Wednesday, September 4, 2013

अदब क़ायदा और सिखादें,शेख मोहल्ले वालों को ! -सतीश सक्सेना

सज़ा मिले मानवता का,उपहास बनाने वालों को,
कुछ तो शिक्षा मिले काश,कानून बनाने वालों को !

अरसे बाद, पड़ोसी दोनों , साथ में रहना सीखे हैं !
अदबक़ायदा और सिखा दें शेख,मोहल्ले वालों को !

अगर यकीं होता, मौलाना मरते भरी जवानी में ,
हूरें और शराब मिलेगी, ज़न्नत जाने वालों को !

सोना चांदी गिरवी रखकर, झोपड़ बस्ती सोयी है ,
धन चिंता में नींद न आये, अक्सर पैसे वालों को ! 

मैली बस्ती से कुछ हटकर, नगरी अलग बसाई है    
कंगालों से खौफ रहा है ,उजले कपडे वालों को !

बहुत ज़ल्द ही ढोंग, मिटाने जागेंगे ,दुनिया वाले,
खुला रास्ता देना होगा , जंग में  जाने वालों को !



67 comments:

  1. आपकी रचनायें सदैव प्रभावशाली होती हैं और लय में पढ़ते हुए केवल एक शब्द निकलता है... वाह!!!
    स्थिति परिस्थिति एवं विडम्बनाओं को बखूबी कह गया आपका गीत!

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  2. मैली बस्ती से कुछ हटकर,नगरी अलग बसाई थी,
    मेलमिलाप से खौफ रहा है,उजले कालर वालों को !

    बहुत ज़ल्द ही ढोंग,मिटाने जागेंगे ,दुनिया वाले,
    खुला रास्ता देना होगा, जंग में जाने वालों को !

    DIL KO CHHUTI MAN KI AAWAZ MERE HI GIIT

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    1. शुक्रिया रमाकांत भाई !

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  3. अभिव्यक्ति का यह अंदाज निराला है. आनंद आया पढ़कर....सतीश जी

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  4. बहुत ही बढिया सटीक प्रस्तुति ...

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  5. मैली बस्ती से कुछ हटकर,नगरी अलग बसाई थी,
    मेलमिलाप से खौफ रहा है,उजले कालर वालों को !


    बिलकुल सच लिखा है. सुन्दर रचना.

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  6. वजूद को झकझोरने वाली रचना है, बधाई।

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  7. इनदिनों गज़ब लिख रहे हैं। नागार्जुन और आदम गोंडवी की तरह। शिल्प तो लोग ढूंढेंगे आपने, आप लिखते रहिये। तुलसीदास को लिखे चार शताब्दी हुए अब तक लोग पढ़ लिख रहे हैं, शिल्प ढूंढ रहे हैं। जिनको लिखना था लिख कर चले गये। ये धार बनाये रखिये।

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    1. शुक्रिया अरुण , प्रोत्साहन देने के लिए !
      कभी कभी पढ़ जाया करो यार , यहाँ पढने वाले अक्सर हाथ में पेन लेकर आते हैं , और गलतियाँ बता कर, रचना पर बिना ध्यान दिए चले जाते हैं !
      ब्लोगर्स में गुरुओं की कोई कमी नहीं :)

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    2. सतीश भैया...आप लिखते रहिए ...पढ़ने वाले आपको पढ़ रहें हैं..

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  8. तीन वर्ष की सज़ा मिली है,सत्रह साला दानव को !
    कुछ तो शिक्षा मिले काश,कानून बनाने वालों को !

    बहुत ही बढ़िया लाजबाब गजल प्रस्तुति के लिए बधाई सतीश जी...

    RECENT POST : फूल बिछा न सको

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  9. मैली बस्ती से कुछ हटकर,नगरी अलग बसाई थी,
    मेलमिलाप से खौफ रहा है,उजले कालर वालों को !

    बहुत ज़ल्द ही ढोंग,मिटाने जागेंगे ,दुनिया वाले,
    खुला रास्ता देना होगा, जंग में जाने वालों को !




    बहुत उत्कृष्ट अभिव्यक्ति.हार्दिक बधाई और शुभकामनायें!
    कभी यहाँ भी पधारें

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  10. आपकी रचनाएँ मौलिक तो हैं पर अनपढ़ नहीं ....

