"जिन्दगी से थका हारा ये योद्धा आज आत्मसमर्पण करता है क्योंकि वो औरों के लिए जिया और अपनी शर्तों से ज्यादा दूसरों की भावनाओं को मान देता रहा."....
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हे घाव देने वालों, तुम जीत गये. मेरी जिन्दगी की समझ, जो संस्कारों से मैने पाई थी और बदलते सामाजिक मूल्यों में अपनी मान्यता खो चुकी मेरी कल्पना की उड़ान हार गई. अब जो चाहो, मेरे साथ सलूक करो मैं प्रतिरोध नहीं करुँगा. मैं एक हारा हुआ योद्धा हूँ - खुद की करनी के चलते, इसमें किसी का कोई दोष नहीं "
"जिन्दगी से थका हारा ये योद्धा आज आत्मसमर्पण करता है क्योंकि वो औरों के लिए जिया और अपनी शर्तों से ज्यादा दूसरों की भावनाओं को मान देता रहा."
बढ़ती उम्र के साथ शक्तिहीनता का अहसास, और इस वक्त अपनों का साथ न देना, किसी भी योद्धा की जीवनीशक्ति को धराशायी करने के लिए पर्याप्त है ! जिनके लिए, अपने सुख की विना परवाह किये, पूरे जीवन संघर्ष रत रहे वे सब अपने अगर जीवन के उत्तरार्ध में एक साथ इकट्ठे होकर, उँगलियाँ उठाना शुरू कर दें तभी ऐसे अवसाद की स्थिति उत्पन्न हो जाती है !
पूरे जीवन सबको हंसने और हँसाने का मंत्र देने वाले,महारथी , कई बार अपने आपको खुद कितना असहाय और कष्टपूर्ण स्थिति में पाते हैं और ऐसे में उनका साथ देना वाला कोई नहीं होता !
इस दर्द में एक शायर का शेर याद आ रहा है ....
"यकीं ना आये तो इक बात पूछ कर देखो ,
जो हंस रहा है वो जख्मों से चूर निकलेगा !"
और बच्चन जी की यह पंक्तियाँ..
"जिसके पीछे पागल होकर
मैं दौरा अपने जीवन भर
जब मृगजल में परिवर्तित हो
मुझ पर मेरा अरमान हंसा , तब रोक न पाया मैं आंसू !
मेरे पूजन आराधन को
मेरे सम्पूर्ण समर्पण को
जब मेरी कमजोरी कहकर
मेरा पूजित पाषाण हंसा , तब रोक न पाया मैं आंसू !"
मगर गहन अवसाद में डूबे हुए इस निर्मल ह्रदय कवि को, मैं अपनी लिखित इन पंक्तियों के द्वारा, इस गहरी नींद से जगाना अवश्य चाहूँगा...
दर्द दिया है तुमने मुझको दवा न तुमसे मांगूंगा !
समझ प्यार की नही जिन्हें है
समझ नही मानवता की
जिनकी अपनी ही इच्छाएँ
तृप्त नही हो पाती हैं ,
दुनिया चाहे कुछ भी सोचे
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हे घाव देने वालों, तुम जीत गये. मेरी जिन्दगी की समझ, जो संस्कारों से मैने पाई थी और बदलते सामाजिक मूल्यों में अपनी मान्यता खो चुकी मेरी कल्पना की उड़ान हार गई. अब जो चाहो, मेरे साथ सलूक करो मैं प्रतिरोध नहीं करुँगा. मैं एक हारा हुआ योद्धा हूँ - खुद की करनी के चलते, इसमें किसी का कोई दोष नहीं "
"जिन्दगी से थका हारा ये योद्धा आज आत्मसमर्पण करता है क्योंकि वो औरों के लिए जिया और अपनी शर्तों से ज्यादा दूसरों की भावनाओं को मान देता रहा."
बढ़ती उम्र के साथ शक्तिहीनता का अहसास, और इस वक्त अपनों का साथ न देना, किसी भी योद्धा की जीवनीशक्ति को धराशायी करने के लिए पर्याप्त है ! जिनके लिए, अपने सुख की विना परवाह किये, पूरे जीवन संघर्ष रत रहे वे सब अपने अगर जीवन के उत्तरार्ध में एक साथ इकट्ठे होकर, उँगलियाँ उठाना शुरू कर दें तभी ऐसे अवसाद की स्थिति उत्पन्न हो जाती है !
