Friday, November 25, 2011

बुनियाद.... -सतीश सक्सेना


                  सामाजिक परिवेश में रहते हुए हमारे अपनों को, बहुत कम मौकों पर एक दूसरे की तरफ ,याचना युक्त द्रष्टि से देखा जाता है, हर हालत में इस नज़र का सम्मान किया जाना  चाहिए ! अपने ही घर में, महज अपनी आत्मसंतुष्टि  के लिए, अपनों को निराश करने की प्रवृत्ति , मानवीय प्रवृत्ति नहीं कही  जा सकती निस्संदेह ऐसी प्रवृत्तियों को समाज, समय के साथ ऐसा ही जवाब देगा मगर शायद तब तक समझने में, बहुत देर हो चुकी होगी !
                 किसी से भी आदर पाने के लिए स्नेह और आदर देना आवश्यक होता है ! और यही मजबूत घर की बुनियाद होती है !हमारे  होते , अपनों की आँख से आंसू नहीं गिरने चाहिए ,इन आँखों से गिरता हर आंसू, स्नेहमाला के टूटते हुए मोती हैं ....
               गंभीर और कष्टकारक स्थितियों में, हमें अपने बड़ों का साथ देना चाहिए न कि हम उनका उपहास करें और उनकी कमियां गिनाते हुए उपदेश दें , ऐसे  उदाहरण, मात्र क्रूरता माना जायेंगे ! ममता भरे आंसुओं को न पहचान सकने वाले अभागे हैं , भविष्य और इतिहास ऐसे लोगों को कभी  प्यार नहीं करेगा !
जब समय लिखे इतिहास कभी
जब  मुस्काए, तलवार कभी,
जब शक होगा, निज बाँहों पर ,
जब इंगित करती आँख  कहीं 
जब बिना कहे दुनिया जाने,  कृतियाँ, जीवित कैकेयी   की !
हम बिलख बिलख जब रोये थे, परिहास तुम्हारे चेहरे पर !               
                      निरंतर परिवर्तनशील समाज, किसी को भी, लगातार राज करने की स्वीकृति नहीं देता है ! जो आज ताकतवर है वह कल कमजोर होगा और जो आज कमजोर है वह कल राज करेगा ! वे मूर्ख हैं जो आज कमजोर की याचना का मान नहीं रखते ! गर्व को हमेशा झुकना पड़ा है और जीत विनम्रता की ही होती आई है!
साजिश है आग लगाने की
कोई रंजिश, हमें लड़ाने की
वह रंज लिए, बैठे दिल में
हम प्यार, बांटने निकले हैं!
इक सपना पाले बरसों से,लम्बी यात्रा पर जाने को     
हम आशा भरी नज़र लेकर, उम्मीद लगाए बैठे हैं !


तुम शंकित, कुंठित मन लेकर,
कुछ पत्थर हम पर फ़ेंक गए,
हम समझ नही पाए, हमको 
क्यों मारा ? इस बेदर्दी से 
फिर भी आँखों में अश्रु भरे, देखें तुमको उम्मीदों से !  
हम चोटें लेकर भी दिल पर, अरमान लगाये बैठे हैं !
                  भाई बहिन  के मध्य स्नेह को मैं बहुत महत्व देता हूँ , विवाह उपरान्त बहिन अपने पूरे जीवन, भाई की ओर आशान्वित निगाहों से देखती है जिसमें अपने प्रति भाई के प्यार का भरोसा रहता है ! यही भरोसा उसके जन्मस्थान से उसको जोड़े रहने में सहायक होता है ! जो लोग इस विश्वास स्नेह भरी नज़र को सम्मान नहीं दे पाते वे सच्चे प्यार को शायद ही कभी समझ पायेंगे !

किस घर को अपना बोलूं माँ
किस दर को , अपना मानूं !
भाग्यविधाता ने क्यों मुझको
जन्म दिया है , नारी का,
बड़े दिनों के बाद, आज भैया की याद सताती है
पता नहीं क्यों सावन में पापा की यादें आती है !

