कभी कभी हम अपने ही जोश में चहचहाती एक मासूम सी चिड़िया, की गुस्ताखी पर गोली चला देते हैं ...उसका दिल हम छलनी कर देते हैं , बिना यह जाने हुए कि बिना भूल, उसका क्या हाल कर दिया !
एक निश्छल सी हँसी, आहत हुई !
जीभ से निकलीं हुईं , वे गोलियां ,
किस कदर पेवस्त वे,दिल में हुईं !
खेल में, भेजी गयीं, वे चिट्ठियाँ,
क्या तुम्हें मालूम है ,घातक हुईं !
घर के दरवाजे पर, गुमसुम भीड़ है ,
आज घर पर,बिन मेरे महफ़िल हुई !
तुम तो कहतीं थीं, कि मैं ना रोउंगी !
आखिरी दिन तुम भी तो शामिल हुईं !
तुम तो घर को छोड़कर ही, चल दिए,
ऎसी हमसे क्या सनम , रंजिश हुई !
तुम तो घर को छोड़कर ही, चल दिए,
ऎसी हमसे क्या सनम , रंजिश हुई !
बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति ...
ReplyDeleteआप भी पधारें
ये रिश्ते ...
बहतरीन प्रस्तुति बहुत उम्दा।।।।।।।। और ..भाव पूर्ण रचना .. बहुत खूब
ReplyDeleteआज की मेरी नई रचना जो आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार कर रही है
ये कैसी मोहब्बत है
खुशबू
शब्दों को तारतम्य कुछ बिगडा सा लग रहा है, यदि थोडी और मेहनत करें तो बेहद सशक्त रचना बन जाएगा।
ReplyDeleteभाई
ReplyDeleteयह तो --आखिरी दिन तू भी शामिल हुई-
गजब --
शुभकामनायें-
चिड़ीमार करता रहा, चौचक चुटुक शिकार |
ReplyDeleteदर्शक ताली पीटते, है सटीक हर वार |
है सटीक हर वार, आज क्यूँ पीटे माथा |
चिड़ीमार लिख रहे, यहाँ अब दानव गाथा |
अब मारे इंसान, भूलिए बातें पिछड़ी |
अब आगे की सोच, पकाते अपनी खिचड़ी ||
सुंदर और बढिया कविता
ReplyDeleteकोमल भावो की और मर्मस्पर्शी.. अभिवयक्ति .......
ReplyDeleteतुम तो कहतीं थीं, कि मैं ना रोउंगी !
ReplyDeleteआखिरी दिन तुम भी तो शामिल हुईं !
.बहुत सुन्दर भावनात्मक प्रस्तुति आभार .अरे भई मेरा पीछा छोडो आप भी जानें हमारे संविधान के अनुसार कैग [विनोद राय] मुख्य निर्वाचन आयुक्त [टी.एन.शेषन] नहीं हो सकते
बहुत ही सुन्दर गीत.बहुत बधाई आपको .
ReplyDelete...गीत से ग़ज़ल की ओर !
ReplyDelete.
.शुभकामनाएं हमारी ।
आपकी रचना पढ़कर ...यूँ ही ये ख़याल आया है ...सांझा कर रही हूँ ...
ReplyDeleteजाने क्यूँ खुद से यकीन उठ गया
बहारों में फिर एक ज़िन्दगी हैरां हुई
अपने ब्लॉग का पता भी छोड़ रही हूँ .......यदि पसंद आये तो join करियेगा ....मुझे आपको अपने ब्लॉग पर पा कर बहुत ख़ुशी होगी .
http://shikhagupta83.blogspot.in/
जीभ से निकलीं हुईं , वे गोलियां ,
ReplyDeleteकिस कदर पेवस्त वे,दिल में हुईं !
सही कहा है, आवेश में कहे गए कटु शब्द किसी के जीवन के लिए घातक भी हो सकते हैं..अक्सर हम इसकी चिंता नहीं करते, प्रभावशाली रचना, आभार!
आखिरी दिन तुम भी शामिल हुईं.........बहुत खूब।
ReplyDeleteआज घर को छोड़कर ही, चल दिए,
ReplyDeleteऎसी हमसे क्या सनम, रंजिश हुई !...खुबसूरत भावात्मक प्रस्तुति
new postक्षणिकाएँ
इस रचना में तो दुख ही दुख भरा हुआ है...~ आशा करते हैं, ये सिर्फ़ मन की बाहरी उड़ान हो... अंदरूनी नहीं...
ReplyDelete~सादर!!!
दिल छलनी करने वाले क्या जाने इसका दर्द..
ReplyDeleteअर्थपूर्ण रचना.
