Monday, October 29, 2018

कहीं गंगा किनारे बैठ कर , रसखान सा लिखना -सतीश सक्सेना

इस हिन्दुस्तान में रहते , अलग पहचान सा लिखना !
कहीं  गंगा किनारे  बैठ कर , रसखान सा लिखना !
 
दिखें यदि घाव धरती के, तो आँखों को झुका लिखना  
घरों में बंद, मां बहनों पे, कुछ आसान सा लिखना !

विदूषक बन गए मंचाधिकारी , उनके शिष्यों के ,
अनुग्रह पुरस्कारों के लिए, अपमान सा लिखना !

किसी के शब्द शैली को चुराये मंच कवियों औ ,
जुगाड़ू  गवैयों , के बीच कुछ प्रतिमान सा लिखना !

व्यथा लिखने चलो तब, तड़पते परिवार को लेकर
हजारों मील, पैदल चल रहे , इंसान पर लिखना !

तेरे मन की तड़प अभिव्यक्ति जब चीत्कार कर बैठे
बिना परवा किये तलवार की, सुलतान सा लिखना !

Saturday, October 20, 2018

मजबूत ह्रदय,पेन्क्रियास के लिए शरीर को दौड़ना सिखाएं -सतीश सक्सेना

भारत में पचास वर्ष से अधिक उम्र का हर तीसरा व्यक्ति, हार्ट आर्टरीज में रुकावट का ख़तरा लिए हुए है इस उम्र में हर व्यक्ति 60-80 प्रतिशत आर्टरिज़ ब्लॉक कर चुका होता है, आलस्य और खानपान के कारण घर घर में आई डायबिटीज सोने पर सुहागे का कार्य करता है और अचानक किसी दिन आपके जीवन भर की कमाई और हँसी, मेडिकल व्यवसायी ले जाते हैं !

अगर आपको यह जानना हो कि आप ह्रदय रोगी हैं या नहीं तो सिर्फ सौ मीटर दौड़ कर देखें अगर इतने में सांस फूल जाती है तब आप तमाम बढ़िया टेस्ट रिपोर्ट के बावजूद, निस्संदेह खतरे में हैं ! इससे निजात पाने का सबसे बेहतर तरीका अपने भारी शरीर को धीरे धीरे दौड़ना सिखाएं आप जल्द पायेंगे कि अब आप एक किलोमीटर बिना हांफे थके, दौड़ने में सक्षम हैं !

शुरू में बेहद परेशान होंगे, खराब लगेगा मगर कुछ समय बाद यही बहता पसीना आनंद देगा और इतना आनंद देगा कि आप अक्सर दौड़ के बाद नाचते हुए घर में घुसेंगे ! एक रनिंग आपके आत्मविश्वास को कई गुना बढाता है, तमाम उम्र्जनित बीमारियाँ, डिप्रेशन और झुंझलाहट नजदीक नहीं आयेंगे ! दौड़ते समय पूरे शरीर में बॉडी वेट इम्पैक्ट के कारण उत्पन्न कम्पन आपके आन्तरिक सुस्त पड़े अंगों में वह उथल पुथल करते हैं कि उन सोये हिस्सों में नयी जान पड़ जाती है !

दौड़ना आसान नहीं है , मैंने देखा है कि कोई नहीं पूंछता कि दौड़ना कैसे है , अधिकतर का माइंड प्रीसेट है कि दौड़ने में क्या है जबकि सच्चाई इसके विपरीत है आपका शरीर और मन आपको दौड़ने ही नहीं देगा और अगर जोश और हिम्मत के सहारे दौड़ते रहे तब कुछ दिनों में आन्तरिक मसल्स इंजरी के कारण इतने तरह के दर्द होंगे की आप भविष्य में दौड़ने के योग्य ही न रहें !

