लोगों का क्या,चलते फिरते,सूरज गरिआया करते हैं !
रोशनी भूलकर गरमी पर , कोहराम मचाया करते हैं !
गर्वीले मद में,जीवन भर,अपमान किया था अपनों का ,
निज घर में ही,लुट जाने पर,क्यों जान गवाँया करते हैं !
जीवन भर, जोड़ घटाने में, न मदद किसी की कर पाए !
अब बिखरे सब रिश्ते नाते,फिर क्यों पछताया करते हैं !
जब शक्ति बहुत थी भूल गए अपने ही संगी साथी को !
अब घर में बैठ, जवानी के, यश गान सुनाया करते हैं !
अब तो छोडो बीती बातें , हंस कर, अपनों से बात करें !
मांगलिक कार्य के मौकों पर,क्यों भूत जगाया करते हैं !
रोशनी भूलकर गरमी पर , कोहराम मचाया करते हैं !
गर्वीले मद में,जीवन भर,अपमान किया था अपनों का ,
निज घर में ही,लुट जाने पर,क्यों जान गवाँया करते हैं !
जीवन भर, जोड़ घटाने में, न मदद किसी की कर पाए !
अब बिखरे सब रिश्ते नाते,फिर क्यों पछताया करते हैं !
जब शक्ति बहुत थी भूल गए अपने ही संगी साथी को !
अब घर में बैठ, जवानी के, यश गान सुनाया करते हैं !
अब तो छोडो बीती बातें , हंस कर, अपनों से बात करें !
मांगलिक कार्य के मौकों पर,क्यों भूत जगाया करते हैं !
जब शक्ति बहुत थी भूले थे ,जीवन के संगी साथी को !
ReplyDeleteअब घर में बैठ, जवानी के , गुणगान सुनाया करते हैं ..
बहुत खूब सतीश जी .. जीवन की सच्चाई को बाखूबी लिखा है ...
आनंद आ गया ...
जब शक्ति बहुत थी भूले थे ,जीवन के संगी साथी को !
ReplyDeleteअब घर में बैठ, जवानी के , गुणगान सुनाया करते हैं ..
बहुत सुन्दर.बहुत बढ़िया लिखा है .शुभकामनायें आपको !
गर्वीले मद में,जीवन भर,अपमान किया था अपनों का,
ReplyDeleteनिज घर में ही,लुट जाने पर,क्यों शोर मचाया करते हैं!
जीवन की सच्चाई से परिपूर्ण ,सुंदर प्रस्तुति,,,बहुत उम्दा सतीश जी,,,
recent post : मैनें अपने कल को देखा,
बहुत सुन्दर, जब शक्ति बहुत थी भूले थे ,जीवन के संगी साथी को !
ReplyDeleteअब घर में बैठ, जवानी के ,यश गान सुनाया करते हैं !
अब तो छोडो बीती बातें , हंस कर, अपनों से बात करें !
मांगलिक कार्य के मौकों पर,क्यों भूत,जगाया करते हैं !
बढ़िया ग़ज़ल....
ReplyDeleteजीवन की कडवी हक़ीकत बयां कर डाली....
सादर
अनु
लोगों का क्या,चलते फिरते, सूरज पर थूका करते हैं !
ReplyDeleteरोशनी भूल कर गरमी पर,कोहराम मचाया करते हैं !
सार्थक पंक्तियाँ है ....लोगों का काम ही है कोहराम मचाना
आज गरमी पर कोहराम मचाएंगे कल बारिश पर !
क्या कहिये ऐसे लोगों को।
ReplyDeleteगर्वीले मद में,जीवन भर,अपमान किया था अपनों का ,
ReplyDeleteअब तो छोडो बीती बातें , हंस कर, अपनों से बात करें !
बहुत सुंदर लिखा
माउस का राईट क्लिक disable या कॉपी पेस्ट disable साईट या ब्लॉग से कोई सा भी वॉलपेपर कैसे डाउनलोड करें
गर्वीले मद में,जीवन भर,अपमान किया था अपनों का ,
ReplyDeleteनिज घर में ही,लुट जाने पर,क्यों शोर मचाया करते हैं !
जीवन भर, जोड़ घटाने में, न मदद किसी की कर पाए !
अब सब बिखरे रिश्ते नाते,फिर क्यों पछताया करते हैं !
..बहुत बढ़िया ...
जीवन की कडवी हक़ीकत बयाँ करती बेहतरीन प्रस्तुती,आभार.
