Friday, February 19, 2021

सम्मान से अधिक प्रोत्साहन देना आवश्यक है -सतीश सक्सेना

हिंदी जगत में ब्लॉगिंग का आगमन , हिंदी के नवोदित लेखकों के लिए संजीवनी का काम कर गया , झिझकती लड़खड़ाती शर्मीली सैकड़ों कलमें हिंदी की चाल दिखाने के लिए फ्लोर पर पहली बार जब आयीं थी तो उनमें कितनी ही खड़े होने लायक भी नहीं थीं , मगर पाठक रुपी दर्शकों ने वाह वाह कर उन्हें प्रोत्साहन दिया और कांपते हुए क़दमों को अहसास दिलाया कि वे न केवल चल रही हैं बल्कि बेहतरीन निशान भी छोड़ रही हैं ! 

यह उनके लिए अविश्वसनीय ही था कि जिन्होंने पूरी जिंदगी कुछ नहीं लिखा उनका लिखना न केवल पढ़ने योग्य है बल्कि तालियों के साथ हिंदी जगत में उन्हें एक सम्मानित पहचान भी मिल रही है , इस विश्वास के साथ ही उनके लेखन में विविधता और पैनापन बढ़ने लगा और कुछ समय पश्चात, उनके बेकार लेख वाकई अपनी जगह बनाने में कामयाब हुए, आज उनमें से कई हिंदी जगत में बेहतरीन लेखक हैं और प्रिंट मीडिया उनके लेख लगातार छापकर उन्हें सम्मानित कर रही है ! 

हिंदी ब्लॉगिंग से लेखकों के उदय में, मैं समीर लाल ( उड़न तश्तरी ) का बहुत बड़ा योगदान मानता हूँ , 2008 में समीर लाल ही थे जो नियमित तौर पर प्रतिदिन लगभग सौ ब्लॉगरों के ब्लॉग पर जा जाकर वाह वाही कर टिप्पणी करते थे , कई लोग कहते थे कि इतनी टिप्पणियां कोई एक व्यक्ति कर ही नहीं सकता यह असंभव ही था कि एक व्यक्ति इतने ब्लॉगों पर जाकर पढ़े और टिप्पणी करे ! कुछ कहते थे कि उन्होंने कोई सॉफ्टवेयर बनवाया है जो इतनी टिप्पणी रोज करता है और कई उनकी मजाक बनाते थे कि वे किसी ब्लॉग को पढ़ते नहीं है बस खुद के ब्लॉग पर टिप्पणी पाने के लिए वे सबके ब्लॉग पर नियमित टिपियाते हैं ! मगर सच्चाई यही थी कि उनकी टिप्पणी पाने पर एक जोश महसूस होता था कि मैंने कुछ अच्छा लिखा है जो कनाडा से उड़नतश्तरी ने आकर कमेंट दिया है ! हिंदी ब्लॉगिंग को बढ़ाने में समीर लाल का योगदान अमर और सैकड़ों लेखनियों के लिए जीवन दायक रहा , इस योगदान के लिए वे हमेशा वंदनीय रहेंगे !

रनिंग करते समय, स्टेडियम के रनिंग ट्रेक पर या खुली सड़क पर जब कोई भारी वजन का व्यक्ति या महिला दौड़ने का प्रयत्न करते देखता हूँ तब मैं उसकी हिम्मत अफ़ज़ाई अवश्य करता हूँ , शाब्बाश बच्चे तुम अवश्य जीतोगे एक दिन, बस हिम्मत नहीं हारना , दुनियां तुम्हें दौड़ते देख हँस रही है इसकी बिना परवाह किये धीरे धीरे बिना हांफे दौड़ना, सीखते रहो एक दिन तुम्हारा स्लिम शरीर इसी ट्रेक पर तेज गति से भागते हुए दुनिया देखेगी !

