आज जब भी भारतीय पारिवारिक संस्कृतिक उत्सव और शादी समारोहों में डी जे स्टेज देखता हूँ, मुझे वे मधुर कर्णप्रिय गीत याद आते हैं जो अपनी मधुरता के साथ, साथ प्यार का एक सन्देश भी देते थे ! उस मधुरता पर आज भी सैकड़ों डी जे गाने न्योछावर करने का दिल करता है !
शादी की तैयारियों के साथ साथ नवविवाहिता का श्रंगार और उसको वर्णन करता यह गीत दिल में झंकार पैदा कर देता है ! बन्नों तेरी अंखिया सुरमे दानी , इस तरह बन्नों की भाभियाँ और बहिने ,उसके वस्त्रों गहनों और रूप की तारीफ़ कर, उसको हंसाने और अपना घर छोड़ने की तकलीफ भुलाने में कामयाब रहती थीं !
लोकगीतों में प्यार की अभिव्यक्ति को याद करें तो हाल का ही यह मशहूर मधुर गीत जिसमें अपने सैयां के प्यार में डूबी नवविवाहिता, अपनी ससुराल की सारी परेशानियों को कैसे हँसते हँसते स्वीकारती है , सास गारी देवे, देवर जी समझा लेवे, ससुराल गेंदा फूल !
३५ -४० साल पहले सुना, ब्रज भाषा के एक लोकगीत का मुखड़ा और उसकी धुन आज तक याद है ,शादी व्याह के अवसर पर महिलाएं अपने पति के प्रति पर अपने प्यार का इज़हार, गुस्से के प्रदर्शन के साथ , कुछ ऐसे करती थीं ...
"काहू दिन उठ गयो मेरो हाथ, बलम तोहे ऐसो मारूँगी !
ऐसो मारूंगी ...बलम तोहे ऐसो मारूंगी ..काहू दिन उठ गयो ...
कितना प्यार छिपा है, इस मारने की धमकी में , मगर लोक चरित्र को पहचानने वाले अब कितने हैं जो इन लाइनों में छिपे प्यार को पहचानते हैं !
और अंत में " दल्ली सहर में म्हारो घाघरो जो घूम्यों ..." लोकगीतों को आधुनिक समय में लोकप्रिय बनाने के प्रयत्नों में, इला अरुण का नाम नहीं भुलाया जा सकता ! गज़ब की आवाज़ और अंदाज़ के साथ उनको सुनते हुए, लगता है गाँव के मेले में बैठे हों !
( चित्र गूगल से साभार )
शादी की तैयारियों के साथ साथ नवविवाहिता का श्रंगार और उसको वर्णन करता यह गीत दिल में झंकार पैदा कर देता है ! बन्नों तेरी अंखिया सुरमे दानी , इस तरह बन्नों की भाभियाँ और बहिने ,उसके वस्त्रों गहनों और रूप की तारीफ़ कर, उसको हंसाने और अपना घर छोड़ने की तकलीफ भुलाने में कामयाब रहती थीं !
लोकगीतों में प्यार की अभिव्यक्ति को याद करें तो हाल का ही यह मशहूर मधुर गीत जिसमें अपने सैयां के प्यार में डूबी नवविवाहिता, अपनी ससुराल की सारी परेशानियों को कैसे हँसते हँसते स्वीकारती है , सास गारी देवे, देवर जी समझा लेवे, ससुराल गेंदा फूल !
३५ -४० साल पहले सुना, ब्रज भाषा के एक लोकगीत का मुखड़ा और उसकी धुन आज तक याद है ,शादी व्याह के अवसर पर महिलाएं अपने पति के प्रति पर अपने प्यार का इज़हार, गुस्से के प्रदर्शन के साथ , कुछ ऐसे करती थीं ...
ऐसो मारूंगी ...बलम तोहे ऐसो मारूंगी ..काहू दिन उठ गयो ...
कितना प्यार छिपा है, इस मारने की धमकी में , मगर लोक चरित्र को पहचानने वाले अब कितने हैं जो इन लाइनों में छिपे प्यार को पहचानते हैं !
और अंत में " दल्ली सहर में म्हारो घाघरो जो घूम्यों ..." लोकगीतों को आधुनिक समय में लोकप्रिय बनाने के प्रयत्नों में, इला अरुण का नाम नहीं भुलाया जा सकता ! गज़ब की आवाज़ और अंदाज़ के साथ उनको सुनते हुए, लगता है गाँव के मेले में बैठे हों !
( चित्र गूगल से साभार )
बेहतरीन पोस्ट...आनन्द आ गया. बन्नों तेरी अँखिया...क्या बात है.