    अगर यकीं होता,पंडित को, मरते भरी जवानी में ,
    परियां और शराब मिलेंगीं,स्वर्ग में जाने वालों को !

    धारदार कटाक्ष है ...

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  11. बहुत बढ़िया ग़ज़ल....
    हर शेर वज़नदार है.....

    सादर
    अनु

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  12. निवेदन : मेरी रचनाएं मौलिक व अनपढ़ हैं ,
    मौलिक और अनपढ़ :)?
    हर रचना एक रचनाकार के लिए उसके बच्चे जैसी है
    और हर बच्चा अनूठा होता है बाजार की परवाह मत कीजिये :) !

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    1. मौलिक : मैं कभी किसी से प्रेरणा लेकर,नक़ल कर , पैरोडी जैसा तोड़ मोड़ कर, कभी नहीं लिखता ! अतः जैसी भी बुद्धि पायी है यह वैसी ही हैं :)

      अनपढ़ : मेरी रचनाएं किसी की शैली से प्रभावित नहीं हैं तथा उन्होंने रस, व्याकरण , अलंकार , क्लिष्ट एवं अनूठे हिंदी शब्द सामर्थ्य की किसी क्लास में, कभी शिक्षा नहीं ली,
      मैंने खुद कभी पढने का प्रयत्न नहीं किया अतः मैं और मेरी रचनाएं अनपढ़ ही हुईं न !!

      इस घोषणा का अर्थ यह है, कि यहाँ बड़े बड़े हिंदी विद्वान् हैं, वे कवि की भावना तथा शैक्षिक ज्ञान जान लें !

      एक बात और, बताने योग्य है , मैंने हिंदी के महान रचनाकारों को वाकई नहीं पढ़ा है, कईयों के नाम तक नहीं जानता अतः किसी से प्रभावित भी नहीं हूँ !
      अनपढ़ का अर्थ स्पष्ट हो गया होगा !
      आभार आपका !

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  13. तीन वर्ष की सज़ा मिली है,सत्रह साला दानव को !
    कुछ तो शिक्षा मिले काश,कानून बनाने वालों को !
    kanun bnanaanewale pahle se apna aur apne shubhchintkon ka bchaaw karna chahte hain .....

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  14. अगर यकीं होता,पंडित को, मरते भरी जवानी में ,
    परियां और शराब मिलेंगीं,स्वर्ग में जाने वालों को !
    मस्त है यह शेर !

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  15. बहुत सशक्त लेखन..

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  16. निसंदेह बहुत ही कोमल और अनछूई सी रचना है लेकिन सारा यथार्थ और सारा दर्द समेटे हुये है अपने अंदर. शानदार रचना.

    रामराम.

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  17. वाह वाह!! क्या बात है, अंतिम पंक्तियों में लिखी बात सच हो जाये बस यही दुआ है बहुत ही बढ़िया सार्थक संदेश लिए सशक्त रचना...

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  18. सोना चांदी गिरवी रखकर, झोपड़ बस्ती सोयी है ,
    धन की चिंता खाए जाती,अक्सर दौलत वालों को ...
    सटीक ... जिसपे जितना ज्यादा उतनी ही उसकी इच्छा बढती जाती है ... दौलत की तो खास कर ... लाजवाब है हर शेर ...

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  19. @ अगर यकीं होता,पंडित को, मरते भरी जवानी में ,
    परियां और शराब मिलेंगीं,स्वर्ग में जाने वालों को !

    खाली पंडित ही क्यों , सबके सब जाते, पीछे ही सही !!

    अपनी रचना सबको अच्छी लगती है मगर पूर्ण नहीं , दम्भियों के सिवा !!

    अच्छी कविता !

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    1. सच कहा , रचना कभी पूर्ण नहीं होती !
      आभार आपका ..

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  20. सुन्दर प्रस्तुति-
    आभार -

    आदि गुरु को सादर नमन-

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    1. आपका स्वागत है कविवर !!

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  21. मैली बस्ती से कुछ हटकर,नगरी अलग बसाई थी,
    मेलमिलाप से खौफ रहा है,उजले कालर वालों को !

    बहुत ज़ल्द ही ढोंग,मिटाने जागेंगे ,दुनिया वाले,
    खुला रास्ता देना होगा, जंग में जाने वालों को !
    ............बेहद सुंदर सार्थक जन मानस को प्रेरणा देती ....रचना...बधाई..

