इंडियाना यूनिवर्सिटी द्वारा, हाल में की गयी एक स्टडी के जरिये , विज्ञान को अब पता चला है :-)कि किसी बीमार के लिए, उसके पास बैठकर की गयी प्रार्थना का चमत्कारिक फायदा मिलता है और असाध्य बीमारियों में भी इसकी भरपूर उपयोगिता पायी गयी है ! उपरोक्त स्टडी, प्रोफ़ेसर ब्राउन की देखरेख में ,मोजाम्बिक के ग्रामीण एरिया में, मेडिकल डाक्टर और वैज्ञानिकों की टीम की मदद से किया ! उनके द्वारा यह निष्कर्ष निकाला है कि आंशिक अंधे और बहरे लोगों में , इस प्रार्थना प्रयोग के बाद, आशातीत सुधार हुआ है ! इनके प्रयोग का उद्देश्य , बीमारों के ऊपर प्रार्थना के असर का अध्ययन करना था !
भगवान् का शुक्र है कि विज्ञान गाहे बगाहे यह आश्चर्यजनक तथ्य स्वीकार करने लगता है कि "कुछ तो है " जो हम समझ नहीं पाते " ! काश भाई प्रवीण शाह भी इसे जल्दी समझ लें ....
विश्व में बरसों से एलोपैथी का प्रभुत्व स्थापित है मगर आज भी दूरदराज के क्षेत्रों में ऐसी संस्कृतियाँ और परम्पराएं जाग्रत हैं जो सदियों से वैकल्पिक चिकित्सा पर ही निर्भर हैं और सफलता पूर्वक इलाज़ कर स्वस्थ जीवन व्यतीत कर रहे हैं !
होमिओपैथी और रेकी आदि में प्राण शक्ति का बड़ा महत्व हैं ! स्थूल शरीर की चिकित्सा न करके सूक्ष्म शरीर ( वाइटल फ़ोर्स ) को स्वस्थ करने का प्रयत्न किया जाता है ! अगर वाइटल फ़ोर्स स्वस्थ है तो शरीर भी स्वस्थ महसूस करेगा ! सवाल सिर्फ सूक्ष्म शरीर को समझने का है !
भारतीय योग विद्वानों द्वारा इच्छाशक्ति और मानसिक शक्तियों के द्वारा मृतःप्राय व्यक्तिओं को जीवनदान देने की बहुत घटनाएं हुई हैं , एकाग्रचित्त हो ध्यान लगा कर अस्वस्थ व्यक्ति के स्वस्थ होने की कामना करने एवं स्पर्श द्वारा रोग उपचार करने की अनगिनत घटनाएं उपलब्ध हैं ! यह प्रयोग करने के लिए कोई योगी होना आवश्यक नहीं है बल्कि एक मज़बूत इच्छा शक्ति वाला व्यक्ति इस प्रकार का प्रयोग कर सकता है और हर बार बेहतर परिणाम सामने आते हैं !
रेकी इसी ज्ञान का परिष्कृत रूप है, जिसमें स्पर्श द्वारा रोगी व्यक्ति पर साधक, शक्तिपात कर रोग को ठीक करने में समर्थ है ! रेकी के अभ्यास करने वाले सबसे पहले ५ सिधान्तों का पालन करते हैं !
सिर्फ आज भर के लिए गुस्सा न हों, चिंता न करें, कृतज्ञ बनें ,निष्ठां के साथ कार्य करें एवं दूसरों के प्रति दयालु बनें ! प्यार और स्नेह पर आधारित यह शक्तिपात हो और स्वस्थ न हों यह कैसे हो सकता है !
भगवान् का शुक्र है कि विज्ञान गाहे बगाहे यह आश्चर्यजनक तथ्य स्वीकार करने लगता है कि "कुछ तो है " जो हम समझ नहीं पाते " ! काश भाई प्रवीण शाह भी इसे जल्दी समझ लें ....
