आदर पाने की चाह - सतीश सक्सेना
बिना आपको आदर दिए , हर इंसान आपसे यह उम्मीद रखता है,कि आप उसका आदर करें ! एक भुलावा लेकर हम जीते रहते हैं कि हम आदर सम्मान के पूर्ण योग्य हैं ! हम यह सोचने का प्रयत्न क्यों नहीं करते कि अगर हमें सम्मान चाहिए तो सामने वाले को पहले देना होगा तब आपको तुरंत कृतज्ञता पूर्वक सम्मान मिलेगा !
दूसरों द्वारा हमारे प्रति सम्मान प्रदर्शन ,हमारे सुकार्यों के प्रति, एक स्वाभाविक मानवीय अभिव्यक्ति है ,जिससे हमें संतोष महसूस होता है ! मगर अधिकतर सम्मान दिखावे के लिए किया जाता है और मानवीय कमजोरियों के रहते, हम अक्सर अपने प्रति किये गए सम्मान का सदुपयोग न करके, दुरुपयोग अधिक करते हैं !
लेखकों के बारे में मेरी स्पष्ट राय है कि उनकी कोई भी कमजोरी ,बनावट अथवा नाम कमाने के लिए किये गए प्रयत्न ,लम्बे समय तक छिपाए नहीं जा सकते ! विभिन्न समय और मनस्थिति में लिखे उनके लेख उनकी कमजोरियां उजागर करने को काफी हैं ! इसी कारण ब्लागजगत में होती छीछालेदर में, अपने प्रति लगाये आरोपों के जवाब में मेरा यही कहना होता है कि पाठक अधिक विद्वान् होते हैं, उन्हें पढने दीजिये और फैसला भी उन्ही को करने दीजिये कि कौन क्या लिख रहा है !
अगर हम अपने कार्यो के प्रति ईमानदार नहीं है तो देर सबेर हमारी हरकतें समाज को पता चल ही जायेंगी लम्बे समय तक लोगों को मूर्ख बनाना संभव नहीं है ! हार झूठ को छिपाने के लिए, अपने बोले हर झूठ को याद रखना और उसके विपरीत कार्य करने पर हमेशा अंकुश लगा कर रखना पड़ेगा जब भी चूके आपकी मक्कारी सबके सामने होगी ! इसी समाज में, हमारे आसपास ही ऐसे लोग रहते हैं जो अपने से अधिक समझदार एवं चालाक और किसी को कुछ नहीं समझते ! कहीं हम भी तो इन में से एक नहीं ? मुझे लगता है कम से कम सप्ताह में एक बार अंतर्मन के शीशे में, अपनी इस विद्रूप छवि को पहचाननें का प्रयत्न अवश्य करें जिससे कि अपने मन की गन्दगी को, अगली पीढ़ी से छिपा सकें अन्यथा यकीन मानिए बदले में हर जगह से यही चालाकी मिलेगी !
सतीश भाई, कोई भी मुखौटा बहुत दिनों तक चेहरे नहीं छुपा सकता। जितना हो सके खुद को खोल कर रख देना ही बेहतर है। अब हम आदर के योग्य हैं या निरादर के यह तो पाठक तय कर लेंगे।
ReplyDeleteसतीश भाई जो कुछ इस आभासी दुनिया में चल रहा है उसकी तरफ आपका यह इशारा है। और सच तो यह है कि दिखावे के सम्मान के कारण ही आधे से ज्यादा समस्याएं हैं। अगर हम दिखावे का यह सम्मान न करें तो कैसा रहे।
ReplyDeleteशिक्षा देता लेख ......
ReplyDelete@पाठक अधिक विद्वान् होते हैं उन्हें पढने दीजिये और फैसला भी उन्ही को करने दीजिये कि कौन क्या लिख रहा है !