ReplyDeleteगर्वीले मद में,जीवन भर,अपमान किया था अपनों का ,
ReplyDeleteनिज घर में ही,लुट जाने पर,क्यों शोर मचाया करते हैं !
जीवन भर, जोड़ घटाने में, न मदद किसी की कर पाए !
अब सब बिखरे रिश्ते नाते,फिर क्यों पछताया करते हैं !
जीवन की हकीकत बयां गजल -बहुत सुन्दर
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प्रभावशाली रचना..
ReplyDeleteअब तो छोडो बीती बातें , हंस कर, अपनों से बात करें !
ReplyDeleteमांगलिक कार्य के मौकों पर,क्यों भूत,जगाया करते हैं !
दुआ चंदन
बस रहे पावन
जहाँ भी रहे !
Waaah... Kya baat hai Satish bhai....
ReplyDeletebahut sundar bhavon ko shabdon me piroya hai aapne ..badhai जो बोया वही काट रहे आडवानी
आपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा आज मंगलवार ११ /६ /१ ३ के विशेष चर्चा मंच में शाम को राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी वहां आपका स्वागत है
ReplyDeleteजब शक्ति बहुत थी भूले थे ,जीवन के संगी साथी को !
ReplyDeleteअब घर में बैठ, जवानी के ,यश गान सुनाया करते हैं !
आपकी गजल निजी और देश, दोनों ही परिपेक्ष्य में सटीक है. हम अपने वर्तमान के कर्तव्यों से विमुख होकर भूतकाल के गुण गान में ही लगे रह्ते हैं. बहुत ही शानदार.
रामराम.
अब तो छोडो बीती बातें , हंस कर, अपनों से बात करें !
ReplyDeleteमांगलिक कार्य के मौकों पर,क्यों भूत,जगाया करते हैं !
काश आपकी बात मानकर इन भूतों से पीछा छुडवाकर वर्तमान की हंसी वादियों में विचरना शुरू करदें, नमन है आपको.
रामराम.
जब शक्ति बहुत थी भूले थे ,जीवन के संगी साथी को !
ReplyDeleteअब घर में बैठ, जवानी के ,यश गान सुनाया करते हैं !
बहुत खूब एकदम सटीक.
सुंदर रचना !
ReplyDeleteज़िन्दगी की सच्चाई बयाँ करती रचना मन को भा गयी।
ReplyDeleteअब तो छोडो बीती बातें , हंस कर, अपनों से बात करें !
ReplyDeleteमांगलिक कार्य के मौकों पर,क्यों भूत,जगाया करते हैं !
सही सन्देश.
-जीवन के सच को जस का तस रचना में लिख दिया.
बहुत खूब!
सही... सटीक.... सुन्दर....!!!
ReplyDeleteवाह वाह भाई जी। आज तो बहुत सारी काम की बातें कह डाली।
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति।
आपकी इस आह्वान का तत्काल असर हुआ है !
ReplyDeleteबदले में जब वापस मिलते अपने ही व्यवहार...फिर मूढ़ मनुज क्यूँ घबड़ाया करते हैं...
ReplyDeleteएक पंक्ति मैंने भी लिख दी...
बहुत अच्छी ग़ज़ल है आपकी...सादर बधाई !!
बहुत बढिया
ReplyDeleteये दुनिया के लोग ऐसे ही है जो बनते काम यूँ ही बिगाड़ा करते हैं
waah .....badi-badi baaton ko ..chhote-chhote shabdon me kh diya ....
ReplyDeleteबर्दाश्त की इक सीमा होती, क्यों अन्याय खतम नहीं होता?
ReplyDeleteइसे गीत नहीं समझो भैय्या 'सतीश' बंदूक चलाया करते हैं।
हाँ ,अब तो चेतें जितना सँभाल लें उतना ही सही!
ReplyDeleteबहुत तत्वपूर्ण बातें कहीं ,जिन्हें मानने में ही कल्याण है .
ReplyDeleteगर्वीले मद में,जीवन भर,अपमान किया था अपनों का ,
ReplyDeleteनिज घर में ही,लुट जाने पर,क्यों शोर मचाया करते हैं !
बहुत सुन्दर शेर कहा है.
.
ReplyDelete.
.
बोया पेड़ बबूल का, आम कहाँ से पाय ?
अच्छा लगा इसे पढ़ना...
...
