आदिकाल से,सुंदरता पर,देव पुरुष, मर मिटते देखे !
अपनी गलियों में,अक्सर ही,हमने गौतम लुटते देखे !
बड़े बड़े लोगों के घर में, जाने क्यों, सन्नाटा रहता !
जानें कितने रजवाड़ों में, लोगों के मुंह, ताले देखे !
क्यों इतना विश्वास दिलाते ,लोगों को हैरानी होगी !
हमने इस खातिर के पीछे, खड़े हुए अनजाने देखे !
अपनी भूल छिपाकर कैसे ,सारे जग का दोष बताएं !
शकल से जो,सीधे लगते हैं,अक्सर वही सयाने देखे !
अपनी सत्ता के घमंड में,मेधा का अपमान न करना !
हमने अक्सर,ब्रूटस द्वारा, घर में , सीज़र मरते देखे !
अपनी गलियों में,अक्सर ही,हमने गौतम लुटते देखे !
बड़े बड़े लोगों के घर में, जाने क्यों, सन्नाटा रहता !
जानें कितने रजवाड़ों में, लोगों के मुंह, ताले देखे !
क्यों इतना विश्वास दिलाते ,लोगों को हैरानी होगी !
हमने इस खातिर के पीछे, खड़े हुए अनजाने देखे !
अपनी भूल छिपाकर कैसे ,सारे जग का दोष बताएं !
शकल से जो,सीधे लगते हैं,अक्सर वही सयाने देखे !
अपनी सत्ता के घमंड में,मेधा का अपमान न करना !
हमने अक्सर,ब्रूटस द्वारा, घर में , सीज़र मरते देखे !
सार्थक गज़ल है… आभार!!
ReplyDeleteअपनी सत्ता के घमंड में,प्रतिभा का अपमान न करना
हमने अक्सर,ब्रूटस द्वारा, घर में , सीज़र मरते देखे!
वाकई घमण्ड सर्वनाशी होता है।
बडे बडे लोगों के घर में,
ReplyDeleteजाने क्यों, सन्नाटा रहता!
हमने अक्सर रजवाड़ों में,
लोगों के मुँह, ताले देखे!.....वाह, सर जी!
ReplyDeleteसबसे पहले , सावधान ही रहना, अपने आसपास से !
हमने कितनी बार,घरों में लुटते,घर के मालिक देखे !
अपनी सत्ता के घमंड में,प्रतिभा का अपमान न करना
हमने अक्सर,ब्रूटस द्वारा, घर में ,सीज़र मरते देखे !
जिसने, तुमको बेटी दी है, उनको ही, सर माथे रखना !
हमने अक्सर अहंकार में, हँसते चमन,उजड़ते देखे !
सटीक....बधाई!
बहुत सुंदर रचना, क्या कहने । लेकिन किया क्या जाए ...
ReplyDeleteकिसको अपने गीत सुनाएं,
जग सारा बहरा लगता है।
अहंकार में चमन उजड़ ही जाते हैं , रावण की लंका भी तो !
ReplyDeleteवाणी जी,
Deleteमुझे लगता है कि सतीश भाई का इशारा जिस ओर है वो लंका अभी उजड़ी नहीं है :)
अगर अहंकार सहलाने वाले ही बचे रहे तो लंका का बसे रहना भी कोई बसना है.... :)
Deleteसच है कि बेटी देने वाला बडा होता है।
ReplyDeleteघुमावदार सड़कों के उस पार क्या होगा, कहाँ समझ आ पाता है? बहुत सुन्दर..
ReplyDeleteअंधें गूंगों की बस्ती में किससे रोएं किससे गएँ ,सुन्दर अति सुन्दर
ReplyDeleteअंधें गूंगों की बस्ती में किससे रोएं किससे गएँ ,सुन्दर अति सुन्दर
ReplyDeleteमत पूछो इस दुनिया में क्या क्या देखा..बहुत सुन्दर..
ReplyDeleteसभी शेर अपने आपमे गहन अर्थ लिये हुये लाजवाब है, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
जिसने, तुमको बेटी दी है, उनको ही, सर माथे रखना !
ReplyDeleteहमने अक्सर अहंकार में, हँसते चमन,उजड़ते देखे !
आपके इस शेर से याद आया कि आजकल कुछ लडके वालों को सींग निकल आये हैं इनके सींग ठीक करने की समाज को आज बहुत ज्यादा जरूरत है.
