Tuesday, March 31, 2020

शाही सलाम में कलम, क्या ख़ाक लिखेगी ? -सतीश सक्सेना

जयकार में उठी कलम, क्या ख़ाक लिखेगी
अभिव्यक्ति को वतन में, खतरनाक लिखेगी !

अवसाद में निराश कलम , ज्ञान लिखेगी ?
मन भाव ही कह न सकी, चार्वाक लिखेगी ?

बस्ती को उजड़ते हुए देखा है , मगर वो   
तकलीफ ए क़ौम को भी इत्तिफ़ाक़ लिखेगी !

किसने दिया था दर्द, वह बतला न सकेगी !
दरबार के खिलाफ ,क्यों  बेबाक लिखेगी ?

सुलतान की जय से ही, वो धनवान बनेगी !
एतराज ए हुक्मरान को , नापाक लिखेगी !

13 comments:

  1. सुन्दर प्रस्तुति

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    1. वाह! जादू है इस लेखनी में!

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  2. आप लगातार इसी तरह निर्बाध लिखते रहें। लाजवाब लिखते हैं।

    कल का भी मिटायेगा कल भी मिटाने के लिये आयेगा
    आज लिखे या कल लिखे सोच कर गर इतिहास लिखेगी।

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  3. सुलतान की जय से ही, वो धनवान बनेगी !
    मालिक की जो रज़ा हो वही बात लिखेगी !
    आदरणीय सतीश जी , बेबाक अभिव्यक्ति शायद इसी को कहते हैं | लाजवाब , शानदार , जिंदाबाद | हर कलम आखिर बिकाऊ तो नहीं होती | कोई तो है जो सच लिखने की हिम्मत रखता है | जय हिन्द !

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  4. वाह! जादू है आपकी लेखनी में!

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  5. वाह! जादू है आपकी लेखनी में!

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  6. कलम के सिपाही से बेहतर ये बात कौन जन सकता है ...
    अच्छी रचना है ...

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  7. सने किया बरवाद , वे बाहर के नहीं थे !
    तकलीफ ए क़ौम को भी इत्तिफ़ाक़ लिखेगी !
    वाह!!!!
    बहुत ही लाजवाब...
    उत्कृष्ट सृजन।

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  8. बिना किसी दबाव के या बिना किसी से प्रभावित लेखनी बहुत कम देखने को मिलती है.
    शानदार रचना.
    आइयेगा नई रचना पर - एक भी दुकां नहीं थोड़े से कर्जे के लिए 

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  9. बेहतरीन/उम्दा.

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  10. इस लेखनी को अंको में कैसे तोल सकता है कोई??

    बेहतरीन

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- सतीश सक्सेना

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