Monday, January 20, 2020

थोड़े से दर्द में ही , क्यूँ ऑंखें छलक उठी -सतीश सक्सेना

मुर्दा हुए शरीर  को , जीना सिखाइये !
मरते हुए ज़मीर को , पीना सिखाइये !

इतने से दर्द में ही , क्यूँ ऑंखें छलक उठी 

गुंडों की गली  में  इन्हें , रहना सिखाइये !

गद्दार कोई हो , मगर  हक़दार सज़ा के ,
उस्ताद, मोमिनों को ही चलना सिखाइये  !

अनभिज्ञ निरक्षर निरे जाहिल से देश को !
सरकार,शाही खौफ से, डरना सिखाइये !

नज़रें उठायीं तख़्त पे दिलदार, तो खुद को ,
सरकार के डंडों को भी,सहना सिखाइये !
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