जब शक्ति थी तब भूले, कितने लोगों को यह पंक्तियाँ छू गई हैं जीवन का मर्म हैं इनमें
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना, ऐसी रचनाएं कभी कभी ही पढ़ने को मिलती हैं।
ReplyDeleteहां एक बात और, मैं देख रहा हूं कि जब ब्लाग पर आता हूं यहां आपकी
तस्वीर बदल जाती है। ये ट्रिक समझ में नहीं आ रहा है। हाहाहहा
मीडिया के भीतर की बुराई जाननी है, फिर तो जरूर पढिए ये लेख ।
हमारे दूसरे ब्लाग TV स्टेशन पर। " ABP न्यूज : ये कैसा ब्रेकिंग न्यूज ! "
http://tvstationlive.blogspot.in/2013/06/abp.html
गर्वीले मद में,जीवन भर,अपमान किया था अपनों का ,
ReplyDeleteनिज घर में ही,लुट जाने पर,क्यों शोर मचाया करते हैं !
बहुत ही सुन्दर,आज के सामाजिक जीवन की कलई खोल कर रख दी है आपने,आभार
गर्वीले मद में,जीवन भर,अपमान किया था अपनों का ,
ReplyDeleteनिज घर में ही,लुट जाने पर,क्यों शोर मचाया करते हैं !
बहुत ही सुन्दर,आज के सामाजिक जीवन की कलई खोल कर रख दी है आपने,आभार
विचारणीय कडवे सच की उम्दा प्रस्तुति.
ReplyDeleteसोचने पर मजबूर करती रचना ...!!
ReplyDeleteसोचने को मजबूर करती रचना ....सतीश जी ...
ReplyDeleteजीवन भर, जोड़ घटाने में, न मदद किसी की कर पाए !
ReplyDeleteअब सब बिखरे रिश्ते नाते,फिर क्यों पछताया करते हैं !
घमंड, ग्लानि, पछतावा, अनावश्यक दर्प आपकी रचना या गीत का मूल भाव लगा आपने श्लोक की भांति गीत की माला लिखी संग्रहनीय और अनुकरणीय लाजवाब
बहुत खुबसूरत ...सच्चाई भरे अहसास !
ReplyDeleteखुश रहें गुरु भाई जी !
कुछ लोग होते ही आदत से कमाल हैं :-(
ReplyDeleteअब पछताए होत क्या, जब चिड़िया चुग गयी खेत!
ReplyDeleteढ़
--
थर्टीन ट्रैवल स्टोरीज़!!!
साहब। भूत भी तो कभी कभी खुद ही जग जाता है - बिना जगाए :)
ReplyDeleteआपका प्रोफाइल पर दिया गया ईमेल कुछ गलत मालूम पड़ता है , कृपया चेक कर ले ....
लिखते रहिये ..
ठीक है यार ...
Deletesatish1954@gmail.com
Delivery to the following recipient failed permanently:
ReplyDeletesaitsh1954@gmail.com
Technical details of permanent failure:
The email account that you tried to reach does not exist. Please try double-checking the recipient's email address for typos or unnecessary spaces. Learn more at http://support.google.com/mail/bin/answer.py?answer=6596
------------
हमारा संदेसा तो लौटा दिया जा रहा है ... आप कहें तो सतीश१९६४ , 1974 या और नवीन संस्करण आजमाएँ :)
आजमाने में हर्ज़ भी क्या है मशाल अर्र रर मजाल सर ..
Deleteवैसे आप स्पेलिंग ठीक करें, सतीश की
satish1954@gmail.com
जबकि आपके वाले में saitish1954 hai ...
pl remove I ..
यह वैसे भी बहुत खतरनाक है :)
आभार आपका बार बार याद करते हो लगता है पुराना याराना है !
छुप छुप खड़े हो ज़रूर कोई बात है :)
जब शक्ति बहुत थी भूले थे ,जीवन के संगी साथी को !
ReplyDeleteअब घर में बैठ, जवानी के ,यश गान सुनाया करते हैं !
...आज के यथार्थ की बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
सतीश जी, पहली बार आना हुआ आपके ब्लॉग पर ! बेहतरीन रचना !! और आपके परिचय को पढ़ कर नतमस्तक !!
ReplyDeleteबड़े कमज़र्फ हैं वो गुब्बारे जो चंद साँसों में फूल जाते है
ReplyDeleteहवा की ज़रा सी रवानगी पाकर अपनी औकात भूल जाते है...
जय हिंद...