जब से फ्री व्हाट्सप्प और कई तरह के मेसेंजर आये है तब से दोस्तों के, परिवार जनों के गुड मॉर्निंग, विभिन्न अवसर पर बधाई सन्देश इतने आने लगे हैं कि अगर सब संदेशों का जवाब दिया जाये तो रोज सुबह एक घंटा कम से कम लगता है ! सन्देश भेजने वाला दोस्त कॉपी पेस्ट कर उस सन्देश को २० मित्रों को एक साथ भेजता है और भूल जाता है , उसकी यह समझ है कि इससे मित्रता संबंधों में गर्माहट रहती है , जबकि सच्चाई यह है कि अगर नेट पर एक सन्देश भेजने की कीमत 5 रुपया कर दी जाए तो सारी गर्माहट और प्यार गायब हो जाएगा और एक भी सन्देश भेजना दूभर हो जाएगा !
अगर आपस में वास्तविक प्यार है तो वह वक्त पर अपनी पहचान भी करा देगा और अहसास भी , उसके लिए कृत्रिम शब्दों का प्रयोग बिलकुल आवश्यक नहीं बल्कि केवल दिखावा मात्रा है अगर प्यार का दिखावा करना आवश्यक हो तभी इन संदेशों की उपयोगिता है अन्यथा यह हमारे चारो और एक मास्क आवरण का काम ही करते हैं जो वक्त पर कभी दिखाई नहीं पड़ेंगे !
यह दिखावा शायद हमारे देश में सबसे अधिक होता है , हैरानी की बात यह है कि कुछ अच्छे और शानदार व्यक्तित्व भी इसे आवश्यक मानकर इतना आत्मसात कर चुके हैं कि वे इसे आवश्यक मानते हैं और दूसरी तरफ से यही उम्मीदें भी करते हैं ! स्नेह और प्यार का अहसास अब इन कृत्रिम बधाई और नमन संदेशों ने ले लिया है !
मैंने आजतक अपने परिवार और बेहद नजदीकी दोस्तों को कभी धन्यवाद् और शुभकामना सन्देश नहीं दिए , मैं जिनसे दिखावा नहीं करता उन्हें यह सन्देश कभी नहीं देता कि मुझे तुम्हारी चिंता है , और मैं तुम्हारा शुभचिंतक हूँ ! मुझे लगता है कि प्यार की समझ जानवर को भी होती है , अगर मैं अपने लोगों से वास्तविक लगाव रखता हूँ तो उसे जताने की कोई जरूरत नहीं , वह देर सबेर उसे खुद अहसास हो जाएगा ! सो मुझे कई बार अपने बच्चों का जन्मदिन याद नहीं रहता और मेरा बेटा अक्सर फोन कर "पापा हैप्पी बर्थडे टू मी" कहता है तब मेरे मुंह से निकलता है ओके तो आज तुम्हारा जन्मदिन है , बताओ आज क्या चाहिए अपने सांताक्लाज से ?
कुछ लोग मुझे कवि समझते हैं कुछ साहित्यकार जबकि यह सम्बोधन सुनकर मुझे चिढ होती है , 300 से अधिक कवितायें लिखी हैं
मैंने , जिनमें से एक भी कविता की दो पंक्तियाँ भी मुझे याद नहीं क्योंकि मैं उन्हें कही और कभी सुनाना पसंद नहीं करता , न अपने लिखे लेखों कविताओं को, सम्पादकों के पास छपने हेतु आवेदन करता ! मेरी कवितायें और लेख अक्सर अखबार खुद छाप देते हैं और मुझे पता भी नहीं चलता क्योंकि घर में हिंदी अखबार आते ही नहीं ! सरदार पाबला जी ने एक ब्लॉग बनाया था जो पिछले कई साल से बंद हो गया है , जिसमें वे ब्लॉगरों के छपती रचनाओं को बता दिया करते थे , जब से वह बंद हुआ मुझे अपनी एक भी रचना के छपने की खबर नहीं मिली और न मैं परवाह करता हूँ ! मुझे लगता है कि मैंने एक ईमानदार अभिव्यक्ति अपने मन को प्रसन्न करने के लिए लिखी है न कि साहित्य या समाज पर अहसान करने को , जिसे भी यह रचनाएं पसंद आएं वह इन्हें कहीं भी ले जाने , छापने को स्वतंत्र है , मेरी रचनाएं मुक्त हैं इनसे मुझे कोई फायदा नहीं चाहिए !
