Tuesday, September 29, 2009

ब्लाग वाणी की वापसी का स्वागत है !

"स्वाँतः सुखाय लिखने का दम भरने वाले पसँद की परवाह ही क्यों करें ?"  यह शब्द डॉ अमर कुमार के हैं  बहुत सार गर्भित और अच्छे लगे ! 


                   सवाल यह है, हम किस लिए लिखते हैं  , अपने सम्मान को बढ़ाने के लिए ? तारीफ़ पाने के लिए ?अगर ऐसा है तो क्या हमारे सोचने से, या जगह  जगह जाकर,  सुर्खियों में बने रहने से   सम्मान मिल पायेगा  ? मुझे लगता  है इससे सिर्फ  लोगों को आपके अस्तित्व का पता लग सकता है , वास्तविक सम्मान  सिर्फ तब ही संभव है जब लोग  आपकी बात पर यकीन करें , जब लोगों को आपके लिखे के प्रति आदर  हो . और उसके लिए आपको शायद बरसों तक  चुपचाप अपना कार्य करना पड़े  !


हम लोग अक्सर किसी अच्छे व्यक्ति का दिल  दुखा कर बाद में अपनी बात पर कायम करने के लिए क्या क्या नहीं करते , मगर सबके  मध्य  अपनी भूल का अहसास कैसे करें  ? वाकई समस्या है  ! स्वान्तः सुखायः लिखने का  दावा  करने वालों को अपने यश और तारीफ़ से क्या लेना , अगर अच्छा लिख रहे हो तो लोग आपसे बिना कुछ चाहे, आयेंगे  और आपको सम्मान देंगे , और लोग  वाकई में ज्ञानी हैं , समय के साथ सबको पता लग जायेगा  !


प्रार्थना  यही है कि अगर हम किसी की तारीफ न कर सकें  तो किसी के किये पर , बिना उसे समझे, अपने ज्ञान का  कचरा न फेंके ! 

Monday, September 21, 2009

ईद का मतलब -सतीश सक्सेना


आज पूरे देश में ईद मनाई जा रही है, रमदान के पवित्र माह में अल्लाह का नाम लेते हुए, और कोई भूल न हो इसकी दुआ मानते हुए, आज खुशियाँ मनाने और गले मिलने का दिन आता है ! यकीन करें आज के दिन का इंतज़ार पूरे साल उन्हें भी रहता है जो आपस में शिकवे शिकायत लेकर रंजिश पाले रहते हैं मगर मन में कहीं न कहीं यह इच्छा रहती है कि ईद के बहाने गले मिल कर यह रंजिशें ख़त्म कर लेंगे ! और अक्सर यह खुशफहमियां सच भी होती हैं, शायद पवित्र मौकों पर ईश्वर भी सहारा देते हैं !
मगर पुनर्मिलन की यह खुशियाँ पहल करने पर ही मिलती हैं, और एक शैतान हमें अपनों से मिलने को रोकता है और वो शैतान है हमारा अहम् या ईगो जो कहता है कि अपने खून के रिश्तों या दोस्तों के दरवाजे पर पहले हम क्यों जाएँ पहले वो क्यों न आयें हमारे दरवाजे पर ! और दोनों तरफ की यह सोच हमारे प्यारों को कभी गले मिल कर रोने नहीं देती ! खुल कर रोने का जी चाहता है मगर यह शैतान हमें रोने भी नहीं देता !   
इस खास माह पर यह हिदायत दी गयी है कि पुरानी गलतियों की ईश्वर से माफ़ी मांगते हुए अब हम आपस में अपनों के साथ मिलकर खुशियाँ मनाएंगे साथ साथ अपने घमंड को भूल कर अपने गिले शिकवे दूर करें ! आज के दिन दुआ करें कि टूटते परिवार आपस में गले मिलें, दिल से रंजिश मिटाकर वाकई अपने बचपन के दिनों में लौटने की कोशिश करें, पुराने प्यार और उन दिनों की खुशियों को याद करने की कोशिश करें, एक दूसरे की अच्छाइयों को याद करने और गुस्से में कहीं कड़वी बातों को भुलाने से आज का दिन वाकई पूरे जीवन को खुशियों से भर देगा !
काश लोग ईद ( खुशियों का त्यौहार ) का अर्थ समझ सकें, तो अपने बिछडों से मिलने की इच्छा से ही बहुत से मासूमों के चेहरे पर रौनक आ जायेगी !और ईश्वर की दी हुई हिदायतों का वास्तविक पालन होगा ! 
अंत में मेरा एक पसंदीदा शेर ( नामालूम शायर ) नज़र है ..
"बदगुमानी आपस में देर तक नहीं रखना  
रंजिशें मिटाने को एक सलाम काफी है !!"
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