Friday, March 24, 2017

न जाने कौन सी तकलीफ लेकर दौड़ता होगा -सतीश सक्सेना

आज मैराथन रनिंग प्रैक्टिस में दौड़ते दौड़ते इस रचना की बुनियाद पड़ी , शायद विश्व में यह पहली कविता होगी जिसे 21 किलोमीटर दौड़ते दौड़ते बिना रुके रिकॉर्ड किया ! लगातार घंटों दौड़ते समय ध्यान में बहुत कुछ चलता रहता है उसकी परिणति आज इस रचना के रूप में हुई ! 

न जाने दर्द कितना दिल में लेकर, दौड़ता होगा
कभी छूटी हुई उंगली, किसी की, ढूंढता होगा !


सुना है जाने वाले भी , इसी दुनिया में रहते हैं ! 
कहीं दिख जाएँ वीराने में शायद खोजता होगा !

कोई सपने में ही आकर, उसे लोरी सुना जाए
वो हर ममतामयी चेहरे में, उनको ढूंढता होगा !

छिपा इज़हार सीने में , बिना देखे उन्हें शायद 
पसीने में छलकता प्यार, उनको भेजता होगा !

अकेले धुंध में इतनी कसक मन में लिए, पगला  
न जाने कौन सी तकलीफ लेकर , दौड़ता होगा !

9 comments:

  1. वाह आपके दौड़ने के जुनून ने तो कविता भी दौड़ा दी :)

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  2. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "पेन्सिल,रबर और ज़िन्दगी “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  3. वाह!! सही कहा आपने। दौड़ते हुए हमारे मन में कई विचार उत्पन्न होते हैं। सुन्दर कविता।

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  4. बहुत सुन्दर

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  5. बहुत सुंदर..शुभकामनायें..

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  6. जीवन एक दौड़ ही तो हैं ........ और हमें हर हाल में दौड़ना हैं।
    सुन्दर शब्द रचना

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  7. बहुत ही मार्मिक वर्णन सुंदर रचना ,मीठी अनुभूतिओं से ओत-प्रोत

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  8. दौड़ते-दौड़ते दिल की गहराइयों तक , नस -नस में पहुँचा रक्त जब संगीत बनकर उमड़ा तो जीवन में रिश्तों को इंगित करता भाव अत्यंत मार्मिक बन पड़ा है।

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- सतीश सक्सेना

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