हे प्रभु ! इस देश में इतने निरक्षर , ढोर क्यों ?
जाहिलों को मुग्ध करने को निरंतर शोर क्यों !
अनपढ़ गंवारू जान वे मजमा लगाने आ गए
ये धूर्त, मेरे देश में , इतने बड़े शहज़ोर क्यों ?
साधु संतों के मुखौटे पहन कर , व्यापार में
रख स्वदेशी नाम,सन्यासी मुनाफाखोर क्यों !
माल दिलवाएगा जो, डालेंगे अपना वोट सब
देश का झंडा लिए सौ में, अठत्तर चोर क्यों !
आखिरी दिन काटने , वृद्धाएँ आश्रम जा रहीं !
बेटी बिलख रोई यहाँ,इस द्वार टूटी डोर क्यों !
जाहिलों को मुग्ध करने को निरंतर शोर क्यों !
अनपढ़ गंवारू जान वे मजमा लगाने आ गए
ये धूर्त, मेरे देश में , इतने बड़े शहज़ोर क्यों ?
साधु संतों के मुखौटे पहन कर , व्यापार में
रख स्वदेशी नाम,सन्यासी मुनाफाखोर क्यों !
माल दिलवाएगा जो, डालेंगे अपना वोट सब
देश का झंडा लिए सौ में, अठत्तर चोर क्यों !
आखिरी दिन काटने , वृद्धाएँ आश्रम जा रहीं !
बेटी बिलख रोई यहाँ,इस द्वार टूटी डोर क्यों !