आराम पसंद मसल्स, अगर सामर्थ्य से अधिक कार्य करेंगे तब निस्संदेह आप कुछ समय में दौड़ना भूल जायेंगे हर रनर का पहला वर्ष बहुत महत्वपूर्ण होता है , जिसमें उसे अपनी मसल्स को मेहनत करना , आराम देना और उनकी शक्ति व tissues को regenerate करना होता है ! सो शुरुआत में कृपया ध्यान रखें

-सप्ताह में चार दिन से अधिक रन न करें !
- रविवार को लंबा दौड़ें(रन या वाक ) , सोम रेस्ट करें ताकि थकी मसल्स को आराम मिले और वे अधिक मजबूत हो सकें , मंगल बुध ब्रहस्पति तीनों दिन दौड़ें ( रन या वाक ), शुक्र को साइकिल चलायें शनिवार रेस्ट !
-पूरे सप्ताह पानी अधिक पीने की आदत डालें , रनिंग /वाकिंग में शरीर से पसीना बहता है पानी की कमी आपके मसल्स में क्रंप उत्पन्न करेगी, रनिंग में सबसे महत्वपूर्ण भाग आपके शरीर में जल का होना है इससे फ्लेक्सिबिलिटी रहेगी और दौड़ने में आनंद आएगा ! हाँ , दौड़ते समय जल नहीं पीना है पानी भरे पेट से आप दौड़ नहीं पायेंगे, प्यास होते समय गला तर करने को हाथ में ली हुई छोटी बोटल से सिप करें उतना काफी है !
-अगर GPS वाच नहीं है तब मोबाइल पर strava नामक app इंस्टाल करें और दौड़ या वाक के शुरू और अंत में स्टार्ट और बंद करना न भूलें ! खुद की मेहनत को देखना बेहद आनंद देता है !
-दौड़ते समय कपडे हलके पहने जो दौड़ने में रुकावट न करें , रनिंग शोर्ट और स्लीवलेस वेस्ट अच्छी रहती है ! रनिंग शोर्ट में जिप पॉकेट होती है जिसमें अपने मोबाइल को रखकर आप दौड़ सकते हैं ! हलके और आरामदेह जूते महत्वपूर्ण हैं !
- हर रनर को अपने साथ दौड़ते समय , पसीना से बचने के लिए हेडबैंड , मोबाइल , कुछ पैसे , ID कार्ड ,पानी की छोटी बोतल और कार की चावी
रखना होता है सो रनर शोर्ट में कम से कम दो ज़िप पॉकेट आवश्यक हैं !
अंत में फिर बता दूं कि मैंने रनिंग तमाम उम्र जनित बीमारियों के साथ, 61 वर्ष की अवस्था में सीखनी शुरू की तथा दो वर्ष में मोटा पेट और भारी भरकम चेहरे से निजात पा ली थी , लटकी हुई मांसपेशियां, झुर्रियां सब गायब हो चुकी हैं , पूरे जीवन पहले साठ बरसों में 100 मीटर न दौड़ पाने वाला मैं अबतक ४५०० km दौड़ चुका हूँ और बिना रुके ६५ वर्ष की उम्र में 21 किलोमीटर (2 घंटा 15 मिनट ) दौड़ने में समर्थ हूँ !
यकीन करें आप आराम से कर लेंगे और बीमारियों से मुक्त होंगे बस मेडिकल व्यवसाइयों की गोलियां पर भरोसा न करें बल्कि घर से निकल शरीर को फिट बनाएं और कुछ दिन बाडी आप ठठ्ठा मारकर हँसते हुए घर में दौड़ते हुए प्रवेश कर पायेंगे !

आप सबको मंगलकामनाएं !

बढ़ी उम्र में , कुछ समझना तो होगा !
तुम्हें जानेमन अब बदलना तो होगा !

उठो त्याग आलस , झुकाओ न नजरें
भले मन ही मन,पर सुधरना तो होगा !

Friday, October 19, 2018

शाब्बाश बुड्ढे ! यू कैन रन - सतीश सक्सेना

मेरी उम्र के लोगों को यह कविता पसंद नहीं आएगी , इसे बेहद दोस्ताना अन्दाज़ में लिखा गया है और वे इसके आदी नहीं हैं , 50 वर्ष से ऊपर के लोग बच्चों की तरह हंसने में असहज होते हैं उन्हें सिर्फ सम्मान चाहिए और वह भी सभ्यता के साथ और जीर्ण शरीर और बुढ़ापा भी यही चाहते हैं !
यह रचना दिल्ली में हो रहे रनर्स महाकुम्भ ADHM (Airtel Delhi Half Marathon 2018 ) के अवसर पर लिखी है जिसमें मैं हाफ मैराथन में भाग ले रहा हूँ !


