Friday, April 19, 2024

गढ़ दिया तुमने हमें अब, भाग्य अपना ख़ुद गढ़ेंगे -सतीश सक्सेना

आदरणीय रमाकान्त सिंह जी का अनुरोध पाकर, उनकी ही प्रथम पंक्तियों से, इस कविता की रचना हुई , आभार भाई  ! 

गढ़ दिया तुमने हमें अब, भाग्य अपना ख़ुद गढ़ेंगे !

धरा से सहनशीलता ले,
अग्नि का ताप सहा हमने 
पवन के ठन्डे झोंको संग 
सलिल से शीतलता पायी 
यही पर ज्ञान लिया तुमसे
परिश्रम की क्षमता आयी 
अब हुआ विश्वास सचमुच 
छू सकेंगे हम गगन ,अब 
ज्ञान पाकर शारदा से, 
भाग्य अपना खुद लिखेंगे !
गढ़ दिया तुमने हमें अब, भाग्य अपना खुद गढ़ेंगे !

अब हमें विश्वास अपना
रास्ता पाएंगे , हम भी  !
ज्ञान का आधार लेकर ,
विश्व को समझेंगे हम भी 
अपने विद्यालय से ही तो 
मिल सका है बोध हमको 
शक्तिशाली पंख पाकर 
छू सकेंगे चाँद हम ,अब 
प्रबल इच्छाशक्ति  लेकर, 
भाग्य अपना खुद बुनेंगे !
गढ़ दिया तुमने हमें अब , भाग्य अपना खुद गढ़ेंगे !

https://www.facebook.com/ramakant.singh.509

Monday, March 4, 2024

बिना ज़रूरत होते ऑपरेशन -सतीश सक्सेना

क्या आपको पता है कि हमारे देश में 66.8% यूटेरस रिमूवल सर्जरी प्राइवेट हॉस्पिटल में की जाती है , और आप यकीन नहीं कर पाएंगे कि उसमें ९५ प्रतिशत बिना जरूरत की जाती है , थॉमसन रॉयटर फाउंडेशन की एक रिसर्च के हवाले से यह रिपोर्ट  द प्रिंट ने पब्लिश की है ! अधिकतर ऑपरेशन रोगी और उसके परिवार को कैंसर आदि का भय दिला कर की जाती है , जबकि उसका इलाज
बिना ऑपरेशन के आसानी से संभव है , एक रिपोर्ट के अनुसार हृदय के लगभग पचास प्रतिशत ऑपरेशन बिना जरूरत किये जा रहे हैं ! हर महीने ऑपरेशन के टारगेट फिक्स किये जाते हैं , हर माह के अंत में, डॉ को निश्चित मात्रा में अपने टारगेट पाने होंगे अन्यथा उसका प्रमोशन और सैलरी में रूकावट निश्चित है !   
  
बिज़नेस स्टैण्डर्ड में छपी आज की खबर (४ मार्च २४ ) के अनुसार पॉश ग्रेटर कैलाश दिल्ली के एक हॉस्पिटल में एक गॉल ब्लेडर का ऑपरेशन होस्पिटल में काम करने वाले एक टेक्नीशियन ने किया , जिसे सर्जन बताया गया , नतीजा बीमार की मृत्यु हो गयी और यह काम सिर्फ २००००/- जैसी मामूली रकम हासिल करने के लिए किया गया जिसका अंजाम एक गरीब आदमी की मौत से हुआ, जबकि यह इंसान इस विश्वास के साथ इस अस्पताल में आया था कि वह दर्द से निजात पा जाएगा , यह शुक्र था कि उसकी बिलखती पत्नी को बाद में पता चला कि जिसे सर्जन बताया गया था वह डॉ वहां मामूली टेक्नीशियन है , पुलिस ने इन सबको गिरफ्तार कर जेल भेजा है !

डब्लू एच ओ की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में लगभग ४५ परसेंट फ़र्ज़ी डॉक्टर्स हैं , इनमें से अधिकतर कस्बाई और ग्रामीण इलाकों में कार्यरत है , तगड़ा मुनाफ़ा और अनपढ़ों का इलाज करते समय जीना मरना तो लगा ही रहता है , सो परवाह न हॉस्पिटल करते हैं और न रोगी के परिवार वाले , बहुत काम केसेस में ही यह धंधा उजागर होता है और अब यह धंधा अधिक धन कमाने और मेडिकल पढ़ाई में हुए खर्चे वसूल करने के लिए शहरों और यहाँ तक कि राजधानी में भी आम हो गया है !

अगर अब भी आँखें न खुली हों तब मैं आपको डॉ अरुण गाडरे एवं डॉ अभय शुक्ल की लिखी किताब Dissenting Diagnosis अवश्य पढ़िए आप बुढ़ापा आते ही हर साल टेस्ट कराने बंद कर देंगे ! मैं इन दोनों डॉक्टरों के ज़मीर को सलाम करता हूँ जिन्होंने अपने व्यवसाय में होती गलत प्रैक्टिस का भंडाफोड़ करने की हिम्मत की !

