![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgbEamqaxovjlxu_7pgvgBFUgIf04dbFLLk3AwaqIqoKGGYdYuJI8A-2YuRNapvXsuWlmc3qVN1gMEPUva3tdRu8vED9PMmN4-ASpQIMlE-_gFY-QbX3igCW5LOvAmJpkIzuc9B0YhKouKy/s200/26814599_10212509402143361_5489134859941408635_n.jpg)
मरते हुए ज़मीर को , पीना सिखाइये !
इतने से दर्द में ही , क्यूँ ऑंखें छलक उठी
गुंडों की गली में इन्हें , रहना सिखाइये !
गद्दार कोई हो , मगर हक़दार सज़ा के ,
उस्ताद, मोमिनों को ही चलना सिखाइये !
अनभिज्ञ निरक्षर निरे जाहिल से देश को !
सरकार,शाही खौफ से, डरना सिखाइये !
सरकार,शाही खौफ से, डरना सिखाइये !
नज़रें उठायीं तख़्त पे दिलदार, तो खुद को ,
सरकार के डंडों को भी,सहना सिखाइये !