गर्म लपटों पे बरसती, तो ग़ज़ल बनती है !
अगर गैरों के लिए,आँख से,आंसू छलकें !
किसी पे मेहरबान हो तो ग़ज़ल बनती है !
अगर क़दमों पे कदम,रख के चल सकें साथी
तुम अगर हाथ पकड़ लो तो ग़ज़ल बनती है !
तुम अगर हाथ पकड़ लो तो ग़ज़ल बनती है !
अगर भूखा मुझे पाकर,न तुमको नींद आये !
हाथ से जब खिला जाओ,तो ग़ज़ल बनती है !
मैंने ,कलियों के हाथ , रात में चाक़ू देखा !
ReplyDeleteदोनों हंसके,गले मिलतीं,तो ग़ज़ल बनती है !
अच्छी रचना है
बहुत सुंदर
क्रोध में आके, अरुणिमा पड़ी मद्धम यारो
ReplyDeleteकोई सूरज को,मना ले,तो ग़ज़ल बनती है !
अपने नन्हे के बसेरे, को खुद, जला डाला !
कोई बरसात करा दे, तो ग़ज़ल बनती है !
गजल का एक एक शेर चुनिंदा मोतियों जैसा है. पूरी गजल आपके कथ्य को भावनात्मकता के साथ अपने दर्द को बयान करने में सक्षम है, बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
आपने आज के बच्चों का दर्द बखूबी बयान किया है. मां बाप को समझना चाहिये कि आज के बच्चे उनके समय के बच्चे नही हैं.
ReplyDeleteहमारे समय में बच्चे 6/7 साल की उम्र तक बेधडक नंगे घूमा करते थे, आज के 2/3 साल के बच्चे भी ऐसा नही करते, इसका कारण यह है कि आज के बच्चों की समझ जल्दी बडी होती है, आज डेढ दो साल के बच्चों को स्कूल भेज दिया जाता है, तो उसी अनुपात में उनकी समझ जल्दी विकसित होती है. इतने छोटे बच्चों को स्कूल भिजवाने वाले पालक यह क्यूं भूल जाते हैं कि बच्चे को यह बोझ पालकों द्वारा ही लादा गया है. आज के माहोल में बच्चों के फ़ैसलों का सम्मान किया जाकर उन्हें जरूरत लगे तो सलाह दी जाना चाहिये. जबरन की दखल उनकी जिंदगी में कांटे ही बोयेगी.
इस संदर्भ में आपकी गजल का यह शेर बडा सटीक लगता है:-
अगर भूखा मुझे पाकर, न तुमको नींद आये !
हाथ से जब खिला जाओ, तो ग़ज़ल बनती है !
आज अक्सर हर तरफ़ ही यह समस्या है जिस पर बहुत ही शानदार कलम चलाई है आपने सतीश भाई. बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
aapke geeton me jiwan ka sandesh hota hai... kabeer kee tarah...
ReplyDeleteजीवन अर्थ समझाती ग़ज़ल ...बहुत सुन्दर
ReplyDeleteअगर गैरों के लिए, आँख से , आंसू छलकें !
ReplyDeleteकसम अल्लाह की,उस रोज़ ग़ज़ल बनती है !
ये समझ आज के बड़ों में आ जाये
उनकी आँखों में प्यार छा जाये
उनको बच्चों के मन समझ आयें
वास्तव में ये ग़ज़ल बनती है .
बहुत सुन्दर भावों की अभिव्यक्ति . आभार . सब पाखंड घोर पाखंड मात्र पाखंड
आप भी जानें संपत्ति का अधिकार -४.नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN क्या क़र्ज़ अदा कर पाओगे?
बेहतरीन, जब तक भाव नम न हों, शब्द कहाँ पिघलते हैं?
ReplyDelete@घर के बड़ों द्वारा, बच्चों के जीवन में, हर समय नज़र रखना और उनको अपने फैसले न करने देना ,
ReplyDeleteआपकी इस बात से अभी कुछ दिन पहले घटी एक दर्दनाक घटना याद आ रही है !
अगर बात अनपढ़ों की हो तो समझ आती है पर पढ़े लिखे लोग भी अपने बच्चों को
समझ नहीं पाते तब बड़ा दुःख होता है ! खाने पीने पहनने तक छुट तो दे दी है लेकिन
शादी जैसा महत्वपूर्ण फेसला आज भी अभिभावकों के हाथ में है चाहे बच्चा विदेश में ही
क्यों न पढ़कर आया हुआ हो ! हमारे एक वकील मित्र है उन्होंने अपने एकुलते एक बच्चे
को अपने ही पसंद की लड़की से शादी करने से इस प्रकार जोर डाला की बच्चे ने ख़ुदकुशी कर ली ! आज वे वकील साहब बिलकुल विक्षिप्त से हो गए है जिंदगी में बिलकुल अकेले !न जानी ऐसी कितनी सारी घटनाएँ है हमें विचलित कर देती है ! आज बच्चे समझदार हो रहे है कुछ फैसले उन्हें भी करने का अधिकार होना चाहिए आखिर जिंदगी उनकी है !
अगर यह, गुनगुनायी जाए , तेरे होठो से !
ReplyDeleteतभी पूजा पे, चढाने को ,ग़ज़ल बनती है !
सार्थक उपरके लेख से मेल खाती सुन्दर रचना है !
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ReplyDeleteछोटों पर स्नेह से आंखे जब सजल बनती है।
ReplyDeleteममत्व भरी अनुकम्पा से ही गजल बनती है।
मैंने ,कलियों के हाथ , रात में चाक़ू देखा !
ReplyDeleteदोनों हंसके,गले मिलतीं,तो ग़ज़ल बनती है !