विश्व में बरसों से एलोपैथी का प्रभुत्व स्थापित है मगर आज भी दूरदराज के क्षेत्रों में ऐसी संस्कृतियाँ और परम्पराएं जाग्रत हैं जो सदियों से वैकल्पिक चिकित्सा पर ही निर्भर हैं और सफलता पूर्वक इलाज़ कर स्वस्थ जीवन व्यतीत कर रहे हैं !
होमिओपैथी और रेकी आदि में प्राण शक्ति का बड़ा महत्व हैं ! स्थूल शरीर की चिकित्सा न करके सूक्ष्म शरीर ( वाइटल फ़ोर्स ) को स्वस्थ करने का प्रयत्न किया जाता है ! अगर वाइटल फ़ोर्स स्वस्थ है तो शरीर भी स्वस्थ महसूस करेगा ! सवाल सिर्फ सूक्ष्म शरीर को समझने का है !
भारतीय योग विद्वानों द्वारा इच्छाशक्ति और मानसिक शक्तियों के द्वारा मृतःप्राय व्यक्तिओं को जीवनदान देने की बहुत घटनाएं हुई हैं , एकाग्रचित्त हो ध्यान लगा कर अस्वस्थ व्यक्ति के स्वस्थ होने की कामना करने एवं स्पर्श द्वारा रोग उपचार करने की अनगिनत घटनाएं उपलब्ध हैं ! यह प्रयोग करने के लिए कोई योगी होना आवश्यक नहीं है बल्कि एक मज़बूत इच्छा शक्ति वाला व्यक्ति इस प्रकार का प्रयोग कर सकता है और हर बार बेहतर परिणाम सामने आते हैं !
रेकी इसी ज्ञान का परिष्कृत रूप है, जिसमें स्पर्श द्वारा रोगी व्यक्ति पर साधक, शक्तिपात कर रोग को ठीक करने में समर्थ है ! रेकी के अभ्यास करने वाले सबसे पहले ५ सिधान्तों का पालन करते हैं !
सिर्फ आज भर के लिए गुस्सा न हों, चिंता न करें, कृतज्ञ बनें ,निष्ठां के साथ कार्य करें एवं दूसरों के प्रति दयालु बनें ! प्यार और स्नेह पर आधारित यह शक्तिपात हो और स्वस्थ न हों यह कैसे हो सकता है !
न जायते म्रियते वा क्दाचिन्नाय भूत्वा भविता वा न भूय.
ReplyDeleteअजो नित्य: शाश्वतोsय पुराणों न हन्यते हन्यमाने शरीर.
The soul is never born, nor does it die. Nor after having been, does the soul cease to be. unborn, eternal, unchanging, ancient the soul dies not when the body dies.
सारी आध्यात्मिक यात्रा इस आत्म साक्षात्कार की है.
सूक्ष्म शरीर ही नहीं, इस आध्यात्मिक यात्रा में सात शरीर बताये गयें हैं;
1. स्थूल शरीर
2. भाव शरीर
3. सूक्ष्म शरीर
4. मनस शरीर
5. आत्म शरीर
6. ब्रह्म शरीर
7. निर्वाण शरीर
सात चक्रों और सात शरीरों की यह यात्रा कही गयी है. जो निकले इस यात्रा पर उसके लिये नितांत वयक्तिक बात! योग की तरह इसका किसी धर्म से मतलब भी नहीं है,शायद!
अब इंडियाना यूनिवर्सिटी कह सही है तो प्रवीण शाह जी अवश्य मान लेंगे .. हम कहते तो भले ही नहीं मानते !!
ReplyDeleteआत्मविश्वास बढाती जानकारी
ReplyDeleteरेकी के बारे में पढ़ा तो है पर फिजिकली अजमाया नहीं है .. बढ़िया आलेख....आभार
ReplyDeleteशायद इसी कारण केरल के मिशन अस्पतालों में हर रोज एक पादरी आता है और प्रत्येक रोगी के बिस्तर के पास खड़े हो प्रार्थना करता है!
ReplyDeleteबहुत सार्थक लेख ...
ReplyDeleteरेकी सच ही आत्मशक्ति को बढ़ाती है ...