ReplyDeleteसक्सेना साहब,
ReplyDeleteदिल को छू गई आपकी बातें। जो लोकगीत थे, उनमें प्यार, दुलार, अपनापन जैसी चीजें शामिल थीं जबकि आजकल के गाने सिर्फ़ पैसे और मौजमस्ती के उद्देश्य से लिखे जाते हैं। यही वजह है कि इन गानों की कोई उम्र नहीं है और वो लोकगीत या पुराने गाने सर्वकालिक हैं।
काहे न पूरा छाप दिया ये लोकगीत?
ReplyDeleteसच में ही लोकगीतों का तो कहना ही क्या । बहुत ही प्यारी पोस्ट .अच्छा लगा पढकर
ReplyDeleteधत्त! सोचा पूरा गीत होगा. ऑडियो भि सुनने को मिलेगा. कम से कम पूरा गीत ही लिख देते,धुन तो मैं जोड़ जाड कर सेट कर लेती.बच्चे की शादी में खूब मजा लेती' "काहू दिन उठ गयो मेरो हाथ, बलम तोहे ऐसो मारूंगी''
ReplyDeleteलोक गीतों की मधुरता आज भी कानों में रस घोल देती है.मेरी दादी हर तीज त्यौहार,रस्म मौके के लोक गीतों को गाने में 'मास्टर' थी पर अफ़सोस मैंने उनसे कुछ नही सीखा.
इतना प्यारा आर्टिकल जो लिखा है ना उसकी ये 'सजा' है कि मुझे कैसे भी करके कहीं से भी ये गीत ला कर दो.
'इन्हें' छेड़ूँगी गा गा के आदित्य की शादी में.
हा हा हा
प्यार
मैंने इसे पूरा करने का प्रयास किया है
Deleteजिस दिन उठ गयो मेरो हाथ ,बलम तोहे मारूँगी ,
लेके चिमटा बेलन साथ ,बलम तोहे मारूँगी .....
कभी तू बोले नमक है ज्यादा जो मैने दाल बनाई ,
कभी फेंक दी थाली भर तरकारी ,लाज ना तोहे आई ,
का है सौतन के मिल गयो साथ ,बलम तोहे मारूँगी ...
जिस दिन उठ गयो मेरो हाथ ,बलम तोहे मारूँगी ...
सासू हमारी रौब दिखावे ,फिर भी कुछ ना बोलू ,
खोद खोद के पूछे पडोसी फिर भी गांठ ना खोलू ,
ननदियो दिखाय रही है लात ,बलम तोहे मारूँगी ....
काम धामं तोहे कुछ ना करना बस घर मे रोब दिखाओ ,
अरे कही कमाओ करो नौकरी ,एक साड़ी ही खरीद के लाओ ,
तोरे कारन सुनू मैं कितनी बात ,बलम तोहे मारूँगी....
जिस दिन उठ गयो मेरो हाथ ,बलम तोहे मारूँगी ..
दिन भर करो तुम हँसी ठीठोली मोहे तनिक ना भाएे ,
चमकी के दुलहा सैइया खरीद के झुमका लाये ,
देखो चमकईहो ना अइसे दाँत बलम तोहे मारूँगी .....
जिस दिन उठ गयो मेरो हाथ ,बलम तोहे मारूँगी ...
@ इंदु पुरी,
ReplyDeleteतुम्हारे आने से इन लोक गीतों में झंकार आ गयी इन्दु माँ !
यह गीत ६५ में मथुरा में कहीं सुना था इसका सिर्फ एक दो लाइनें ही याद हैं ...आप कहो तो उसपर पैरोडी कर सकता हूँ .. जो लाइने मुझे याद हैं, वे निम्न हैं
बलम तोय ऐसो मारूंगी
कहू दिन उठ गयो मेरो हाथ
सजन तोय ऐसो मारूंगी ....
चिमटा मारूंगी, बलम
तोहे झाड़ू मारूंगी...
शायद ब्रजभाषा में गाये जाने वाले रसिया सम्बन्धित किसी किताब में यह मिल जाए !
मेरा विचार है कि ब्लाग जगत में ब्रज क्षेत्र के कई विद्वान् कार्यरत है वे मदद करें तो यह गीत मिल सकता है ! आप गूगल बज पर अपील करें तो शायद काम बन जाए !
सतीश जी
ReplyDeleteभई बडा मजा आ गया ।
ये दो ही लाइनें बचपन की याद दिला देती हैं ।
पर इन्दु जी की ही इच्छा मेरी भी है,
अगर कभी ये गीत पूरा मिल जाये तो प्रकाशित जरूर करियेगा ।
धन्यवाद
Satishjee lok geeto kee ek alag hee mithas hai..................
