-कि अपने व्यस्त समय के कारण, कुछ बहुत आवश्यक चेहरों को भूलता जा रहा हूँ ! एक समय, जिन चेहरों के बिना कुछ भी अच्छा नहीं लगता था, आज वे धुधले पड़ते जा रहे हैं !!
-आजकल बीमार माँ की अब उतनी याद नहीं आती जिसकी उँगलियों से खाया खाना, कभी तृप्ति का पर्याय लगता था !!
-इन दिनों असहाय और कमज़ोर पिता की भी, अब उतनी याद नहीं आती जिसकी उंगली पकड़ कर, मैं अपने आपको, दुनिया का सबसे शक्तिशाली बच्चा समझता था !!
-दुनिया में सबसे अधिक मुझे प्यार करने वाली बहिन या भाई, को जानबूझ भुलाने का प्रयत्न करना !!
बहुत आसान होता है अपनी जिम्मेवारियों से मुक्त हो जाना...... बस अपनी सोच को थोडा सा परिवर्तित करना है, और हमें सारी समस्याओं से मुक्ति मिल जाती है ! !
-सोचिये कि आपके माता-पिता आर्थिक तौर पर सर्व समर्थ हैं और वे मेरे बिना भी अपनी समस्याएं सुलझा सकने में समर्थ हैं !!
-सोचिये कि माँ को कोई बीमारी नहीं हैं क्योंकि वे आज भी अपना सारा काम बखूबी अंजाम देती हैं !!
-सोचिये कि बहन भी मुझे अब पहले जैसा प्यार नहीं करती !!
और यकीन रखें माँ बाप की यह मजबूरी है कि वे बच्चों के सामने अपने आपको स्वस्थ और हंसमुख दिखाने का प्रयत्न करते रहें, और पड़ोसियों और मित्रों के सामने हमेशा की तरह आपकी तारीफ करते रहें !!
भावुक कर देने वाली रचना है !
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बहुत ही सच लिखा अपने. ये आपकी ही नही बल्कि सभी की हालत है. बहुत शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
सही कहा आपने वे लोग क्या समझेगें कि मा ऒर पिता का स्नेह क्या होता हॆ..
ReplyDeleteकहाँ लगाये हैं आप भी बस मस्त रहिये और देश को आगे बढाईये. सुन्दर प्रविष्टि. आभार.
ReplyDeleteसतीशजी | हमेशा आधुनिक पीढी रही है ,यह जनरेशन गेप हमेशा रहा है | आपकी यह बात नितांत सत्य है कि बाप आखिर बाप होता है वह हमेशा खुश दिखने की कोशिश करता है | मैं केवल एक बात व्यक्तिगत कहना चाहूँगा कि जितनी सेवा या देखभाल मेरे बुजुर्ग बीमार पिता की मैंने करली उतनी मेरी नहीं हो पायेगी ,हो सकता है यह क्रम न जाने कव से चल रहा हो (मेरे परिवार में नहीं बल्कि संसार में ,नहीं तो आप यह कहें कि इनके यहाँ ऐसा ही होता आ रहा होगा )आपने सोच परिवर्तन वाबत लिखा है ठीक है आपका कथन ""सोचिये कि आपके माता-पिता आर्थिक तौर पर सर्व समर्थ हैं और वे मेरे बिना भी अपनी समस्याएं सुलझा सकने में समर्थ हैं !!
ReplyDelete-सोचिये कि माँ को कोई बीमारी नहीं हैं क्योंकि वे आज भी अपना सारा काम बखूबी अंजाम देती हैं !!
-सोचिये कि बहन भी मुझे अब पहले जैसा प्यार नहीं करती "" मुझे तो इसमें बहुत बड़ा तंज़ ,व्यंग्य नजर आरहा है |
Achchhe lagee aapki baaten
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
मेरे पिताजी पिछली बार बीमार पड़े और तब अचानक मुझे लगा कि मैं कितना उनके सहारे था और वे कितना मेरे सहारे हैं।
ReplyDeleteयही परिवार है
ReplyDeleteसतीश भाई,
ReplyDeleteआपका लेख मौजूदा पीढी की सम्वेदनहीनता का आईना है. जो हल आपने बताये हैं उस व्यंग्य में भी कितनी तल्खी, कितने आंसू, कितना आघात छुपा है,यह तो लिखने और पढ़ने वाला ही समझ सकता है. यार मैं कायल हो गया आपकी निगाह का.
आप बरसों पहले मेरे ब्लॉग पर आये थे और मैं सदियों बाद आ रहा हूँ,इसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ. लेकिन मेरी परेशानियों ने हाथ बाँध रखे थे. अब सब कुछ ठीक है. सम्पर्क बनाये रखियेगा.