शाब्बाश बुड्ढे ! यू कैन रन ! 
तवा बोलता छन छन छन !

सारे जीवन काम न करके
तूने सबकी वाट लगाईं !
ढेरों चाय गटक ऑफिस में
जनता को लाइन लगवाई !
चला न जाना अस्पताल में
बेट्टा , वे पहचान गए तो
जितना माल कमाया तूने 
घुस जाएगा डायलिसिस में
बचना है तो भाग संग संग
रिदम पकड़ कर छम छम छम , 
शाब्बाश बुड्ढे यू कैन रन !

जब से उम्र दराज बने हो  
सबके आदरणीय बने हो
सारी दुनिया के पापों को
खुलके आशीर्वाद दिए हो !

इस सम्मान मान के होते
देह हिलाना भूल गए हो
पिछले दस वर्षों से दद्दू 
छड़ी पकड़ के घूम रहे हो
आलस तुझको खा जाएगा
फेंक छड़ी को रन, रन, रन , शाब्बाश बुड्ढे यू कैन रन !

साठ बरस का मतलब सीधा
साठ फीसदी ताकत कम
ह्रदय बहाए खून के आंसू
बरसे जाएँ झम झम झम
चलना फिरना छोड़ा कब से
घुटने रोते , चलते दम !
साँसें गहरी, भूल चुका है
ऑक्सीजन पहले ही कम
अभी समय है रक्ख भरोसा
गैंग बना कर धम धम धम , शाब्बाश बुड्ढे, यू कैन रन !


डायबिटीज खा रही तुझको 
ह्रदय चीखता, जाएगा मर
सीधा साधा इक इलाज है
उठ खटिया से दौड़ने चल
आधे धड़ को पैर मिले हैं
उनको खूब हिलाता चल
ताकतवर शरीर होगा फिर
मगर तभी जब, मेहनत कर
सब देखेंगे जल्द , करेंगे
दुखते घुटने, बम बम बम , शाब्बाश बुड्ढे यू कैन रन !



Tuesday, October 9, 2018

सावधान ! रनिंग सीखने में लापरवाही ,आपकी जान लेने में भी समर्थ है - सतीश सक्सेना

दो दिन पहले इंग्लैंड में हो रहे कार्डिफ हाफ मैराथन की फिनिश लाइन पर पंहुच कर दो नौजवानों को हार्ट अटैक हुआ और वे बच नहीं पाए , इन दोनों McDonald एवं Dean Fletcher की उम्र क्रमश 25 और 32 वर्ष थी , जिसमें Mcdonald पहली बार हाफ मैराथन दौड़ रहे थे ! रनिंग वर्ल्ड के लिए यह घटना बेहद दुखद और सबक देने वाली है जिसमें सही प्रशिक्षण और जानकारी के अभाव में, दो नौजवानों की जान चली गयी जिन्होंने अभीतक जीवन सही से शुरू भी नहीं किया था !
(https://www.bbc.com/news/uk-wales-45789771)

आज के समय में दौड़ना आना मानवीय शरीर के लिए, एक वरदान है,आलसी शरीर बहुत जल्द फैट इकट्ठा
करने में समर्थ है और मोटापा ह्रदय की धमनियों में ब्लोकेज, बाकी का काम डायबिटीज पूरा कर देता है ! आज के समय में रनिंग के फायदों के प्रति लोगों की समझ  बढ़ी है और लोग रनिंग प्रतियोगिताएं में भरी संख्या में बिना रनिंग समझे और सीखे शामिल होने का प्रयत्न करते हैं !
CoachRavinder Singh भारतीय runners में एक सम्मानित नाम है , एनसीआर में प्रमुख आयोजक हैं जिन्होंने इस क्षेत्र में बहुत काम किया है ! मैंने उनकी कई पोस्ट पढ़ी जिनमें वे खिन्न मन से लिखते रहे कि इन्हें आश्चर्य होता है जब आजकल के नवोदित रनर पहले ही वर्ष हाफ मैराथन और मैराथन दौड़ने का प्रयत्न करते हैं ! वे कहते हैं कि उन्होंने अपना पहला मैराथन पूरा करने के लिए, 5 वर्ष लगाए थे !

