शायद यह अकेला समाज है जहाँ ऊपरी दिखावे को सम्मान देना सिखाया जाता है ! अगर सामने से कोई गेरुआ वस्त्र धारी और पैर में खड़ाऊं पहने आ रहा है तो पक्का उस महात्मा के चरणों में झुकना होगा और आशीर्वाद मांगना ही है चाहे वह बुड्ढा पूरे जीवन डाके डालकर दाढ़ी बढ़ाकर छिपने के लिए बाबा क्यों न बना हो और किसी गए गुजरे का आशीर्वाद पाने के योग्य भी न हो !
Saturday, December 26, 2020
तो फिर मेरी चाल देख ले -सतीश सक्सेना
मंदिर जाएँ तो पंडित (जी) धोती, कुरता में ही मिलेंगे , और आजतक किसी पुजारी की हिम्मत नहीं कि वह निक्कर या पैंट पहनकर भगवान की पूजा करे ! शायद यह मंदिर का ड्रेस कोड बना दिया गया है हमारे यहाँ , कष्ट निवारण हेतु पूजा पाठ के अलग अलग रेट हैं ज्यादा रेट तगड़ी पूजा की गारंटी है !
भारतीय राजनीति में खद्दर और सफ़ेद कपडे पहनने का रिवाज शुरू से ही है , खद्दर ग़रीबी की मदद करने और 90 प्रतिशत भूखे नंगे समाज में खुद को गरीब सा दिखाने की तड़प है , इससे बहुमत के वोट मिलने में, आसानी रहती है ! उन पर बहुत प्रभाव पड़ता है क्योंकि यही वह तबका है जो जीवन भर सफ़ेद कपडे कभी नहीं पहन पाता और सफ़ेद रंग स्पॉटलेस करेक्टर की पहचान है सो जितने भी दल्ले हमारे देश में दिखते हैं सब के सब बड़े नेताजी से लिंक का प्रतीक, खद्दर पहने ही मिलते हैं , यह लोग कोई भी असम्भव काम सरकार से कराने का वादा करते हैं और आपसे धन लेकर ऊपर पहुंचाते हैं , बदले में इनको बाकायदा मोटा पारितोषिक मिलता है और आपसे वाहवाही कि पैसे देकर नौकरी लगा दी लल्ला की ! अगले ही दिन इन श्वेत वस्त्रधारियों द्वारा श्वेत महंगे जूते भी ख़रीदे जाते हैं इससे इन्हें मिलने वाला सम्मान और अधिक हो जाता है देसी भाषा में इन्हें जमीन से जुड़ा पार्टी कार्यकर्ता कहा जाता है और इसका मुख्यतः काम नेता के पास लल्लुओं के काम कराने के लिए उनसे नेताजी के लिए नोट इकट्ठा करना होता है ! मोटा एक काम भी करा दिया तो अगले दिन इनके पास एक झंडा लगी एस यू वी मिलेगी !
और हिंदी का मशहूर विद्वान बनना और भी आसान है बस अपना खटारा सा सरनेम बदलकर एक बेहतरीन शास्त्रीय सांस्कृतिक नाम तलाश कर लें जैसे सतीश सक्सेना के नाम पर सतीश अपरिमेय हो तो मेरे पाठक मुझे आदरणीय कहना शुरू कर देंगे पक्का , और अगर मैं अपनी दाढ़ी महा गुरु जैसी रख लूँ तब लोग मुझे आचार्यश्री का दर्जा और जयजयकार आसानी से देंगे भले मैंने हिंदी की पढ़ाई, कक्षा १२ सेकंड डिवीजन पास तक ही की हो ! साहित्यिक लेख लिखने में कोई कष्ट ही नहीं , एक पैरा राजीव मित्तल और दूसरा शम्भुनाथ शुक्ल का और तोड़ मरोड़ कर उसे आकर्षक बनाकर पेश कर दूँ तो तालियों की जबरदस्त गड़गड़ाहट न मिले तो कहना क्योंकि आचार्य जैसी शक्ल और ज्ञान टपकाता नाम इनके पास है ही नहीं !
