Wednesday, February 21, 2018

बूढ़े होते हताश मन को, बच्चों सा नचाने को दौड़ें -सतीश सक्सेना

रिश्तों  में होते झगडे का , अवसाद मिटाने को दौड़ें !
बूढ़े होते हताश मन को , बच्चों सा नचाने को दौड़ें !

कमजोर नजर जाने कब से , टकटकी लगाए दरवाजे 
असहाय अकेली अम्मा के,आंसू को सुखाने को दौड़ें ! 

उसने अपना पूरा जीवन, केवल तुम पर कुर्बान किया  
तेरा वैभव काम नहीं आया,ये ग्लानि मिटाने को दौड़ें !

जैसे ही दौलतमंद बने, मेहनत त्यागी, बेकार हुए  
बरसों से जकड़े घुटनों को , दमदार बनाने को दौड़ें !

आजाद देश में देशभक्त, उग आये कुकुरमुत्तों जैसे
खादी पहने इन धूर्तों की , पहचान कराने को दौड़ें !

7 comments:

  1. बहुत सुन्दर। लगता है आप हमे भी दौड़ा कर ही छोड़ेंगे :)

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  2. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन हर एक पल में ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

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  3. बहुत ही बेहतरीन ..
    बहुत खूब....

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  4. सरलता के साथ व्यापक संदेश स्थापित उत्कृष्ट अभिवयक्ति जिसकी अंतिम पक्तियाँ ग़ज़ब ढाती हैं ... बधाई एवं शुभकामनायें.

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- सतीश सक्सेना

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