ReplyDeleteMeree pasand ka ek lok geet hai aapne bhee avashy hee suna hoga.......... jisme patnee apane pati ko kajaj bana aankho me laga palko me band rakhana chahtee hai..........Amazing..............
than kajliyo banaloo
mhar hivda s lagaloo
than palka m band kar
rakhoolee..................
isme pati patnee douno ke hee samvad bhav vibhor kar dete hai........
agalee post aapkee post se prerit ho ek marwadee lokgeet apanee post ko dungee usase bachpan kee bahut yade judee hai.....
aapkee post sadaiv jeevan se kuch aur jod jatee hai.....
Aabhar.
mharee aankhya m lagaloo........ye sahee pankti hai....
ReplyDeleteलोकगीतों की मिठास बताती उम्दा पोस्ट ....आज भी शादी ब्याह में खूब प्रचलन है इन गीतों का ...
ReplyDeletelok geet ki meethas..........aapke post aur fir comments me bhi dikh rahi hai.......:)
ReplyDeleteबहुत सुंदर लगा आज आप को पढना
ReplyDeleteलोकगीतों की मिठास आज कहाँ………………आपने सही कहा बस अबतो यादो मे ही बसते हैं।
ReplyDeleteलोकगीतों पर पोस्ट लिखकर लोक गीतों के लोक में पहुंचा दिया |जहाँ अपनापन है ,भावनाए है |समय कितनी तेजी से बदल रहा है फिल्मो का लोक जीवन पर गहरा असर है \अभी कुछ दिन पहले गाँव जाना हुआ था पडोस में सोहर के गीतों का कार्यक्रम था \मै ये सोचकर गई थी चलो पारम्परिक गीत सुनने को मिल जावेंगे |किन्तु सरे गीत फ़िल्मी गीतों की तर्ज पर थे |निराशा ही हाथ लगी |ऐसे ही अप्रेल के महीने में पहाड़ो पर जाना हुआ डराईवर से कहा आपके पास कोई पहाड़ी लोक गीतों की सी दी बजा दो तो उसने भी पहाड़ी बोली के फ़िल्मी तर्ज के गाने लगा दिए |खैर
ReplyDeleteअम्मा मेरे बाबा को भेजो री
के सावन आया ......
नन्ही नन्ही बूंदिया रे
सावन का मेरा झूलना.....
उठी तन मन में हर्ष हिलोर
रचाई मेहँदी हाथो में .......
ऐसे कई गीतों की याद दिला दी आपने \\
धन्यवाद |
और बड़ी होने के नाते धैर्य रखने आशीर्वाद आपके साथ है और साथ ही ढेर सारे आशीर्वाद और शुभकामनाये |
सतीश भाई साहब,
ReplyDeleteबस थोडा सा इंतज़ार कर लीजिये ..............कार्तिक के विवाह में आप सब को माथुर चतुर्वेदी समाज के बहुरंगी विवाह गीतों का वह आनंद मिलेगा कि आप भी क्या याद रखेंगे ! बस थोडा सा सब्र करें !
सतीश भाई साहब,
ReplyDeleteबस थोडा सा इंतज़ार कर लीजिये ..............कार्तिक के विवाह में आप सब को माथुर चतुर्वेदी समाज के बहुरंगी विवाह गीतों का वह आनंद मिलेगा कि आप भी क्या याद रखेंगे ! बस थोडा सा सब्र करें !
लोकगीतों में शादी व्याह में गाली की भी परम्परा भी है जिसे महिलायें बड़े मनोयोग से गाती हैं -कभी उस पर भी ..
ReplyDeleteझप झप बरसे बदरी ....दुल्हे का भाई छिनरा ...बहन **री ..अरहर के खेत में छितरी ....अरे यह मैं क्या लिख रहा हूँ -सभी समाज में तो निषेध है इसका !
बड़े सुन्दर सुन्दर गीतों में घुमा लाये आप।
ReplyDeleteवाह सतीश जी । लोकगीतों के बारे में पढ़कर आनंद आ गया । हमें तो --सास गारी देवे --सबसे बढ़िया लगता है ।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया , लोक गीत का अपना अलग ही मजा हैं, लेकिन बड़े भाई एक बात बताइए इसकी जरुरत अभी क्यों आन पड़ी, कंही भाभी जी से कुछ खटपट.................... न न ये तो चलता रहता हैं.
ReplyDeleteबलम तोय ऐसो मारूंगी
ReplyDeleteकहू दिन उठ गयो मेरो हाथ
सजन तोय ऐसो मारूंगी ....
चिमटा मारूंगी, बलम
तोहे झाड़ू मारूंगी...
वाह! मज़ा आ गया पढकर, काश कोई मेरे लिए भी ये गीत गाये!
