काव्यमंच पर आज मसखरे छाये हैं !
पैर दबा, कवि मंचों के अध्यक्ष बने,
आँख नचाके,काव्य सुनाने आये हैं !
रजवाड़ों से,आत्मकथाओं के बदले
डॉक्ट्रेट , मालिश पुराण में पाये हैं !
पूंछ हिलायी लेट लेट के,तब जाकर
कितने जोकर, पद्म श्री कहलाये हैं !
अदब, मान मर्यादा जाने कहाँ गयी,
ग़ज़ल मंच पर,लहरा लहरा गाये हैं !