सज़ा मिले मानवता का,उपहास बनाने वालों को,
कुछ तो शिक्षा मिले काश,कानून बनाने वालों को !
अरसे बाद, पड़ोसी दोनों , साथ में रहना सीखे हैं !
अदबक़ायदा और सिखा दें शेख,मोहल्ले वालों को !
अगर यकीं होता, मौलाना मरते भरी जवानी में ,
हूरें और शराब मिलेगी, ज़न्नत जाने वालों को !
सोना चांदी गिरवी रखकर, झोपड़ बस्ती सोयी है ,
अगर यकीं होता, मौलाना मरते भरी जवानी में ,
हूरें और शराब मिलेगी, ज़न्नत जाने वालों को !
सोना चांदी गिरवी रखकर, झोपड़ बस्ती सोयी है ,
धन चिंता में नींद न आये, अक्सर पैसे वालों को !
मैली बस्ती से कुछ हटकर, नगरी अलग बसाई है
कंगालों से खौफ रहा है ,उजले कपडे वालों को !
बहुत ज़ल्द ही ढोंग, मिटाने जागेंगे ,दुनिया वाले,
खुला रास्ता देना होगा , जंग में जाने वालों को !
मैली बस्ती से कुछ हटकर, नगरी अलग बसाई है
कंगालों से खौफ रहा है ,उजले कपडे वालों को !
बहुत ज़ल्द ही ढोंग, मिटाने जागेंगे ,दुनिया वाले,
खुला रास्ता देना होगा , जंग में जाने वालों को !
आपकी रचनायें सदैव प्रभावशाली होती हैं और लय में पढ़ते हुए केवल एक शब्द निकलता है... वाह!!!
ReplyDeleteस्थिति परिस्थिति एवं विडम्बनाओं को बखूबी कह गया आपका गीत!
धन्यवाद आपका !
Deleteमैली बस्ती से कुछ हटकर,नगरी अलग बसाई थी,
ReplyDeleteमेलमिलाप से खौफ रहा है,उजले कालर वालों को !
बहुत ज़ल्द ही ढोंग,मिटाने जागेंगे ,दुनिया वाले,
खुला रास्ता देना होगा, जंग में जाने वालों को !
DIL KO CHHUTI MAN KI AAWAZ MERE HI GIIT
शुक्रिया रमाकांत भाई !
Deleteअभिव्यक्ति का यह अंदाज निराला है. आनंद आया पढ़कर....सतीश जी
ReplyDeleteबहुत ही बढिया सटीक प्रस्तुति ...
ReplyDeleteमैली बस्ती से कुछ हटकर,नगरी अलग बसाई थी,
ReplyDeleteमेलमिलाप से खौफ रहा है,उजले कालर वालों को !
बिलकुल सच लिखा है. सुन्दर रचना.
वजूद को झकझोरने वाली रचना है, बधाई।
ReplyDeleteआभार आपका ..
Deleteइनदिनों गज़ब लिख रहे हैं। नागार्जुन और आदम गोंडवी की तरह। शिल्प तो लोग ढूंढेंगे आपने, आप लिखते रहिये। तुलसीदास को लिखे चार शताब्दी हुए अब तक लोग पढ़ लिख रहे हैं, शिल्प ढूंढ रहे हैं। जिनको लिखना था लिख कर चले गये। ये धार बनाये रखिये।
ReplyDeleteशुक्रिया अरुण , प्रोत्साहन देने के लिए !
Deleteकभी कभी पढ़ जाया करो यार , यहाँ पढने वाले अक्सर हाथ में पेन लेकर आते हैं , और गलतियाँ बता कर, रचना पर बिना ध्यान दिए चले जाते हैं !
ब्लोगर्स में गुरुओं की कोई कमी नहीं :)
सतीश भैया...आप लिखते रहिए ...पढ़ने वाले आपको पढ़ रहें हैं..
Deleteतीन वर्ष की सज़ा मिली है,सत्रह साला दानव को !
ReplyDeleteकुछ तो शिक्षा मिले काश,कानून बनाने वालों को !
बहुत ही बढ़िया लाजबाब गजल प्रस्तुति के लिए बधाई सतीश जी...
RECENT POST : फूल बिछा न सको
ReplyDeleteमैली बस्ती से कुछ हटकर,नगरी अलग बसाई थी,
मेलमिलाप से खौफ रहा है,उजले कालर वालों को !
बहुत ज़ल्द ही ढोंग,मिटाने जागेंगे ,दुनिया वाले,
खुला रास्ता देना होगा, जंग में जाने वालों को !
बहुत उत्कृष्ट अभिव्यक्ति.हार्दिक बधाई और शुभकामनायें!
