यह दर्द उठा क्यों दिल में है
या याद किसी की आई है
लगता है कोई चुपके से
दस्तक दे रहा, चेतना की
वे भूले दिन बिसरी यादें ,
लगता है कोई चुपके से
दस्तक दे रहा, चेतना की
वे भूले दिन बिसरी यादें ,
क्यों मुझे चुभें शूलों जैसी
लगता कोई अपराध मुझे , है याद दिलाये करमों की
रजनीगंधा की सुन्दरता,
फूलों की गंध उठे जैसे
उन भूली बिसरी यादों से ,
ये गीत सजे, अरमानों के
मैं कभी सोचता क्यों मुझको,
लगता कोई अपराध मुझे , है याद दिलाये करमों की
रजनीगंधा की सुन्दरता,
फूलों की गंध उठे जैसे
उन भूली बिसरी यादों से ,
ये गीत सजे, अरमानों के
मैं कभी सोचता क्यों मुझको,
ही शांति नहीं है, जीवन में
यह क्यों उठती अतृप्त भूख, सूनापन सा इस जीवन में
लगता है जैसे इंगित कर
है मुझको याद करे कोई
लगता कोई हर समय मेरी
भूलों पर रोता है , जैसे ,
वे कोई भरी भरी आँखें ,
यह क्यों उठती अतृप्त भूख, सूनापन सा इस जीवन में
लगता है जैसे इंगित कर
है मुझको याद करे कोई
लगता कोई हर समय मेरी
भूलों पर रोता है , जैसे ,
वे कोई भरी भरी आँखें ,
यादों से जुड़ी हुईं ऐसे !
दिल में कोई भी दर्द उठे, सम्मुख जीवित होती आँखें !
दिल में कोई भी दर्द उठे, सम्मुख जीवित होती आँखें !
its amazing..
ReplyDelete"लगता कोई हर समय मेरी
भूलों पर रोता है जैसे "
The pain to realize the fault and being hapless...
It was delight to read the creations here...
धन्यवाद कबीर ! आशा है भविष्य में सुझाव भी दोगे !
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत कविता है। पिछले कुछ लेख भी पढ़े। अच्छे लगे। इस कविता में अकूलाए मन का काफी अच्छा वर्णण किया है आपने। वैसे भूली-बिसरी यादों में कौन है..इस बारे में कब लिखेंगे। लिख चुके हैं तो लिंक दें। (ये रिक्वेस्ट है..लोगो की दुखती औऱ सुखती रग पर हाथ रखना हमारा प्यारा शगल है..हीहीहीही)
ReplyDeleteभगवान श्री गणेश आपको एवं आपके परिवार को सुख-स्मृद्धि प्रदान करें! गणेश चतुर्थी की शुभकामनायें!
ReplyDeleteअद्भुत सुन्दर रचना!
मन की अस्थिरता भी एक अनुभव है ,कामना करती हूँ कि संयत हो कर आप और भी अच्छा लिखें .यों तो यह कविता भी 'वे भूले दिन बिसरी यादें'पास लाती सुन्दर रचना है .
ReplyDeleteवे भूले दिन बिसरी यादें
ReplyDeleteक्यों मुझे चुभें शूलों जैसी
सर , आपने तो दिल को झकझोर दिया / इन पंक्तियों को पढ़कर दिल मैं चुभन सी होने लगी हैं / सर आगे कुछ लिखा ही नहीं जा रहा .............
कुछ भूली बिसरी यादें अक्सर आकर हमें झकझोरती हैं चुभती हैं और दे जाती हैं एक टीस । जिनके हम अपराधी हैं वे तो अब पास नही हैं या बहुत बहुत दूर चले गये हैं इसी से दर्द का यह अहसास ही प्रायश्चित रह जाता है ।
ReplyDeleteयादों के मेघ से घिरी ....अकुलाहट की वर्षा कर रही हैं ...भीग कर भी यादें और गहरी हो रहीं हैं जैसे ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना ...!!
रजनीगंधा की सुन्दरता
ReplyDeleteफूलों की गंध उठे जैसे
उन भूली बिसरी यादों से ,
ये गीत सजे अरमानों के....
खुबसूरत गीत है....
सादर बधाई...
रजनीगंधा की सुन्दरता
ReplyDeleteफूलों की गंध उठे जैसे
उन भूली बिसरी यादों से ,
ये गीत सजे अरमानों के
बहुत अच्छी लगी कविता।
सादर
बेह्द खूबसूरत कविता
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत रचना ! मन की अकुलाहट को बहुत कुशलता के साथ शब्दबद्ध किया है ! बहुत भावपूर्ण एवं मर्मस्पर्शी ! बधाई एवं शुभकामनायें !
ReplyDeleteman ki vytha ko bkhubi prstut kiya hai apne...
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