अंत में , बढ़ा वजन घटाने के लिए !
-दिन में 12 गिलास पानी कम से कम पीना ही है !
-डिनर ७ -८ बजे तक और बहुत हल्का बिना रोटी चावल के !
कोई भी मीठी चीज नहीं खानी है ! मिल्क प्रोडक्ट कम करें !
-रोज आधा घंटा तेज वाक करें बिना हांफे , और आखिरी दो मिनट बिना हांफते हुए दौड़ कर समाप्त करें ! विश्वास रखें कि वे बहुत जल्द सामान्य पहले जैसे स्मार्ट होंगे ! शरीर आसानी से हर परिस्थिति में अभ्यस्त हो जाने में समर्थ है , रनिंग सिखने के साथ ही शरीर की ढेरों उम्र जनित बीमारियां डायबिटीज , बीपी , कब्ज ,दर्द आदि खुदबखुद गायब हो जायँगी ! 

Tuesday, February 16, 2021

45 वर्ष की उम्र में नीरसता क्यों -सतीश सक्सेना

उम्र बढ़ने के साथ नीरसता आनी ही है, मैं ऐसा नहीं मानता !  नीरसता की शुरुआत, जीवन में नयी रुचियों और अपनी इच्छाओं का गला घोटने से होती है और इसके पीछे के कारणों में प्रमुख , बढ़ी उम्र में सामाजिक वर्जनाएं , खुल कर हंसने में भय, अकेलेपन के
कारण आये आलस्य जनित बीमारियों द्वारा शरीर का अशक्त होना अधिक है ! हमारे समाज में, "सब लोग क्या कहेंगे" के दबाव से निकलना, डरपोक और भयभीत लोगों के लिए असम्भव बन जाता है ! 

समाज की नजर में, उम्र अधिक होने का अर्थ चुस्त और जीवंत डिज़ाइन के कपडे, मस्त उन्मुक्त हंसी, मनचाहे मित्रों और शौक को त्यागना होता है , उनके हिसाब से अधिक उम्र में ऐसा करना बेहूदगी होता है और अधेड़ अवस्था में तो यह अशोभनीय,  खासतौर पर तब यह और भी आवश्यक हो जाता है जब उनके बच्चे विवाह योग्य हो जाते हों ! सामाजिक परिवेश उन्हें मजबूर करता है कि वे बढ़ती उम्र में चुस्त दुरुस्त कपडे छोड़कर ढीले वाले कपडे , चप्पल और मोटा चश्मा लगाकर अखबार पढ़ें और पैरों पर हाथ लगाने वालों को हाथ उठाकर , धीमी आवाज में आशीर्वाद और वरदान देना शुरू करें और सबके मध्य ज्यादा बात न करें !

अधिकतर हमारे यहाँ जवान बच्चों की माँ और बहू /दामाद वाले पुरुषों को बूढ़ा मान लिया जाता है और इस नाते 45 वर्ष की भरपूर जवानी में औरतों को शालीन और 55 पार मजबूत पुरुषों को भी पापा जी बनना पड़ता है ! हर प्रकार की मित्रता चाहे वह कितनी शुद्ध और आवश्यक क्यों न हो , उनके लिए अशोभनीय बन जाती है ! उन्मुक्त हँसी का असमय छिन जाना उनके शरीर को असमय क्षरण की गारंटी देने में सहायक सिद्ध होता है !  

महिलाओं का और भी बुरा हाल है , उनकी युवावस्था पापा मम्मी की तीक्ष्ण नज़रों में कटती है और विवाह पश्चात पतिदेव की वर्जनाओं और सुरक्षा में, 40-45 होते होते बच्चे समझाने लगते हैं कि माँ किस साड़ी में अधिक ग्रेसफुल दिखती हैं उनके लिए माँ का चहकना ,हंसना अजीब लगने लगता है , खुलकर हंसने के लिए यह वयस्क लड़कियां जीवन भर तरसती हैं उनके पास एक ही जगह होती है जहाँ वे ठठ्ठा मारकर स्कूली दिनों जैसा हंस पाए जिस जगह उनके परिवार का कोई व्यक्ति दूर दूर तक न हो और वे ऐसा ही करती भी हैं बशर्ते वह क्षण किसी को पता नहीं चलने चाहिए !