कभी यहाँ भी पधारें
आपकी रचनाएँ मौलिक तो हैं पर अनपढ़ नहीं ....
ReplyDeleteअगर यकीं होता,पंडित को, मरते भरी जवानी में ,
परियां और शराब मिलेंगीं,स्वर्ग में जाने वालों को !
धारदार कटाक्ष है ...
आभारी हूँ ..
Deleteसब उम्दा शेर....!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ग़ज़ल....
ReplyDeleteहर शेर वज़नदार है.....
सादर
अनु
निवेदन : मेरी रचनाएं मौलिक व अनपढ़ हैं ,
ReplyDeleteमौलिक और अनपढ़ :)?
हर रचना एक रचनाकार के लिए उसके बच्चे जैसी है
और हर बच्चा अनूठा होता है बाजार की परवाह मत कीजिये :) !
मौलिक : मैं कभी किसी से प्रेरणा लेकर,नक़ल कर , पैरोडी जैसा तोड़ मोड़ कर, कभी नहीं लिखता ! अतः जैसी भी बुद्धि पायी है यह वैसी ही हैं :)
Deleteअनपढ़ : मेरी रचनाएं किसी की शैली से प्रभावित नहीं हैं तथा उन्होंने रस, व्याकरण , अलंकार , क्लिष्ट एवं अनूठे हिंदी शब्द सामर्थ्य की किसी क्लास में, कभी शिक्षा नहीं ली,
मैंने खुद कभी पढने का प्रयत्न नहीं किया अतः मैं और मेरी रचनाएं अनपढ़ ही हुईं न !!
इस घोषणा का अर्थ यह है, कि यहाँ बड़े बड़े हिंदी विद्वान् हैं, वे कवि की भावना तथा शैक्षिक ज्ञान जान लें !
एक बात और, बताने योग्य है , मैंने हिंदी के महान रचनाकारों को वाकई नहीं पढ़ा है, कईयों के नाम तक नहीं जानता अतः किसी से प्रभावित भी नहीं हूँ !
अनपढ़ का अर्थ स्पष्ट हो गया होगा !
आभार आपका !
तीन वर्ष की सज़ा मिली है,सत्रह साला दानव को !
ReplyDeleteकुछ तो शिक्षा मिले काश,कानून बनाने वालों को !
kanun bnanaanewale pahle se apna aur apne shubhchintkon ka bchaaw karna chahte hain .....
अगर यकीं होता,पंडित को, मरते भरी जवानी में ,
ReplyDeleteपरियां और शराब मिलेंगीं,स्वर्ग में जाने वालों को !
मस्त है यह शेर !
बहुत सशक्त लेखन..
ReplyDeleteनिसंदेह बहुत ही कोमल और अनछूई सी रचना है लेकिन सारा यथार्थ और सारा दर्द समेटे हुये है अपने अंदर. शानदार रचना.
ReplyDeleteरामराम.
वाह वाह!! क्या बात है, अंतिम पंक्तियों में लिखी बात सच हो जाये बस यही दुआ है बहुत ही बढ़िया सार्थक संदेश लिए सशक्त रचना...
ReplyDeleteसोना चांदी गिरवी रखकर, झोपड़ बस्ती सोयी है ,
ReplyDeleteधन की चिंता खाए जाती,अक्सर दौलत वालों को ...
सटीक ... जिसपे जितना ज्यादा उतनी ही उसकी इच्छा बढती जाती है ... दौलत की तो खास कर ... लाजवाब है हर शेर ...
@ अगर यकीं होता,पंडित को, मरते भरी जवानी में ,
ReplyDeleteपरियां और शराब मिलेंगीं,स्वर्ग में जाने वालों को !
खाली पंडित ही क्यों , सबके सब जाते, पीछे ही सही !!
अपनी रचना सबको अच्छी लगती है मगर पूर्ण नहीं , दम्भियों के सिवा !!
अच्छी कविता !
सच कहा , रचना कभी पूर्ण नहीं होती !
Deleteआभार आपका ..
बेहतरीन ग़ज़ल
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति-
ReplyDeleteआभार -
आदि गुरु को सादर नमन-
आपका स्वागत है कविवर !!
Deleteमैली बस्ती से कुछ हटकर,नगरी अलग बसाई थी,
ReplyDeleteमेलमिलाप से खौफ रहा है,उजले कालर वालों को !
बहुत ज़ल्द ही ढोंग,मिटाने जागेंगे ,दुनिया वाले,
खुला रास्ता देना होगा, जंग में जाने वालों को !
............बेहद सुंदर सार्थक जन मानस को प्रेरणा देती ....रचना...बधाई..