पूरे जीवन सबको हंसने और हँसाने का मंत्र देने वाले,महारथी , कई बार अपने आपको खुद कितना असहाय और कष्टपूर्ण स्थिति में पाते हैं और ऐसे में उनका साथ देना वाला कोई नहीं होता !
इस दर्द में एक शायर का शेर याद आ रहा है ....
"यकीं ना आये तो इक बात पूछ कर देखो ,
जो हंस रहा है वो जख्मों से चूर निकलेगा !"
और बच्चन जी की यह पंक्तियाँ..
"जिसके पीछे पागल होकर
मैं दौरा अपने जीवन भर
जब मृगजल में परिवर्तित हो
मुझ पर मेरा अरमान हंसा , तब रोक न पाया मैं आंसू !
मेरे पूजन आराधन को
मेरे सम्पूर्ण समर्पण को
जब मेरी कमजोरी कहकर
मेरा पूजित पाषाण हंसा , तब रोक न पाया मैं आंसू !"
मगर गहन अवसाद में डूबे हुए इस निर्मल ह्रदय कवि को, मैं अपनी लिखित इन पंक्तियों के द्वारा, इस गहरी नींद से जगाना अवश्य चाहूँगा...
दर्द दिया है तुमने मुझको दवा न तुमसे मांगूंगा !
समझ प्यार की नही जिन्हें है
समझ नही मानवता की
जिनकी अपनी ही इच्छाएँ
तृप्त नही हो पाती हैं ,
दुनिया चाहे कुछ भी सोचे
कभी न हाथ पसारूंगा !
दर्द दिया है तुमने मुझको दवा न तुमसे मांगूंगा !
चिडियों का भी छोटा मन है
फिर भी वह कुछ देती हैं
चीं चीं करती दाना चुंगती
मन को हर्षित करती हैं
राजहंस का जीवन पाकर
दर्द दिया है तुमने मुझको दवा न तुमसे मांगूंगा !
चिडियों का भी छोटा मन है
फिर भी वह कुछ देती हैं
चीं चीं करती दाना चुंगती
मन को हर्षित करती हैं
राजहंस का जीवन पाकर
क्या भिक्षुक से , मांगूंगा !
दर्द दिया है तुमने मुझको दवा न तुमसे मांगूंगा !
विस्तृत ह्रदय मिला ईश्वर से
सारी दुनिया ही घर लगती
प्यार नेह करुणा और ममता
मुझको दिए विधाता ने
यह विशाल धनराशि प्राण
दर्द दिया है तुमने मुझको दवा न तुमसे मांगूंगा !
विस्तृत ह्रदय मिला ईश्वर से
सारी दुनिया ही घर लगती
प्यार नेह करुणा और ममता
मुझको दिए विधाता ने
यह विशाल धनराशि प्राण
अब क्या मैं तुमसे मांगूंगा !
दर्द दिया है तुमने मुझको दवा न तुमसे मांगूंगा !
जिसको कहीं न आश्रय मिलता
मेरे दिल में रहने आये
हर निर्बल की रक्षा करने
का वर मिला विधाता से
दुनिया भर में प्यार लुटाऊं
दर्द दिया है तुमने मुझको दवा न तुमसे मांगूंगा !
जिसको कहीं न आश्रय मिलता
मेरे दिल में रहने आये
हर निर्बल की रक्षा करने
का वर मिला विधाता से
दुनिया भर में प्यार लुटाऊं
क्या निर्धन से , मांगूंगा !
दर्द दिया है तुमने मुझको दवा न तुमसे मांगूंगा !
गर्व सदा ही खंडित करता
रहा कल्पनाशक्ति कवि की
जंजीरों से ह्रदय और मन
बंधा रहे गर्वीलों का ,
मैं हूँ फक्कड़ मस्त कवि,
दर्द दिया है तुमने मुझको दवा न तुमसे मांगूंगा !
गर्व सदा ही खंडित करता
रहा कल्पनाशक्ति कवि की
जंजीरों से ह्रदय और मन
बंधा रहे गर्वीलों का ,
मैं हूँ फक्कड़ मस्त कवि,
क्या गर्वीलों से मांगूंगा !
दर्द दिया है तुमने मुझको दवा न तुमसे मांगूंगा !
दर्द दिया है तुमने मुझको दवा न तुमसे मांगूंगा !