयी जब से आयी, जीवन में बही ,मंदाकिनि सी !
सुन्दर पंक्तियाँ ...प्रेरक, भावपूर्ण रचनाओं के भाव निर्झर यूँही बहते रहे
आभार ...!
बहुत सुंदर रचना,
ReplyDeleteआपके ब्लाग पर आना ही एक खुशी देता है।
रचना पढ़ने के बाद सच में आनंद की ऐसी अनुभूति होती है जिसे शब्दों में नहीं कहा जा सकता है। बहुत बढिया..
सुन्दर शब्दों में गुंथी हुई मोहक रचना.
ReplyDeleteअति सुंदर ..... मनमोहक भाव
ReplyDeletewaah ...bahut sundar rachna ...!!
ReplyDeleteसुन्दर शब्दों से सुसज्जित सुरमयी अलंकृत रचना।
ReplyDeleteअच्छी लगी यह रचना।
ReplyDeleteआनंदमयी शब्द पर चौंका, माँ आनंदमयी को समर्पित जैसा लगा। शायद आप परिचित न हों, नेट में यह लिंक मिला...http://www.dharmchakra.com/detail.php?view=1&id=3
आनंदमयी का शाब्दिक अर्थ लें देवेन्द्र भाई ..
Deleteयहाँ माँ आनंदमयी से कुछ लेना देना नहीं है !
वाह बहुत ही सुंदर,
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी
यहाँ भी पधारे ,
रिश्तों का खोखलापन
http://shoryamalik.blogspot.in/2013/07/blog-post_8.html
अलौकिक मुस्कान का शब्द चित्र खींच दिया ... बहुत सुंदर
ReplyDeleteअनायास ही मिली ऐसी अनुभूतियाँ भी एक उपलब्धि है । तभी तो वह काव्य बन कर प्रकट हुई है ।
ReplyDeleteकसम खुदा की ऐसी ही मुस्कुराहटें देख आया हूँ भगवान के घर में जहां स्वयं भगवान ही होस्ट था उस जगह का नाम है -पीस विलेज ,ए ब्रह्माकुमारीस री -ट्रीट सेंटर ,पता है ,
ReplyDelete54 ,O'Hara Road (at Route 23 A ).Haines Falls ,New-York 124 36
Phone :518 -589 -50000
peace-village@bkwsu.org
लेकिन आपने वहां जाए बगैर इतनी सुन्दर रचना लिख दी बुद्धि की आँखों से सचमुच त्रिनेत्रीं हैं आप .
तस्बीह के दानों जैसी वह , लगती है सदा , पाकीज़ा सी !
मरियम सी कभी,सीता सी कभी और चाहे बनना ज़हरा सी !
हाँ ऐसी इच हैं ये सब शिव -शक्तियां .इनमें अमरीकी भी हैं .
ॐ शान्ति .
बहुत खूब .
आपको बधाई वीरू भाई !!
Deleteमन को गहराई तक छू गयी .बहुत सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति आभार इमदाद-ए-आशनाई कहते हैं मर्द सारे आप भी जानें संपत्ति का अधिकार -5.नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN हर दौर पर उम्र में कैसर हैं मर्द सारे ,
ReplyDeleteनिर्मल शब्द . पढ़ के बहुत अच्छा लगा.
ReplyDeleteबहुत दिनों बाद अच्छा सा शब्दचित्र पढ़ा देखा और महसूस किया
ReplyDeleteनिश्मुछल स्कान की दिव्यता को कितने कौशल से व्यक्त कर दिया -आभार !
ReplyDeleteसज़दे में झुके सिर, मस्जिद में, मंदिर में नमे ,गंगा जैसी !
ReplyDeleteघंटियों ,अज़ान के आवाहन, कानों में मधुर गुरुवाणी सी !
सुप्रभात ह्रदय को छू देने वाली गरिमा से भरी सुन्दर छवि लिए कल्पना जो साकार है यही बस कभी कभी ही अनुभूत होते है .
आनंद आनंद और आनंद
कविता सहज ही मुस्कराहट लिए आती है ...
ReplyDeleteअच्छा प्रयास है,
ReplyDeleteलिखते रहिये ...
आप भी लिखा करें प्रभू ...
Delete
ReplyDeleteनैसर्गिक प्रतिभा, की स्वामिनि, मेधावी ,वीणा वादिनि सी ,
कंठस्थ ऋचाएं मद्धम स्वर ,दिखती है ,क्षीर औ केसर सी !
तस्बीह के दानों जैसी वह , लगती है सदा , पाकीज़ा सी !
मरियम सी कभी,सीता सी कभी और चाहे बनना ज़हरा सी !
सज़दे में झुके सिर, मस्जिद में, मंदिर में नमे ,गंगा जैसी !
घंटियों ,अज़ान के आवाहन, कानों में मधुर गुरुवाणी सी !
बढ़िया प्रस्तुति -शुभकामनायें-
बहुत खुबसूरत रचना ....
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन लिखा है सतीश भाई... ज़बरदस्त!
ReplyDeleteसुन्दर गीत है आदरणीय सतीश जी-
ReplyDeleteआभार आपका
आपके शब्द महत्वपूर्ण हैं रविकर भाई ! आभार आपका ..
Deleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteहँसना ही क्या ...आज जीवन जीना भी बहुत मुश्किल सा हो गया
ReplyDeleteसज़दे में झुके सिर, मस्जिद में, मंदिर में नमे ,गंगा जैसी !
ReplyDeleteघंटियों ,अज़ान के आवाहन, कानों में मधुर गुरुवाणी सी !
बढ़िया प्रस्तुति
तस्बीह के दानों जैसी वह ,लगती है सदा, पाकीज़ा सी !
ReplyDeleteमरियम सी कभी,सीता सी कभी और चाहे बनना ज़हरा सी !
वाह ! बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति , लाजवाब
बहुत ही सुन्दर रचना ... एक मुस्कान भी क्या क्या रच सकती है ... लाजवाब सतीश जी ...
ReplyDeleteवाणी में आत्मीयता हो, प्यार हो, सहायता करने की उत्कण्ठा हो, तो निश्चय ही आपके स्वप्न साकार होंगे। बहुत सुन्दर पंक्तियाँ...
ReplyDeleteatiutam- ****
ReplyDeleteसज़दे में झुके सिर, मस्जिद में, मंदिर में नमे ,गंगा जैसी !
ReplyDeleteघंटियों ,अज़ान के आवाहन, कानों में मधुर गुरुवाणी सी !
सुन्दरम मनोहरम .ॐ शान्ति
बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...
ReplyDeleteइधर आ नहीं पाया पर क्या जबरदस्त लिखा है आप ने....वाह... उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteVery sweat lekhani hai sir, thanks for shareing.
ReplyDeleteतस्बीह के दानों जैसी वह ,लगती है सदा, पाकीज़ा सी !
ReplyDeleteमरियम सी लगे,सीता सी लगे,लगती है कभी ज़हरा जैसी --इस जहाँ की नहीं लगती वो --विलक्षण अनुभूति. . खूबसूरत शब्द।