Monday, April 7, 2014
मूर्खों को हर बार,चेताना पड़ता है ! -सतीश सक्सेना
20 comments:
एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !
- सतीश सक्सेना
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जीवन भर कैसे, पछताना पड़ता है !
ReplyDeleteकैसे बेमन समय, बिताना पड़ता है !
nice lines....
सतीश सर , बहुत ही बेहतरीन रचना , एक अनूठा संगम हैं आपकी रचनाओं में , धन्यवाद ।
ReplyDeleteनवीन प्रकाशन -: साथी हाँथ बढ़ाना !
नवीन प्रकाशन -: सर्च इन्जिन कैसे कार्य करता है ? { How the search engine works ? }
क्या सटीक और जानदार शेर.....बधाई...
ReplyDeleteनयी पोस्ट@भजन-जय जय जय हे दुर्गे देवी
दम घुट रहा होता है बिना धुँऐ के जहाँ
ReplyDeleteसिगरेट बीड़ी का बहाना बनाना पड़ता है
नये कपड़े की सोच कैसे बनाये कोई
फटे बोरे में टल्ला बार बार लगाना
बहुत ज्यादा जहाँ सुहाना लगता है :)
बहुत उम्दा ।
बहुत सटीक....
ReplyDeletehaan ji sahi kaha ....kai baar jage huon ko bhi jagana padta hai
ReplyDeleteसटीक अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर...
बुल्ला की जाणा मैं कौन...
ReplyDeleteजय हिंद...
जीवन है अनमोल स्वयं को रोज बताना पडता है ।
ReplyDeleteकुछ आवश्यक छूट न जाए याद दिलाना पडता है ॥
वाह …
Deleteस्वागत है आपका !!
बहुत खूब...सुंदर...
ReplyDeleteहमेशा की तरह सटीक रचना !
ReplyDeleteसच को सच का भान कराना पड़ता है।
ReplyDeletevery right .! रामनवमी पर्व की हार्दिक शुभकामनायें !
ReplyDeleteThe fourth stanza is little difficult. I feel it is a buffer or shield available to politicians before taking any action against them. Other wise it is a fine poem. Regards.
ReplyDeleteआपका स्वागत है :)
Delete- ग़ज़ल में हर शेर का एक दुसरे से लिंक रखना आवश्यक नहीं है ! हर शेर अपने आप में सम्पूर्ण होना चाहिए और विभिन्न परिस्थितियों और सोंच के हिसाब से उसका अर्थ भिन्न भिन्न होना चाहिये !
- इस नाते आपका अर्थ भी फिट बैठता है और इसे परिवार में सोंचे तो अगर बहिन अपने स्नेही भाई की नाराजी से बचना चाहे तो पिता को ढाल की तरह उपयोग कर सकती है !
सादर
जब चुनाव आयें भारत में
ReplyDeleteनेताओं को घर घर जाना पड़ता है
यथार्थवादी कविता..
नाग देख के , कौवे शोर मचाते हैं !
ReplyDeleteमूर्खों को हर बार,चिताना पड़ता है !
बहुत शानदार...
बहुत सही कहा आपने.
ReplyDeleteरामराम.
बहुत खूब...
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