अधिकतर नौजवान पहले हाफ मैराथन में जोश के साथ अपने परिवार जनों या मित्रों को अपना रिकॉर्ड दिखाने के लिए जरूरत से अधिक दौड़ने का प्रयत्न करते हैं जो उनके लिए कई बार जीवन भर के लिए अपंगता, इंजुरी अथवा असामयिक ह्रदय आघात का कारण बनता है !


मैंने 61वर्ष की उम्र में दौड़ना सीखना शुरू किया , एब्नार्मल पल्सरेट के चलते मेरी कोशिश रहती कि अपनी गति को बिना बढाए,दौड़ता रहने की प्रक्टिस जारी रखूं ! पिछले तीन वर्ष में लगभग 4500 km दूरी जिसमें 25 से अधिक हाफ मैराथन (21Km ) दौड़ चुका हूँ मगर अभी तक अपने आपको मैराथन 42km दौड़ने के लिए फिट नहीं मानता हूँ !

आज सुबह मैंने लम्बा दौड़ने के लिए संकल्प लेते हुए 17 km की दौड़ लगाई थी और यह पूरी दौड़ बिना हांफे मात्र 300 ml पानी के साथ पूरी हुई ! इस पूरी दौड़ में मैंने अपने दिमाग से एक चीज हटाये रखी कि मैं दौड़ रहा
हूँ और कहाँ तक दौड़ना है ! असली दौड़ वाही मानी जाती है जिसमें रनर को यह महसूस न हो कि वह दौड़ रहा है , ध्यान केन्द्रित पैरों पर हो अपने हाथों पर हो या अपने मूव होते कन्धों के रिदम पर हो , और आपको अहसास भी नहीं होगा कि आपने दौड़ पूरी कर ली है !

21km लगातार दौड़ने का अर्थ पूरे शरीर को लगभग ढाई घंटे तक जबरदस्त उथलपुथल का अहसास देना है इतनी देर तक दौड़ने के लिए शरीर की मसल्स में मजबूती के साथ लचीलापन और भरपूर पानी और साल्ट होना चाहिए ! इतनी देर दौड़ने पर लगभग तीन लीटर पसीना बहता है जिसके जरिये शरीर से बहुत अधिक मात्रा में मग्निसियम, कैल्शियम, पोटेशियम जैसे साल्ट निकल जाते है ! लगातार ढाई घंटे तक शरीर और मस्तिष्क में बॉडी वेट इम्पैक्ट के कारण कम्पन होते रहते हैं साथ ही हर उठकर गिरते कदम पर शरीर के वजन का तीन गुना इम्पैक्ट पड़ता है जिसे घुटनों के जॉइंट झेलते हैं ! इतनी जबरदस्त धुनाई इंसान को तभी करनी चाहिए जब वह अपने शरीर को इस योग्य बना ले और मानसिक तौर पर भी तैयार हो ! जल्दवाजी अक्सर घातक होती है अथवा पीड़ादायक इंजुरी जिससे महीनों जान नहीं छूटती ! मगर यह याद रहे कि इसे सीखने का अर्थ पूरे जीवन डायबिटीज और ह्रदय रोगों से शर्तिया बचाव एवं मेडिकल व्यवसाइयों के चंगुल से दूर रहना है सो दौड़ना सीखना बेहद आवश्यक है !

