बढ़ी उम्र में , कुछ समझना तो होगा !
तुम्हें जानेमन अब बदलना तो होगा !
उठो त्याग आलस , झुकाओ न नजरें
भले मन ही मन,पर सुधरना तो होगा !
अगर सुस्त मन दौड़ न भी सके तब
शुरुआत में कुछ ,टहलना तो होगा !
यही है समय ,छोड़ आसन सुखों का
स्वयं स्वस्त्ययन काल रचना तो होगा !
असंभव नहीं , मानवी कौम में कुछ ?
सनम दौड़ में,गिर संभलना तो होगा !
तुम्हें जानेमन अब बदलना तो होगा !
उठो त्याग आलस , झुकाओ न नजरें
भले मन ही मन,पर सुधरना तो होगा !
अगर सुस्त मन दौड़ न भी सके तब
शुरुआत में कुछ ,टहलना तो होगा !
यही है समय ,छोड़ आसन सुखों का
स्वयं स्वस्त्ययन काल रचना तो होगा !
असंभव नहीं , मानवी कौम में कुछ ?
सनम दौड़ में,गिर संभलना तो होगा !
वाह आशा जगाती रचना।
ReplyDeleteवाह ! कितना हसीन अनुरोध..वह भी उनके भले के लिये ही..
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteसतीश जी बहुत अच्छी कविता. बहुत ही अच्छे विचार. निश्चय ही महिलाओं को अपनी क्षमता को समझ अपनी कमजोरियों को दूर कर आगे बढ़ स्वयं के सशक्तिकरण का परिचय देना ही चाहिए और देना ही पड़ेगा और दे भी रही है.
ReplyDeleteसतीश जी बहुत अच्छी कविता. बहुत ही अच्छे विचार. निश्चय ही महिलाओं को अपनी क्षमता को समझ अपनी कमजोरियों को दूर कर आगे बढ़ स्वयं के सशक्तिकरण का परिचय देना ही चाहिए और देना ही पड़ेगा और दे भी रही है.
ReplyDeleteयही है समय ,छोड़ आसन सुखों का
ReplyDeleteस्वयं स्वस्त्ययन काल रचना तो होगा !
बहुत सुंदर आग्रह। देह थकी तो इंसान थका। बहुत प्रेरक हैं आपके शब्द। ब्लॉग से जुड़ने के बाद अच्छी खासी सेहत का सत्यानाश हो चुका है। कोशिश करते हैं आपके अनुरोध पर अमल की। कोटि आभार 🙏🙏