मैंने , जिनमें से एक भी कविता की दो पंक्तियाँ भी मुझे याद नहीं क्योंकि मैं उन्हें कही और कभी सुनाना पसंद नहीं करता , न अपने लिखे लेखों कविताओं को, सम्पादकों के पास छपने हेतु आवेदन करता ! मेरी कवितायें और लेख अक्सर अखबार खुद छाप देते हैं और मुझे पता भी नहीं चलता क्योंकि घर में हिंदी अखबार आते ही नहीं ! सरदार पाबला जी ने एक ब्लॉग बनाया था जो पिछले कई साल से बंद हो गया है , जिसमें वे ब्लॉगरों के छपती रचनाओं को बता दिया करते थे , जब से वह बंद हुआ मुझे अपनी एक भी रचना के छपने की खबर नहीं मिली और न मैं परवाह करता हूँ ! मुझे लगता है कि मैंने एक ईमानदार अभिव्यक्ति अपने मन को प्रसन्न करने के लिए लिखी है न कि साहित्य या समाज पर अहसान करने को , जिसे भी यह रचनाएं पसंद आएं वह इन्हें कहीं भी ले जाने , छापने को स्वतंत्र है , मेरी रचनाएं मुक्त हैं इनसे मुझे कोई फायदा नहीं चाहिए !
आज हिंदी साहित्यकार गिने चुने ही बचे हैं और जो वाकई साहित्यकार हैं उनमें से भी अधिकतर अपनी जयकार बोलते चेलों से घिरे रहते हैं तो मुझे लगता है कि ऐसे व्यक्तित्व सिर्फ अपने शिष्यों के बीच में ही साहित्यकार है , अभिव्यक्ति से इसका शायद ही कोई सरोकार हो और जिसकी भाषा ही सामान्य जन अभिव्यक्ति के किसी काम की न हो वह साहित्यकार हो ही नहीं सकता वह सिर्फ क्लिष्ट हिंदी शब्दों का उपयोग कर, अपनी विद्वता सिद्ध करने की कोशिश करता , एक तुच्छ जीव है जो गरीब हिंदी के ऊपर सवार होकर अपनी जयकार बुलवाने में सफल रहा है !
प्रणाम आप सबको !!
सहमत। बेलाग लगातार लिखते रहें। शुभकामनाएं।
ReplyDeleteव्यवहारिक संसार पर स्पष्ट विचार .
ReplyDeleteसही कहा
ReplyDeleteआदरणीय सतीश जी , आपकी इस पोस्ट पर बहुत दिनों से लिखना चाह रही थी पर लिख ना पायी | संभवतः मेरा कुछ कहना छोटा मुँह बड़ी बात हो | आप अच्छा लिखते हैं इसमें दो राय नहीं | पर आपकी ये बात मुझे बिलकुल अच्छी नहीं लगी , ''कि, जिसे भी यह रचनाएं पसंद आएं वह इन्हें कहीं भी ले जाने , छापने को स्वतंत्र है , मेरी रचनाएं मुक्त हैं इनसे मुझे कोई फायदा नहीं चाहिए ! ''
ReplyDeleteरचनाएँ एक कवि की शिशुवत ही सृजनात्मक संतति है | इन्हें यूँ लावारिस मत छोडिये | आप सर्वसमर्थ हैं | लाभ नहीं चाहते ना सही पर इन्हें एक पुस्तक रूप में संकलित कर भावी पीढ़ी के लिए छोड़ जाइए | नहीं तो अपने दोस्तों में बाँटिये | हर चीज फायदे के लिए नहीं होती और हिंदी लेखकों की किस्मत में कोई फायदा कहाँ बदा है ? और मैं दुआ करती हूँ आपके दोस्तों या रिश्तेदारों में से कोई एक ऐसा हो जो आपकी पुस्तक को छपवाकर आपको हैरान कर दे | ये हुनर ईश्वर सबको नहीं देता | तो आपको कोई कवि कहें तो आप गर्व करें ना कि चिढ़ें | आखिर संवेदनाओं का वाहक कवि कहना क्या बुरा है ? ये बहुत बड़ा सौभाग्य है | सादर
कवि शब्द को इसके माध्यम से धन कमाने वालों ने ख़राब किया है , आज कवियों को देख मन में वितृष्णा जगती है रेणु !! ये शराब पीकर मंच पर बैठते हैं आयोजकों से मोलभाव करते हैं , दूसरों की बेहतरीन कविताओं को बदलकर अपनी कविता का नाम देते हैं !
Deleteयही कारण हैं जिनके कारण मन खराब हुआ है ! तुम्हारी बात को बुरा मानने का सवाल ही नहीं पैदा होता , विदुषी मित्र बड़े भाग्य से मिलती हैं यहाँ !
आभार !!
यदि आपको मेरी बात अच्छी ना लगे तो मेरी धृष्टता को क्षमा कर दें |
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