Sunday, July 26, 2020

पता नहीं मां ! सावन में यह आँखें क्यों भर आती हैं - सतीश सक्सेना

जिस दिन एक बेटी अपने घर से, अपने परिवार से, अपने भाई,मां तथा पिता से जुदा होकर अपनी ससुराल को जाने के लिए अपने घर से विदाई लेती है, उस समय उस किशोरमन की त्रासदी, वर्णन करने के लिए कवि को भी शब्द नही मिलते !
जिस पिता की ऊँगली पकड़ कर वह बड़ी हुई, उन्हें छोड़ने का कष्ट, जिस भाई के साथ सुख और दुःख भरी यादें और प्यार बांटा, और वह अपना घर जिसमे बचपन की सब यादें बसी थी.....इस तकलीफ का वर्णन किसी के लिए भी असंभव जैसा ही है !और उसके बाद रह जातीं हैं सिर्फ़ बचपन की यादें, ताउम्र बेटी अपने पिता का घर नही भूल पाती ! पूरे जीवन वह अपने भाई और पिता की ओर देखती रहती है !

राखी और सावन में तीज, ये दो त्यौहार, पुत्रियों को समर्पित हैं, इन दिनों का इंतज़ार रहता है बेटियों को कि मुझे बाबुल का या भइया का बुलावा आएगा ! अपने ही घर को  वह अपना नहीं कह पाती वह मायके में बदल जाता है ! !
नारी के इस दर्द का वर्णन बेहद दुखद है  .........

याद है उंगली पापा की 
जब चलना मैंने सीखा था ! 
पास लेटकर उनके मैंने 
चंदा मामा  जाना था !
बड़े दिनों के बाद याद 
पापा की गोदी आती है  
पता नहीं माँ सावन में, यह ऑंखें क्यों भर आती हैं !

पता नहीं जाने क्यों मेरा 
मन , रोने को करता है !

बार बार क्यों आज मुझे
सब सूना सूना लगता है !
बड़े दिनों के बाद आज, 
पापा सपने में आए थे !
आज सुबह से बार बार बचपन की यादें आतीं हैं !

क्यों लगता अम्मा मुझको

इकलापन सा इस जीवन में,
क्यों लगता जैसे कोई 
गलती की माँ, लड़की बनके,
न जाने क्यों तड़प उठी ये 
आँखे झर झर आती हैं !
अक्सर ही हर सावन में माँ, ऑंखें क्यों भर आती हैं !

एक बात बतलाओ माँ , 

मैं किस घर को अपना मानूँ 
जिसे मायका बना दिया या 
इस घर को अपना मानूं !
कितनी बार तड़प कर माँ 
भाई  की यादें आतीं हैं !
पायल,झुमका,बिंदी संग , माँ तेरी यादें आती हैं !

आज बाग़ में बच्चों को
जब मैंने देखा, झूले में ,

खुलके हंसना याद आया है,
जो मैं भुला चुकी कब से
नानी,मामा औ मौसी की 
चंचल यादें ,आती हैं !
सोते वक्त तेरे संग, छत की याद वे रातें आती हैं !

तुम सब भले भुला दो ,
लेकिन मैं वह घर कैसे भूलूँ 
तुम सब भूल गए मुझको 

पर मैं वे दिन कैसे भूलूँ ?

छीना सबने, आज मुझे 
उस घर की यादें आती हैं,
बाजे गाजे के संग बिसरे, घर की यादें आती है !

61 comments:

  1. सतीश सक्सेना जी आप की कविता ने बहुत भावुक कर दिया.
    बड़े दिनों के बाद आज , उस घर की यादें आती हैं !
    पता नहीं क्यों आज मुझे मां तेरी यादें आती हैं !
    धन्यावाद

    ReplyDelete
  2. This is one of ur best poem,this poem wil touch every girl's heart..very beautifully written by you.
    thank you

    ReplyDelete
  3. यह विषय ही भावुक कर देने वाला है जी। हमारे समाज की संरचना में यह इनहेरेण्ट (inherent) है।

    ReplyDelete
  4. Satish !
    A Very touchy, expressive, feelings of a girl who really misses her nanihal especially during a festival time. She is midst of both families and never show her hidden wishes either to her mayka or in her sasural.
    Satish tumhare sawan ki geet ne mujhe rula diya !