रामराम.
gahan bhav aur gambhir rachna
ReplyDeleteबहुत सुंदर गेय रचना..जीवन बोध दिलाती पंक्तियाँ...
ReplyDeleteअपनी भूल छिपाकर कैसे ,सारे जग का दोष बताएं
ReplyDeleteशकल से जो,सीधे लगते हैं,अक्सर वही सयाने देखे ..
हकीकत के रंग में लिखी राक्स्हना ... हर छंद लाजवाब ...
जिसने, तुमको बेटी दी है, उनको ही, सर माथे रखना !
ReplyDeleteवाह..
बहुत सुंदर .... अच्छी सीख देती गज़ल
ReplyDeleteगौतम लुट रहे हैं और अंगुलिमाल हाथ का पंजा बन कर लूट रहे हैं।
ReplyDeleteएकसे एक बढ़िया शेर है किसे कोट करे किसे छोड़े,
ReplyDeleteसार्थक सन्देश देती सुन्दर गजल है !
सुन्दर रचना-
ReplyDeleteआदरणीय सतीश जी
बधाई ||
ग़ज़ल की हर एक पंक्ति अर्थ लिए हुए... बहुत सुंदर अभिव्यक्ति .......!!
ReplyDeleteहमेशा की तरह बहुत सुंदर
ReplyDelete....वाह !
ReplyDeleteलाजवाब .........।
पाँचवें शेर को थोड़ा साधिए बस ।
ध्यान दिलाने के लिए धन्यवाद पंडित ,
Deleteबदल दिया !
ये लेओ मेरे मित्र का चेला भी गुरु हो गया :)
Deleteवाह बहुत सार्थक लेखन है ...गजल के नाम से लगता था के कुछ उदासी भरा या प्रेम में पगा हुआ होगा मगर यहाँ आकर पता चला गजल जागरूकता भरी भी हो सकती हैं ..बहुत बहुत शुक्रिया ऐसे गजल पढवाने के लिए :-)
ReplyDeleteमन के अनकहे भावो को इस रचना में बहा दिया ..आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा में मेरी नयी रचना Os ki boond: मन की बात ...
भाई ब्रजमोहन श्रीवास्तव का सारगर्भित कमेन्ट फेसबुक पर था , यहाँ दे रहा हूँ ...
ReplyDeleteजो कुछ देखा बिल्कुल सही देखा ..
सुन्दरता पर मर मिटना स्वाभाविक ही है
'भ्राता पिता पुत्र उरगारी
पुरुष मनोहर निरखत नारी
अपवाद—
पन्नगारि यह नीति अनूपा
नारि न मोह नारि के रुपा
——
सच है ज्यादा विश्वास नहीं दिलाना चाहिये
'खताबार समझेगी दुनियां तुझे
तू इतनी जियादा सफाई न दे'
नेह और अनुराग हर कोई कहां समझता है
जिसने तुमको बेटी दी है— काश लोग
इसे गम्भीरता से समझें
अहंकार का कोई मुकाबला नहीं
ReplyDeleteकाजल भाई ,
Deleteआप तो 'अहंकार' को यूं चढ़ा रहे हैं कि जैसे नम्रता / प्रेम वगैरह वगैरह के मुकाबिले ही मुकाबिले हों :)
बढियां गीत
ReplyDeleteएक एक शब्द अपने आप में बहुत बड़ी बात कह रहा है, इतने सुंदर और शिक्षापर्द बातो को हमसे साझा करने के लिये आपका तहे दिल से आभार व्यक्त करता हूँ, हम नए नए लिखने वालो के लिये आपकी रचनाये वरदान से कम नही है, और उम्मीद करता हूँ कि जैसे आप समय समय पर मेरी रचनाओ को पढ़कर मेरी गलतियाँ मुझे बताते है, आपका ये स्नेह हमेशा मुझ पर यूँ ही बना रहेगा,
ReplyDelete
ReplyDeleteअपनी भूल छिपाकर कैसे ,सारे जग का दोष बताएं
शकल से जो,सीधे लगते हैं,अक्सर वही सयाने देखे !-------
वाह- जीवन के मर्म को समझाती सुंदर और सार्थक अनुभूति
सादर
बहुत बढिया गज़ल, अलग सी भी ।
ReplyDeleteअपनी भूल छिपाकर कैसे ,सारे जग का दोष बताएं
ReplyDeleteशकल से जो,सीधे लगते हैं,अक्सर वही सयाने देखे !-------
सुंदर सीख देती गजल ....!!
