Wednesday, February 27, 2013

एक चिड़िया ही तो थी,घायल हुई -सतीश सक्सेना

कभी कभी हम अपने ही जोश में चहचहाती एक मासूम सी चिड़िया, की गुस्ताखी पर गोली चला देते हैं ...उसका दिल हम छलनी कर देते हैं , बिना यह जाने हुए कि बिना भूल, उसका क्या हाल कर दिया  !

एक चिड़िया चहकती,घायल  हुई !
एक निश्छल सी हँसी, आहत हुई ! 

जीभ से निकलीं  हुईं , वे गोलियां ,

किस कदर पेवस्त वे,दिल में हुईं !

खेल में,  भेजी गयीं, वे  चिट्ठियाँ, 

क्या तुम्हें मालूम है ,घातक  हुईं !

घर के दरवाजे पर, गुमसुम भीड़ है , 
आज घर पर,बिन मेरे महफ़िल हुई ! 

तुम तो कहतीं थीं,  कि मैं ना रोउंगी !
आखिरी दिन तुम भी तो शामिल हुईं !

तुम तो घर को छोड़कर ही, चल दिए,
ऎसी हमसे क्या सनम , रंजिश हुई !

53 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति ...

    आप भी पधारें
    ये रिश्ते ...

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  2. बहतरीन प्रस्तुति बहुत उम्दा।।।।।।।। और ..भाव पूर्ण रचना .. बहुत खूब

    आज की मेरी नई रचना जो आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार कर रही है

    ये कैसी मोहब्बत है

    खुशबू

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  3. शब्‍दों को तारतम्‍य कुछ बिगडा सा लग रहा है, यदि थोडी और मेहनत करें तो बेहद सशक्‍त रचना बन जाएगा।

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  4. भाई
    यह तो --आखिरी दिन तू भी शामिल हुई-
    गजब --
    शुभकामनायें-

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  5. चिड़ीमार करता रहा, चौचक चुटुक शिकार |
    दर्शक ताली पीटते, है सटीक हर वार |
    है सटीक हर वार, आज क्यूँ पीटे माथा |
    चिड़ीमार लिख रहे, यहाँ अब दानव गाथा |
    अब मारे इंसान, भूलिए बातें पिछड़ी |
    अब आगे की सोच, पकाते अपनी खिचड़ी ||

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  6. सुंदर और बढिया कविता

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  7. कोमल भावो की और मर्मस्पर्शी.. अभिवयक्ति .......

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  8. तुम तो कहतीं थीं, कि मैं ना रोउंगी !
    आखिरी दिन तुम भी तो शामिल हुईं !
    .बहुत सुन्दर भावनात्मक प्रस्तुति आभार .अरे भई मेरा पीछा छोडो आप भी जानें हमारे संविधान के अनुसार कैग [विनोद राय] मुख्य निर्वाचन आयुक्त [टी.एन.शेषन] नहीं हो सकते

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  9. बहुत ही सुन्दर गीत.बहुत बधाई आपको .

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  10. ...गीत से ग़ज़ल की ओर !
    .
    .शुभकामनाएं हमारी ।

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  11. आपकी रचना पढ़कर ...यूँ ही ये ख़याल आया है ...सांझा कर रही हूँ ...
    जाने क्यूँ खुद से यकीन उठ गया
    बहारों में फिर एक ज़िन्दगी हैरां हुई

    अपने ब्लॉग का पता भी छोड़ रही हूँ .......यदि पसंद आये तो join करियेगा ....मुझे आपको अपने ब्लॉग पर पा कर बहुत ख़ुशी होगी .
    http://shikhagupta83.blogspot.in/

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  12. जीभ से निकलीं हुईं , वे गोलियां ,
    किस कदर पेवस्त वे,दिल में हुईं !

    सही कहा है, आवेश में कहे गए कटु शब्द किसी के जीवन के लिए घातक भी हो सकते हैं..अक्सर हम इसकी चिंता नहीं करते, प्रभावशाली रचना, आभार!

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  13. आखिरी दिन तुम भी शामिल हुईं.........बहुत खूब।

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  14. आज घर को छोड़कर ही, चल दिए,
    ऎसी हमसे क्या सनम, रंजिश हुई !...खुबसूरत भावात्मक प्रस्तुति
    new postक्षणिकाएँ

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  15. इस रचना में तो दुख ही दुख भरा हुआ है...~ आशा करते हैं, ये सिर्फ़ मन की बाहरी उड़ान हो... अंदरूनी नहीं...
    ~सादर!!!

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  16. दिल छलनी करने वाले क्या जाने इसका दर्द..

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  17. शानदार प्रस्तुती
    Gyan Darpan

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  18. कोमल भावों की अभिव्यक्ति.