    किस घर को अपना बोलूं ?
    मां किस दर को अपना मानूं
    भाग्यविधाता ने क्यों मुझको
    जन्म दिया है , नारी का,
    बड़े दिनों के बाद आज भैया की याद सताती है
    पता नहीं क्यों सावन में पापा की यादें आती है !

    आज बाग़ में बच्चों को
    जब मैंने देखा झूले में ,
    अपना बचपन याद आ गया
    जो मैं भुला चुकी, कब से
    बड़े दिनों के बाद आज क्यों बिसरी यादें आती हैं !
    पता नही क्यों याद मुझे, पापा की पप्पी आती है !

    I am relly happy that you had putforth the true feelings of a woman.

    Bahut khoob !

    ReplyDelete
  5. बहुत भावुक प्रस्तुति!! मन भर आया पढ़कर.

    ReplyDelete
  6. बहुत मार्मिक रचना है।बहुत सुन्दर लिखा है।

    बड़े दिनों के बाद आज , उस घर की यादें आती हैं !
    पता नहीं क्यों आज मुझे मां तेरी यादें आती हैं !

    ReplyDelete
  7. अच्छा लिखा है आपने. पर यह तो जीवन यात्रा है, कोई तो अपने घर से दूसरे घर जायेगा.

    ReplyDelete
  8. पता नहीं जाने क्यों मेरा
    मन रोने को करता है ,
    बार बार क्यों आज मुझे
    यादें उस घर की आती हैं
    बड़े दिनों के बाद आज , पापा सपने में आए थे !
    पता नहीं मां क्यों मन को,मैं आज न समझा पाई हूँ
    "ankhen sach mey nm hogyee hain"
    Regards

    ReplyDelete
  9. सच कहा आपने माँ तो माँ ही है। उसकी जगह और कोई नहिं ले सकता।

    ReplyDelete
  10. बहुत ही भावुक रचना है बिल्‍कुल दिल से बहुत ही अच्‍छी है बधाई हो और धन्‍यवाद आज हमें भी मां और पिताजी की काफी याद आ गई लगता है आज तो फोन करना ही पडेगा बहुत अच्‍छी रचना

    ReplyDelete
  11. अत्यंत भावःविह्वल कर दिया आपने.
    सबसे बड़ी बात ये है यहाँ कि कविता में स्म्रतियाँ मात्र बेटी कि नहीं हैं पिता भी यहाँ उपस्थित है
    और माँ बिना बेटी का रुदन तो अधूरा होगा ही सो बेटी के भी शक्ल में माँ अपनी सम्पूर्णता में है .

    ReplyDelete
  12. बड़े दिनों के बाद आज , उस घर की यादें आती हैं !
    पता नहीं क्यों आज मुझे मां तेरी यादें आती हैं !

    बेटी को विदा करने के बाद जो शुन्य पैदा
    हवा है वो आज तक नही भर पाया !
    दिल को छु गई आपकी ये रचना ! पिछली
    जितनी ही ह्रदय स्पर्शी ! धन्यवाद !

    ReplyDelete
  13. आज बाग़ में बच्चों को
    जब मैंने देखा झूले में ,
    अपना बचपन याद आ गया
    जो मैं भुला चुकी, कब से
    बड़े दिनों के बाद आज क्यों बिसरी यादें आती हैं !
    पता नही क्यों याद मुझे, पापा की पप्पी आती है !
    bahut achchhe geet hai sateesh ji aapake, nirantar padhvate rahiyega.
    http://.rashtrapremi.com

    ReplyDelete
  14. बहुत मार्मिक प्रस्तुति.......

    ReplyDelete
  15. पता नहीं जाने क्यों मेरा
    मन रोने को करता है ,
    बार बार क्यों आज मुझे
    यादें उस घर की आती हैं
    बड़े दिनों के बाद आज , पापा सपने में आए थे !
    पता नहीं मां क्यों मन को,मैं आज न समझा पाई हूँ
    सतीश जी आपने तो सच में रुला दिया
    कविता पढ़कर बहनों कि याद तो आयी ही बीवी का ख्याल भी आ गया कि उसे भी अपने घर गये हुए काफी दिन हो गये

    ReplyDelete
  16. bhut bhavuk kar gayi hai rachana. bhut sundar.

