रिश्तों में होते झगडे का , अवसाद मिटाने को दौड़ें !
कमजोर नजर जाने कब से , टकटकी लगाए दरवाजे
कमजोर नजर जाने कब से , टकटकी लगाए दरवाजे
असहाय अकेली अम्मा के,आंसू को सुखाने को दौड़ें !
उसने अपना पूरा जीवन, केवल तुम पर कुर्बान किया
तेरा वैभव काम नहीं आया,ये ग्लानि मिटाने को दौड़ें !
जैसे ही दौलतमंद बने, मेहनत त्यागी, बेकार हुए
बरसों से जकड़े घुटनों को , दमदार बनाने को दौड़ें !
बरसों से जकड़े घुटनों को , दमदार बनाने को दौड़ें !
आजाद देश में देशभक्त, उग आये कुकुरमुत्तों जैसे
खादी पहने इन धूर्तों की , पहचान कराने को दौड़ें !
खादी पहने इन धूर्तों की , पहचान कराने को दौड़ें !
बहुत सुन्दर। लगता है आप हमे भी दौड़ा कर ही छोड़ेंगे :)
ReplyDeleteआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन हर एक पल में ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
ReplyDeleteदौडेवेति-दौडेवेति !
ReplyDeleteलाजवाब
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन ..
ReplyDeleteबहुत खूब....
सरलता के साथ व्यापक संदेश स्थापित उत्कृष्ट अभिवयक्ति जिसकी अंतिम पक्तियाँ ग़ज़ब ढाती हैं ... बधाई एवं शुभकामनायें.
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