रेकी में शारीरिक तौर पर नहीं मानसिकता पर ज्यादा जोर दिया जाता है ...
इससे स्वयं में आत्मविश्वास बढ़ता है....छोटी छोटी नकारात्मक बातें आपको अवरुद्ध नहीं करतीं ...
साईंस अभी बहुत पीछे है. प्रूकृति का एक प्रतिशत रहस्य भी अभी तक नही जाना गया है.
ReplyDeleteरामराम.
प्रार्थना मे तो बहुत शक्ति होती है फिर दूर रहकर की जाये या पास बैठकर ……………सभी को मानना पडेगा चाहे जल्दी माने कोई चाहे देर से।
ReplyDeleteइन्सान के स्वास्थ्य पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव का बड़ा महत्त्व होता है । वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियाँ इसी का इस्तेमाल करती हैं , जो फायदेमंद रहता है ।
ReplyDeleteलेकिन एलोपैथी का कोई पूर्ण विकल्प नहीं है ।
एक मज़बूत इच्छा शक्ति वाला व्यक्ति इस प्रकार का प्रयोग कर सकता है और हर बार बेहतर परिणाम सामने आते हैं ! मै तो इसे हमेशा कहता हुं, कि जब इच्छा शक्ति हो तो हम सब कुछ कर सकते है, लेकिन अब तो अमेरिका वालो की मोहर लग गई अब सब मानेगे:) देसी आदमी चिल्लाता रहे कोई नही मानेगा.....
ReplyDeleteबहुत सुंदर जानकरी जी. धन्यवाद
प्रभाव पड़ना यदि सिद्ध है तो विज्ञान भी सहिष्णु है, कारण खोज लेगी।
ReplyDeleteसतीश साहब लेख में कही गयी आपकी बातों से सहमत हूँ. होम्योपेथी के विषय में प्रवीन जी के विचार आपके इस लेख के जरिये ही पता चले. वहा अपनी असहमति दर्ज करा आया हूँ.
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteराजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
mujhe vishwaas hai, main sadharan roop se dhyaan aur mantra chikitsa karti hun .......
ReplyDelete.
ReplyDelete.
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आदरणीय सतीश सक्सेना जी,
क्षमा करेंगे, परंतु एक बार फिर आपको निराश कर रहा हूँ... एक बार कहीं लिखा भी है कि रात दिन चमत्कार की बाट जोहते हैं हम लोग... चमत्कार हैं तो धर्म है और चमत्कार नहीं तो धर्म कैसा ???
आपके लिंक पर गया...और पाया...
"Rural areas in Mozambique were chosen for the study because eyeglasses and hearing aids were not readily available there and Pentecostal groups who specialize in prayers for those with hearing and vision impairments were active there."
क्या मजाक है, चश्मे की जगह प्रार्थना और हियरिंग एड की जगह भी प्रार्थना ही... जबकि चश्मा या हियरिंग एड देने से शतप्रतिशत सुधार होगा!
"It's not just any kind of prayer, but "proximal intercessory prayer," or PIP -- when one or more people pray for someone in that person's presence and often with physical contact -- that was found by a team of doctors, scientists and religious experts to have remarkable results in healing some patients."
यह प्रार्थना मरीज के शरीर से संपर्क बनाते हुऐ की गई थी...
"But one thing this study tells us is that a major reason that Pentacostalism is growing is the widespread perception that healing takes place."
पेन्टाकोस्टलिज्म बढ़ रहा है यह बता रही है यह स्टडी... और पेन्टाकोस्टलिज्म है क्या ???
The Pentacostals typically spent between one and 15 minutes administering PIP, but some spent an hour or more with a "patient.
"They placed their hands on the recipient's head and sometimes embraced the person in a hug" while praying softly out loud, according to the study.
मतलब यह वे लोग हैं जो मरीज को आलिंगनबद्ध कर उसके लिये कभी कभी एक घंटे या उससे ज्यादा भी प्रार्थना करते हैं।
A team of medical doctors and scientists led by Indiana University professor of religion Candy Gunther Brown found in the study, conducted in rural Mozambique, that prayer brought "highly significant" improvements to hearing-impaired participants and significant changes to the visually impaired.