बहुत ही शानदार और धारदार गज़ल ! पहले शेर ने ही लाजवाब कर दिया ! हर शेर बेहतरीन है ! काश क़ानून बनाने वाले कुछ तो प्रेरित हों इसे पढ़ कर ! बहुत बढ़िया रचना !
ReplyDeleteबहुत सुंदर बिना पढे़ नहीं कहा हूँ
ReplyDeleteपैन है ही नहीं यहा ले के आने की
गुस्ताखी कर भी नहीं सकता हूं :) :)
हा..हा..हा..हा..., आप के लिए नहीं सर !!
Deleteआपका आभार !
उन्मुक्त होकर आनंद ले लिया-भावपूर्ण रचना है ,आभार!
ReplyDeleteवाह क्या बात है...!
ReplyDeleteस्वागत है आपका ..
Deleteबहुत सुंदर। हर शब्द में जान है, सच्चाई है!
ReplyDeleteशुक्रिया अनुराग भाई !!
Deleteआभारी हूँ ..
ReplyDeleteआपके गीत सीधे दिल में उतर जाते हैं. बहुत बढ़िया.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया , सामयिक और सार्थक अभिव्यक्ति है सतीश जी बधाई हो
ReplyDeleteशुक्रिया आपका ..
Deleteमैली बस्ती से कुछ हटकर,नगरी अलग बसाई थी,
ReplyDeleteमेलमिलाप से खौफ रहा है,उजले कालर वालों को !
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ .
सोना चांदी गिरवी रखकर, झोपड़ बस्ती सोयी है ,
ReplyDeleteधन की चिंता खाए जाती,अक्सर दौलत वालों को !
हमारेमैली बस्ती से कुछ हटकर,नगरी अलग बसाई थी,
मेलमिलाप से खौफ रहा है,उजले कालर वालों को !
बहुत सुंदर सतीश जी । पूरी की पूरी गज़ल हमारे परिवेश पर तीखा प्रहार करती है ।
शानदार रचना.बहुत सुंदर।
ReplyDeleteमीत ने डेरा डाल दिया है मीठे मीठे रसीले गीत शिक्षक दिवस की शुभकामना संग
ReplyDeleteआपको भी शुभकामनायें ..
Deleteधन्यवाद महत्व देने के लिए ..
ReplyDeleteसन्नाट शब्द दिये हैं, मन को व्यथित करते भावों को।
ReplyDeleteअंतर से उठती पुकार को जो अभिव्यक्ति मिले वही कविता है !
ReplyDeleteनिराले अंदाज के साथ सुन्दर प्रस्तुति !!
ReplyDeleteतीन वर्ष की सज़ा मिली है,सत्रह साला दानव को !
ReplyDeleteकुछ तो शिक्षा मिले काश,कानून बनाने वालों को !
...बिल्कुल सच...हरेक पंक्ति एक सटीक कटाक्ष..लाज़वाब रचना...
पहले तो निवेदन पढ़ा ……रचना का मज़ा दोगुना हो गया फिर ….इस बाजारवाद से परे-परे ही चल रहें हैं हम भी :-))
ReplyDeleteबढ़िया
ReplyDeletebahut achchi lagti hain aapki kavitayen.
ReplyDeleteबहुत ज़ल्द ही ढोंग मिटाने जागेंगे दुनियावाले
ReplyDeleteखुला रास्ता देना होगा जंग में जाने वालों को .............ये दो पंक्तियां आपकी उन्मुक्तता पर उंगली उठानेवालों को चुप करने के लिए सशक्त हैं।
खूब ...क्या कहने...
ReplyDeleteमैली बस्ती से कुछ हटकर,नगरी अलग बसाई थी,
ReplyDeleteमेलमिलाप से खौफ रहा है,उजले कालर वालों को !
............लाज़वाब .....
jisko milna tha fansi
ReplyDeletewo ab teen saal baad chhutega
ye sun kar aa rahi hai hansi .... :(
बहुत उम्दा ग़ज़ल.... मानवीय भावों की अर्थपूर्ण प्रस्तुति
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeleteबेहतरीन ग़ज़ल
ReplyDeleteआमजन के मन के आक्रोश को व्यक्त कर रही है आपकी यह रचना .. बहुत खूब सतीश जी!
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन, सटीक प्रस्तुति
ReplyDeleteसुरेश राय
कभी यहाँ भी पधारें और टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें
http://mankamirror.blogspot.in
आज के सन्दर्व में,व्यवस्था पर तीखे प्रहार करते हैं आपके शब्द---उम्दा भाव,सुन्दर रचना
ReplyDelete