Friday, June 21, 2013

हिमालय, को समझते,उम्र गुज़र जायेगी - सतीश सक्सेना

                   यह नहीं समझ आया, कि इंसानियत भूलों से, पहाड़ के नुक्सान को पूरा करने को , इस ग़ज़ल में ऐसा क्या लिखें   कि अर्थ पूरा हो ???
                   हमारी बेवकूफियों से पहाड़ रो रहे हैं , नदियाँ क्रोधित हैं , अगर नहीं सुधरे तो अभी बहुत कुछ सहना बाकी है  ! Ref: 16 june 2013, केदार घाटी 

लगता भूलों में ही यह, उम्र गुज़र जायेगी !
हिमालय को समझते, उम्र गुज़र जायेगी ! 

आज सब दब गए, इस दर्द के, पहाड़ तले
अब तो लगता है रोते, उम्र गुज़र जायेगी !

किसको मालूम था, उस रात उफनती, वह 
नदी, देखते देखते ऊपर से, गुज़र जायेगी !

कैसे मिल पाएंगे ?जो लोग, खो गए घर से,
मां को, समझाने में ही, उम्र गुज़र जायेंगी !

बहुत गुमान था, नदियों को बांधते, मानव 
केदार ऐ खौफ में ही, उम्र, गुज़र जायेगी  !

Monday, June 17, 2013

अंतर्राष्ट्रीय ब्लोगर शिरोमणि अवार्ड में भाग लें -सतीश सक्सेना


बहुत दिनों से मन बड़ा बेचैन था , सो सोंचा खुशदीप भाई के घर चलते हैं वहां जाकर देखा वे मत्था पकडे बैठे हैं ...

कारण पूंछने पर जो उन्होंने बताया वह अब आप उनकी जबान में ही सुनें ..

मक्खन रोज़ छत पर कपड़े धोने के लिए बैठता... लेकिन उसी वक्त झमाझम बारिश शुरू हो जाती...मक्खन बेचारा सोचता, कपड़े धोने के बाद सूखेंगे कैसे....बेचारा मन मार कर अपने कमरे के अंदर चला जाता...एक दिन मक्खन कमरे से बाहर निकला तो देखा...


कड़कती धूप निकली हुई थी...मक्खन ने सोचा...आज मौका बढ़िया है, कपड़े धोने का...मक्खन ने कपड़े धोने का सब ताम-झाम बाहर निकाला...

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लेकिन ये क्या सर्फ तो डिब्बे में था ही नहीं...मक्खन फटाफट गली के बाहर जनरल स्टोर की तरफ़ भागा...मक्खन जनरल स्टोर के अंदर ही था कि अचानक बादल ज़ोर ज़ोर से गरजने लगे...दिन में ही अंधेरा छा गया...मक्खन जनरल स्टोर से बाहर निकला...दोनों हाथ झुलाते हुए आगे पीछे करने लगा और फिर बड़ी मासूमियत से आसमान की तरफ़ देखकर बोला...



होर जी, किंदा....मैं ते एवें ही बस...बिस्किट लैन आया सी...तुसी गलत समझ रेयो जी...

                           उस दिन मुझे खुशदीप भाई ने मक्खन से पहली बार मिलवाया , साथ ही बताया कि मक्खन मेरा सारा काम  भी  देखता है , दिमाग का कुछ अधिक तेज होने के कारण मुझे हर समय इस पर निगाह रखनी पड़ती है ! उन्होंने पब्लिक से इसका परिचय कभी नहीं कराया , और साथ ही मुझसे भी वायदा लिया कि वे इसे किसी को बताएँगे भी नहीं ! हाँ हिंट देते हुए मैं बता दूं कि मक्खन खुद एक ब्लोगर है जो ब्लोगिंग समुदाय में एक मशहूर साहित्यकार के रूप में बेतहाशा ख्याति और पुरस्कार के साथ साथ घने नोट भी कूट रहा है  !

           कृपया उपरोक्त चित्रों में एक सज्जन मक्खन है अगर आप सही पहचान सके तो आपको "अंतरार्ष्ट्रीय  ब्लोगर शिरोमणि " का अवार्ड प्रदान किया जाएगा  इस अवार्ड विजेता का चयन किसी मशहूर ब्लोगर की अध्यक्षता वाली एक कमिटी करेगी जिसके चेयरमैन शिप  के लिए अनूप शुक्ल , समीर लाल  और खुद मक्खन दौड़ में हैं  ! इसके लिए भी ब्लोगरों से वोटिंग कराई जायेगी !


