Saturday, March 16, 2013

आओ छींटें मारे, रंग के -सतीश सक्सेना


ताऊ रामपुरिया ने , होली के अवसर पर अपने कविसम्मेलन में आने का न्योता दिया ! ताऊ ने इस अवसर पर मुझे बढ़िया सिल्क के कपडे पहनाये थे , जो कि प्रोग्राम ख़त्म होने पर यह कह कर उतरवा लिए कि अगले कवि सम्मेलन में काम आयेंगे ! 
ताऊ जैसे गुरुघंटाल से और क्या उम्मीद करूं ......खैर 

होली के अवसर पर बुद्धिमान, मित्रों से अनुरोध है कि इस रचना में ,गंभीर अर्थ तलाशने के लिए बुद्धि प्रयोग न करें , केवल आनंद लें ! :)

आभार आपके आने का ! 

नमन करूं , 
गुरु घंटालों के  !
पाँव छुऊँ , 
भूतनियों  के !
ताऊ चालीसा को पढ़ते, 
खेलें  ब्लोगर  होली है !  
आओ छींटें मारे, रंग के,  बुरा न मानो होली है !

गुरु है, गुड से 

चेला शक्कर 
गुरु के अली 
पटाये जाकर  ! 
गुरु भाई से राज पूंछकर, 
गुरु की गैया,दुह ली है !
तीखे तीरंदाज़ ,सह्रदय , रंग मिज़ाज  त्रिवेदी हैं !


चेले बन कर 
नाम कमाते 
गुरुघंटाल पे ,
बुदधि लगाते 
बाते करते,हंसी हंसीं में,
शह और मात सीखली है !   
घोडा बनकर,इस प्यादे ने,गुरु की धोती खोली है !


कबसे लिखते  ,
आस लगाये !
इतना लिखा 
न कोई आये !
नज़र  न आये, कोई भौजी ,
किससे  खेलें  ? होली है  !
कुछ तो आहट दरवाजे पर,कहीं तो पायल छनकी है !


ब्लोगिंग करते 
सब चलता है !
कुछ भी लिखदो 
सब छपता है !
जिनको कहीं न सुनने वाले,
यहाँ पर बजतीं ताली हैं !
यहाँ पन्त जी और  मैथिली , अक्सर भरते पानी  हैं !

चार कोस पे 
पानी बदले ,
आठ कोस  
पर   बानी  !
देसी बानी पढ़ी, न समझी,
अर्थ  अनर्थ  पहेली है  ! 
किसके कपडे साफ़ बचे हैं,किसकी रंगत गोरी है ! 

कचरा लिख दो ,
कूड़ा लिख दो !
कुछ ना आये ,
कविता लिख दो
कवि बैठे हैं, माथा पकडे  ,
कविता  कैसी   होली  है !
एक पंक्ति में,दो शब्दों की, माला  लगती सोणी है !

कापी  कर  ले ,

जुगत  भिडाले !  
ब्लोगर बनकर  
नाम कमा  ले ,
मधुर गीत की बातें अब तो ,
बड़ी पुरानी हो ली हैं  !
ताऊ ने हाइकू लिखमारा,शिकी की गागर फोड़ी है !

अधर्म करते 

धर्म सिखाते  
बड़े रसीले,
शीर्षक लिखते  !
नज़र बचाके ,कैसे उसने,
दूध में गोली, घोली है !
नया मुखौटा लगा के देखो,पीठ में मारे गोली है !

ब्लू लेवल 

की बोतल आई ,
नई कार 
बीबी को भायी
बाबू जी का,टूटा चश्मा,
माँ  की  चप्पल आनी है  !
समय ने, बूढ़े आंसू  देखे , यही  तो प्यारे होली है !







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