"highly significant" improvements तो मिलने ही हैं टीम लीडर धर्म की प्रोफेसर जो हैं।
Brown and colleagues urged more studies "to assess whether PIP may be a useful adjunct to standard medical care for certain patients," especially in countries with limited care options.
क्यों भाई क्यों गरीब, पिछड़े और limited care options रखने वाले मुल्कों के लिये ही क्यों हो PIP ? सबसे पहले अमेरिका शुरु करे इसे...
गरीब, पिछड़े, आदिवासी इलाकों या मुल्कों में चमत्कार के जरिये बीमारी ठीक करना काफी पुरानी ईसाई रवायत है... भारत में भी कई जगह सामूहिक 'हीलिंग सेशन' किये जाते हैं... और इन सेशन के दौरान अचानक कुछ लोग चिल्लाते हुऐ उठ खड़े होते हैं... मैं अन्धा था देखने लगा... बहरा था सुनने लगा...लंगड़ा आया था दौड़ने लगा आदि-आदि...और यह ईसाइयत के इन इलाकों में फैलने में मददगार भी है ही...
आभार!
...
दुआओं में बहुत ज़्यादा असर होता है ..और अक्सर लोग कहते है की अगर दवा असर ना करें तो दुआ ही शेष बचता है, लोग बहुत अच्छे से जानते है पर मानते नही ....बहुत बढ़िया आलेख...प्रणाम चाचा जी
ReplyDeleteहोता होगा -मगर विज्ञान की पद्धति पर इसे पुख्ता प्रमाण नहीं मिल पाए हैं -हाँ इनकी चर्चा पिछले वर्षों से रही है !
ReplyDeleteमनुष्य के जीवन में पार स्नायुविक अनुभूति (एक्स्ट्रा सेंसरी परसेप्शन ) का दखल कितना होता है यह अभी बहुत कुछ रहस्यों के घेरे ,में है !
पंडित जी इस बार डिप्लोमैटिक प्रतिक्रिया देकर बच गए, बाकी प्रवीन शाह जी त पूरा व्याख्या किए हैं.. हमरे कुछ बहुत करीबी दोस्त पेंटेकोस्टल पंथ को मानने वाले हैं. यह पंथ पूरी तरह से आदिवासी (इसे मैं डेरोगेटरी टर्म के रूप में नहीं इस्तेमाल कर रहा हूँ) मान्यताओं को मानता है. किताब के बात को जाने दीजिए, हमने अपना आँख से यह प्रक्रिया देखा है. लेकिन जइसा शाह साहब ने कहा, यह ग्रामीन अऊर अविकसित जगह पर ही चलता है.
ReplyDeleteपेंटेकोस्टल लोग सरीर पर किसी तरह का जेवर भी नहीं पहनते हैं, जैसे चूड़ी, चेन, कान का बाली आदि. लेकिन जो लोग सहर में रहता है ऊ लोग धीरे धीरे समझने लगा है. सामूहिक प्रार्थना के समय इनका नेता जिस तरह लोगों को ठीक कर देता है वह काम पलक झपकते होता है, मसलन एक आदमी 104 डिग्री बुखार में है और प्रार्थना के तुरत बाद, या उसके बदन से लगने के बाद एक सेकण्ड में 97 डिग्री पर आ जाता है बुखार.
अगर यह थेरेपी हीलिंग है तो इसको हील होने तक का टाईम तो चाहिए ही. लेकिन इन पादरियों के चमत्कार से यह सब मिंटों में सम्भव होते देखाया गया है. पेंटेकोस्टल लोग ईसा का जन्म दिन भी नहीं मनाते हैं. मतलब ये कि इनका मान्यता अभी भी आदिवासियों सी हैं, लेकिन मैंने अपनी आँखों से एक माँ को अपने बच्चे को घर के अंदर गहनों से सजाकर निहारते हुए देखा है. क्योंकि पब्लिकली ऐसा करना मान्यताओं के विरुद्ध है.