             तो आइये इस मक्खन ढूंढो प्रतियोगिता में हिस्सा लें और  "अंतर्राष्ट्रीय ब्लोगर शिरोमणि" पुरस्कार प्राप्त करें !
              यह पुरस्कार देने की जगह अभी मुक़र्रर नहीं हुई है मगर अगर कनाडा में हुआ तो समीर लाल जी ने ब्लोगरों के आने जाने का टिकट एवं रहने की व्यवस्था मुफ्त देने का वायदा ताऊ से कर दिया है ..
और यही वायदा अनुराग शर्मा उर्फ़ स्मार्ट इन्डियन ने भी किया है बशर्ते प्रतियोगिता पिट्सबर्ग में आयोजित की जाए ! 
              अग्रिम बधाई आप सबको ...

Friday, June 14, 2013

कसम अल्लाह की उस रोज़ ग़ज़ल बनती है -सतीश सक्सेना

अगर बरसात जाड़ों में ,तो हज़ल बनती है !
गर्म लपटों पे बरसती, तो ग़ज़ल बनती है !

अगर यह, गुन गुनायी जाए , तेरे होठो से !
तभी पूजा पे,चढाने को ग़ज़ल बनती है !

अगर गैरों के लिए,आँख से,आंसू छलकें !
किसी पे मेहरबान हो तो ग़ज़ल बनती है !

अगर क़दमों पे कदम,रख के चल सकें साथी
तुम अगर हाथ पकड़ लो तो ग़ज़ल बनती है !

अगर भूखा मुझे पाकर,न तुमको नींद आये !
हाथ से जब खिला जाओ,तो ग़ज़ल बनती है !

Tuesday, June 11, 2013

लोगों का क्या,चलते फिरते, सूरज पर थूका करते हैं -सतीश सक्सेना

लोगों का क्या,चलते फिरते,सूरज गरिआया करते हैं !
रोशनी भूलकर गरमी पर , कोहराम मचाया करते  हैं  !

गर्वीले मद में,जीवन भर,अपमान किया था अपनों का ,
निज घर में ही,लुट जाने पर,क्यों जान गवाँया करते हैं !

जीवन भर, जोड़ घटाने में, न मदद किसी की कर पाए !

अब बिखरे सब रिश्ते नाते,फिर क्यों पछताया करते हैं !

जब शक्ति बहुत थी भूल गए अपने ही संगी साथी को !
अब घर में बैठ, जवानी  के, यश गान सुनाया करते हैं ! 

अब तो छोडो बीती बातें , हंस कर, अपनों से बात करें ! 
मांगलिक कार्य के मौकों पर,क्यों भूत जगाया करते हैं !

Thursday, June 6, 2013

ठसक से ठगी का पाठ पढ़ाता, यह ब्लोगर कौन है -सतीश सक्सेना

बरसों पहले २००८ में  मानसिक हलचल पर ज्ञानदत्त  पाण्डेय जी ने एक लेख लिखा था , यह ताऊ कौन है ?  
जिसमें ज्ञानदत्त जैसे गंभीर ब्लोगर ने लिखा था कि.."ताऊ की पहचान के लिये जो फसाड है एक चिम्पांजी बन्दर का - मैं उससे चाह कर भी ताऊ को आईडेण्टीफाई नहीं कर पाता। अगर मैं उनसे अनुरोध कर पाता तो यही करता कि मित्र, हमारी तरह अपनी खुद की फोटो ठेल दें - भले ही (जैसे हमारी फोटोजीनिक नहीं है) बहुत फिल्मस्टारीय न भी हो तो।"

                      वे कहते हैं कि हो सकता है ताऊ की शक्ल फिल्म स्टार जैसी न हो तो भी कम से कम अपना एक वास्तविक फोटो जरूर लगाएं ! लगभग सभी ब्लागरों ने एक ही बात कहीं कि बन्दर के चेहरे के बावजूद, ताऊ बेहद विद्वान और गंभीर कलम के धनी हैं , उस पोस्ट (३-१२-२००८ )पर मेरा ताऊ के प्रति कमेन्ट निम्न था ..
              "ताऊ पर लेख लिख कर आप बाजी मार ले गए और मैं सोचता रह गया सो बधाई स्वीकार करें ! पी सी रामपुरिया का व्यक्तित्व, ब्लाग जगत के थकान एवं उबाऊ भरे रास्ते पर एक बगीचे का शीतल अहसास जैसा है ! यह विद्वान एवं धीर गंभीर व्यक्ति ब्लाग जगत के उन शानदार प्रतिभाओं में से एक है जिसके कारण हिन्दी ब्लाग पढ़ते हुए भी, हमारे चेहरों पर मुस्कान सम्भव हो पाती है ! मैं उनके प्रसंशकों में, अपने आपको अग्रिम पंक्ति में पाता हूँ  "
                 मगर इस बन्दर मास्क लगाए चेहरे ने,ब्लॉग जगत को सार्थक लिखना सिखा दिया , हास्य व्यंग्य के इस आचार्य ने, खुद अपने चरित्र का, सरे आम मज़ाक उड़ाया है कि हमारे देश के लोग आज भी कितनी आसानी से बहुरूपियों द्वारा लुटे जा रहे हैं ! आम आदमी की कमजोरियों का फायदा उठाते, यह मदारी, नित नया रूप रखने में तनिक भी देर नहीं लगाते हैं ,धन कमाने, बाल उगाने, गोरा बनाने, बिना मेहनत  डिग्री लेने  के तरीकों पर लिखी पुस्तकें आज भी लाखों की संख्या में बिकतीं हैं !
आइये ज़रा ताऊ सद्साहित्य के प्रकाशक, द्वारा, बैस्ट सैलर किताबों पर गौर फरमाएं ...

