Monday, April 28, 2014

जाते जाते रुला गया है कोई - सतीश सक्सेना

our dear Goofy (31 Dec 2006 -27april 2014)
अपना घर त्याग,वो गया है कहीं ! 
थक के लगता है सो गया है कहीं !

बड़ी हिम्मत से , लड़ रहा था वह !
अपनी चौखट से,खो गया है कहीँ ! 

बड़े मज़बूत दिल का,  बच्चा था !
लड़ते लड़ते ही , तो गया है कहीं !

जाने किस कष्ट से, भिडा इकला !
मर के भी  प्यार,बो गया है कहीँ !

किसने छीना है,उसका घर यारोँ 
आज विश्वास , रो गया है  कहीं ! 

Sunday, April 20, 2014

इक असंभव गीत, गाना चाहता हूँ -सतीश सक्सेना

              अपने बचपन के उन सबसे बुरे दिनों में,जब माँ की मृत्यु हुई , मैं इतना छोटा था कि अपनी माँ का चेहरा भी याद नहीं ……
               काश एक बार वे सपने में ही दिख जाएँ ! ऐसी कौन सी भूल हुई मुझ बच्चे से, जो वे छोड़ कर हमेशा को, वहां चली गयीं जहाँ से कोई कभी बापस नहीं लौटा !! 

             यह मात्र एक रचना न होकर माँ को लिखा एक एक पत्र है,मेरा अपना, माँ के लिए …… 

माँ ,तुझे वापस , बुलाना चाहता हूँ !
इक असंभव गीत , गाना चाहता हूँ !

इक झलक तेरी, मुझे मिल जाये तो,
एक कौरा ही, खिलाना चाहता हूँ !

मुझसे हो नाराज, मत मिलना मुझे,
अपने बच्चों से, मिलाना चाहता हूँ !

जानता हो अब न तुम आ पाओगी
सिर्फ सपने में , बुलाना चाहता हूँ !

जाने कितनी बार ये, रुक -रुक बहे !
माँ, मैं आंसू को, जिताना चाहता हूँ !

देख तो लो माँ , कि बेटा है कहाँ ?
तेरा घर तुझको दिखाना चाहता हूँ !

बहुत दिन से चल रहे हैं , बिन रुके !
आज दिनकर को बिठाना चाहता हूँ !

(आज पता चला कि यह कतील शिफ़ाई की जमीन पर लिखा गया , अनजाने में ) - ३१ अगस्त १५  

Saturday, April 19, 2014

मुझको इस देश के आँगन में दिखता है चन्दा कोई नहीं -सतीश सक्सेना

इन बुरी अँधेरी रातों में , दिखता है  बंदा  कोई नहीं !
तारों को हिम्मत दिलवाए, ऐसा भी चंदा कोई नहीं !

बच्चियां सिर्फ खतरा झेलें इंसानों के इस जंगल में 
सारी दुनिया के जीवों में, मानव से गंदा कोई नहीं ! 

वृद्धों को घर में ही लूटा, बिन ममता मोह शातिरों ने 
ज़िंदा रहने की चाह नहीं, पर घर में फंदा कोई नहीं !

उस रात बिना पैसे आकर, इक  बूढ़ा द्वार सुधार गया   
दिखने में बढ़ई लगता था, पर हाथ में रंदा कोई नहीं !

लाखों कतार में राष्ट्रभक्त , बैठे हैं, नोट कमाने को !
इन दिनों राज नेताओं के , धंधे में मंदा कोई नहीं !

Wednesday, April 16, 2014

गीतकार की हर कविता के, जाने कितने माने होंगे -सतीश सक्सेना

घने कष्ट  और वीरानों में , तुम्हें गीत भी गाने होंगे !
कितनी बार अकेले बेमन,उत्सव तुम्हें मनाने होंगे !

सांस नहीं ले सके सुबह से,ऐसे कैसे शाम हो गयी,
बारिश के आने से पहले,उजड़े छप्पर छाने होंगे !

अंतिम क्षण तक टूट न पाएं , ऐसे हों ये रिश्ते नाते ,
आधी जान हमारी उस घर ,वे कैसे अनजाने होंगे !

अर्थ, समीक्षाकार लिखेंगे,कैसे उनकी बात बताऊँ ,
गीतकार की हर कविता के,जाने कितने माने होंगे !

स्वाद हमें कड़वे शब्दों का,बड़े सबेरे ही मिल जाता,

जलतरंग सी मीठी ध्वनि को, चूड़ी कंगन लाने होंगे !

गिनती के दिन चुकने आये,अपने सारे काम करा लें !
कौन जानता कल सतीश के जाने कहाँ ठिकाने होंगे !


Sunday, April 13, 2014

अब तो मंदिर के इश्तिहार छपाया करिये -सतीश सक्सेना

धर्म की आड़ में,दुश्मन को डराया करिये !
दहशते भीड़ को, वोटों से भुनाया करिये !

इसी  दुनियां  में , दरिंदे भी तो पाये जाते
कभी लोबान को,बस्ती में घुमाया करिये !