    ReplyDelete
  17. kya baat bhut bhavuk note hai. ati uttam. jari rhe.

    ReplyDelete
  18. बेहद संवेदनशील. उम्दा.

    ReplyDelete
  19. 'किस घर को अपना बोलूं? मां किस दर को अपना मानूं'- भारतीय नारी के जीवन की शाश्वत विडम्बना
    का मार्मिक चित्रण।

    ReplyDelete
  20. बहुत सच और मार्मिक है आपका लेखन ।कई बार ई-मेल पता ढूँढने की कोशिश की थी नहीं मिला ।
    -प्रतिभा सक्सेना.

    १३

    ReplyDelete
  21. बहुत सच और मार्मिक है आपका लेखन ।कई बार ई-मेल पता ढूँढने की कोशिश की थी नहीं मिला ।
    -प्रतिभा सक्सेना.

    १३

    ReplyDelete
  22. बहुत बढ़िया और भावुक कर देने वाला लिखा है सर ।

    सादर

    ReplyDelete
  23. एक बेटी के दर्द को बखूबी उकेरा है।

    ReplyDelete
  24. भावमय करते शब्‍दों के साथ बेहतरीन रचना

    ReplyDelete
  25. भावनाओं ले भरी रचना....
    सच में यही होता है...

    ReplyDelete
  26. बेटी के मन के भावों को बहुत खूबसूरती से लिखा है .. हर बेटी ऐसे ही माँ को याद करती है ..

    ReplyDelete
  27. ऊफ... मेरी भी आंखें भर आईं

    बेहद सुंदर
    हृदयस्पर्शी रचना
    आपकी लेखनी को नमन 🙏

    ReplyDelete
  28. मन के कोरों को भिगो गई आपकी पोस्ट ...

    ReplyDelete
  29. आह सचमुच आँखें भर आईं . काकाजी को याद करके . माता पिता की ममता और वात्सल्य की छाँव में हर महिला बच्ची सी होती है चाहे वह कितनी उम्र की होजाए . मैं अब बच्ची से बड़ी होगई हूँ .वात्सल्य की छाँव नही है . यह बड़ापन अखरता है . आपकी कविता ने सब कुछ याद करा दिया सावन में . बहुत मार्मिक गीत है .

    ReplyDelete
    Replies
    1. आभार आपका गिरिजा जी ,
      आपकी गरिमामयी उपस्थिति से इस रचना को सम्मान मिला , आभारी हूँ

      Delete
  30. एक बेटी की दिल का हाल माँ-बाप से बेहतर और कौन समझ सकता है, बेटी बिना ये संसार अधूरा है
    बहुत अच्छी मर्मस्पर्शी प्रस्तुति

    ReplyDelete
    Replies
    1. स्वागत और आभार कविता जी ...

      Delete
  31. मन को छूती सराहनीय अभिव्यक्ति।
    सादर

    ReplyDelete
    Replies
    1. स्वागत के साथ आभार रचना पसंद आने के लिए

      Delete
  32. बेटी के मन के भावों को मर्मस्पर्शी सत्य के साथ बहुत सुन्दर शब्दों में संजोया है आपने ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. स्वागत एवं आभार मीना जी

      Delete
  33. बहुत सुन्दर रचना

    ReplyDelete
  34. आपकी इस कव‍िता की समीक्षा क्या शब्दों में की जा सकती हैं... अगर की जा सकती हो कम से कम मुझसे तो ना हो पाएगी...कैसे कहूं क‍ि ''क्यों लगता अम्मा मुझको
    इकलापन सा इस जीवन में,
    क्यों लगता जैसे कोई
    गलती की माँ, लड़की बनके,
    न जाने क्यों तड़प उठी ये
    आँखे झर झर आती हैं !
    अक्सर ही हर सावन में माँ, ऑंखें क्यों भर आती हैं !''.... मन भ‍िगोने वाले इन शब्दों के ल‍िए बस इतना ही क‍ि ये शब्द नहीं हमारा पूरा का पूरा वजूद है ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. स्वागत और आभार आपका ...आपके शब्दों से इस रचना को पूर्णता प्राप्त हुई अलकनन्दा जी

      Delete
    2. धन्यवाद सतीश जी

      Delete
  35. सादर नमस्कार,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा मंगलवार (२८-७-२०२०) को
    "माटी के लाल" (चर्चा अंक 3776)
    पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है