इनकी विश्व प्रसिद्ध पुस्तकें : 
-५ वीं फेल डायरेक्ट एम् ऐ करें 
-चिटठा रोगों का शर्तिया इलाज़ 
-टंगड़ी मारने के अचूक नुस्खे 
-महिलाओं को इम्प्रेस करने के १०१ अचूक नुस्खे

                     अन्य मशहूर कंपनियों में  टीवी फोड़ न्यूज़ चैनल, ताऊ शर्तिया दवाखाना  जिसकी एजेंसी और कहीं नहीं है, नशा मुक्ति शिविर, कालोनाइज़र ताऊ , ताऊ प्रोडक्ट  फैक्ट्री  के शर्तिया कामयाब उत्पाद  और अगर आप उनके विज्ञापन पढ़ लें तो आप को रात भर नींद नहीं आएगी कि कब सुबह हो और यह प्रोडक्ट खरीदें  जाएँ  ! काश यह हमें पहले क्यों नहीं मिले ..

                      ब्लॉगजगत के इस रहस्यमय ताऊ  से एक बार मेरी मुलाक़ात हो चुकी है , मैंने निम्न कविता ताऊ को समर्पित की है जिसमें इनके ताऊ रूप का वर्णन है ! रूप वर्णन  सत्य है , ज़रा ध्यान से पढियेगा शायद आप ताऊ छवि का अंदाजा लगा सकें ! 

कंगन, झुमका ,पायल, चूड़ी
पर इस ताऊ का, ध्यान रहे
धन जहाँ दिखे, मिलते हैं यह
केवल  धंधे  का ध्यान रहे !
रुपये  कैसे भी, कमा सके ,
ये वेश बदलते रहते हैं !
संपत्ति भक्त की  अंटी कर, ये भक्त बदलते रहते हैं !

सब चोर उचक्कों के ताऊ ,
सारे ठग, इनके अनुयायी
मंदिर का कलश उतारें ये,
भगवान् के बनके अनुयायी
गुरूद्वारे मंदिर मस्जिद में,
ये अक्सर पाए जाते हैं !
जैसा मौका देखें अक्सर, भगवान् बदलते रहते हैं !

सुंदर सुकमार सुदर्शन हैं
औ दिखते वैभवशाली हैं ,
आकर्षक औ गंभीर बहुत
ये ताऊ गरिमा शाली है !
शारद मां मेहरबान इनपर , 
जिह्वा से फूल बरसते हैं !
परिस्थिति, जगह, मौका पाकर, परिवेश बदलते रहते हैं !

काले चश्में में, छिपी हुई ,
मनमोहक आँखें ताऊ की !
बन्दर की शक्ल का धोखा है
गुणवान शख्शियत ताऊ की
जेवर, धन, अर्पित करवाकर,
ये गुम हो  जाया करते  हैं !
ठग राज , चोर,  इस दर्शन को, आश्रम में, जाया करते हैं !!

Tuesday, June 4, 2013

हिजड़ों के इस देश में प्यारे ... -सतीश सक्सेना

" आपके इस आक्रोश के आगे सिर झुका है मेरा । यह पीडा और आक्रोश हवा के साथ उडना चाहिये हवा जो प्राणवायु बन कर रक्त के कण-कण में मिलती है । हर जुबां से निकलने चाहिये ये शब्द । हर आँख से बहना चाहिये यह पीडा 

पिछले लेख पर लिखे गिरिजा कुलश्रेष्ठ  , के इस कमेन्ट ने, इस मार्मिक घटना पर लिखने को दुबारा विवश किया  है , आभार उनका कि  उन्होंने इसमें छिपी वेदना महसूस की !
काश यह कष्ट औरों को भी हुआ होता !!




मैंने ब्लोगिंग की शुरुआत कभी इसलिए नहीं की थी कि  मुझे अथवा मेरी लेखनी की तारीफ़ की जाए मेरा  उद्देश्य मेरे विचारों को क्रमबद्ध करना मात्र था जिससे मुझे अपने लेखन के प्रति संतुष्टि रहे कि  मैंने अपने विचार लेखबद्ध कर दिए हैं और यह समाज के लिए , यदि मेरे बाद भी पढ़ना चाहे तो उपलब्द्ध रहे !