काश लड़ते हुए मंदिर औ मस्जिदों के लिए 
कोई  कबीर भी , मिलने को बुलाया करिये !

सियासी दावतें, अक्सर ही खूब छपती हैं , 
कभी गरीब को इफ़्तार, खिलाया करिये !

आजकल आपकी, हैवानियत के चरचे हैं !
अजी ये रात की बातें, तो छिपाया करिये !

Friday, April 11, 2014

नेतृत्व विहीन समाज और ताकतवर मीडिया -सतीश सक्सेना

           बरसों हो गए, भारतीय मीडिया में, देश की किसी उपलब्धि की चर्चा नहीं सुनायी पड़ी , इस बीच देश ब्रिक देशों में आकर अग्रणीय चार देशों में शामिल हुआ , देश में फोरेक्स रिज़र्व , अमेरिका से भी अधिक हुआ , एटोमिक वारहेड से लेकर, 5000 km से अधिक दूरी पर मार करने वाली अग्नि -५ का प्रक्षेपण, एटॉमिक पॉवर संचालित पनडुब्बी एवं ४०००० टन से अधिक वजन वाला विशाल एयरक्राफ्ट कैरियर या क्रायोजेनिक इंजिन का स्वदेश में विकास हो , हमारी मीडिया ने, इसमें कोई दिलचस्पी नहीं दिखायी इनकी जगह टी वी पर छाये रहे,नेताओं के चारित्रिक पतन और भ्रष्टाचार के किस्से, और न्यूज़ चैनल इन सच्चे झूठे, करप्शन केस दिखा दिखा कर, मालदार बनते रहे !

           साफ़ लग रहा था कि कैसे देश की जनता में यह भर दिया जाए कि देश नेतृत्व विहीन है और अगर बैसाखियों के सहारे चलते, सत्ता पक्ष को तुरंत नहीं हटाया गया तो देश रसातल में चला जाएगा ! टमाटर,प्याज ,पेट्रोल,डीज़ल की कीमतों में वृद्धि से लेकर खा गए ,खा गए का शोर शराबा इतना था कि हमारे दुश्मन देशों द्वारा हमें बदनाम करने के प्रयास, मीलों पीछे रह गए ! सारे विश्व को यह महसूस हो गया कि हम एक महाभ्रष्ट देश के,दयनीय निवासी हैं !

          इस शोर शराबे में तालियां पीटते, विकल्प में जो लोग खुद को सत्ता का अधिकारी बता रहे थे वे वही सफ़ेद कपडे, सफ़ेद जूते और मोटी तोंद वाले लोग थे, जैसे सत्ता में बैठे हुए थे जिन्हें जनता नेता जी के रूप में खूब पहचानती थी, फर्क बस इतना था कि चुनाव चिन्ह अलग अलग थे !

           लगातार चोर चोर सुनती अनपढ़ जनता को, आखिरकार सत्ता धारी, चोर दिखायी देने लगे और विपक्ष में कई बरसों से बैठी भूखी प्यासी, दूसरी पार्टी के लिए, तथाकथित संत जैसे लगते नेताओं को प्रोजेक्ट करने का यह सबसे बड़ा मौका लगा ! टीवी चैनलों की पौ बारह हो गयी,अपने अपने काम कराने वाले धनपतियों के पास, पैसे की कोई कमी नहीं थी !

           अनपढ़ भीड़ को सबसे अधिक प्रभावित, धन के लिए हाथ पैर मारते टेलीविजन मीडिया ने ही किया है और इन्होने वह सब जनता को परोसा जो सत्ताधारियों  से गहरी वितृष्णा और नफरत पैदा करे और सहजता से वह कामयाब भी रही !

            कमजोर राजनैतिक आधार, असहाय सा खड़ा रहा सब देखता रहा , मीडिया को काबू करने का न साहस था और न भीड़ जैसी देसी मानसिकता वाले, जन सैलाब का साथ ! अगर किसी ने बढ़िया से बढ़िया काम को मिटटी में मिलाने का उदाहरण देखना हो तो इस देश में आकर देख सकता है सिर्फ तालिया बजाना शुरू करिये और ५ साल तक बजाते रहिये , चोर चोर कहते रहिये और जनता अगली बार आपको ही चुनेगी !

            पक्ष और विपक्ष द्वारा एक दुसरे पर भ्र्ष्टाचार के आरोपों  और मीडिया द्वारा चटपटा बना कर विश्व जनमत में परोसने की बदौलत, देश का स्वाभिमान एवं आत्मविश्वास लगभग ख़त्म कर दिया गया है और अब उसे पुराना सम्मान विश्व की नज़रों में दिलाने में बरसों लगेंगे, चाहे सत्ता  किसी भी पार्टी की आये !

( आज बी एस पाबला जी ने मेल द्वारा इस पोस्ट के रायपुर में छापने की सूचना दी , आभार उनका )

Thursday, April 10, 2014

ये ग़ज़ल के कद्रदां भी क्या करें ? -सतीश सक्सेना

ये बेचारे बागबां , भी क्या करें !
बिन बुलाये खामखां भी क्या करें !


