अक्सर अपने ही कामों से
नस्लें अपने खानदान की
आते जाते खुद कह जाते !
चेहरे पर मुस्कान, ह्रदय से
गाली देते ,अक्सर मीत !
गाली देते ,अक्सर मीत !
कौन किसे सम्मानित करता, खूब जानते मेरे गीत !
सरस्वती को ठोकर मारें
ये कमज़ोर लेखनी वाले !
डमरू बजते भागे ,आयें
पुरस्कार को लेने वाले !
बेईमानी छिप न सकेगी,
आशय खूब समझते गीत !
हुल्लड़ , हंगामे पैदा कर ,नाम कमायें ऐसे गीत !
कलम फुसफुसी रखने वाले
पुरस्कार की जुगत भिड़ाये
जहाँ आज बंट रहीं अशर्फी
प्रतिभा नाक रगड़ती पाये !
आशय खूब समझते गीत !
हुल्लड़ , हंगामे पैदा कर ,नाम कमायें ऐसे गीत !
कलम फुसफुसी रखने वाले
पुरस्कार की जुगत भिड़ाये
जहाँ आज बंट रहीं अशर्फी
प्रतिभा नाक रगड़ती पाये !
अभिलाषाएँ छिप न सकेंगी,
कैसे बनें यशस्वी, गीत !
बेच प्रतिष्ठा, गौरव अपना , पुरस्कार हथियाते गीत !
लार टपकती देख ज्ञान की
कुछ राजे, मुस्काते आये !
मुट्ठी भर , ईनाम फेंकते
पंडित गुणी , लूटने धाएं !
देख दुर्दशा आचार्यों की ,
सर धुन रोते , मेरे गीत !
दबी हुई, राजा बनने की इच्छा, खूब समझते गीत !
कैसे बनें यशस्वी, गीत !
बेच प्रतिष्ठा, गौरव अपना , पुरस्कार हथियाते गीत !
लार टपकती देख ज्ञान की
कुछ राजे, मुस्काते आये !
मुट्ठी भर , ईनाम फेंकते
पंडित गुणी , लूटने धाएं !
देख दुर्दशा आचार्यों की ,
सर धुन रोते , मेरे गीत !
दबी हुई, राजा बनने की इच्छा, खूब समझते गीत !
चारण, भांड हमेशा रचते
रहे , गीत रजवाड़ों के !
वफादार लेखनी रही थी ,
राजों और सुल्तानों की !
रहे मसखरे, जीवन भर ये ,
खूब सुनाये स्तुति गीत !
खूब सुनाये स्तुति गीत !
हुए पुरस्कृत दरबारों से, फिर भी नज़र झुकाएँ गीत !
हिंदी का अपमान कराएं
लेखक खुद को कहने वाले
रीति रिवाज़ समझ न पायें
लोक गीत को, रचने वाले
कविता का उपहास उड़ायें,
करें प्रकाशित घटिया गीत !
करें प्रकाशित घटिया गीत !
गली गली के ज्ञानी लिखते, अपनी कविता, अपने गीत !
कविता, गद्य, छंद, ग़ज़लों पर ,
कब्ज़ा कर ,लहरायें झंडा !
सुंदर शोभित नाम रख लिए ऐंठ के चलते , लेकर डंडा !
भीड़ देख, इन आचार्यों की,
आतंकित हैं , मेरे गीत !
कहाँ गुरु को ढूंढें जाकर, कौन सुधारे आकर, गीत !
बहुत असरदार गीत ...
ReplyDeleteबढ़िया ह्रदयोद्गार।
ReplyDelete.
ताजा-ताजा सम्मानित हुए और लाइन में लगे लोग सावधान हो जाएँ।
हिंदी का अपमान कराएं
ReplyDeleteलेखक खुद को कहने वाले
रीति रिवाज़ समझ न पायें
लोक गीत को, रचने वाले
कविता का उपहास बनाएं ,करें प्रकाशित घटिया गीत !
गली गली के ज्ञानी लिखते,अपनी कविता,अपने गीत !
बहुत बढ़िया गीत
उफ़्फ़ ! तौबा तौबा ! मार धाड़ ! धर पकड़ !
ReplyDeleteसतीश भाई , आज तो आपने सही कोड़ा उठाया है. और कस कस के मारा है.
लेकिन मोटी चमड़ी पर इसका कितना असर होगा , कहना मुश्किल है.
बहरहाल , इस साहसी लेखन के लिए बधाई।
हम तो अपनी शायरी पर खुदी को दाद दे और खुदी से दाद ले कर संतुष्ट है :)
ReplyDeleteलिखते रहिये ...
सरस्वती को ठोकर मारें
ReplyDeleteये कमज़ोर लेखनी वाले !
डमरू बजते भागे ,आयें
पुरस्कार को लेने वाले !
बहुत सुन्दर भावपूर्ण सटीक रचना ...
बहुत व्यंग्य है इस कविता में
ReplyDeleteप्रभावशाली गीत.. बिल्कुल सही कहा ..
ReplyDeleteचारण,भांड हमेशा रचते
ReplyDeleteरहे , गीत रजवाड़ों के !
वफादार लेखनी रही थी ,
राजों और सुल्तानों की !
रहे मसखरे,जीवन भर हम,खूब सुनाये स्तुति गीत !
हुए पुरस्कृत दरबारों से,फिर भी नज़र मिलाते गीत !
लाजवाब ,सरल सहज शब्दों में उत्तम अभिव्यक्ति
latest post आभार !
latest post देश किधर जा रहा है ?