अक्सर नारी ही कष्ट क्यों उठाती है ? उसे ही समझने में क्यों भूल की जाती है ? पुरुष प्रधान समाज में  पुरुषों का  अहम् , कोमल और स्नेही स्वभाव, माँ और बहिन को अक्सर रुलाता है !

इस सम्बन्ध में बेटी से मेरा कहना है ....
सभी सांत्वना, देते आकर 
जहाँ लेखनी , रोती पाए !
आहत मानस, भी घायल
हो सच्चाई पहचान न पाए !
ऎसी ज़ज्बाती ग़ज़लों को , ढूंढें अवसरवादी गीत !
मौकों का फायदा उठाने, दरवाजे पर तत्पर गीत !

                   अन्याय और क्रूरता सहती ये महिलायें, कष्ट इसलिए सह रही हैं कि वे हमें प्यार करती हैं और इसी स्नेही और कोमल स्वभाव की सजा, अक्सर महिलायें भोगती आई हैं !
हम पुरुष कब तक इस स्नेह को बिना पहचाने, आदिकालीन भावनात्मक शोषण जारी रखेंगे   ?
कई बार मुझे लगता है कि विद्रोह का समय आ गया है ...
भविष्य की मजबूत बुनियाद के लिए, इन लड़कियों को मज़बूत होना चाहिए... 
इन्हें समझना होगा कि प्यार की भीख नहीं मांगी जाती !

Tuesday, November 22, 2011

आपका स्नेहाशीर्वाद चाहिए -सतीश सक्सेना



"सतीश जी ने इस बीच दो बहुत बड़ी खुशखबरी सुनाई...पंजाबी टच वाली इन खुशखबरियों का राज़ मैं यहां नहीं खोलने जा रहा..उम्मीद करता हूं कि सतीश जी खुद ही किसी पोस्ट में ये जानकारी देंगे..."
             उपरोक्त लाइनें, भाई  खुशदीप सहगल ( वरिष्ठ प्रोडयूसर जी न्यूज़ और मशहूर ब्लाग लेखक) की हैं, जिनके स्नेह ने मजबूर कर दिया कि मैं अपनी व्यक्तिगत खुशियों से  ब्लोगर साथियों को अवगत कराऊँ !
बेटी गरिमा की, उसके जन्मस्थान से, विदा की तैयारी की शुरुआत हो चुकी है , एक राजकुमार मिल चुका है, जिसने मेरी  लाडली को  खुश रखने का वायदा किया है,  बड़ा  ही प्यारा कोलगेट स्माइली बच्चा है !:-)
अमेरिकन एक्सप्रेस में, साथ साथ काम करते इन दोनों बच्चों ने एक साथ जीवनसूत्र में बंधने का फैसला किया है जिसको हम दोनों परिवारों ने सहर्ष मंज़ूर कर लिया है ! खुशकिस्मत महसूस करता हूँ कि  इशान  के माता पिता सुभाषिनी - जितेन्द्र कुमार , बहुत ही प्यारी शख्शियत के मालिक हैं और नॉएडा में ही रहते हैं !
१७ नवम्बर को नॉएडा गोल्फ क्लब में हुए सगाई समारोह में, इन दोनों बच्चों ने एक दूसरे को अंगूठी पहनाकर , समस्त परिजनों के सामने , साथ साथ, हँसते हुए जीवन बिताने का वचन  लिया है ! 


        यह स्वर्णिम क्षण, मेरे जीवन के अनमोल क्षणों में से एक रहेगा , मेरी कामना है कि हमारे दोनों परिवार एक दूसरे के प्रति वह स्नेह और अपनापन दे सकें जो आजकल के व्यस्त समय में अन्यन्त्र दुर्लभ लगने लगा है !
            आजकल विवाह के बाद, अक्सर बच्चों के परिवारों के मध्य केवल दिखावे का स्नेह मिलता है जो त्योहारों अथवा परिवारों में शुभवसरों पर ही मुखर होता है ! मेरी कामना है कि हमारे दोनों परिवार परस्पर स्नेह और अपनापन का एक उदाहरण कायम कर सकें !
              इशान -गरिमा  के लिए आपका स्नेहाशीर्वाद, उनके लिए मज़बूत घरौंदे की बुनियाद रखेगा !
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