Saturday, December 12, 2015

खूब पुरस्कृत दरबारों में फिर भी नज़र झुकाएं गीत - सतीश सक्सेना

जिन दिनों लेखन शुरू किया था उन दिनों भी, एक भावना मन में थी कि अगर मेरी कलम ईमानदार है तो किसी से प्रार्थना करने नहीं जाऊंगा कि मेरे लेखन को मान्यता मिले, आज नहीं तो कल, देर सवेर लोग पढ़ेंगे अवश्य !
आश्चर्य होता है कि यहाँ के स्थापित विद्यामार्तंड, किस कदर चापलूसी पसंद करते हैं ……… 
 हमें हिंदी के सूरज और चांदों का विरोध करना चाहिए और जनता के सामने लाना चाहिए हो सकता है इन ताकतवर लोगों के खिलाफ बोलने से, इनके गुस्से का सामना करना पड़े मगर हमें इस तरह के घटिया सम्मान की परवाह नहीं करनी चाहिए ! मंगलकामनाएं हिन्दी को, एक दिन इसके दिन भी फिरेंगे !

कैसे कैसे लोग यहाँ पर
हिंदी के मार्तंड कहाए !
कुर्सी पायी लेट लेट कर 
सुरा सुंदरी, भोग लगाए !
ऐसे राजा इंद्र  देख कर , 
हंसी उड़ायें मेरे गीत !
हिंदी के आराध्य बने हैं, कैसे कैसे लोभी गीत !

कलम फुसफुसी रखने वाले
पुरस्कार की जुगत भिड़ाये
जहाँ आज बंट रहीं अशर्फी
प्रतिभा नाक रगड़ती पाये !
अभिलाषाएँ छिप न सकेंगी
कैसे  बनें यशस्वी गीत  ?
बेच प्रतिष्ठा गौरव अपना, पुरस्कार हथियाते गीत !


इनके आशीषों से मिलता
रचनाओं का फल भी ऐसे
एक इशारे से आ जाता ,
आसमान, चरणों में जैसे !
सिगरट और शराब संग में 
साकी के संग बैठे मीत !  
पाण्डुलिपि पर छिड़कें  दारु, मोहित होते मेरे गीत !

चारण, भांड हमेशा रचते
रहे , गीत  रजवाड़ों के  !
वफादार लेखनी रही थी
राजों और सुल्तानों की !
रहे मसखरे, जीवन भर ही, 
खूब सुनाये  स्तुति गीत !
खूब पुरस्कृत दरबारों में फिर भी नज़र झुकाएं गीत !

10 comments:

  1. सटीक रचना

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  2. हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दुस्तॉ हमारा हमारा ...................

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  3. बहुत सुंदर सर

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  4. ये दुनिया ऐसी ही है भाई। यहाँ ईमान बिकता है , चापलूसी चलती है। शोमेन्शिप का ज़माना है। इसलिए अपने आनंद के लिए लिखते रहो और जहाँ अवसर मिले , सुनाते रहो।

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  5. चारण,भांड हमेशा रचते
    रहे , गीत रजवाड़ों के !
    वफादार लेखनी रही थी
    राजों और सुल्तानों की !
    रहे मसखरे, जीवन भर ही, खूब सुनाये स्तुति गीत !
    खूब पुरस्कृत दरबारों में फिर भी नज़र झुकाएं गीत !
    सच ऐसे पुरस्कार का क्या मूल्य जो अपनी ही नज़रो में गिरकर हासिल हो।
    बहुत सटीक सामयिक ...जोर का झटका

    ReplyDelete
  6. चारण,भांड हमेशा रचते
    रहे , गीत रजवाड़ों के !
    वफादार लेखनी रही थी
    राजों और सुल्तानों की !
    रहे मसखरे, जीवन भर ही, खूब सुनाये स्तुति गीत !
    खूब पुरस्कृत दरबारों में फिर भी नज़र झुकाएं गीत !
    ..सच ऐसा सम्मान किस काम को जिसमें सर उठाकर भी न चल सके ...
    बहुत सुन्दर सटीक रचना ..
    आपको जन्मदिन की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनायें!

    ReplyDelete
  7. चारण,भांड हमेशा रचते
    रहे , गीत रजवाड़ों के !
    वफादार लेखनी रही थी
    राजों और सुल्तानों की !
    रहे मसखरे, जीवन भर ही, खूब सुनाये स्तुति गीत !
    खूब पुरस्कृत दरबारों में फिर भी नज़र झुकाएं गीत !
    ..सच ऐसा सम्मान किस काम को जिसमें सर उठाकर भी न चल सके ...
    बहुत सुन्दर सटीक रचना ..
    आपको जन्मदिन की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनायें!

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  8. इस विषय पर बहुत बार लिखा है मैंने
    सरलता हमेशा प्रशंसनीय रही है और रहेगी !
    लेखन बस आनंद है क्योंकि, हमारे पास अतिरिक्त है
    इसलिए बांटना चाहते है बस !

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- सतीश सक्सेना

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