कौन किसे सम्मानित करता,खूब जानते मेरे गीत
ReplyDeleteबहुत बढ़िया...
अब तक सम्मानित न हो पानी की खुशी आज जाकर हुई :-)
सादर
अनु
आज चारों तरफ़ यही तो हालात हो गये हैं, असल को मौका नही मिलता और चापलूस चारण कवि लेखक बन सम्मान बटोरते हैं, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
कलम फुसफुसी रखने वाले
ReplyDeleteपुरस्कार की जुगत भिड़ाये
जहाँ आज बंट रहीं अशर्फी
प्रतिभा नाक रगडती पाये !
अभिलाषाएं छिप न सकेंगी,इच्छा बनें यशस्वी गीत !
बेच प्रतिष्ठा गौरव अपना , पुरस्कार हथियाते गीत !
संपूर्ण गीत ही सार्थक और सटीक है, बधाई सुन्दर गीत के लिए !
मधुमक्खी ढूँढ़े सुमन को, मक्खी ढूँढे घाव,
ReplyDeleteअपनी अपनी प्रकृति है, अपना अपना चाव।
...जोरदार, धारदार कटाक्ष।
ReplyDeleteएक्को कोना नाहीं छूटल
गाय बजाय के मारे गीत।
(गाय बचाय के मारना.. एक बनारसी मुहावरा है। मतलब दौड़ा-दौड़ा के खूब पिटाई करना।)
"कंकड पत्थर नहीं बीनते उस पर चलते मेरे गीत । भले हाशिये पर हों पर मुस्काते गाते मेरे गीत ।" प्रशंसनीय प्रस्तुति । " सहज मिले सो दूध सम मॉगा मिला सो पानी । कह कबीर वह रक्त सम जा में एचा तानी ।"
ReplyDeletewo bhi padh liyaa aur yae bhi padh liyaa !!!!!!!!!!
ReplyDeleteकहाँ गुरु को ढूंढें जाकर , कौन सुधारे आकर गीत !
ReplyDeleteबहुत खूब .. सुन्दर भाव..
सच और सटीक,
ReplyDeleteइस साहसी लेखन के लिए बधाई। सतीश जी,,,,
RECENT POST : पाँच( दोहे )
जय हो तीर खैंच खैंच के चल रहे हैं गीत नाद में सतीश भाई :)
ReplyDeleteबहुत सुंदर !
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट रचना की चर्चा कल मंगलवार २७ /८ /१३ को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका हार्दिक स्वागत है।
ReplyDeleteसुन्दर गीत!
ReplyDeleteनो कमेंट्स बोल के निकल लेते हैं... वैसे ये एवार्ड वगैरह तो सब मोह-माया है...
ReplyDeleteआपके ब्लॉग के समर्थक ४२० हैं... देखिये तो सही, समर्थकों वाला विजेट... :P
ReplyDeleteअबके चौदह सितंबर पर यही गीत सुनाना है सबको।
ReplyDeleteकभी-कभी कोड़ा बरसें ,कस-कस मारें तेरे गीत !
ReplyDeleteइतना डरा सहमा क्यों हुआ है मेरा यह प्यारा गीत ? :-)
ReplyDeleteहमने तो यह भी देखा है
ReplyDeleteकरते करते ना नुकर
पुरस्कार हथियाते गीत!
ReplyDeleteकौन किसे सम्मानित करता
क्या कह गए आपके गीत !!!
सच सच जानते आपके गीत .....
ReplyDeleteइस सुंदर गीत को पढ़कर मध्यकालीन कवि ठाकुर की वो पंक्ति याद आ गई। ढेल सो बनाये आये मेलत सभा के बीच लोगन कबित्त करो खेल करि जानो है...., सभा के बीच में ढेले की तरह कविता फेंककर कवि कर्म का अपमान करने वाले कवियों के संबंध में आपने जो लिखा, वो ठाकुर की इसी कड़ी को आगे बढ़ाने वाला है।
ReplyDeleteपुरस्कारों की बंदर-बांट पर करारा तमाचा जड़ा है।
ReplyDeleteसाधू-साधू
ReplyDeleteसुन्दर दबंग गीत..क्या बात है...
ReplyDeleteबहुत ही सटीक रचना
ReplyDeleteलाजवाब |
ReplyDeleteसत्य वचन महाराज!
ReplyDeleteबहुत कुछ कह गया यह गीत
ReplyDeleteसटीक !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - बुधवार- 28/08/2013 को
ReplyDeleteहिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः7 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें, सादर .... Darshan jangra
सतीश भैया आप भी :)))))
ReplyDeleteलार टपकती देख ज्ञान की
ReplyDeleteकुछ राजे, मुस्काते आये !
मुट्ठी भर , ईनाम फेंकते
पंडित गुणी , लूटने धाएं !
देख दुर्दशा आचार्यों की , सर धुन रोते , मेरे गीत !
दबी हुई,राजा बनने की इच्छा,खूब समझते गीत !
सत्य को उद्घाटित करते गीत खुबसूरत ही नहीं गजब
-jyoti khare
ReplyDeleteबेईमानी छिप न सकेगी,आशय खूब समझते गीत !
हुल्लड़ , हंगामे पैदा कर ,नाम कमायें इनके गीत !------
वाह- जो हो रहा है ,जो भोगा जा रहा है,उसका बेवाक चित्रण
बहुत सटीक,सुंदर
सादर
ज्योति
कोई कमी नही?
ReplyDelete