सहमत हूँ इस बात से
मैं भी चकित हो जाता हूँ कभी कभी..... मैंने पाया है की किसी का["जेंडर, धर्म, भाषा विशेष" या "उससे से जुड़े व्यक्ति" ] अपमान करने के चक्कर में
एक मानव कईं बार अपने स्नेही रिश्तों का अपमान करने से भी नहीं चुकता और इस आन्दोलन में अनजाने में ही वो उसी वर्ग का जम कर "अधिकार के साथ" अपमान करता है जिसका वो पक्षधर है , ये मेरा ब्लॉग जगत का ही नहीं रियल लाइफ का भी अनुभव है
मैं इसे "टेम्परेरी तौर पर बीमार हो गयी सोच" या शालीन शब्दों में "बचपना" ही मानता हूँ {मुझे ऐसे लोगो से मूल रूप से कोई शिकायत नहीं होती }
ये आपस में ही लड़ते रहते हैं संभवतया एक ही केटेगरी में आने चाहिए बस मुद्दे अलग अलग होते हैं किसी का धर्म , किसी का भाषा , किसी का जेंडर
फिर भी एक बात तो कहूँगा " सबको करनी चाहिए ब्लोगिंग " इससे आपके दोधारी व्यक्तित्व का पता आपको लग सकता है
@मुझे लगता है कम से कम सप्ताह में एक बार अंतर्मन के शीशे में अपनी इस विद्रूप छवि को पहचाननें का प्रयत्न अवश्य करें ! जिससे कि अपनी गन्दगी को अगली पीढ़ी से छिपा सकें अन्यथा यकीन मानिए बदले में हर जगह से यही चालाकी मिलेगी
@सतीश जी , यकीन मानिये मैं भी सबसे यही कहता आया हूँ , दोहराना नहीं चाहूँगा , मेरे कमेन्ट सर्वत्र देखे जा सकते हैं , और ब्लॉग पर लेख तो है ही , फिर भी मेरे व्यक्तित्व को जज करने का फैसला मैं ब्लॉग जगत पर ही छोड़ता हूँ , क्योंकि इंसान खुद को अपनी आंखों से नहीं देख सकता या तो आइना या कोई दूसरा इंसान ही उसे बता सकता है , तभी तो नए कपडे पहन कर भाई अपनी बहन /भाई से पूछता है " कैसा लग रहा हूँ ??" उत्तर : शर्ट [लेख ]और टाई[कामेंट ] का कलर कुछ मेच नहीं कर रहा
मैं अक्सर गीता का एक श्लोक दोहराता हूँ "अभयं सत्व ......." अक्सर लोग उसका पहला शब्द ज्यादा पसंद करते हैं जो है Fearlessness...... बस हो गया
अब फाइनल बात "जो लोग सीखना चाहते हैं "वो हमेशा विनम्र ही होते हैं
मुखौटे में क्या है जी खोट
ReplyDeleteअच्छी जगह पर मारी है चोट
तकनीकी परेशानी के कन्फ्यूजन से कमेन्ट दो बार आ गया है क्षमा चाहता हूँ
ReplyDeleteइस लेख के लिए धन्यवाद
@ सतीश जी
ReplyDeleteमेरे कमेन्ट में किसी भी तरह का बचपना झलक रहा हो तो खुल कर बता दीजियेगा
कोशिश हमेशा यही रही है की अपनी सोच को दूषित न होने दूं
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteराष्ट्रीय एकता और विकास का आधार हिंदी ही हो सकती है।
बिलकुल सहमत हूँ आपसे !!
ReplyDeleteसहमत हूँ...
ReplyDeleteबहुत सटीक बात कही है, आपने।
ReplyDeleteअच्छा लिखा आपने सतीश जी ,दरअसल मानव व्यवहार बहुत जटिल होता है -एक दंश तो मैं ही झेल गया ...झेल रहा हूँ ..
ReplyDeleteदरअसल मनुष्य की ज्यादतर अच्छी बुरी प्रवृत्तियां जन्मजात होती हैं और उन्हें ही विकसित ./दमित होने में संस्कार /परिवेश की भी भूमिका होती है .....
"हार झूठ को छिपाने के लिए, अपने बोले हर झूठ को याद रखना और उसके विपरीत कार्य करने पर हमेशा अंकुश लगा कर रखना पड़ेगा जब भी चूके आपकी मक्कारी सबके सामने होगी ! "
इससे भला क्या असहमति ....