हर घर में अपनी भूलों या गलतियों को छिपाना सबसे पहले सिखाया जाता है , बच्चों को कहा जाता है कि अपने घर की यह बात किसी और को नहीं बतानी है ! कोई भी रुका काम कराने का तरीका रिश्वत देना है चाहे वह सरकारी काम हो अथवा मंदिर , भगवान के दर्शन करने को गरीबों और रईसों के रास्ते अलग है , अधिक पैसा दो और साईं बाबा के दर्शन करें अधिक चढ़ावा देंगे तो फल भी

अधिक मिलेगा , दयनीय हाल बना दिया है हमने अपने समाज का और इसके जिम्मेदार हम अधेड़ावस्था के लोग ही हैं जो भुक्तभोगी होने के बावजूद, अपने ज़िंदा रहते, व्यवस्था परिवर्तन की कोशिश करते, युवाओं का मजाक बनाते हैं और उन्हें चोरी करने पर मजबूर करते हैं सो झूठ और चोरी करना हमारे व्यवहार का हिस्सा बन गया है हम एक बीमार अपराधी समाज का अंग बन कर रह रहे हैं और ऐसे ही मरना हमारी नियति है !

विश्व में विकसित देशों के मुकाबले हम कहीं नहीं ठहरते, वहां क्राइम और भ्रष्टाचार का नामोनिशान नहीं है , वे ईमानदार हैं , उम्रदराज हैं उनमें बीमारियों से कराहते लोग न के बराबर हैं , उनका वातावरण, हवा, शुद्ध और पीने के लिए बहती नदियों में स्वच्छ पानी उपलब्ध है उनके पास बड़ी खुली सड़कें और पक्की बस्तियां सैकड़ों वर्षों से हैं ,उनके यहाँ सामाजिक वर्जनाएं न के बराबर हैं , वहां राह चलती लड़कियों को कोई नहीं घूरता , अपने अभिन्न मित्रों के साथ , उन्मुक्त रूप से हंसने के लिए वे परिवार की और से भी मुक्त हैं और वे भरपूर खुशहाल जिंदगी गुजारते हैं ! यूरोपीय देशों में मैंने वाइन / बियर खरीदते अक्सर वृद्धाओं को देखा है वहीँ हमारे देश में ऐसा देखना पाप या अजूबा होता है और भीड़ लग जायेगी उनका चेहरा देखने के लिए ! 

अधिकतर महिलाएं और पुरुष बढ़ती हुई अवस्था में इसे घुटन से मुक्ति चाहते हैं , मगर उनकी हिम्मत नहीं है कि वे किसी को अपनी मित्रता का अहसास दिलाएं , मेरी कुछ महिला मित्रों ने इसे स्वीकार भी किया है, वे हंसना चाहती हैं मगर उनकी हिम्मत नहीं कि वे बेड़ियाँ तोड़ सकें यहाँ तक कि शुद्ध मित्रता आवाहन को स्वीकार कर सकें , उनके लिए पारिवारिक संबंधों से इतर, विपरीत सेक्स मित्रता स्वीकारना और हंसना मना है  चाहे वह मित्रता कितनी ही सहज और निश्छल क्यों न हो भयभीत महिलायें ऐसा सोंच भी नहीं सकतीं कि उनकी मित्रता परिवार से इतर हो अन्यथा बदनाम होने की गारंटी पक्की है !