अब ये जूता और चप्पल ही सही
ये वतन के नौजवां, भी क्या करें !

भौंकने पर किस कदर नाराज हो
ये  बेचारे बेजुबां ,भी क्या करें !


हाले धरती, देख कर ही रो पड़े,
दूर से ये आस्मां भी , क्या करें !

झाँकने ही झांकने , में फट गए ,
ये हमारे गिरेबां भी , क्या करें !


तालियां, वे  मांग कर बजवा रहे
ये गज़ल के कद्रदां भी, क्या करें !

Monday, April 7, 2014

मूर्खों को हर बार,चेताना पड़ता है ! -सतीश सक्सेना

जीवन में कितना, पछताना पड़ता है !
गलती का भुगतान चुकाना पड़ता है !

राजनीति में, धन का धंधा होता है,
ऐसे क्यों हर बार ,बताना पड़ता है !

नाग देख के , कौवे  शोर मचाते हैं !
मूर्खों को हर बार,चिताना पड़ता है ! 

हम पर हमले से पहले तो, सोचोगे !
बीच में अपने,राजपुताना पड़ता है !

रोटी,पानी,कपडे, दवा और दारु को  
उनको कितनी बार,सताना पड़ता है !

Thursday, April 3, 2014

लालची राजनैतिक झंडेबरदार -सतीश सक्सेना

आज कल राजनीतिक नेताओं के झंडेबरदार ,बहुत अधिक क्रियाशील हैं , देश में ४-५ प्रमुख पार्टियों के प्रचार के लिए,नेताओं के इन एजेंटों को, आप फेसबुक पर, मुंह से झाग निकालते हुए, विपक्षी नेता को गालियाँ देते देख सकते हैं ! जबतक किसी विशेष पार्टी की आप बुराई न कर रहे हों तब तक ठीक हैं अगर आपने कोई खामी बता दी तो ये तुरंत आपको विपक्षी पार्टी का आदमी बताकर, गाली गलौज पर उतर आयेंगे ! 

बदचलन, असंस्कारी एवं भ्रष्ट राजनीतिज्ञों की सम्मान रक्षा के लिए, यह झंडाबरदार, किसी भी हद को पार करते देखे जा सकते हैं ! पार्टी कार्यकर्ता का तमगा लगाए ये लोग, वास्तव में , पार्टी के झंडाबरदार हैं , जो दुम हिलाए अपने नेता के पैरों में, इस उम्मीद से बैठे रहते हैं कि कभी तो उनका हिस्सा उन्हें मिलेगा और वारे न्यारे होंगे ! इस बीच में अपने राजा को खुश करने के लिए, जब तब , विरोधी पक्ष की निकलती हुई गाडी के पीछे दौड़ते हुए, तब तक भौंकते हैं जब तक खुद राजा उन्हें चुप हो जाने के लिए न कह दे !

आज संतोष त्रिवेदी ने एक बयान दिया जिसमें उन्होंने दुःख व्यक्त किया कि इस कट्टरता के चलते कुछ मित्रों ने उनसे किनारा कर लिया , अपने संवेदन शील मित्र को, मेरा सुझाव था कि अच्छा हुआ जो इन राजभक्तों से तुम्हारी जान छुड गयी वे मित्र क्या जो वैचारिक मतभेद तक न स्वीकार कर सकें !

कट्टर समर्थन अथवा नफरत दोनों ही इन भक्तों में आम है , लगता है सड़क पर चलते वक्त, खाते पीते , परिवार में बैठे हो अथवा बाहर, इन्होने राजनैतिक आकाओं का नाम,अपनी पीठ पर गुदवा लिया है , वे किसी पार्टी के हो सकते हैं मगर उनकी अपनी व्यक्तिगत पहचान नष्ट हो चुकी है अतः वे चाहे कुछ भी हों पर वे संवेदनशील मित्र नहीं हो सकते !

राजनैतिक पार्टियों के इन झंडाबरदारों को यह खूब पता है कि राजनीति में नोट कैसे कमाए जाते हैं और सारे नेताओं का उद्देश्य, राजनीति में आने का क्या है ? करोड़ों रूपये दाव पर लगा, सौ गुना बापस , आने का इंतज़ार करते इन चमचों को, अपना हिस्सा मिलने की पूरी उम्मीद है ! अतः देश भक्ति , वीररस, धर्म और शहीदों के गीत गाते इन देश भक्तों ने कमर कस , अपने उस्तादों के लिए, जिताने हेतु जिहाद का आवाहन कर रखा है !

मूरख जनता खूब लुटी है, पाखंडी सरदारों से !
देश को बदला लेना होगा, इन देसी गद्दारों से !

पूंछ हिलाकर चलने वाले,सबसे पहले भागेंगे !
सावधान ही रहना होगा, इन झंडेबरदारों से !
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