जब भी हम खुद को अच्छा /पाक साफ़ /महान होने के प्रोजेक्शन में किसी की बलि देते हैं तो याद रखना चाहिए समय सबसे बड़ा निर्णायक होता है ..वह नीर क्षीर निर्णय कर देता है ..हम अभी साथ हैं देखते हैं भविष्य की गर्भ में अभी क्या क्या है ?
थोडा इस स्पेस का फायदा ले लूं ......
वाल्मीकि रामायण में एक जगह आता है -
न भीतो मरणादस्मि
केवलं दूषितः यशः
(मरने से नहीं बस कलंक से डरता हूँ )
और इसलिए अभी तो मेरा पश्चाताप पर्व चल रहा है ..
अपनी दृष्टि में अनुचित कुछ किया नहीं इसलिए प्रायश्चित नहीं )
कम सप्ताह में एक बार अंतर्मन के शीशे में अपनी इस विद्रूप छवि को पहचाननें का प्रयत्न अवश्य करें !
ReplyDeleteयदि ऐसा कर सके तो व्यक्तित्व में लाज़मी तौर से निखार आएगा.
http://haqnama.blogspot.com/2010/08/success-of-life-sharif-khan.html
कम सप्ताह में एक बार अंतर्मन के शीशे में अपनी इस विद्रूप छवि को पहचाननें का प्रयत्न अवश्य करें !
ReplyDeleteयदि ऐसा कर सके तो व्यक्तित्व में लाज़मी तौर से निखार आएगा.
http://haqnama.blogspot.com/2010/08/success-of-life-sharif-khan.html
बिलकुल ठीक कहा....
ReplyDelete@पाठक अधिक विद्वान् होते हैं उन्हें पढने दीजिये और फैसला भी उन्ही को करने दीजिये कि कौन क्या लिख रहा है !...
ReplyDeleteबात तो ठीक है ..!
@एक मानव कईं बार अपने स्नेही रिश्तों का अपमान करने से भी नहीं चुकता और इस आन्दोलन में अनजाने में ही वो उसी वर्ग का जम कर "अधिकार के साथ" अपमान करता है जिसका वो पक्षधर है , ये मेरा ब्लॉग जगत का ही नहीं रियल लाइफ का भी अनुभव है ...
बहुत सही कहा ..!
अच्छी प्रस्तुति,
ReplyDeleteकृपया अपने बहुमूल्य सुझावों और टिप्पणियों से हमारा मार्गदर्शन करें:-
अकेला या अकेली
सही चिंतन ...
ReplyDeleteआदर के लेन देन का मज़ेदार गणित !!
ReplyDeleteDikhawa .....bas yahi har samasya kee jad hai .
ReplyDeletebahut achha chintan.
.
ReplyDelete@-आदर के लेन देन का मज़ेदार गणित !!
I fully agree with Samvedna ke swar.
Thanks.
.
Sateesh Sir!! bahut sach kaha aapne, mukhota hi jab hai, to permanant to rah hi nahi sakta.......kabhi ka kabhi utrega, aur fir dikhega bhi.......:)
ReplyDeleteदुनिया हम से चार कदम आगे है जी, ओर यह मुखोटा कब तक काम आयेगा? दिखावे के सम्मान से अच्छा है हम कुछ ना करे.
ReplyDeleteजन्माष्टमी की बहुत बहुत शुभकामनायें।
@ गौरव अग्रवाल,
ReplyDeleteआपके बारे, जानने के लिए किसी प्रमाण की आवश्यकता कम से कम मुझे बिलकुल नहीं है, अगर किसी लेखन को ह्यां से पढ़ कर दो अच्छी प्रतिक्रियाएं मिल जाएँ तो पोस्ट लेखन सफल हो जाता है ! फाइनल बात सबसे अच्छी है , शुभकामनायें गौरव !
