"मस्जिद की मीनारें बोलीं मंदिर के कंगूरों से,
संभव हो तो देश बचा लो मज़हब के लंगूरों से"
योगेन्द्र मौदगिल की यह पंक्तियाँ अपने आप में एक पूरा लेख है जो ब्लाग जगत का को गौरवशाली और धनवान होने का अहसास भी दिलाती हैं ,कि इतना बेहतरीन रचनाकार हमारे बीच है !
योगेन्द्र जी का कहना है कि मस्जिद और मंदिर में प्यार की कोई कमी न पहले महसूस होती थी और न अब है , ये दोनों तो पहले की तरह ही बहिनों की तरह परस्पर प्यार के साथ खड़ीं हैं मगर यह गवाह हैं, यहाँ सीधे साधे लोगों को, अपनी मीठी मीठी बातों से बहकाते, धर्म के ठेकेदारों की हरकतों के लिए !
चिंतित हैं वे ( योगेन्द्र मौदगिल ) कि इनकी लगाई गयी आग से देश पर असर पड़ने से रोका जा पायेगा ! कहीं ऐसा न हो कि इनके बोये जहर से आम आदमी सड़क पर आ जाये !
परेशान हैं वे कि देश को इन मज़हबी लंगूरों से कैसे बचाया जाए ?? ये न केवल लोगों के दिलों में आग लगा रहे हैं बल्कि इनसे देश की बुनियाद तक को खतरा है ! शायद इनका मकसद ही यही है !
अफ़सोस है कि लोगों में विद्वेष बढाते यह लोग यह नहीं जानते कि अपनी जिस विद्वता पर तुम्हे नाज़ है और जिसका दुरुपयोग कर तुम दूसरों की श्रद्धा का मज़ाक उड़ा रहे हो वैसे विद्वान् दूसरे धर्म में भी सैकड़ों हैं कहीं वे भी तुम्हारा खेल खेलने लगे तब क्या होगा ?? मुझे विश्वास नहीं होता कि तुम लोग शायद यही चाहते हो ?
शायद तुम्हारे आकाओं का सपना पूरा हो जाएगा तुम्हें इस खूबसूरत कौम और समाज को बर्बाद करने का प्रयास करते देख ...मगर तुम और और तुम्हारी नस्ल भी तबाह हो जाएगी मूर्खों ! यह घ्रणा का खेल बंद कर दो .....दूसरे धर्म की खिल्लियाँ उड़ाने का प्रयास बंद कर दो !
संभव हो तो देश बचा लो मज़हब के लंगूरों से"
योगेन्द्र मौदगिल की यह पंक्तियाँ अपने आप में एक पूरा लेख है जो ब्लाग जगत का को गौरवशाली और धनवान होने का अहसास भी दिलाती हैं ,कि इतना बेहतरीन रचनाकार हमारे बीच है !
योगेन्द्र जी का कहना है कि मस्जिद और मंदिर में प्यार की कोई कमी न पहले महसूस होती थी और न अब है , ये दोनों तो पहले की तरह ही बहिनों की तरह परस्पर प्यार के साथ खड़ीं हैं मगर यह गवाह हैं, यहाँ सीधे साधे लोगों को, अपनी मीठी मीठी बातों से बहकाते, धर्म के ठेकेदारों की हरकतों के लिए !
चिंतित हैं वे ( योगेन्द्र मौदगिल ) कि इनकी लगाई गयी आग से देश पर असर पड़ने से रोका जा पायेगा ! कहीं ऐसा न हो कि इनके बोये जहर से आम आदमी सड़क पर आ जाये !
परेशान हैं वे कि देश को इन मज़हबी लंगूरों से कैसे बचाया जाए ?? ये न केवल लोगों के दिलों में आग लगा रहे हैं बल्कि इनसे देश की बुनियाद तक को खतरा है ! शायद इनका मकसद ही यही है !
अफ़सोस है कि लोगों में विद्वेष बढाते यह लोग यह नहीं जानते कि अपनी जिस विद्वता पर तुम्हे नाज़ है और जिसका दुरुपयोग कर तुम दूसरों की श्रद्धा का मज़ाक उड़ा रहे हो वैसे विद्वान् दूसरे धर्म में भी सैकड़ों हैं कहीं वे भी तुम्हारा खेल खेलने लगे तब क्या होगा ?? मुझे विश्वास नहीं होता कि तुम लोग शायद यही चाहते हो ?