अंत में दौड़ने के लिए आवश्यक बातें दुबारा :
-एक रात पहले से पानी की मात्रा बढ़ा दें पानी आपके अंगों को लचीलापन देता है !
-सप्ताह में दौड़ चार दिन से अधिक न रखें लम्बी दौड़ के बाद अगले दिन आराम करना आवश्यक है
-सप्ताह में एक दिन साईकिल चलाना आवश्यक है इसके जरिये वे कमजोर मसल्स भी मजबूत होंगे जिनका उपयोग रनिंग के दौरान कम होता है अगर ऐसा न किया तब जांघों में विभिन्न तरह के दर्द महसूस होंगे जिस कारन आपको रनिंग करना मुश्किल होगा
-मसल्स इंजुरी से बचने के लिए, runner के लिए पहले और बाद की एक्सरसाइज करनी बेहद आवश्यक हैं यह एक्सरसाइज इन्टरनेट पर उपलब्ध हैं !
-जीपीएस वाच हो तो अच्छा है यह आपके रनिंग रिकॉर्ड को सहेजने में मददगार होगी जो भविष में आपको हिम्मत और प्रेरणा देगा
-हर रनर को पानी में नमक और नीम्बू क्रेम्प्स से बचने में मददगार हैं !
- अगर आप पांच किलोमीटर दौड़ने की प्रक्टिस कर रहे हैं तो सप्ताह में आपका एवरेज 10 km का होना चाहिए इसी तरह 10km रनर के लिए कम से कम 20 km हर सप्ताह और 21 km की ट्रेनिंग के लिए 42 km प्रति सप्ताह दौड़ना ही चाहिए !

एक तड़प सी उठती रही
अक्सर हमारी सांस से ,
जब तक रहेंगे हम यहाँ
कुछ काम होंगे,शान से !
गीत कुछ,ऐसे रचें जाएँ ,
जो सब के मन बसें !
हम विदा हो जाएँ तो, पदचिन्ह रहने चाहिए !

बात तो तब है कि वे
जगते रहे हों रात से !
और दरवाजे सजे हों 
प्यार, बंदनवार से !
आहटें पैरों की सुनकर,
साज़ भी थम जाएँ जब,
देखकर हमको वहां , कुछ ढोल बजने चाहिए !

Monday, October 1, 2018

तुम्हें जानेमन अब बदलना तो होगा -सतीश सक्सेना

"ऊर्जा को उसकी जड़ों तक पहुँचाने के लिए शरीर को अस्त व्यस्त कर देने वाली विधियों की ज़रूरत है, दौड़ना उन में से एक बेहतरीन विधि मानती हूँ मैं " सुमन पाटिल के इस कमेन्ट ने मुझे अपने तीन वर्ष दौड़ने के अनुभव के बारे में सोंचने को मजबूर कर दिया !

अभी तक साइंस,शरीर के बारे में नौसिखिया स्टेज पर ही है कि वे कौन से कारण हैं कि यह शारीरिक मशीनरी 100 वर्ष तक बिना थके चलने में समर्थ है ! बिना साइंटिफिक बुद्धि का उपयोग किये, हम सोंचें तो इसे सौ वर्ष चलाने के लिए जंगलों खेतों से जो भी खाने योग्य मिले वह थोड़ा सा भोजन, जल और हवा ही काफी है ! शरीर की बनावट ही ऎसी है कि इस जलपान को जुटाने के लिए आपको घर से निकलकर चलना पडेगा और चलते समय पैरों का उपयोग होगा तो हाथ खुद ब खुद चलने लगेंगे सारी मशीनरी हाथ पैरों द्वारा मेहनत करने पर ही निर्भर है 


शरीर के अधिकतर महत्वपूर्ण अंग पेट के अन्दर हैं उनको हर हालत में व्यस्त रखना आवश्यक है ! आधुनिक युग में मानव ने धन का उपयोग खुद को आराम देने के लिए करना शुरू किया और श्रम को निर्धनों की मजबूरी मान लिया ! इस मूर्खता पूर्ण सोंच से उनका शरीर तो बेडौल हुआ ही, शक्ति लगभग समाप्त ही हो गयी !

मानवीय शरीर को दुरुस्त रखने के लिए, आवश्यक हवा, भोजन, पानी के लिए चलना और दौड़ना बेहद

आवश्यक हैं दौड़ने से ही पेट (बॉडी कोर) के अंदरूनी अंगों में कम्पन होगा, उनमें जमा चर्बी पिघलेगी एवं वे अंग लम्बे समय तक शरीर को शक्ति देने योग्य रहेंगे ! आज आलसी लोगों से धन कमाने का सबसे बढ़िया तरीका,उन्हें विज्ञापन दिखाते रहिये कि चिंता न करें उनकी बरसों के आलस्य से पैदा बीमारी और मोटापे को ठीक करने के लिए १ ग्राम की मेडिकल गोली काफी होगी और उस डरपोक और काहिल इंसान की समझ को, बरसों तक जिन्दा रहने का एक फर्जी तरीका मिल जाता है !

