डमरू तबला कसते कसते,हम धनक उठाना सीख गये,
तेरा गंद उठाकर सदियों से, तेरा आबोदाना सीख गये !
तेरा गंद उठाकर सदियों से, तेरा आबोदाना सीख गये !
मालिक गुस्ताखी माफ़ करें,घरबार हिफाज़त से रखना
बस्ती के बाहर भी रहकर, हम आग जलाना सीख गये !
बेपर्दा घर, जूता, गाली, मजदूरी कर हम बड़े हुए !
जाने कब, ऊंचे महलों की दीवार गिराना सीख गए !
जाने कब, ऊंचे महलों की दीवार गिराना सीख गए !
तेरे जैसा ही जीवन पाकर, पशुओं जैसा बर्ताव मिला,
मालिक ये हाथ रखें नीचे, हम हाथ उठाना सीख गए !
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 03 अगस्त 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसटीक और सुन्दर ।
ReplyDeleteइंसानों का जीवन पाकर, पशुओं जैसा बर्ताव मिला,
ReplyDeleteमालिक ये हाथ रखें नीचे,हम हाथ उठाना सीख गए !
..बहुत हुआ शोषण ...आखिर कब तब सहन करता रहेगा कोई ......सार्थक प्रस्तुति
Apratim bhaav :]
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