यकीनन तब गज़ल बनती है
बात जो दिल से निकले और दिल तक पंहुचे
ReplyDeleteतो एक गज़ल बनती है ???
आप की दिल से निकली बात ..दिल तक पंहुची !
सार्थक सन्देश .....
शुभकामनायें!
मान सम्मान पर माली, लड़े हैं,अक्सर ही ,
ReplyDeleteनन्हें फूलों को बचा लें ,तो ग़ज़ल बनती है !sahi bat .....
मान सम्मान पर माली, लड़े हैं,अक्सर ही ,
ReplyDeleteनन्हें फूलों को बचा लें ,तो ग़ज़ल बनती है ! sahi bat ...
क्या बात है! छा गए सर .....
ReplyDeleteअक्सर आ जाती है उनके चेहरे पर शिकन
कभी जब मुस्करायें वे तो ग़ज़ल बनती है :-)
साहब, आपके अंदर शायरी करने क़ी जो नैसर्गिक ललक है, उसने जहाँ से अंदाज़े बयाँ पाना शुरू करा , वहाँ से तो आप गजब ढा देगे :)
ReplyDeleteलिखते रहिये ...
वाह...क्या खूबसूरत ग़ज़ल बनी....
ReplyDeleteमैंने ,कलियों के हाथ , रात में चाक़ू देखा !
दोनों हंसके,गले मिलतीं,तो ग़ज़ल बनती है !
लाजवाब!!!
सादर
अनु
बच्चों के मामले में,आप से सहमत हैं हम भी,
ReplyDeleteकविता लिखते लिखते, ये भी ग़ज़ल बन गई।
bahut khoob ,behatareen gazal
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण गज़ल
ReplyDeleteबहुत सुंदर !
ReplyDeleteshaandaar
ReplyDeleteसब समझ लें रिश्तों की गरिमा को तो उस समाज की भी तक़दीर बन जाती है.
ReplyDeleteसब समझ लें रिश्तों की गरिमा को तो उस समाज की भी तक़दीर बन जाती है.
ReplyDeleteवाह! बेहद खूबसूरत..
ReplyDeleteबहुत उम्दा ख्याल लिए हुए है यह ग़ज़ल..हर शेर बहुत खूबसूरत हाउ.
ReplyDeleteयांत्रिक जीवन में रिश्तों की अहमियत न खो जाए ,बच्चों से बचपन उनकी मासूमियत न छीने...यही बड़ो का प्रयास होना चाहिए.
नेक विचार. बच्चों को भी स्पेस देना जरुरी है. वैसे आज के बच्चे बहुत स्पष्ट मंतव्य रखते हैं.
ReplyDeleteजिंदगी का हर लम्हा....अच्छा या बुरा ...वो एक गज़ल ही है पर नजरिया अपना अपना लिए हुए
ReplyDeleteरात भर फूट के , रोये थे , दोनों कमरे में ,
ReplyDeleteकोई पापा को मनाये ,तो ग़ज़ल बनती है ..
बहुत खूब सतीश जी ... हर शेर लाजवाब है खिलता हुवा ...
उम्दा गज़ल ...
अगर क़दमों पे कदम,रख के चल सकें साथी
ReplyDeleteतुम्हारा हाथ, पकड़ कर के, ग़ज़ल बनती है !
aapane dil ki baat kah di waah nihshabd karte alfaz
अगर क़दमों पे कदम,रख के चल सकें साथी
ReplyDeleteतुम्हारा हाथ, पकड़ कर के, ग़ज़ल बनती है !
aapane dil ki baat kah di . khubsurat alfaz
मान सम्मान पर माली, लड़े हैं,अक्सर ही ,
ReplyDeleteनन्हें फूलों को बचा लें ,तो ग़ज़ल बनती है !
sundar baat ....
रात भर फूट के,रोये थे ,दोनों कमरे में ,
ReplyDeleteकोई पापा को मनाये,तो ग़ज़ल बनती है ..
भावपूर्ण अभिव्यक्ति बहुत सुंदर लाजबाब गजल ,,,बधाई सतीश जी
RECENT POST: जिन्दगी,
ReplyDeleteकुछ मधुशाला का रस लेने
आये थे , सुनने गीतों को !
कुछ तो इनमें मस्ती ढूँढें ,
कुछ यहाँ खोजते मीतों को !
यह कैसे बतलाएं सबको,कैसे लिख जाते हैं गीत !
कष्टों के घर, पले हुए हैं ,प्यार न जाने मेरे गीत !
स्वप्न गीत से हटा लिया टिपण्णी का ऑप्शन मेरे मीत ,
बुरा कहो या भला कुछ न कहेंगे मेरे गीत .
अगर भूखा मुझे पाकर, न तुमको नींद आये !
ReplyDeleteहाथ से जब खिला जाओ, तो ग़ज़ल बनती है !
रात भर फूट के , रोये थे , दोनों कमरे में ,
कोई पापा को मनाये ,तो ग़ज़ल बनती है !
.बहुत सुंदर, इतना अच्छा पढने को मिलेगा तो हम भी कुछ सिख लेंगे आभार
सबक सिखाएं जिन्दगी भी हजल बनती है !
ReplyDeleteख़ुदकुशी फूल न करलें,तो ग़ज़ल बनती है !
अगर यह, गुनगुनायी जाए , तेरे होठो से !
तभी पूजा पे, चढाने को ,ग़ज़ल बनती है !
utkrisht rchna sir ji.
सबक सिखाएं जिन्दगी भी हजल बनती है !
ReplyDeleteख़ुदकुशी फूल न करलें,तो ग़ज़ल बनती है !
अगर यह, गुनगुनायी जाए , तेरे होठो से !
तभी पूजा पे, चढाने को ,ग़ज़ल बनती है !
utkrisht rchna sir ji.