शुक्रिया भाई साहब उत्साह बढाने का .ॐ शान्ति .चार दिनी सेमीनार में ४ -७ जुलाई ,२ ० १ ३ ,अल्बानी (न्युयोर्क )में हूँ .ॐ शान्ति .
ReplyDeleteअपनी भूल छिपाकर कैसे ,सारे जग का दोष बताएं
शकल से जो,सीधे लगते हैं,अक्सर वही सयाने देखे
बेहद सटीक अर्थ पूर्ण व्यंग्य विडंबन .मजा आ गया प्रस्तुति में .ॐ शान्ति .
आदिकाल से,सुंदरता पर,देव पुरुष, मर मिटते देखे !
ReplyDeleteअपनी गलियों में,अक्सर ही,हमने गौतम लुटते देखे !
बड़े बड़े लोगों के घर में, जाने क्यों, सन्नाटा रहता !
हमने अक्सर रजवाड़ों में, लोगों के मुंह, ताले देखे,,,आपस में ही लड़ते देखे
क्यों इतना विश्वास दिलाते ,लोगों को हैरानी होगी !
हमने इस खातिर के पीछे , खड़े हुए अनजाने देखे..लोगों को है खटते देखे
अपनी भूल छिपाकर कैसे ,सारे जग का दोष बताएं
शकल से जो,सीधे लगते हैं,अक्सर वही सयाने देखे,, अक्सर वही सयाने हमने शकल से सीधे लगते देखे
नेह और अनुराग न समझें, हठी,घमंडी,ग्यानी भारी
हमने कितनी बार,घरों में लुटते,घर के मालिक देखे,,,मालिक के,घर को लुटते देखे
अपनी सत्ता के घमंड में,प्रतिभा का अपमान न करना
हमने अक्सर,ब्रूटस द्वारा, घर में ,सीज़र मरते देखे !
जिसने, तुमको बेटी दी है, उनको ही, सर माथे रखना !
हमने अक्सर अहंकार में, हँसते चमन,उजड़ते देखे !
सुंदर सृजन,बहुत उम्दा गजल ,,
RECENT POST: जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें.
तमाशा-ए-अहले करम देखते हैं,
ReplyDeleteबहुत खूब, बड़े भाई।
आदिकाल से,सुंदरता पर,देव पुरुष, मर मिटते देखे !
ReplyDeleteअपनी गलियों में,अक्सर ही,हमने गौतम लुटते देखे !
बड़े बड़े लोगों के घर में, जाने क्यों, सन्नाटा रहता !
हमने अक्सर रजवाड़ों में, लोगों के मुंह, ताले देखे,,,आपस में ही लड़ते देखे
क्यों इतना विश्वास दिलाते ,लोगों को हैरानी होगी !
हमने इस खातिर के पीछे , खड़े हुए अनजाने देखे..लोगों को है खटते देखे
अपनी भूल छिपाकर कैसे ,सारे जग का दोष बताएं
शकल से जो,सीधे लगते हैं,अक्सर वही सयाने देखे,, अक्सर वही सयाने हमने शकल से सीधे लगते देखे
नेह और अनुराग न समझें, हठी,घमंडी,ग्यानी भारी
हमने कितनी बार,घरों में लुटते,घर के मालिक देखे,,,मालिक के,घर को लुटते देखे
अपनी सत्ता के घमंड में,प्रतिभा का अपमान न करना
हमने अक्सर,ब्रूटस द्वारा, घर में ,सीज़र मरते देखे !
जिसने, तुमको बेटी दी है, उनको ही, सर माथे रखना !
हमने अक्सर अहंकार में, हँसते चमन,उजड़ते देखे !
सुंदर सृजन,बहुत उम्दा गजल ,,
RECENT POST: जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें.
शुक्रिया धीरेन्द्र जी आपका ..
ReplyDeleteगौर करता हूँ !
जिसने, तुमको बेटी दी है, उनको ही, सर माथे रखना !
ReplyDeleteहमने अक्सर अहंकार में, हँसते चमन,उजड़ते देखे !