शायद तुम्हारे आकाओं का सपना पूरा हो जाएगा तुम्हें इस खूबसूरत कौम और समाज को बर्बाद करने का प्रयास करते देख ...मगर तुम और और तुम्हारी नस्ल भी तबाह हो जाएगी मूर्खों ! यह घ्रणा का खेल बंद कर दो .....दूसरे धर्म की खिल्लियाँ उड़ाने का प्रयास बंद कर दो !
जब तक धर्म के नाम पर बिल्लियां लड़ती रहेंगी,लंगूर बने रहेंगे।
ReplyDeleteबहुत सुंदर और सशक्त आलेख, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम
अच्छी प्रस्तुती के लिये आपका आभार ।
ReplyDeleteखुशखबरी
हिन्दी ब्लाँग जगत मे ब्लाँग संकलक चिट्ठाप्रहरी की शुरुआत कि गई है । आप सबसे अनुरोध है कि चिट्ठाप्रहरी मे अपना ब्लाँग जोङकर एक सच्चे प्रहरी बनेँ , यहाँ चटका लगाकर देख सकते हैँ
योगेन्द्र जी के लेख में न सिर्फ दम है बल्कि धर्म की ठेकेदारी के भी उन्होंने चीथड़े उदा दिए हैं. जरूरत भी है आज ऐसे ही लेखों की.
ReplyDeleteअभी मैं ने एक गजल पोस्ट की है, ऐसे ही विचारों के साथ, मौक़ा हो तो देख लीजिएगा. शायद कुछ काम का लगे.
लंगूरों को अंगूर तभी मिल पाता है जब वे विद्वेष की जमीन पर घृणा के वटवृक्ष खड़ा कर लेते हैं. इनकी साजिश नाकाम करने की जरूरत है.
ReplyDeleteसतीश साहब आपके विचारों से पुर्णतः सहमत और इन्हीं बातों को योगेन्द्र मौदगिल जी ने बड़े ही सुन्दर ढंग से व्यक्त किया है. योगेन्द्र जी से परिचय करवाने के लिए धन्यवाद.
ReplyDelete" मस्जिद की मीनारें बोलीं मंदिर के कंगूरों से,
ReplyDeleteसंभव हो तो देश बचा लो मज़हब के लंगूरों से"
कमाल कि पंक्तियाँ है, सतीश जी धन्यवाद और शुभकामना, आप बहुत ही नेक काम कर रहे है, ब्लॉगजगत को साम्प्रदायिकता से बचाने का!
वाह सतीश जी । आपने दो पंक्तियों का इतने विस्तार से विश्लेषण किया है कि आत्मविभोर हो गए । बढ़िया ।
ReplyDeleteये पंक्तियाँ सच्चाई हैं
ReplyDeleteधर्म के ठेकेदारों मजहब के लंगूर नही बल्कि मजहबी मदारी हैं और ये मजहबी मदारी हर मजहब में मौजूद हैं
अब क्या कहे......हम हर तरफ़ से पिछडे है.... तभी यह बंदर बांट होती है, अगर भगवान की दी अकल थोडी भी प्रयोग मै लाये तो सभी सुखी हो जाये ओर यह लंगुर भी अपनी ऒकात मै रहे
ReplyDeleteधन्यवाद प्रगट कर आपके स्नेह को हल्काऊंगा नहीं..
ReplyDeleteआपके सुझावानुसार रैड वाइन ली थी. उसका टेस्ट भी व्हाइट जैसा ही है. ज़बान पर चढ़ने में वक्त लगेगा.
वज़न लगभग १ किलो २०० ग्राम बढ़ गया है
मन करता हे कि इस महीने आपका फार्मूला फिर अपना लूं.
शेष शुभ.