प्रणाम आप सबको !

https://theprint.in/health/95-hysterectomies-in-india-unnecessary-66-8-in-pvt-sector-report-by-obgyn-group-think-tank/1865540/

https://www.thehindu.com/news/cities/Delhi/fake-doctors-racket-owner-performed-at-least-3000-surgeries-a-year-say-police/article67545733.ece

https://satish-saxena.blogspot.com/2016/06/blog-post_85.html 

Wednesday, February 21, 2024

अगर बहता है बहने दो, तुम्हारी आँख का पानी -सतीश सक्सेना

पिछले तीन माह घर में रहने के दौरान मेरी आँखों का कैटरेक्ट अधिक तेज़ी से बढ़ा , आज दौड़ते हुए बायीं आँख से लगातार गाढ़ा पानी निकल रहा था , अपने हेडबैंड से उसे साफ़ करते हुए , आँखों में ठंडी हवा की ठंडक से ,अधिक बेहतर लग रहा था ! पिछले तीन माह में प्रदूषण के कारण दौड़ना नहीं हुआ नतीजा फेफड़े तो सही रहे मगर आँखों पर दुष्प्रभाव पड़ा , दौड़ते समय प्रभावित आँख से गाढ़ा पानी निकलना ही कैटरेक्ट को दूर रखता था , सोते समय रात को यह गाढ़ा पानी आँखों के अंदर ही रह जाता था और कैटरेक्ट अधिक जमा होता था , सो आँखों का नुक़सान तेज़ी से हुआ !

अधिकतर आँखों से पानी निकलते ही हम डॉ के पास भागते हैं जबकि यह आँखों को स्वच्छ रखने की, शरीर द्वारा अपनायी सामान्य प्रक्रिया है , इससे आँखें स्वच्छ और पारदर्शी होती हैं ऐसा मेरा विश्वास है , पिछले तीन महीने रज़ाई में लेटे लेटे मुझे यह याद ही नहीं आया और आँखों का बहुत नुक़सान हुआ , अब कोशिश रहेगी कि आँखों को स्वच्छ रखने की यह नियमित प्रक्रिया जारी रहे और शायद यह धुंधली परत धीरे धीरे कम हो जाये !  हमारे पूर्वज गुफ़ामानव अपनी आँख के कैटरेक्ट को ऐसे ही ठीक करते रहे हैं , सो पानी निकलता है तो निकलने दें एवं जल से लगातार धोने की आदत , निस्संदेह कैटरेक्ट को दूर रखने में सहायक होगी !

७० वर्ष होने तक मैंने अभी ख़ुद को मेडिकल व्यापारियों के जाल से बचाये रखा है , अगर शरीर आँखों की इस समस्या को ख़ुद ठीक न कर सका तब आने वाले समय में ऑपरेशन कराना ही होगा जो मेरा आख़िरी विकल्प होगा ! आँखों के सामान्य व्यायाम आदि पर अधिक ध्यान देना होगा ताकि आँखें बिना चश्मा आदि के उपयोग बिना अधिक समय तक साथ दें !

जमा होने नहीं पाये , तुम्हारी आँख का पानी  !
यही ठंडक बहुत देगा, तुम्हारी आँख का पानी !

हमेशा रोकने में ही , लगायी  शक्ति जीवन में  !
न जाने कितनी यादों को समेटे आँख का पानी !

शुभकामनाएँ आप सबको !

Thursday, February 1, 2024

साँसों को न भूलिए -सतीश सक्सेना

रात को करवट बदलते समय गहरी सांस खीचने और निकालने की आदत डाल रहा हूँ , उससे सुबह उठने पर, हाथ और पैरों में सुस्ती की जगह फुर्ती महसूस होने लगी , क्योंकि फेफड़ों ने खून में सोते समय अतिरिक्त

ऑक्सीजन की सप्लाई दे दी , नतीजा खून प्रवाह में फुर्ती और अतिरिक्त शक्ति मिली !

यही योग है प्राणायाम है जिस पर गौर करने का समय नहीं है हमारे पास , यह मुफ़्त की दवाई है , जिसे परमात्मा ने हमारे शरीर के साथ ही हमें प्रदान की है , मगर हम इस शक्तिशाली औषधि पर ध्यान ही नहीं देते ! 

पचास साठ के आसपास के जो महिला या पुरुष , 100 मीटर तेज वाक के समय हांफ जाते हैं वे जान लें कि वे खतरे में हैं, उनकी ह्रदय आर्टरीज़ में रुकावट है और यह आसानी से reversible है सिर्फ जॉगिंग सीखना होगा , फलस्वरूप शरीर के अंगों में उत्पन्न कंपन एवं खुले फेफड़ों से रक्त में मिलती ऑक्सीजन, आसानी से बंद धमनियाँ खोलने में समर्थ हैं !

अन्यथा मेडिकल व्यापारी अपनी फाइव स्टार दुकाने लगाए ओपरेशन टेबल पर उनका इंतज़ार कर रहे हैं उसके बाद अगर बच गए तो भी बचा जीवन धीरे धीरे हलकी आवाज में बात करते, मृत्युभय में ही बीतेगा !

मंगलकामनाएं, सद्बुद्धि के लिए !

Tuesday, January 30, 2024

ख़ुशनसीब बाबा -सतीश सक्सेना

जर्मनी में जन्मी चार वर्षीय मीरा , अपने एक हाथ पर मेहंदी से अपना नाम लिखवाते हुए अपनी बुआ से कह रही थी कि  बुई , मेरे दूसरे हाथ पर बाबा का नाम लिख देना सतीश सक्सेना !

शायद यह दुनियाँ की पहली लड़की होगी जो अपने बाबा का नाम अपने हाथ पर लिखवाना चाहती है , बाबा के प्रति मासूम प्यार का इससे अच्छा इज़हार और क्या होगा ? 

इसके जन्म पर मैंने लिखा था 

नन्हें क़दमों की आहट से, दर्द न जाने कहाँ गए ,

नानी ,दादी ,बुआ बजायें ढोल , मंगलाचार के !

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