सो नए साल में क्यों न यह रंग ही धारण कर लूँ भाइयों और बैनों !!
तो फिर मेरी चाल देख ले ...!!
https://youtu.be/7iSDtiBipAk
Saturday, December 19, 2020
६७ वां वर्ष और हेल्थ केयर -सतीश सक्सेना
दौड़ते दौड़ते 67वां वर्ष कब शुरू हुआ पता ही नहीं चला , शायद मैं अधिक खुशकिस्मत हूँ जिसे अपने बड़े होते बच्चों से कभी कष्ट का अनुभव ही नहीं हुआ ! बेटा 40 वर्ष का है और देखता रहता है कि पापा को घर में किस चीज की आवश्यकता है , तलाश करने से पहले घर में वह चीज आ जाती है ! इस बार मेरे हाथ में एप्पल वाच 6, आ गयी है जिसमें फ़ोन इनबिल्ट है , बेटे का कहना है कि इसमें हेल्थ के सारे टूल्स मौजूद हैं जो आपकी केयर के लिए आवश्यक है !
अगर आप घडी पहने दौड़ रहें हैं या घर से बाहर हैं तब मोबाइल साथ ले जाने की कोई आवश्यकता नहीं , यह फ़ोन काल , मेसेज रिसीव कर सकती है , नार्मल फ़ोन की तरह कॉल कर सकती है ! इसमें वॉकी टॉकी की सुविधा भी है जिसमें इन्सटैंट आप अपने मित्र से बात कर सकते हैं !आश्चर्यजनक है कि यह घडी हृदय गति पर हर वक्त नजर रखती है , ऑक्सीजन लेवल को चेक करके बता देगी कि दौड़ते हुए ऑक्सीजन लेवल कम तो नहीं हुआ यही नहीं ECG हर वक्त चेक करने की सुविधा है और रिपोर्ट देगी कि यह एब्नार्मल है या सही ! अगर पूरे दिन लेटे रहें तो यह बड़े प्यार से याद दिलाती है कि अब आपको थोड़ा टहलना चाहिए ! यह दिन भर में खड़े होना कितना आवश्यक है उसके मापदंड बताती है तथा याद दिलाती है आज कल के मुकाबले आपने आराम अधिक किया ! यह मुझे हाथ २० सेकंड तक धोने के लिए मजबूर करती है ! इस घडी को पहनकर आप नहा सकते हैं , तैर सकते हैं , पानी से कोई खतरा नहीं !
ऐसा लगता है कि एक सुपरवाइज़र हर वक्त चौकन्ना होकर साथ रहता है जिसका काम मेरी सेहत पर नजर रखना है यहाँ तक कि अगर आप दौड़ते समय या साइकिल चलाते समय गिर गए तो यह बिना आपसे पूछे आपके बेटे और बेटी को फ़ोन करने के साथ साथ आपके डॉ को कॉल भी देगी कि आपका दोस्त खतरे में है !
67 वे वर्ष में नयी टेक्नोलॉजी का फायदा उठा रहा हूँ और मस्ती के साथ दौड़ रहा हूँ ! आज सुबह 5 km , सवा 7 मिनट में एक किलोमीटर की गति से दौड़ते हुए यह बिलकुल नहीं लगा कि मैं जवान नहीं हूँ , आज भी नयी चीजों को समझने और सीखने की इच्छा है , अपने आपको सबसे अधिक समझदार नहीं मानता बल्कि सीखने में अच्छा लगता है ! वे सारे काम करता हूँ जो जवान करते हैं शुक्र है ताकतवर इच्छाशक्ति का साथ शरीर बखूबी देता है , समझदार मूर्खों से दूरी बनाकर रहना पसंद करता हूँ !
शुभकामनायें आप सबको कि नए साल में पछतावा कम से कम हो !
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