लोग उम्रदराज होते ही सीखना बंद कर देते हैं और आने आसपास के हर व्यक्ति को सिखाने में और उसे अपना शिष्य बनाने में लग जाते हैं ! उन्हें लगता है किउनके प्रभामंडल से अधिक प्रतिभा और कहीं है ही नहीं काश वे अपनी बेवकूफियों को बताने वालों का सम्मान कर सकते तो निस्संदेह समझ के साथ उनकी उम्र में भी इजाफा होता !

मजेदार बात यह है कि यह सोंच मूर्खों में हो, ऐसा नहीं है, यहाँ के बड़े बड़े तथाकथित विद्वान् एवं सैकड़ों पुरस्कार पाए और आगे का जुगाड़ भिड़ाते , चेलों को आशीर्वाद देते मूर्ख गुरुजन, शामिल हैं ये जाहिल लोग अपने ऊपर मंडराते खतरे को देख ही नहीं पाते सिर्फ अपने जुगाडू नाम पर बजती तालियों से शक्ति पाकर खुश हो जाते हैं काश वे अपनी असमय ह्रदयघात से हुई मौत पर नकली आंसू बहाते अपने मित्रों को देख पाते तो उन्हें अहसास होता कि उन्होंने विद्वता के नशे में अपने ऊपर निर्भर परिवार जनों के साथ कितना बड़ा धोखा किया है !

किसी भी उम्र में सीखना अपमान नहीं है बल्कि समझदारी है इससे निस्संदेह आपका फर्जी आत्मविश्वास, वास्तविक रूप में निखरेगा अपने जीर्ण होते मजबूत शरीर को निखारने के लिए, मेहनत करना सीखिये उसे लम्बी दूर तक दौड़ना सिखाइए !

उठो त्याग आलस , झुकाओ न नजरें
भले मन ही मन,पर सुधरना तो होगा !

असंभव कहाँ, मानवी कौम में कब ?
तुम्हें जानेमन अब बदलना तो होगा !

सीढियां चढ़ते समय फूलती साँस नजरंदाज़ न करें -सतीश सक्सेना

अगर हार्ट अटैक एवं डायबिटीज से बचना चाहते हो तो पसीना निकलने तक की मेहनत करना सीखना होगा ! धन का उपयोग कर अपने शरीर को आराम देने वाले लोग जान लें कि अभी तक किसी भी खतरनाक बीमारी का, कोई भी इलाज नहीं जो पैसा देकर बीमारी ठीक कर, उम्र बढ़ा दे !
अगर आप सीढियां चढ़ते समय अपनी उखड़ती सांसों को नज़रन्दाज़ कर रहे हैं तो आप अपने आपको जबरदस्त धोखा दे रहे हैं !
अगले अटैक में ऑपरेशन थिएटर पंहुचते ही बचे जीवन में मजबूत आवाज में बात करने लायक नहीं रहेंगे !
अधिक उम्र में भी आसानी से दौड़ना सीखा जा सकता है टहलना और अखबार पढ़ना छोड़, शरीर से पसीना बहने तक, मेहनत करना सीखना ही होगा अन्यथा अधिक उम्र में दुर्दशा पक्की है !
गली मोहल्ले के रायचन्दों से बचें , हाथ पैरों को मेहनत करने के लिए बनाया गया है , इसका कोई विकल्प नहीं !
आइये, रनिंग सीखकर हम अपने आन्तरिक अंगों को , उत्पन्न कम्पनों के जरिये, मजबूत और रोग मुक्त बनाएं ! अंत में मेरी रचना की कुछ लाइनें पढियेगा ....

ये जीवन जटिल हैं,समझना तो होगा !
तुम्हें जानेमन अब बदलना तो होगा !
उठो त्याग आलस , झुकाओ न नजरें
भले मन ही मन,पर सुधरना तो होगा !
अगर जीना है आओ हंसकर खुले में
शुरुआत में कुछ ,टहलना तो होगा !
यही है समय ,छोड़ आसन सुखों का
स्वयं स्वस्त्ययन काल रचना तो होगा !
असंभव कहाँ, मानवी कौम में कब ?
सनम दौड़ में,गिर संभलना तो होगा !

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