आश्रय देने यहाँ न आना, मैंने जीना सीख लिया !
धीरे धीरे बिना सहारे , हमने रहना सीख लिया !
मैं अब खुश हूँ तेरी दुनियां,मुझको नहीं बुलाती है !
हँसी चुराकर तस्वीरों से, हमने हंसना सीख लिया !
मैं अब खुश हूँ हाथ पकड़ने वाला कोई पास नहीं
धीरे धीरे घुटनों के बल, हमने चलना सीख लिया !
मैं अब खुश हूँ, तेरे सिक्के, नहीं चले, बाजारों में !
भूखे रहकर धीरे धीरे, कमा के खाना सीख लिया !
मैं अब खुश हूँ, मुझे ठण्ड में,याद न तेरी आती है !
हाथ जले,पर जैसे तैसे आग जलाना सीख लिया !
धीरे धीरे बिना सहारे , हमने रहना सीख लिया !
मैं अब खुश हूँ तेरी दुनियां,मुझको नहीं बुलाती है !
हँसी चुराकर तस्वीरों से, हमने हंसना सीख लिया !
मैं अब खुश हूँ हाथ पकड़ने वाला कोई पास नहीं
धीरे धीरे घुटनों के बल, हमने चलना सीख लिया !
मैं अब खुश हूँ, तेरे सिक्के, नहीं चले, बाजारों में !
भूखे रहकर धीरे धीरे, कमा के खाना सीख लिया !
मैं अब खुश हूँ, मुझे ठण्ड में,याद न तेरी आती है !
हाथ जले,पर जैसे तैसे आग जलाना सीख लिया !
जा को कुछू न चाहिये ,सो ही साहंसाह!
ReplyDeleteखुद जीना सीख लिया हर तरह से...... उम्दा ,अर्थपूर्ण पंक्तियाँ
ReplyDeleteबहुत सुन्दर वहा वहा क्या बात है अद्भुत, सार्थक प्रस्तुति
ReplyDeleteमेरी नई रचना
खुशबू
प्रेमविरह
क्या बात है ...
ReplyDelete...वाह क्या भरपूर गज़ल है.....इसमें गुरु की ज़रूरत भी नहीं है !
ReplyDeleteजब दुनिया ऐंठने लगे तो सीखना ही भला...बहुत सुन्दर कविता..
ReplyDeleteइस ग़ज़ल में जो बात हमें सबसे ज्यादा अच्छी लगी वो है-"मैं खुश हूँ....."
ReplyDelete:-)
बहुत सुन्दर ख़याल...
सादर
अनु
अच्छा किया जो सीख लिया ! वैसे भी, कुछ काम खुद से ही करने होते हैं...चाहे या अनचाहे....
ReplyDelete~सादर!!!
बहुत सुन्दर ग़ज़ल |
ReplyDeleteस्वयं संघर्ष करने के विशेष भावों से युक्त प्रेरक पंक्तियां।
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति |
ReplyDeleteआभार ||
इसे कहते है आत्मनिर्भरता :)
ReplyDeleteकिसी के गीतों का लेकर सहारा
हम ने भी गुनगुना सीख लिया !
बहुत लाजबाब,लेकिन जहां तक मेरी जानकारी मुताबिक़ बिना मतला कहे पूर्ण रूप से गजल नही कहलाती,,,,
ReplyDeleteRecent post: गरीबी रेखा की खोज
सक्सेना जी,,बहुत सुंदर मतला लिखा ,,,बधाई ,,,
Deleteयारों की ज़रुरत नहीं हमने मतले को ठीक किया,
धीरे धीरे, बिना सहारे के, गजल पढ़ना सीख लिया !,,,
पोस्ट पर आने के लिए शुक्रिया,,,
अति उत्तम ग़ज़ल ; कहते हैं - अपना हाथ जगन्नाथ ,अति सुन्दर !
ReplyDeletelatest postअनुभूति : कुम्भ मेला
recent postमेरे विचार मेरी अनुभूति: पिंजड़े की पंछी
मैं अब खुश हूँ, तेरे सिक्के, नहीं चले, बाजारों में !
ReplyDeleteधीरे धीरे हमने खुद ही,कमा के खाना सीख लिया !--- सहज पर गहरे भाव की रचना---
बधाई
अनुभव की अभिव्यक्ति..!
ReplyDeleteमै खुश हूँ और मैंने जीना सिख लिया है..
ReplyDeleteअब तो सब कुछ अच्छा ही होगा...
बेहतरीन गजल...
:-)
मैं अब खुश हूँ,मुझे ठण्ड में, याद न तेरी आती है !
ReplyDeleteधीरे धीरे हमने खुद ही,आग जलाना,सीख लिया !
वाह वाह, गुरूओं को गुरू की भला क्या जरूरत? जिंदगी की हकीकत के साथ साथ उत्साह वर्धन करती रचना के लिये बधाई स्वीकार किजिये.
रामराम.
बहुत उम्दा भाव हैं रचना के सतीश जी।
ReplyDeleteआपने तो अँधेरे में दिया जलाकर चलन सिखला दिया ....
ReplyDeleteआपने तो अँधेरे में दिया जलाकर चलने का चलन सिखला दिया ....