खुबसूरत ही नहीं बेहतरीन गीत
बेहतरीन ग़ज़ल,सार्थक भावों के साथ,सार्थक सन्देश देती ....
ReplyDeleteस्वस्थ रहें भाई जी !
गहन भावों को अभिव्यक्त करती शानदार रचना
ReplyDeleteहमने अक्सर अहंकार में, हँसते चमन,उजड़ते देखे!
ReplyDelete...वाह!
लाजवाब ग़ज़ल है.
ReplyDeletebahut umda :)
ReplyDeleteलाजवाब...
ReplyDeleteसार्थक भाव लिए बेहतरीन रचना..
:-)
आदिकाल से,सुंदरता पर,देव पुरुष, मर मिटते देखे !
ReplyDeleteअपनी गलियों में,अक्सर ही,हमने गौतम लुटते देखे !
आजकल ऐसे गौतामों की कमी नहीं है।
सुन्दर भाव।
जिसने, तुमको बेटी दी है, उनको ही, सर माथे रखना !
ReplyDeleteहमने अक्सर अहंकार में, हँसते चमन,उजड़ते देखे !
सुन्दर प्रस्तुति सतीश जी कहना चाहूँगा
क्या क्या न देखा हमने घर बनते उजड़ते देखे,
रिश्तों की बात करें तो,बनते और बिगड़ते देखे
अपनी सत्ता के घमंड में,प्रतिभा का अपमान न करना
ReplyDeleteहमने अक्सर,ब्रूटस द्वारा, घर में ,सीज़र मरते देखे !
...............वाह, सतीश सर जी!
फुर्सत मिले तो शब्दों की मुस्कराहट पर......Recent Post बड़ी बिल्डिंग के बड़े लोग :) पर ज़रूर आईये
ReplyDeleteसब कुछ अनुभवसिद्ध और प्रभावशाली !
ReplyDeleteब्रूटस और सीजर की दिल दहलाने वाली घटना ने इस कविता में गहरे रंग भर दिए हैं।
ReplyDeleteहर पंक्ति, कुछ समझाती सिखाती सी..... बहुत सुंदर
ReplyDeleteजिसने, तुमको बेटी दी है, उनको ही, सर माथे रखना !
ReplyDeleteहमने अक्सर अहंकार में, हँसते चमन,उजड़ते देखे !
Behatarin kavita..uprokt lines ke dil ko chhu liya..Thank You!!
अपनी भूल छिपाकर कैसे ,सारे जग का दोष बताएं !
ReplyDeleteशकल से जो,सीधे लगते हैं,अक्सर वही सयाने देखे !
प्रभावी प्रस्तुति।।।
ज़माने भर की सार्थक शिक्षा पढ़ने को मिली ...सादर
ReplyDeleteबहुत सार्थक रचना .. आपकी इस उत्कृष्ट रचना कि प्रविष्टि कल रविवार ब्लॉग प्रसारण http://blogprasaran.blogspot.in/ पर भी .. कृपया पधारें ..
ReplyDeleteअपनी भूल छिपाकर कैसे ,सारे जग का दोष बताएं
ReplyDeleteशकल से जो,सीधे लगते हैं,अक्सर वही सयाने देखे,,
वाह!आप ने तो हर शेर में वास्तविकता लिख दी है.
बहुत उम्दा ग़ज़ल.
अपनी भूल छिपाकर कैसे ,सारे जग का दोष बताएं !
ReplyDeleteशकल से जो,सीधे लगते हैं,अक्सर वही सयाने देखे !
बेहद उम्दा......ये शेर सबसे बढ़िया लगा।
सारी जाली जल गई पर जला न एक भी धागा
ReplyDeleteमालिक फंस गया, घर निकल खिड़की से भागा
अपनी सत्ता के घमंड में,प्रतिभा का अपमान न करना
ReplyDeleteहमने अक्सर,ब्रूटस द्वारा, घर में ,सीज़र मरते देखे !
बेहद उम्दा...................वाह
जिसने,तुमको बेटी दी है,उनको ही, सर माथे रखना !
ReplyDeleteहमने अक्सर अहंकार में, हँसते चमन,उजड़ते देखे !
बहुत खूब!
क्या बात है..बहुत उम्दा!!
ReplyDeleteखूबसूरत शब्दों में हर भाव को पिरो दिए हैं ---सार्थक और सुथरी अभिव्यक्ति।
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