कभी कभी हम अपने ही जोश में चहचहाती एक मासूम सी चिड़िया, की गुस्ताखी पर गोली चला देते हैं ...उसका दिल हम छलनी कर देते हैं , बिना यह जाने हुए कि बिना भूल, उसका क्या हाल कर दिया !
एक निश्छल सी हँसी, आहत हुई !
जीभ से निकलीं हुईं , वे गोलियां ,
किस कदर पेवस्त वे,दिल में हुईं !
खेल में, भेजी गयीं, वे चिट्ठियाँ,
क्या तुम्हें मालूम है ,घातक हुईं !
घर के दरवाजे पर, गुमसुम भीड़ है ,
आज घर पर,बिन मेरे महफ़िल हुई !
तुम तो कहतीं थीं, कि मैं ना रोउंगी !
आखिरी दिन तुम भी तो शामिल हुईं !
तुम तो घर को छोड़कर ही, चल दिए,
ऎसी हमसे क्या सनम , रंजिश हुई !
तुम तो घर को छोड़कर ही, चल दिए,
ऎसी हमसे क्या सनम , रंजिश हुई !