ReplyDeleteअब उफनते ज्वार का आवेग मद्धिम हो चला है
ReplyDeleteयह शिला पिघले न पिघले रास्ता नम हो चला है
अब दरीचे ही बनेंगे द्वार
अब तो पथ यही है ---दुष्यन्त कुमार ।
आश्रय देने मत आओ तुम मैने जीना सीख लिया है ....। बहुत खूब ।
ReplyDeleteजो आत्मनिर्भर हो उसे कोई परेशानी नहीं होती संघर्ष करने में ... बहुत सुंदर गीत
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावनात्मक प्रस्तुति . आभार सही आज़ादी की इनमे थोड़ी अक्ल भर दे . आप भी जानें हमारे संविधान के अनुसार कैग [विनोद राय] मुख्य निर्वाचन आयुक्त [टी.एन.शेषन] नहीं हो सकते
ReplyDeleteधीरे -धीरे सब सीख जाते हैं !
ReplyDeleteप्रेरक गीत !
अच्छी रचना है। बधाई।
ReplyDeleteरचना को आशीष दें !
ReplyDeletethanks maere liyae itnae aashish aap ne maang liyae :)
धीरे धीरे, बिना सहारे, मैंने चलना, सीख लिया !
अब साथी की नहीं ज़रुरत,मैंने जीना सीख लिया best
इस रचना को गज़ल लिखना नहीं चाहता था अतः रचना शब्द का कई बार बेख्याली में प्रयोग हुआ था , कुछ बदलाव कर अब ठीक है !
Deleteआपके साथ आशीषों का ढेर सदा है स्वीकार कर लेना !
:)
@ रचना जी ,
Deleteशेर पर सहमति !
@ गज़ल को आशीष,
अगर आप अपना हुनर यूंही तराशते रहे तो...आशीष वितरकों की राशन दुकाने अपने बंद हो जायेंगी और वो खुल्ले बाज़ार हर हुनरमंद को दस्तयाब होगा :)
आशीष वितरकों की राशन दुकाने अपने बंद हो जायेंगी
Deleteali ji
kafi dukane band ho hi chuki haen
lekin paathshala ab bhi uplabdh haen aur tarashnae kaa kaam ek guru sae behtar kaun kar saktaa
ek guru kaa pataa satish ji ko mae dae chuki hun shaayad ek nayii rachna ki rachna karnae kaa maarg prashath ho sakae aur ek nayi gazal yaa haaikun ki rachna ho jaaye
खूबसूरत ख़याल . सारे शेर एक पर एक हैं.
ReplyDeletebahut khoob...
ReplyDeleteमैं अब खुश हूँ,दरवाजे पर,अब कोई रथवान नहीं !
धीरे धीरे हमने खुद ही, पैदल चलना सीख लिया !
वाह बहुत खूब
ReplyDeleteबस हर हाल में खुश रहना ही महत्वपूर्ण है .
ReplyDeleteसुन्दर रचना
मैं अब खुश हूँ, तेरे सिक्के, नहीं चले, बाजारों में !
ReplyDeleteधीरे धीरे हमने खुद ही,कमा के खाना सीख लिया !
वाह!बहुत बढ़िया ग़ज़ल है.
मैं अब खुश हूँ, मुझे ठण्ड में,याद न तेरी आती है !
ReplyDeleteधीरे धीरे हमने खुद ही,आग जलाना,सीख लिया ..
वाह सतीश जी ... बहुत दूर तक जाने वाला शेर है ... धीरे धीरे खुद के पांवों पे खड़ा होना ही पड़ता है ... उम्दा गज़ल ...
मुदित हुआ मन अपना यह जानकर कि इस जहां में
ReplyDeleteखुश रहने के तिकड़म भिड़ाना अब नामुमकिन नहीं। :)
क्या बात है सर आप ने तो बिना गुरु के ही ग़ज़ल लिख्ना सीख लिया :)
ReplyDeleteये ख़ुशी सबों को ख़ुशी ही देती है..
ReplyDeleteआशीष की आवश्यकता हर कलम को नहीं होती
ReplyDeleteमगर कहते हैं, गज़ल बनाये गए नियमानुसार लिखनी चाहिए काज़ल भाई और मैं अनाडी हूँ ??
Deleteअब बताओ ??
धीरे धीरे बिन तेरे मैंने भी जीना सीख लिया -प्रशस्त रचना भाई साहब
ReplyDeleteधीरे धीरे बिन तेरे मैंने भी जीना सीख लिया -प्रशस्त रचना भाई साहब
ReplyDeleteधीरे धीरे, बिना सहारे, हमने चलना, सीख लिया !
ReplyDelete-आप तो खुद महा गुरु, ज्ञानी हो...ताऊ आपके खास दोस्त...फिर तो बचता ही क्या है. :)
उम्दा गज़ल. आपको व नीलम जी दोनों को बधाई.
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteबिना सहारे के जीना सीख लेना खुद में बहुत बड़ी उपलब्धि है। गज़ल शानदार है भाईजी।
ReplyDeleteसुंदर. प्रारंभिक पंक्तियाँ ही बहुत प्रेरणादायी हैं.
ReplyDeletekisi ne sahi kaha.. upar
ReplyDeleteanubhav ki abhivyakti...
bhetareen sir..
मैं अब खुश हूँ, इंतज़ार में ,अब कोई रथवान नहीं !
ReplyDeleteधीरे धीरे हमने खुद ही, पैदल चलना सीख लिया !
बहुत सुन्दर रचना अभिव्यक्ति ... आभार
हर शेर बेहद अर्थपूर्ण और सकारात्मक सोच लिये है--किसकी उम्मीद,किसका आसरा ---शानदार अभिव्यक्ति।
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