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  22. बहुत ही शानदार और धारदार गज़ल ! पहले शेर ने ही लाजवाब कर दिया ! हर शेर बेहतरीन है ! काश क़ानून बनाने वाले कुछ तो प्रेरित हों इसे पढ़ कर ! बहुत बढ़िया रचना !

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  23. बहुत सुंदर बिना पढे़ नहीं कहा हूँ
    पैन है ही नहीं यहा ले के आने की
    गुस्ताखी कर भी नहीं सकता हूं :) :)

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    1. हा..हा..हा..हा..., आप के लिए नहीं सर !!
      आपका आभार !

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  24. उन्मुक्त होकर आनंद ले लिया-भावपूर्ण रचना है ,आभार!

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  25. बहुत सुंदर। हर शब्द में जान है, सच्चाई है!

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    Replies
    1. शुक्रिया अनुराग भाई !!

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  26. आपके गीत सीधे दिल में उतर जाते हैं. बहुत बढ़िया.

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  27. बहुत बढ़िया , सामयिक और सार्थक अभिव्यक्ति है सतीश जी बधाई हो

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  28. मैली बस्ती से कुछ हटकर,नगरी अलग बसाई थी,
    मेलमिलाप से खौफ रहा है,उजले कालर वालों को !
    बहुत सुन्दर पंक्तियाँ .

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  29. सोना चांदी गिरवी रखकर, झोपड़ बस्ती सोयी है ,
    धन की चिंता खाए जाती,अक्सर दौलत वालों को !
    हमारेमैली बस्ती से कुछ हटकर,नगरी अलग बसाई थी,
    मेलमिलाप से खौफ रहा है,उजले कालर वालों को !

    बहुत सुंदर सतीश जी । पूरी की पूरी गज़ल हमारे परिवेश पर तीखा प्रहार करती है ।

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  30. शानदार रचना.बहुत सुंदर।

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  31. मीत ने डेरा डाल दिया है मीठे मीठे रसीले गीत शिक्षक दिवस की शुभकामना संग

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    1. आपको भी शुभकामनायें ..

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  32. धन्यवाद महत्व देने के लिए ..

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  33. सन्नाट शब्द दिये हैं, मन को व्यथित करते भावों को।

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  34. अंतर से उठती पुकार को जो अभिव्यक्ति मिले वही कविता है !

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  35. निराले अंदाज के साथ सुन्दर प्रस्तुति !!

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  36. तीन वर्ष की सज़ा मिली है,सत्रह साला दानव को !
    कुछ तो शिक्षा मिले काश,कानून बनाने वालों को !
    ...बिल्कुल सच...हरेक पंक्ति एक सटीक कटाक्ष..लाज़वाब रचना...

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  37. पहले तो निवेदन पढ़ा ……रचना का मज़ा दोगुना हो गया फिर ….इस बाजारवाद से परे-परे ही चल रहें हैं हम भी :-))

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  38. bahut achchi lagti hain aapki kavitayen.

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  39. बहुत ज़ल्द ही ढोंग मिटाने जागेंगे दुनियावाले
    खुला रास्ता देना होगा जंग में जाने वालों को .............ये दो पंक्तियां आपकी उन्‍मुक्‍तता पर उंगली उठानेवालों को चुप करने के लिए सशक्‍त हैं।

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  40. मैली बस्ती से कुछ हटकर,नगरी अलग बसाई थी,
    मेलमिलाप से खौफ रहा है,उजले कालर वालों को !
    ............लाज़वाब .....

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  41. jisko milna tha fansi
    wo ab teen saal baad chhutega
    ye sun kar aa rahi hai hansi .... :(

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  42. बहुत उम्दा ग़ज़ल.... मानवीय भावों की अर्थपूर्ण प्रस्तुति

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  43. बेहतरीन प्रस्तुति

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  44. बेहतरीन ग़ज़ल

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  45. आमजन के मन के आक्रोश को व्यक्त कर रही है आपकी यह रचना .. बहुत खूब सतीश जी!

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  46. बहुत ही बेहतरीन, सटीक प्रस्तुति
    सुरेश राय
    कभी यहाँ भी पधारें और टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें
    http://mankamirror.blogspot.in

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  47. आज के सन्दर्व में,व्यवस्था पर तीखे प्रहार करते हैं आपके शब्द---उम्दा भाव,सुन्दर रचना

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एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

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