मगर पिछले लेख में, मैंने किये गए कमेंट्स का पुनरावलोकन किया तो पाया कि  बेहद आवश्यक और दर्दनाक , इस लेख को भी बहुत कम लोगों ने ध्यान से पढ़ा, अधिकतर कमेन्ट बिना पढ़े ही दिए गए हैं !
बेहद अफ़सोस हुआ ...

एक बहादुर देशभक्त शेर को, देश में ही , बुरी तरह मारा गया और लोगों की यह प्रतिक्रिया है ........ और भी अफ़सोस की बात यह है कि महेंद्र कर्मा की कष्टदायी मृत्यु के बाद , कम्युनिस्टों की यह प्रतिक्रिया थी कि  एक नेता की मृत्यु  पर इतनी चिल्ल पों क्यों हो रही है   ( पिछली पोस्ट पर सुज्ञ जी का कमेन्ट देखें  )!

क्योंकि  उन्हें पता था कि आज यह देश हिजड़ों और चोरों का देश है एक शेर के मरने पर, इस देश के निवासी, चिल्ल पों से अधिक कुछ नहीं कर पायेंगे !

और देश के नमक हरामों ने ज़श्न मनाया था इस बहादुर इंसान के दम तोड़ने पर ! उसकी लाश पर सैकड़ों वार करने के बाद, उसपर नाच कर, ख़ुशी ज़ाहिर की गयी थी  और शहीद की लाश के साथ, यह सब उसके अपने देश में हुआ  !

इस दर्दनाक म्रत्यु के बाद, कुछ ने उन्हें कांग्रेसी नेता कहा तो किसी की नज़र में वे पुराने कम्युनिस्ट नेता मात्र ही थे ...

मुझे लगता है कि हमारा चरित्र ही घ्रणित हो चुका है , शायद हम इस योग्य ही नहीं हैं  कि  हम अपने बीच जीवित बचे, शानदार लोगों की पहचान कर सकें ...

मैं इस घटना से पहले  महेंद्र कर्मा का नाम भी नहीं जानता था , जिस दिन यह खबर आई तो मुझे लगा कि  उग्रवादियों के द्वारा, एक राजनैतिक नेता की ह्त्या ,कर दी गयी है , मगर जब महेंद्र सिंह करमा की पृष्ठभूमि और उस दिन की घटना दुबारा पढ़ी तो लगा कि  सुभाष चन्द्र बोस की दुबारा ह्त्या कर दी गयी और देश में किसी को शर्म नहीं आई  !

हाँ ,अगले दिन जगह जगह प्रतिक्रियाएं देखने को मिलीं कम्युनिस्टों की , जो आदिवासियों पर भारत सरकार के अत्याचार की कहानी बता रहीं थीं और इस दुर्दांत घटना को, आदिवासियों की एक हिंसक प्रतिक्रिया , जिसमें महेंद्र करमा जैसे जुझारू नेता के साथ छत्तीसगढ़ के कांग्रेस अध्यक्ष एवं विद्याचरण शुक्ल  जैसे राजनेताओं को मिटा देने की एक सफल हिंसक साज़िश की गयी थी !

एक और शर्मनाक तथ्य यह भी था कि  छतीस गढ़ से किसी पत्रकार शेर ने भी अपनी कलम नहीं उठाई कि  कहीं सत्ता पक्ष के आका नाराज़ न हो जाएँ कि  कांग्रेसियों के लिए लिखा जा रहा हैं,यहाँ पर देश के लिए जान देने वाले इस बहादुर की पहचान, कांग्रेसी नेता की ही मानी गयी थी ! 

पूरे छत्तीस गढ़ में एक ही शेर था, जिसे यह पता था कि  वह सशस्त्र नक्सल वाद से, उनके गढ़ में,  अकेला  बिना किसी सहारे के, लड़ रहा है और देर सवेर इस कमज़ोर, अशिक्षित,  नासमझों के  देश में उसका मारा जाना तय है ! 

जब नक्सलवादी घेर के लोगों को मार रहे थे तब महेंद्र कर्मा ने  खड़े होकर अपील थी कि  निर्दोषों को न मारा जाय तुम लोग जिसे ढूंढ रहे हो वह मैं हूँ और नक्सल वादियों ने उसके हाथ बाँध कर उस 70 से अधिक बार चाकुओं से धीरे धीरे गोदा ताकि उन्हें अधिक दर्द हो ...

लेखन जगत की प्रति क्रियाएं हमारे देश की मनोदशा व्यक्त करने को काफी हैं जो कम से कम मेरी नज़र में बेहद शर्मनाक हैं !

थू है हमारी मानसिकता पर ... 

   
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