Saturday, April 19, 2014

मुझको इस देश के आँगन में दिखता है चन्दा कोई नहीं -सतीश सक्सेना

इन बुरी अँधेरी रातों में , दिखता है  बंदा  कोई नहीं !
तारों को हिम्मत दिलवाए, ऐसा भी चंदा कोई नहीं !

बच्चियां सिर्फ खतरा झेलें इंसानों के इस जंगल में 
सारी दुनिया के जीवों में, मानव से गंदा कोई नहीं ! 

वृद्धों को घर में ही लूटा, बिन ममता मोह शातिरों ने 
ज़िंदा रहने की चाह नहीं, पर घर में फंदा कोई नहीं !

उस रात बिना पैसे आकर, इक  बूढ़ा द्वार सुधार गया   
दिखने में बढ़ई लगता था, पर हाथ में रंदा कोई नहीं !

लाखों कतार में राष्ट्रभक्त , बैठे हैं, नोट कमाने को !
इन दिनों राज नेताओं के , धंधे में मंदा कोई नहीं !

10 comments:

  1. जी सही बात
    हम हैं
    पर तब तक बस
    जब तक मौका
    कोई मिले नहीं :)

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  2. जी, सही लिखा है आजकल यही सब देखने को मिल रहा है !

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  3. सच लिख दिया है आपने.

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  4. वाह!! एकदम सटीक!!

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  5. घिसी-पिटी सब कहते हैं पर हम तो सच्ची-बात कहेंगे ।
    तुम नज़र उठा - कर देखो तो चँदा है एक सितारों में ।

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  6. राजनेताओं, चोरों अपराधियों ,पंडित पुजारिओं का अपने अपने कारणों से धंदा मंदा होता ही कब है ?

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  7. उम्दा लिखा है.

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  8. सारे दलाल हैं राष्ट्र भक्त , ईमान का बाँदा कोई नहीं
    बहुत सुन्दर आभार

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- सतीश सक्सेना

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