चूँकि अधिकतर अविकसित देशों में, सत्ता पर बैठने वाले पुरानी मानसिकता में डूबे हुए अधेड़ या वृद्ध बैठे हैं जिन्होंने वर्जनाओं की भरमार पूरी उम्र झेली है और वे मानसिक तौर पर इसको तोड़ने में नाकामयाब रहे , नयी पीढ़ी के लिए वे अपने पुराने उसूलों की कानूनी जामा पहनाने में देर नहीं लगाते हैं और भयभीत युवा उन्हें तोड़ने की हिम्मत नहीं जुटा पाते इसी कारण पूरा विश्व दो भागों में विभक्त हो चुका है , अविकसित देश वाले समाज को, विकसित मस्तिष्क वाला समाज बनने में सैकड़ों वर्ष और तकलीफ भरा रास्ता तय करना होगा , पीढ़िया बीत जाएंगी खुलकर हंसना सीखने में , भयमुक्त समाज का नारा लगाएंगे मगर अर्थ समझने में उम्र गुजर जायेगी !
स्वस्थ शरीर को बनाने के लिए उन्मुक्त एवं बनावट मुक्त हंसना बेहद आवश्यक है , और फलस्वरूप स्वस्थ मस्तिष्क का मालिक , हमेशा जवान रह सकता है !

अंत में कुछ पंक्तियाँ पढ़ें ..

सज़ा मिले मानवता का , उपहास बनाने वालों को,
कुछ तो शिक्षा मिले काश, कानून बनाने वालों को !

अगर यकीं होता , मौलाना मरते भरी जवानी में ,
हूरें और शराब मिलेगी , ज़न्नत जाने वालों को !
 


Friday, February 12, 2021

वजन घटाना आसान है , सिर्फ इच्छाशक्ति मजबूत हो -सतीश सक्सेना

अभी कुछ दिन पहले ही ठंडक और कोरोना के कारण , घर में जमकर खाया और कम्बल की मेहरबानी के कारण एक दिन चेक करने पर पाया कि पूरे तीन किलो वजन बढ़ चुका है , इस उम्र ( 66 वर्ष ) में मुझे बुढ़ापा नहीं चाहिए सो उसी दिन तय कर लिया था कि एक सप्ताह में वजन

सामान्य करना है !

पूरे आठ दिन में रोटी सिर्फ एक बार (घी नमक प्याज मिर्च के साथ), खिचड़ी दो बार दही, घी और धनिये की चटनी के साथ , एक बार बिरयानी रायता , ६ बार टमाटर सूप , दूध की चाय चार बार , ग्रीन टी 10 बार , कहवा २ बार , केला 3 (दो बार ), खजूर लगभग 200 grm ( ४ बार ), उबले अंडे 6 (3 बार ) , पनीर 600 ग्राम (3 बार ), कैप्सिकम , प्याज रोस्टेड और चना जोर गरम ढाई सौ ग्राम के साथ 100 ग्राम चीज़ भी खायीं गयी साथ में रोज १२ गिलास पानी कम से कम पिया !

इन दिनों जो त्यागा गया उसमें, किसी भी शेप में मीठा (बिस्कुट , गजक , रेवड़ी आदि ) , दूध और आयल प्रमुख था ! मानसिक तौर पर लोगों से अपेक्षाएं करना छोड़कर खुद को मस्तमौला रखा , विपरीत परिस्थितियों में और अधिक खुश रहा एवं बोरियत से बचने के लिए रोज दो बार मार्केट /पार्क वाक किया !

मगर वजन घटाने में सबसे अधिक भूमिका रही मेरे द्वारा इस ठण्ड के दिनों में भी , सुबह स्लीवलेस वेस्ट में की गयी धीमे धीमे लम्बी दौड़ , इन आठ दिनों में मैंने, strava रिकॉर्ड के अनुसार 50 km की दूरी दौड़ते हुए तय की तथा एक दिन 15 km साइकिल चलाकर पसीना बहाया !

यह मेरा आज का फोटो है जो इस अवसर पर लगाया गया ताकि उनकी आँखें खुलें , और संकल्प लें कि बुढ़ापा मात्र नाम है अगर मेहनत करने की जिद कर लें , मानवीय शरीर हर बीमारी से आसानी से पार पाने में सक्षम है एक बार विश्वास तो करके देखें तो सही !
सादर मंगलकामनाएं आप सबको ! हँसते रहें हंसाते रहें ...
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