@ अरविन्द मिश्र जी ,
".....तो याद रखना चाहिए समय सबसे बड़ा निर्णायक होता है ..वह नीर क्षीर निर्णय कर देता है "
बिलकुल ठीक कहा है आपने , मैं आपके उपरोक्त कमेन्ट का समर्थन करता हूँ ! पश्चाताप पर्व की आपने बात खूब की ...यह हर किसी के बस का नहीं होता सो आपको शुभकामनायें देता हूँ !
बीते समय जो घटनाएँ घटी वे बेहद तकलीफ देह रहीं यकीन मानिये !काफी समय ब्लाग खोलने का भी मन नहीं हुआ , इसका विश्लेषण करने में आपको समस्या नहीं होनी चाहिए मगर यह याद रखते हुए कि ब्लागजगत में हर आदमी विद्वान् नहीं हैं यहाँ हर तरह के लोग हैं और उक्त झगडे का मतलब अपनी अपनी बुद्धि के अनुसार निकालेंगे ! सो आप दोनों पक्षों के लिए यह कष्टकारक समय है !
मेरा यह मानना है कि रास्ते कभी बंद नहीं करने चाहिए हो सके तो खुले दिल के साथ अपनी भूल, बिना सामने वाले पर ऊँगली उठाये मान लें ! अगर समझदार लोगों ने उसपर साधुवाद दे दिया तो जीत पहल करने वाले की हुई, मानी जानी चाहिए !
सादर
" समरथ को नहीं दोष गुसाई "
ReplyDeleteश्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई ।
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट है .... धन्यवाद
कृपया एक बार पढ़कर टिपण्णी अवश्य दे
(आकाश से उत्पन्न किया जा सकता है गेहू ?!!)
http://oshotheone.blogspot.com/
आपने बिलकुल सही कहा सर ,हर आदमी अपनी बुराइयों ,कमजोरियों को छुपाना चाहता है / आपने यहाँ अपने ब्लागर भाइयों के लिए यह लिखा है लेकिन यह सभी के जीवन की हकीकत है / कमजोरियां कभी छुप नहीं सकती , वे कभी -ना-कभी जिन्दगी मै सामने आती ही है और जब सामने आती है तो बहुत नीचा देखना पड़ता है / इसलिए आदमी को अपने किये का समय -समय पर मूल्यांकन करते रहना चाहिए / जिन्दगी के बारें मै आपके विचार अति उत्तम है
ReplyDeleteआत्म विश्लेषण नित कर्म होना चाहिये. सोने के पूर्व आदत में डालें आत्म निरक्षण एवं विश्लेषण...
ReplyDeleteएकदम सहमत हूँ आपकी बातों से.
Accha laga
ReplyDeleteमान, माया, ईष्या, द्वेष, क्रोध में फ़ंसी मानवीय अनुभुतियां।
ReplyDeleteआपसे सहमत मेरी नई पोस्ट भी देखें
ReplyDelete.
ReplyDelete.
.
सत्य कथन !
सहमत हूँ आपसे...
हम सब को सद् मति मिले...
...
सटीक चिंतन, जैनिज्म में प्रतिक्रमण की प्रक्रिया होती है. आत्मचिंतन की इससे बेहतर कोई विधी नही है.
ReplyDeleteजन्माष्टमी की रामराम.
रामराम.
सत्य वचन ... कोई भी मुखौटा बहुत दिनों तक चेहरे नहीं छुपा सकता...
ReplyDeleteयह बिलकुल सच है कि हम अपने को भले ही बहलाते रहें ,औरों को हमेशा नहीं बहका सकते .हमारा लेखन क्या है(या हम क्या हैं )इसका निर्णय पाठक ही कर सकते हैं .आत्म-साक्षात्कार तो हर व्यक्ति के लिए उपयोगी है .
ReplyDeleteसत्य वचन प्रभूजी, सत्य बोल वचन
ReplyDeleteजन्माष्टमी की शुभकामनाएँ।
आपको एवं आपके परिवार को श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें !
