मुर्दा हुए शरीर को , जीना सिखाइये !
मरते हुए ज़मीर को , पीना सिखाइये !
इतने से दर्द में ही , क्यूँ ऑंखें छलक उठी
गुंडों की गली में इन्हें , रहना सिखाइये !
नज़रें उठायीं तख़्त पे दिलदार, तो खुद को ,
सरकार के डंडों को भी,सहना सिखाइये !
मरते हुए ज़मीर को , पीना सिखाइये !
इतने से दर्द में ही , क्यूँ ऑंखें छलक उठी
गुंडों की गली में इन्हें , रहना सिखाइये !
गद्दार कोई हो , मगर हक़दार सज़ा के ,
उस्ताद, मोमिनों को ही चलना सिखाइये !
अनभिज्ञ निरक्षर निरे जाहिल से देश को !
सरकार,शाही खौफ से, डरना सिखाइये !
सरकार,शाही खौफ से, डरना सिखाइये !
नज़रें उठायीं तख़्त पे दिलदार, तो खुद को ,
सरकार के डंडों को भी,सहना सिखाइये !