बरसों पूर्व (1997) लिखा यह गीत बिना किसी बदलाव के प्रस्तुत कर रहा हूँ !
मन के सोये तार जगाती
याद तुम्हारी ऐसे आयी ,मन के सोये तार जगाती

गीत झरें बरसातों जैसे !
पहले भी थे गीत यही पर
गाने वाला मिला ना कोई
जबसे तुमने हाथ सम्हाला
इन गीतों की हुई सगाई
जीवन भर की सकल कमाई,
इन कागज़ के टुकडों में है
नए वर्ष पर प्यार सहित , ये मेरे गीत तुम्हें अर्पण है !
प्रश्न तुम्हारा याद मुझे है ,
क्या मैं दे सकता हूँ तुमको
मेरे पास बचा ही क्या है ?
जो दे मैं उऋण हो जाऊं
रहा अकेला जीवन भर मैं,
इस जग की सुनसान डगर पर
अगर सहारा तुम ना देते ,
बह जाता अथाह सागर में
बुरे दिनों की साथी, तुमको
और भेंट मैं क्या दे सकता !
मेरे आंसू से संचित , ये मेरे गीत तुम्हें अर्पण हैं !
ऐसा कोई मिला ना जग में
जिसको मन का दर्द सुनाऊं
जग भर की वेदना लिए मैं
किसको गहरी टीस दिखाऊँ
जिसको अपना समझा था
उसने ही धक्का दिया मुझे
ऐसी चोट लगी है दिल पर
सारा जग बंजर लगता है !
और मानिनी क्या दे सकता,
तुमको इस बिखरे मन से मैं
विगत वर्ष की अन्तिम संध्या पर , ये गीत तुम्हें अर्पण है !
वर्षांत में खूबसूरत गीत के लिए धन्यवाद!
ReplyDeleteमान लिया यह बिखरा मन ,तब भी यह समर्पण है
ReplyDeleteमधुर गीत जो आंसू संचित , नए वर्ष पर अर्पण है
'ऐसी लगन लगी है मन में
ReplyDeleteगीत झरें बरसातों जैसे'
बहुत सुन्दर!बहुत ही सुन्दर!!
ऐसा कोई मिला ना जग में
ReplyDeleteजिसको मन का दर्द सुनाऊं
जग भर की वेदना लिए मैं
किसको गहरी टीस दिखाऊँ
" भावनाओ का समंदर बह निकला है इन पंक्तियों मे , बहुत सुंदर "
regards
bahut sundar rachana ,
ReplyDeleteऐसा कोई मिला ना जग में
जिसको मन का दर्द सुनाऊं
जग भर की वेदना लिए मैं
किसको गहरी टीस दिखाऊँ
जिसको समझा दोस्त वही
तिल तिल कर देता ज़हर मुझे
ऐसी चोट लगी है दिल पर
सारा जग बंजर लगता है !
और मानिनी क्या दे सकता तुमको इस बिखरे मन से मैं
विगत वर्ष की अन्तिम संध्या पर ये गीत तुम्हे अर्पण है !
ye pankhitiyan kaafi kuch kah jaati hai ..
aap ki ye kaviyta mere man ko kahi choo gayi aur aankhe nam kar gayi ..
wah wah , bahut sundar ji ..
bahut badhai ..
maine bhi kuch naya likha hai , aapka sneh chahiye ..
aapka vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/
"नव वर्ष २००९ - आप सभी ब्लॉग परिवार और समस्त देश वासियों के परिवारजनों, मित्रों, स्नेहीजनों व शुभ चिंतकों के लिये सुख, समृद्धि, शांति व धन-वैभव दायक हो॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ इसी कामना के साथ॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं "
ReplyDeleteregards
इस खूबसूरत गीत के लिए धन्यवाद!
ReplyDeleteआपको तथा आपके पूरे परिवार को आने वाले वर्ष की हार्दिक शुभकामनाये !
नववर्ष की हार्दिक ढेरो शुभकामना
ReplyDeleteनववर्ष की हार्दिक ढेरो शुभकामना
ReplyDeleteसबसे पहले आपको नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें !
ReplyDeleteऐसा कोई मिला ना जग में
जिसको मन का दर्द सुनाऊं
जग भर की वेदना लिए मैं
किसको गहरी टीस दिखाऊँ
.......................................