सादर
सभी जानते हैं कि साम्प्रदायिक वैमनस्य कौन फ़ैलाता है? लेकिन फ़िर भी इनके चंगु्ल में फ़ंस जाते हैं।
ReplyDeleteहमारे यहां चरोदा में एक शिवमंदिर है जिसे बाबूखान ने बनवाया था।
और सबसे बडी बात यह है कि यहां मंदिर और मस्जिद का साउंड सिस्टम एक ही है। उसी पे आरती होती है तो उसी पे अजान और तकरीर।
यह बरसों से चला आ रहा है।
नागपंचमी की बधाई
सार्थक लेखन के लिए शुभकामनाएं-हिन्दी सेवा करते रहें।
नौजवानों की शहादत-पिज्जा बर्गर-बेरोजगारी-भ्रष्टाचार और आजादी की वर्षगाँठ
काश ये लंगूर समझ लें...
ReplyDeleteकैंसर के रोगियों के लिये गुयाबानो फ़ल किसी चमत्कार से कम नहीं (CANCER KILLER DISCOVERED Guyabano, The Soupsop Fruit)
satishji,
ReplyDeletebahut sundar baat ki aapne
http://sanjaykuamr.blogspot.com/
एक बेहतरीन पोस्ट, आभार
ReplyDeleteहमें गर्व है श्री यौगेन्द्र जी पर और उनकी रचनाओं पर
ना कभी मन्दिर और मस्जिद में झगडा होता है और ना उनमें सच्ची आस्था रखने वाले और सिर झुकाने वालों में
झगडा तो बस उन लंगूरों में ही होता है, जो केवल बुर्जियों पर बैठकर गंद फैलाते रहते हैं।
प्रणाम स्वीकार करें
बकौल हरिवंश राय बच्चन," मंदिर-मस्जिद भेद कराते, मेल कराती मधुशाला!"
ReplyDeleteमौदगिल जी ने आपके सुझावानुसार रैड वाइन ले ही ली है, देर सवेर जुबान पर चढ़ ही जायेगी!
क्या कभी उसके बारे में बात होगी जिसके नाम पर ये मंदिर-मस्जिद बनाये गये हैं? अपने आप को भूलने के लिये धर्म की अफीम कब तक चाटते रहेंगे? वो क्या है भीतर जो इतना अशांत है?
bahut badiya lekh...
ReplyDeleteMeri Nayi Kavita aapke Comments ka intzar Kar Rahi hai.....
A Silent Silence : Ye Kya Takdir Hai...
Banned Area News : Kareena Kapoor And Karan Johar At Mr. Nari Hira's Bash
लंगूरों का मनोविज्ञान सभी जानते हैं फिर भी उन्ही के हाथ में हम सब हल्दी पकड़ा देते हैं तो वो खुद को पंसारी क्यों न समझे....और ये लंगूर भी भूल जाते हैं की शेर तो आखिर शेर ही होता है...जब शेर दहाड़ेगा तो ये भागते नज़र आयेंगे.
ReplyDeleteगुरुदेव कविवर के एक दोहा का बहुत सुंदर व्याख्या किए हैं आप..आपका फेवरेट टॉपिक भी तो है... लेकिन विचार शून्य जी का ई टिप्पनी पर आपको कहना चाहिए था कुछः
ReplyDelete“सतीश साहब आपके विचारों से पुर्णतः सहमत और इन्हीं बातों को योगेन्द्र मौदगिल जी ने बड़े ही सुन्दर ढंग से व्यक्त किया है. योगेन्द्र जी से परिचय करवाने के लिए धन्यवाद.”
कम से कम स्पस्ट करना चाहिए था कि आपके बिचार को मौद्गिल जी ब्यक्त नहीं किए हैं बल्कि उनके लिखे को आप ब्यक्त किए हैं.
@ चला बिहारी ब्लागर बनाने ,
ReplyDeleteविचार शून्य ने यह भूल, अनजाने में की होगी उनकी समझ के बारे में कोई शक नहीं अतः जवाब क्या देना ..आपकी तीक्ष्ण नज़र को शुभकामना और नमन
यहाँ से वहाँ तक पहुँचा
ReplyDeleteक्या बताऊँ कहां तक पहुँचा.
..आभार.
क्या कहने हैं मौद्गील साहब के ... दो लाइनों में इतनी गहरी बात कह दी .....
ReplyDelete