कौन आये साथ , गहरे दर्द सहने के लिए,
हम अकेले ही भले,जंगल में रहने के लिए !
जिस जगह जाओ वहां बौछार फूलों की रहे
तुम बनाये ही गए , सम्मान पाने के लिए !
शिष्ट सुन्दर सुखद मनहर देवता आदर करें
क्या जरूरत जंगली से, प्यार करने के लिए !
माँद के अंदर न जाएँ, ज़ख्म ताजे बह रहे
समय देना है,बबर के घाव भरने के लिए !
जाति,मज़हब,देश से इंसान भी आज़ाद हो,
पक्षियों से सीखिये,उन्मुक्त उड़ने के लिए !
हम अकेले ही भले,जंगल में रहने के लिए !
जिस जगह जाओ वहां बौछार फूलों की रहे
तुम बनाये ही गए , सम्मान पाने के लिए !
शिष्ट सुन्दर सुखद मनहर देवता आदर करें
क्या जरूरत जंगली से, प्यार करने के लिए !
माँद के अंदर न जाएँ, ज़ख्म ताजे बह रहे
समय देना है,बबर के घाव भरने के लिए !
जाति,मज़हब,देश से इंसान भी आज़ाद हो,
पक्षियों से सीखिये,उन्मुक्त उड़ने के लिए !
"पक्षियों से सीखिये, उन्मुक्त उड़ने के लिए"
ReplyDeleteपक्षियों से सीखिये,उन्मुक्त उड़ने के लिए !
ReplyDeleteवाह!
जिस जगह जाएँ वहां बौछार फूलों की रहे
ReplyDeleteतुम बनाये ही गए , सम्मान पाने के लिए !
...बहुत सही ...
बहुत सुन्दर ....
ReplyDeleteबहुत बढ़िया सतीश जी
ReplyDeleteहम अकेले ही भले,जंगल में रहने के लिए !
ReplyDeleteपक्षियों से सीखिये उन्मुक्त उड़ने ने के लिए.... बहुत बढ़िया।
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति, आभार आपका।
ReplyDeleteसीखने को बहुत कुछ बाकी है - मन में चाव जाग उठे बस इसी की प्रतीक्षा है .
ReplyDeleteकौन आये साथ , गहरे दर्द सहने के लिए,
ReplyDeleteहम अकेले ही भले,जंगल में रहने के लिए !
सुख में सबको साझीदार बनाएँ
लेकिन हम अकेले ही भले दुःख में :)
सुन्दर रचना !
बहुत खूब..
ReplyDeleteसीखने का शौकीन तो किसी से भी सीख सकता है। भले ही सिखाने वाला इंसान हो या पक्षी।
ReplyDeleteजाति,मज़हब,देश से इंसान भी आज़ाद हो,
ReplyDeleteपक्षियों से सीखिये,उन्मुक्त उड़ने के लिए !
बहुत सुन्दर गीत ....
बहुत प्रभावशाली और सुन्दर रचना.....
ReplyDeleteसतीश जी ,खूबसूरत भाव है ..कौन आये साथ दर्द सहने के लिए ...
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