प्रार्थना और पूजा पाठ के गहरे चिकित्सकीय लाभ हैं और ये चमत्कार नहीं है. इसे तो सभी वैज्ञानिक मानते ही आये हैं. इसमें नई बात क्या है?
ReplyDeleteइंसान अपने अनुभव से ही सीखता है जैसे जैसे आध्यात्म और विज्ञान की जानकारी बढ़ेगी...इनसानों को यह एहसास होने लगेगा कि वह जितना जानता है वह मात्र नाम मात्र ही है...
ReplyDeleteवैसे एक बात बहुत हास्यप्रद है कि जब तक विदेशी मोहर ना लग जाए तब तक कुछ लोग मानने को तैयार नही होते:)
Aadarneeya Satishji Namaskar !
ReplyDeleteAppka har post ko naman.Har lekh mai kuch khas jaankari milti hai.Padne mai bahut aanand aata hai. Har vishay par likhna ,ye tho Ishwar ka dhen hai .ise barkarar rakhe... Agle post ka intzaar rahega
Subhkamnayen
सतीश भाई,
ReplyDeleteस्टडी के बारे में तो ज़्यादा नहीं जानता लेकिन डॉक्टर या नर्स के साथ अपनों के मीठे बोल भी दवा की तरह ही मरीज़ के लिए कारगर साबित होते हैं...ये चमत्कार करें या न करें लेकिन किसी इनसान में कठिनाइयों पर पार पा कर दोबारा ज़िंदगी को पूरे जोश के साथ जीने के लिए हौसला देते हैं...अगर ये न हो तो मरीज़ तो जीते जी ही मर जाता है...
जय हिंद...
कहते हैं बिना विश्वास के तो दवा भी फायदा नहीं करती.
ReplyDeleteअच्छा लगा पढ़कर. रेकी के कुछ सहज उपाय करते लोगों को देखा भी है.
kaafi suna hai reki k baare mein waise....
ReplyDeletepls visit my blog
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@ प्रवीण शाह ,
ReplyDeleteयकीन करें मैं यह कभी नहीं कहता कि आप अंधविश्वासों को मान्यता दें , यकीनन यह कोरी मूर्खता होगी ! मगर कुछ तथ्य आप स्वीकार करें यह मैं अवश्य चाहता हूँ ...
दुनियां में केवल एलोपैथिक मान्यताओं से ही लोग ठीक होते हैं यह सच नहीं है अन्य वैकल्पिक चिकित्सा कारगर और कामयाब होती चली आयी हैं और रहेंगी !
किसी विषय को नकारने का अधिकार उस व्यक्ति का नहीं होना चाहिए जिसे उस विषय कि अधकचरी जानकारी हो :-) ...
मानव जीवन से सम्बंधित ऐसी बहुत सी घटनाएं हैं जहाँ साइंस कुछ नहीं कह पाता, शब्दकोष में रहस्यमय शब्द अच्छा भला सम्मान पाता रहा है !
फेथ हीलिंग,मानसिक शक्तियों और तरंगों के जरिये रोग मुक्त होना एवं स्वामी रामकृष्ण परमहंस जैसे भारतीय योगियों का जीवनी शक्ति पर विजय के सैकड़ों उदाहरण उपलब्ध हैं उन्हें नकार तो नहीं सकते !
इस लेख का उद्देश्य चमत्कार को बढ़ावा देना नहीं है मगर आप " कुछ तो है " पर मनन जारी रखें ...यही प्रयत्न मात्र है !
@ चला बिहारी ब्लागर बनने,
ReplyDeleteशुक्रिया सलिल भाई , मुझे इस वर्ग की जानकारी नाम मात्र को ही थी आज आप और प्रवीणशाह जी के जरिये ही पता चला , आप दोनों का शुक्रिया ! इस विषय पर आपके व्यक्तिगत अनुभव को जानने कि इच्छा और है बेहतर और रुचिकर विषय है !