    ReplyDelete
    Replies
    1. आभार आपका कामिनी जी

      Delete
  36. आदरणीय सतीश जी निशब्द हूँ। आँखें छलकने से रुक पायी। हर नारी मन की व्यथा कथा है। इससे मिलतीजुलती कहानी मैंने भी लिखी थी जब विवाह को तीन चार साल ही हुयेथे । सादर🙏🙏🌹🙏🙏

    ReplyDelete
    Replies
    1. आभार और स्वागत रेनू जी

      Delete


  37. एक बार जरूर देख लें🙏🙏

    https://renuskshitij.blogspot.com/2017/10/blog-post_30.html?m=1

    ReplyDelete
  38. भावुक कविता

    ReplyDelete
  39. आ सतीश जी, भावुक कर गयी यह रचना ! हमारे यहाँ समाज की ऐसी पद्धति बनी है , जिसमें स्त्री को ही अपने पिता माता का घर छोड़कर जाना पड़ता है। इस सामाजिक व्यवस्था को पुनः गठित करने की जरुरत है , ऐसा मैं मानता हूँ ! हालाँकि अभी तो लडके भी माता पिता से विदा ही ले लेते हैं, जब वे दूरस्थ शहरों में नौकरी करने जाते हैं। आपकी रचना के लिए हार्दिक साधुवाद !--ब्रजेन्द्र नाथ

    ReplyDelete
    Replies
    1. ओह आपका सुझाव सुखद है ...काश बेटी अपने घर रह पाती !
      हार्दिक आभार !!

      Delete
  40. दिल को छू लेने वाली बेहतरीन रचना । हार्दिक आभार ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. स्वागत भाई , आभार आपका

      Delete
  41. बहुत पहले ब्लॉग पर यह कविता लिखी थी -
    सावन के बहाने, बुला भेजो बाबुल,
    बचपन को कर लूँगी याद रे !
    बाबुल मेरे !
    तेरे कलेजे से लग के ।।

    नन्हें से पाँवों में, चाँदी की पायल,
    पायल के घुँघरू, घुँघरू की रुनझुन !
    रुनझुन मचलती थी, जब तेरे आँगन,
    छोटी - छोटी खुशियों की बात रे !

    बचपन को कर लूँगी याद रे !
    बाबुल मेरे !
    तेरे कलेजे से लग के ।।

    अम्मा से कहना, तरसे हैं अँखियाँ,
    अँखियों में सपने, सपनों में सखियाँ,
    सावन के झूले, मीठी सी बतियाँ !
    पीहर की ठंडी सी छाँव रे !
    अब ना वह बाबुल रहा, ना पहले वाली बात.... सावन में हर लड़की को मायके की याद जरूर आती है। शायद राखी और तीज जैसे त्योहार इसीलिए बनाए गए थे कि मायके से भावनात्मक डोर जुड़ी रहे। आपकी कविता पढ़कर मन भी भीगा और पापा की याद से आँखें भी....

    ReplyDelete
    Replies
    1. ओह , गज़ब पीड़ा !!
      काश समाज इसको सम्मान दे और याद रखे हमेशा !

      Delete
  42. पता नहीं जाने क्यों मेरा
    मन , रोने को करता है !
    बार बार क्यों आज मुझे
    सब सूना सूना लगता है !
    बड़े दिनों के बाद आज,
    पापा सपने में आए थे !
    आज सुबह से बार बार बचपन की यादें आतीं हैं !

    आपकी रचना ने नारी मन की व्यथा-कथा को ऐसे रचा है कि यकीन ही नहीं होता ये किसी पुरुष की लेखनी से निकली है।
    मयके को याद में बहने वाले आँसुओं के निकलने पर हमने प्रतिबंध लगा रखा था, वो आँसू सारे बँध तोड़ कर बह निकले।
    रुला दिया आपने तो,सादर नमन आपकी लेखनी को।

    ReplyDelete
    Replies
    1. रचना लेखन सफल हुआ कामिनी ,
      आपकी स्पष्ट अभिव्यक्ति ने बल दिया है मेरी लेखनी को ! आभार आपका ...

      Delete
  43. किस घर को अपना बोलूं.. 😢😢

    ReplyDelete

एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

Related Posts Plugin for Blogger,