जिस दिन उठ गयो मेरो हाथ ,बलम तोहे मारूँगी ,
Deleteलेके चिमटा बेलन साथ ,बलम तोहे मारूँगी .....
कभी तू बोले नमक है ज्यादा जो मैने दाल बनाई ,
कभी फेंक दी थाली भर तरकारी ,लाज ना तोहे आई ,
का है सौतन के मिल गयो साथ ,बलम तोहे मारूँगी ...
जिस दिन उठ गयो मेरो हाथ ,बलम तोहे मारूँगी ...
सासू हमारी रौब दिखावे ,फिर भी कुछ ना बोलू ,
खोद खोद के पूछे पडोसी फिर भी गांठ ना खोलू ,
ननदियो दिखाय रही है लात ,बलम तोहे मारूँगी ....
काम धामं तोहे कुछ ना करना बस घर मे रोब दिखाओ ,
अरे कही कमाओ करो नौकरी ,एक साड़ी ही खरीद के लाओ ,
तोरे कारन सुनू मैं कितनी बात ,बलम तोहे मारूँगी....
जिस दिन उठ गयो मेरो हाथ ,बलम तोहे मारूँगी ..
दिन भर करो तुम हँसी ठीठोली मोहे तनिक ना भाएे ,
चमकी के दुलहा सैइया खरीद के झुमका लाये ,
देखो चमकईहो ना अइसे दाँत बलम तोहे मारूँगी .....
जिस दिन उठ गयो मेरो हाथ ,बलम तोहे मारूँगी ...
आज तो सीधे आनंद द्वार पहुंचा दिया. इनके आडियो भी लगा देते तो फ़िर बात ही क्या थी? फ़िर भी याद दिला कर ही आपने आनंद रस से सराबोर कर दिया.
ReplyDeleteरामराम
लोकगीतों का अपना अलग मज़ा है ...
ReplyDeleteआपका पोस्ट पढकर बहुत अच्छा लगा ...
भाई वाह क्या बात है, मजा आ गया।
ReplyDeleteबड़े भाई क्या याद दिलाई है आपने... जैसे ये गीत आपसे बिछड़ गया वैसे ही मेरा एक प्यारा गीत मुझसे बिछड़ा है..दरवाज़े पर बारात और दूल्हे के परिछन के लिए सासू का गीतः
ReplyDeleteपुरबा पछिमवा से अईलें सुंदर दुल्हा
जुड़ावे लगिलन हे! सासू अपने नयनवा!!
या फिर
चलनी के चालल दुल्हा, सूप के फटकारल हे!
कईसे मैं परिछूँ दमाद अलबेलवा हे!!
ख़ुद अब हमारे यहाँ की महिलाएँ भूल चुकी हैं ये गीत!!
बहुत प्यारी पोस्ट है ...इन लोकगीतों में जितना अपनत्व झलकता है वो रिश्तों को और करीब लेन में सहायक होता है ..शायद इसीलिए उत्सवों पर इन्हें गाने का रिवाज़ है.
ReplyDeleteअन्य तीन गीत तो सुने थे किन्तु शीर्षक गीत आपके सौजन्य से पहली बार सुना और देखा. आभार.
ReplyDelete
ReplyDeleteदेखो बन्ने आया आज मेरे द्वार
बन्नी जो मेरी, महलों की रानी
बन्ना देखो लाग्ये असल चमार
फिलहाल यही तीन लाइनें जाने दो,
यदि पूरी गारी सिरीज़ यहाँ दोहराऊँगा, तो तुम मॉडरेट कर दोगे ।
गुरुदेव,
ReplyDeleteआज त अजबे रंग में रंग दिए आप!!अभी तक मन भीजा हुआ है!!!
वाह भई।
ReplyDeleteयहां तो लोकगीत व विवाह गीतो के रसिया भी है।
सक्सेना साहब सहित सभी का आभार
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteराजभाषा हिन्दी के प्रचार प्रसार मे आपका योगदान सराहनीय है।
क्या मस्त पोस्ट तैयार किया रे बाबा...!
ReplyDeleteसुबह-सुबह मन रंगीन हो गया.
काहू दिन उठ गयो मेरो हाथ, बलम तोहे ऐसो मारूँगी !...
ReplyDeleteab pyaar kahan ? ab to kahu din kya , jab chaho uth gayo haath
Bahut sunder
ReplyDeleteवाह !
ReplyDeleteमेरी दादी इस गाने पर नाचती थीं अलीगड में एक और गीत था चलता मुसाफिर ये पूछे गोदी में तुम्हारे का लगें गोदी में हमारे बालमा जी गोदी में हमारे बालमा ..पानी में करें छपाक छैया हमारे सैंया
ReplyDelete