काव्यमंच पर आज मसखरे छाये हैं !
पैर दबा, कवि मंचों के अध्यक्ष बने,
आँख नचाके,काव्य सुनाने आये हैं !
रजवाड़ों से,आत्मकथाओं के बदले
डॉक्ट्रेट , मालिश पुराण में पाये हैं !
पूंछ हिलायी लेट लेट के,तब जाकर
कितने जोकर, पद्म श्री कहलाये हैं !
अदब, मान मर्यादा जाने कहाँ गयी,
ग़ज़ल मंच पर,लहरा लहरा गाये हैं !
"आपका थप्पड़ खाकर भी ये बोलेंगे,
ReplyDelete'सक्सेना सर' हमें खिलाने आये हैं"
सादर
गजब। लाजवाब।
ReplyDeleteपैर दबा, कवि मंचों के अध्यक्ष बने,
आँख नचाके,काव्य सुनाने आये हैं !
काव्यमंच पर आज मसखरे छाये हैं !
ReplyDeleteशायर बनकर यहाँ , गवैये आये हैं !
....आदरणीय सतीश जी, बिल्कुल सही लिखा है आपने। जब मैं कवि सम्मेलनों के गायन सुनता हूँ तो कवि कम , मसखरे ज्यादा नजर आते हैं । कविता तो जैसे लुप्त हो चुकी होती है।
बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आपको ।
आप सेटिंग मे थोड़ा परिवर्तन कर लें ताकि टिप्पणी ततक्षण दिखे।
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति
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