यह नहीं समझ आया, कि इंसानियत भूलों से, पहाड़ के नुक्सान को पूरा करने को , इस ग़ज़ल में ऐसा क्या लिखें कि अर्थ पूरा हो ???
हमारी बेवकूफियों से पहाड़ रो रहे हैं , नदियाँ क्रोधित हैं , अगर नहीं सुधरे तो अभी बहुत कुछ सहना बाकी है ! Ref: 16 june 2013, केदार घाटी
हमारी बेवकूफियों से पहाड़ रो रहे हैं , नदियाँ क्रोधित हैं , अगर नहीं सुधरे तो अभी बहुत कुछ सहना बाकी है ! Ref: 16 june 2013, केदार घाटी
हिमालय को समझते, उम्र गुज़र जायेगी !
आज सब दब गए, इस दर्द के, पहाड़ तले
अब तो लगता है रोते, उम्र गुज़र जायेगी !
किसको मालूम था, उस रात उफनती, वह
कैसे मिल पाएंगे ?जो लोग, खो गए घर से,
मां को, समझाने में ही, उम्र गुज़र जायेंगी !
बहुत गुमान था, नदियों को बांधते, मानव
आज सब दब गए, इस दर्द के, पहाड़ तले
अब तो लगता है रोते, उम्र गुज़र जायेगी !
किसको मालूम था, उस रात उफनती, वह
नदी, देखते देखते ऊपर से, गुज़र जायेगी !
कैसे मिल पाएंगे ?जो लोग, खो गए घर से,
मां को, समझाने में ही, उम्र गुज़र जायेंगी !
बहुत गुमान था, नदियों को बांधते, मानव
केदार ऐ खौफ में ही, उम्र, गुज़र जायेगी !