ReplyDeleteलेख के कथ्य से पूर्णतः सहमत | ब्लॉग जगत के सन्दर्भ में, यदि कभी कोई अप्रिय विवाद उभरता हो, उसे नजरअंदाज कर के उसपर प्रतिक्रया देने से बचा जाए तो विवाद बढ़ नहीं पायेगा या जल्दी समाप्त हो जाएगा | लेकिन मुझे लगता है कि कुछ लोगों को विवाद पैदा करने या बढाने में ही आनंद आता है |
ReplyDeletebilkul sahi baat kahi chacha ji aapne agar ham kisi ka samman nahi karate to hame samman mile isaki ummid karana bemani hoga yada kada aisa kuch hota bhi hai to wo mahaj ek dikhawa hota hai..
ReplyDeleteaapki baten sahi lagati hai kyonki updeshak nahi hoti balkil aapko prtibimbit karati hai.
prnaam chacha ji..
जेठ की धूप में बरगद की छांव और ठंडे पानी के छींटे जैसी उम्दा है यह पोस्ट।
ReplyDeleteek umda lekh,...
ReplyDeleteA Silent Silence : Shamma jali sirf ek raat..(शम्मा जली सिर्फ एक रात..)
Banned Area News : It's difficult to recreate same emotion in remake: Aamir
तक़रीर बनाता हूँ तक़रीर नहीं बनती :(
ReplyDelete███████████████████████████████████
moderation has been .... etc. etc, :)
सो यहाँ तक़रीर करने की ग़ुँज़ाइश नहीं बनती,
याद आ रही है,
स्नो-व्हाइट की कहानी...
और.. आज उसकी मग़रूर माँ याद आ रही है,
याद आ रहा है, कि
Mirror, mirror, on the wall,
Who is the most beautiful of all ?
अन्त में अपने-मुँह-माई-मिट्ठू पर जीत उन सात बौनों की ही हुई,
जो स्नो-व्हाइट के साथ रहे, स्वयँ कोई श्रेय न लिया ।
दूसरों को आइना दिखाने की बनिस्पत बौने बन रह कर दूसरों को मान दिलाने में स्नो-व्हाइट के साथ बने रहने में सुख नहीं है, क्या ?
इसीलिये वो बौने आज तक अमर ( मैं नहीं.. भाई ! ) हैं, देश व काल को लाँघते हुये आज तक याद किये जाते हैं,
अच्छी पोस्ट !
ReplyDelete::::: उत्साही जी की बात पर ग़ौर किया जाये, भाई ।
बिना किसी क्षेपक के सही बात रख रहे हैं
कोई कितना भी प्रयास करले असल चेहरा प्रकट होता ही है....... रही बात सम्मान देने की तो पानी को किसी पात्र में डालने पर तभी टिका रहेगा, की जब उस पात्र में छेद ना हो. अगर छेद होगा तो पानी बह जायेगा और गंदगी फैलाएगा......... उसी तरह आदर रूपी पानी हम किसी भी व्यक्तित्व रूपी पात्र में डालतें है तो अगर पात्र सही हुआ तो अच्छी बात है ही, नहीं तो उस पात्र की पात्रता अपने आप ही सामने आ जाएगी............ बाकि अपना काम तो यही होना चहिये की पात्र की पात्रता का ध्यान रखें..........लेकिन अगर परख करना नहीं आयें तो मेरी तो यही धारणा है की सारे बर्तनों में पानी डाल दो परख अपने आप हो जाएगी........
ReplyDelete.
ReplyDeleteवाह अमित जी, मान गए आपको !
.
bahut dino se mai blog se acchee tarah jud nahee paee haa aakee post hamesha kee tarah asar chod jatee hai aur ise var bachapan me ek kahanee HINDI PATHYKRAM ME THEE NAAM SHAYAD "PAREEKSHA"THA.usame ek character jinka naam DIWAN SUJANSINGH tha aaj manaspatal par bimbit ho gaya hai aur vo kahanee aaj ke parivesh me bhee lagoo hotee hai.....aaj kee duniya me unconditional kuch nahee hota expectations se insaan ubhar hee nahee pata .sare masle kee root hee expectations hai.......
ReplyDeleteye meree soch hai........bitiya aur gudiya sanand hai.
ek acchee post ke liye aabhar .