अभिव्यक्ति को वतन में, खतरनाक लिखेगी !
अवसाद में निराश कलम , ज्ञान लिखेगी ?
मन भाव ही कह न सकी, चार्वाक लिखेगी ?
बस्ती को उजड़ते हुए देखा है , मगर वो
तकलीफ ए क़ौम को भी इत्तिफ़ाक़ लिखेगी !
किसने दिया था दर्द, वह बतला न सकेगी !
दरबार के खिलाफ ,क्यों बेबाक लिखेगी ?
सुलतान की जय से ही, वो धनवान बनेगी !
एतराज ए हुक्मरान को , नापाक लिखेगी !
तकलीफ ए क़ौम को भी इत्तिफ़ाक़ लिखेगी !
किसने दिया था दर्द, वह बतला न सकेगी !
दरबार के खिलाफ ,क्यों बेबाक लिखेगी ?
सुलतान की जय से ही, वो धनवान बनेगी !
एतराज ए हुक्मरान को , नापाक लिखेगी !
सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteवाह! जादू है इस लेखनी में!
Deleteआप लगातार इसी तरह निर्बाध लिखते रहें। लाजवाब लिखते हैं।
ReplyDeleteकल का भी मिटायेगा कल भी मिटाने के लिये आयेगा
आज लिखे या कल लिखे सोच कर गर इतिहास लिखेगी।
सुलतान की जय से ही, वो धनवान बनेगी !
ReplyDeleteमालिक की जो रज़ा हो वही बात लिखेगी !
आदरणीय सतीश जी , बेबाक अभिव्यक्ति शायद इसी को कहते हैं | लाजवाब , शानदार , जिंदाबाद | हर कलम आखिर बिकाऊ तो नहीं होती | कोई तो है जो सच लिखने की हिम्मत रखता है | जय हिन्द !
वाह! जादू है आपकी लेखनी में!
ReplyDeleteवाह! जादू है आपकी लेखनी में!
ReplyDeleteबहुत उम्दा.
ReplyDeleteकलम के सिपाही से बेहतर ये बात कौन जन सकता है ...
ReplyDeleteअच्छी रचना है ...
सने किया बरवाद , वे बाहर के नहीं थे !
ReplyDeleteतकलीफ ए क़ौम को भी इत्तिफ़ाक़ लिखेगी !
वाह!!!!
बहुत ही लाजवाब...
उत्कृष्ट सृजन।
बिना किसी दबाव के या बिना किसी से प्रभावित लेखनी बहुत कम देखने को मिलती है.
ReplyDeleteशानदार रचना.
आइयेगा नई रचना पर - एक भी दुकां नहीं थोड़े से कर्जे के लिए
आभार आपका
ReplyDeleteबेहतरीन/उम्दा.
ReplyDeleteइस लेखनी को अंको में कैसे तोल सकता है कोई??
ReplyDeleteबेहतरीन