और मानिनी क्या दे सकता तुमको इस बिखरे मन से मैं
विगत वर्ष की अन्तिम संध्या पर ये गीत तुम्हे अर्पण है !
मै इस कविता की जीतनी भी तारीफ करूँ कम है , इन चार सिमटी सी लाइनों में आपने जो बात कह दी है वह हम पुरी जीन्दगी भर अपने मन में ही मन कहने की कोशिश करते है और यह हर एक के मन की आवाज है जिसे हम किसी से कहना चाहते है पर सवाल उठता है की किससे कहे और कैसे कहें ....और आपने अपने गीत देकर सारा जहाँ दे दिया अब बचा ही क्या .....
देवेश .
जीवन भर की कमाई इन कागज़ के टुकडों में ,और प्यार सहित अर्पण /बुरे दिनों के साथी को इससे ज़्यादा भी क्या जा सकता है /अब इस उम्र में यह भी क्तोनाहीं कह्सकते कि =हमको तुम्हारी उमर लग जाए +
ReplyDeletepahle likhi gayi aapki anya kavitaon me sabse prbhavshaali.
ReplyDeleteनव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें !
ReplyDeleteबहुत बढ़िया गीत पढ़वाया सतीश भाई. अपनी पुरानी डायरी के और पन्ने लाईये.
ReplyDeleteनया साल शुभ हो.
khoobsurat geet hai
ReplyDeleteआपको लोहडी और मकर संक्रान्ति की शुभकामनाएँ....
ReplyDeleteबेहतरीन गीति-रचना, हमेशा की तरह... बधाई... सतीश जी..
ReplyDeleteकुछ नया लिखने को मूड बनाइये सक्सेना जी
ReplyDeleteSatish ji kya kahoon
ReplyDeletebahut hi khoobsurat Bhaav hain yeh, shuruaat ki yeh pankitaan hi man ko harshit karti hain..
मन के सोये तार जगाती
याद तुम्हारी ऐसे आयी ,
ऐसी लगन लगी है मन में
गीत झरें बरसातों जैसे
bahut apne se shabd
badhai sweekare
regards
Manuj Mehta
पहले भी थे गीत यही पर
ReplyDeleteगाने वाला मिला ना कोई
जबसे तुमने हाथ संभाला
इन गीतों की हुई सगाई
Waah...Waaah....! Bhot acche....
आप कहां व्यस्त हैं आजकल...?
ReplyDeleteऔर मानिनी क्या दे सकता तुमको इस बिखरे मन से मैं
ReplyDeleteविगत वर्ष की अन्तिम संध्या पर ये गीत तुम्हे अर्पण है !
खूबसूरत गीत
aapne bahut accha geet likha hai.
ReplyDeleteरहा अकेला जीवन भर मैं,
ReplyDeleteइस जग की सुनसान डगर पर
अगर सहारा तुम ना देते ,
बह जाता अथाह सागर में
बहुत-बहुत धन्यवाद सतीशजी इतने सुन्दर गीत के लिये
Bete huye ko asani se na chood pane ka ehsaas, apki riston main Imandaari ko zahir karta hai...
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteआपकी यह खूबसूरत रचना आज 'पाँच लिंकों का आनंद'
ReplyDeleteकी शोभा बढ़ा रही है। आपको सादर बधाई एवं धन्यवाद इतनी सुंदर रचना को साझा करने के लिए ।
मन के सोये तार जगाती
ReplyDeleteयाद तुम्हारी ऐसे आयी ,
ऐसी लगन लगी है मन में
गीत झरें बरसातों जैसे !
पहले भी थे गीत यही पर
गाने वाला मिला ना कोई
जबसे तुमने हाथ संभाला
इन गीतों की हुई सगाई
जीवन भर की सकल कमाई,----------
निर्मल और दिव्य भावों से भरा आलौकिक लेखन !!!!!!!!!-- आदरणीय सतीश जी --अकसर आपके भावपूर्ण गीत पढ़ती हूँ तो मन को भावुक हो जाता है | सादर शुभकामना --
वाह!!!!
ReplyDeleteलाजवाब गीत...
बहुत ही खूबसूरत गीत ... लाजवाब गीतों का संकलन है आपका ब्लॉग ...
ReplyDeleteनव वर्ष की मंगल कामनाएं ...