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  19. खेल में, भेजी गयीं, वे चिट्ठियाँ,
    क्या तुम्हें मालूम, वे घातक हुईं !------marmik baut gehri anubhuti

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  20. घर के दरवाजे पर, गुमसुम भीड़ है ,
    आज घर पर,बिन मेरे महफ़िल हुई !

    दर्दीली पंक्तियाँ खामोश गई।
    बढ़िया प्रस्तुति।

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  21. छू गयी यह कविता !

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  22. बहुत मार्मिक...अंतस को छू गयी...

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  23. बहुत खूब सतीशजी, बधाई।

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  24. सुंदर ...मर्म को छूते भाव

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  25. गहन भाव से परिपूर्ण रचना!

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  26. घर के दरवाजे पर, गुमसुम भीड़ है ,
    आज घर पर,बिन मेरे महफ़िल हुई !
    निशब्द कर गई यह पंक्तियाँ ....

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  27. घर के दरवाजे पर, गुमसुम भीड़ है ,
    आज घर पर,बिन मेरे महफ़िल हुई !

    तुम तो कहतीं थीं, कि मैं ना रोउंगी !
    आखिरी दिन तुम भी तो शामिल हुईं

    मन को झिंझोड़ती गीत कहूँ या ग़ज़ल लेकिन दिल के करीब लाजवाब

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  28. आज घर को छोड़कर ही, चल दिए,
    ऎसी हमसे क्या सनम, रंजिश हुई !
    सुंदर भावात्मक प्रस्तुति !

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  29. बहुत सुन्दर रचना अभिव्यक्ति ... आभार

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  30. मासूमियत का जो हश्र देखा
    मासूम होने से मना करने लगे ...

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  31. तुम तो कहतीं थीं, कि मैं ना रोउंगी !
    आखिरी दिन तुम भी तो शामिल हुईं !..

    दिल को बहुत करीब से छू के गुज़र जाती है ये गज़ल ... बहुत ही भावपूर्ण ... हर शेर कमाल का ... जय हो सतीश जी ...

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  32. तुम तो कहतीं थीं, कि मैं ना रोउंगी !
    आखिरी दिन तुम भी तो शामिल हुईं !

    अहा, छू गयी अन्दर तक।

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  33. गहन सवेदना से उपजी गहरी मर्मस्पर्शी रचना ...

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  34. बहुत सुंदर सक्सेना साहब!

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  35. सामान्य शब्दों के उपयोग से सजी मर्मस्पर्शी और भाव प्रवण रचना,
    तुम तो कहतीं थीं, कि मैं ना रोउंगी !
    आखिरी दिन तुम भी तो शामिल हुईं !
    ये पंक्तियाँ मुझे विशेष अच्छी लगी.
    सादर
    नीरज'नीर'
    www.kavineeraj.blogspot.com

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  36. सामान्य शब्दों से सजी मर्मस्पर्शी और भाव प्रवण रचना
    तुम तो कहतीं थीं, कि मैं ना रोउंगी !
    आखिरी दिन तुम भी तो शामिल हुईं !
    मुझे ये पंक्तियाँ विशेष रूप से अच्छी लगी
    सादर
    नीरज'नीर'
    www.kavineeraj.blogspot.com

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  37. आपकी तो हर कविता लाजवाब होती है !

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  38. सतीश जी आपका लेखन सीधा दिलको छोटा है यह गीत भी यही सच्चाई उजागर करता है.

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  39. घर के दरवाजे पर, गुमसुम भीड़ है ,
    आज घर पर,बिन मेरे महफ़िल हुई....
    कितना मार्मिक चित्र है!! ये जिन्दगी के मेले दुनिया में कम न होंगे..अफ़सोस हम न होंगे....
    आपकी कविताएँ सचमुच बेहतरीन होती हैं...हार्दिक शुभकामनाएँ!!

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  40. अत्यंत प्रभावशाली रचना, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  41. उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...

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  42. बहुत उम्दा... शुभकामनाएँ.

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  43. shabd chhote par gahre bhaw...satish jee....

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  44. बहुत ही भावपूर्ण मार्मिक रचना ... आभार

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  45. भावपूर्ण रचना
    सादर !

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  46. आपकी नयी कविता दिख रही है पर खुल नहीं रही है पिछले पांच-सात दिनों से .

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  47. dil ko chhoo lene vali rachna..

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  48. khub! bahut khub! umda likhte ho aap

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  49. तुम भी जो इबादत में शामिल क्या थी,
    लो मन्नत, रकीबों की कबूल हुई.

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  50. तुम भी इबादत में शामिल क्या थी,
    लो, मन्नत रकीबों की कबूल हुई.

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- सतीश सक्सेना

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