ReplyDeleteशानदार प्रस्तुती
ReplyDeleteGyan Darpan
कोमल भावों की अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteखेल में, भेजी गयीं, वे चिट्ठियाँ,
ReplyDeleteक्या तुम्हें मालूम, वे घातक हुईं !------marmik baut gehri anubhuti
घर के दरवाजे पर, गुमसुम भीड़ है ,
ReplyDeleteआज घर पर,बिन मेरे महफ़िल हुई !
दर्दीली पंक्तियाँ खामोश गई।
बढ़िया प्रस्तुति।
छू गयी यह कविता !
ReplyDeleteबहुत मार्मिक...अंतस को छू गयी...
ReplyDeleteबहुत खूब सतीशजी, बधाई।
ReplyDeleteसुंदर ...मर्म को छूते भाव
ReplyDeleteगहन भाव से परिपूर्ण रचना!
ReplyDeleteघर के दरवाजे पर, गुमसुम भीड़ है ,
ReplyDeleteआज घर पर,बिन मेरे महफ़िल हुई !
निशब्द कर गई यह पंक्तियाँ ....
घर के दरवाजे पर, गुमसुम भीड़ है ,
ReplyDeleteआज घर पर,बिन मेरे महफ़िल हुई !
तुम तो कहतीं थीं, कि मैं ना रोउंगी !
आखिरी दिन तुम भी तो शामिल हुईं
मन को झिंझोड़ती गीत कहूँ या ग़ज़ल लेकिन दिल के करीब लाजवाब
आज घर को छोड़कर ही, चल दिए,
ReplyDeleteऎसी हमसे क्या सनम, रंजिश हुई !
सुंदर भावात्मक प्रस्तुति !
बहुत सुन्दर रचना अभिव्यक्ति ... आभार
ReplyDeleteमासूमियत का जो हश्र देखा
ReplyDeleteमासूम होने से मना करने लगे ...
तुम तो कहतीं थीं, कि मैं ना रोउंगी !
ReplyDeleteआखिरी दिन तुम भी तो शामिल हुईं !..
दिल को बहुत करीब से छू के गुज़र जाती है ये गज़ल ... बहुत ही भावपूर्ण ... हर शेर कमाल का ... जय हो सतीश जी ...
तुम तो कहतीं थीं, कि मैं ना रोउंगी !
ReplyDeleteआखिरी दिन तुम भी तो शामिल हुईं !
अहा, छू गयी अन्दर तक।
गहन सवेदना से उपजी गहरी मर्मस्पर्शी रचना ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर सक्सेना साहब!
ReplyDeleteसामान्य शब्दों के उपयोग से सजी मर्मस्पर्शी और भाव प्रवण रचना,
ReplyDeleteतुम तो कहतीं थीं, कि मैं ना रोउंगी !
आखिरी दिन तुम भी तो शामिल हुईं !
ये पंक्तियाँ मुझे विशेष अच्छी लगी.
सादर
नीरज'नीर'
www.kavineeraj.blogspot.com
सामान्य शब्दों से सजी मर्मस्पर्शी और भाव प्रवण रचना
ReplyDeleteतुम तो कहतीं थीं, कि मैं ना रोउंगी !
आखिरी दिन तुम भी तो शामिल हुईं !
मुझे ये पंक्तियाँ विशेष रूप से अच्छी लगी
सादर
नीरज'नीर'
www.kavineeraj.blogspot.com
आपकी तो हर कविता लाजवाब होती है !
ReplyDeleteसतीश जी आपका लेखन सीधा दिलको छोटा है यह गीत भी यही सच्चाई उजागर करता है.
ReplyDeleteघर के दरवाजे पर, गुमसुम भीड़ है ,
ReplyDeleteआज घर पर,बिन मेरे महफ़िल हुई....
कितना मार्मिक चित्र है!! ये जिन्दगी के मेले दुनिया में कम न होंगे..अफ़सोस हम न होंगे....
आपकी कविताएँ सचमुच बेहतरीन होती हैं...हार्दिक शुभकामनाएँ!!
अत्यंत प्रभावशाली रचना, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteबहुत उम्दा... शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteshabd chhote par gahre bhaw...satish jee....
ReplyDeleteबहुत ही भावपूर्ण मार्मिक रचना ... आभार
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी रचना ....
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना
ReplyDeleteसादर !
सुंदर कोमल
ReplyDeleteआपकी नयी कविता दिख रही है पर खुल नहीं रही है पिछले पांच-सात दिनों से .
ReplyDeletedil ko chhoo lene vali rachna..
ReplyDeletekhub! bahut khub! umda likhte ho aap
ReplyDeleteतुम भी जो इबादत में शामिल क्या थी,
ReplyDeleteलो मन्नत, रकीबों की कबूल हुई.
तुम भी इबादत में शामिल क्या थी,
ReplyDeleteलो, मन्नत रकीबों की कबूल हुई.