दो दिन पहले इंग्लैंड में हो रहे कार्डिफ हाफ मैराथन की फिनिश लाइन पर पंहुच कर दो नौजवानों को हार्ट अटैक हुआ और वे बच नहीं पाए , इन दोनों McDonald एवं Dean Fletcher की उम्र क्रमश 25 और 32 वर्ष थी , जिसमें Mcdonald पहली बार हाफ मैराथन दौड़ रहे थे ! रनिंग वर्ल्ड के लिए यह घटना बेहद दुखद और सबक देने वाली है जिसमें सही प्रशिक्षण और जानकारी के अभाव में, दो नौजवानों की जान चली गयी जिन्होंने अभीतक जीवन सही से शुरू भी नहीं किया था !
(https://www.bbc.com/news/uk-wales-45789771)
आज के समय में दौड़ना आना मानवीय शरीर के लिए, एक वरदान है,आलसी शरीर बहुत जल्द फैट इकट्ठा
करने में समर्थ है और मोटापा ह्रदय की धमनियों में ब्लोकेज, बाकी का काम डायबिटीज पूरा कर देता है ! आज के समय में रनिंग के फायदों के प्रति लोगों की समझ बढ़ी है और लोग रनिंग प्रतियोगिताएं में भरी संख्या में बिना रनिंग समझे और सीखे शामिल होने का प्रयत्न करते हैं !
CoachRavinder Singh भारतीय runners में एक सम्मानित नाम है , एनसीआर में प्रमुख आयोजक हैं जिन्होंने इस क्षेत्र में बहुत काम किया है ! मैंने उनकी कई पोस्ट पढ़ी जिनमें वे खिन्न मन से लिखते रहे कि इन्हें आश्चर्य होता है जब आजकल के नवोदित रनर पहले ही वर्ष हाफ मैराथन और मैराथन दौड़ने का प्रयत्न करते हैं ! वे कहते हैं कि उन्होंने अपना पहला मैराथन पूरा करने के लिए, 5 वर्ष लगाए थे !
अधिकतर नौजवान पहले हाफ मैराथन में जोश के साथ अपने परिवार जनों या मित्रों को अपना रिकॉर्ड दिखाने के लिए जरूरत से अधिक दौड़ने का प्रयत्न करते हैं जो उनके लिए कई बार जीवन भर के लिए अपंगता, इंजुरी अथवा असामयिक ह्रदय आघात का कारण बनता है !
मैंने 61वर्ष की उम्र में दौड़ना सीखना शुरू किया , एब्नार्मल पल्सरेट के चलते मेरी कोशिश रहती कि अपनी गति को बिना बढाए,दौड़ता रहने की प्रक्टिस जारी रखूं ! पिछले तीन वर्ष में लगभग 4500 km दूरी जिसमें 25 से अधिक हाफ मैराथन (21Km ) दौड़ चुका हूँ मगर अभी तक अपने आपको मैराथन 42km दौड़ने के लिए फिट नहीं मानता हूँ !
आज सुबह मैंने लम्बा दौड़ने के लिए संकल्प लेते हुए 17 km की दौड़ लगाई थी और यह पूरी दौड़ बिना हांफे मात्र 300 ml पानी के साथ पूरी हुई ! इस पूरी दौड़ में मैंने अपने दिमाग से एक चीज हटाये रखी कि मैं दौड़ रहा
हूँ और कहाँ तक दौड़ना है ! असली दौड़ वाही मानी जाती है जिसमें रनर को यह महसूस न हो कि वह दौड़ रहा है , ध्यान केन्द्रित पैरों पर हो अपने हाथों पर हो या अपने मूव होते कन्धों के रिदम पर हो , और आपको अहसास भी नहीं होगा कि आपने दौड़ पूरी कर ली है !
21km लगातार दौड़ने का अर्थ पूरे शरीर को लगभग ढाई घंटे तक जबरदस्त उथलपुथल का अहसास देना है इतनी देर तक दौड़ने के लिए शरीर की मसल्स में मजबूती के साथ लचीलापन और भरपूर पानी और साल्ट होना चाहिए ! इतनी देर दौड़ने पर लगभग तीन लीटर पसीना बहता है जिसके जरिये शरीर से बहुत अधिक मात्रा में मग्निसियम, कैल्शियम, पोटेशियम जैसे साल्ट निकल जाते है ! लगातार ढाई घंटे तक शरीर और मस्तिष्क में बॉडी वेट इम्पैक्ट के कारण कम्पन होते रहते हैं साथ ही हर उठकर गिरते कदम पर शरीर के वजन का तीन गुना इम्पैक्ट पड़ता है जिसे घुटनों के जॉइंट झेलते हैं ! इतनी जबरदस्त धुनाई इंसान को तभी करनी चाहिए जब वह अपने शरीर को इस योग्य बना ले और मानसिक तौर पर भी तैयार हो ! जल्दवाजी अक्सर घातक होती है अथवा पीड़ादायक इंजुरी जिससे महीनों जान नहीं छूटती ! मगर यह याद रहे कि इसे सीखने का अर्थ पूरे जीवन डायबिटीज और ह्रदय रोगों से शर्तिया बचाव एवं मेडिकल व्यवसाइयों के चंगुल से दूर रहना है सो दौड़ना सीखना बेहद आवश्यक है !
अंत में दौड़ने के लिए आवश्यक बातें दुबारा :
-एक रात पहले से पानी की मात्रा बढ़ा दें पानी आपके अंगों को लचीलापन देता है !
-सप्ताह में दौड़ चार दिन से अधिक न रखें लम्बी दौड़ के बाद अगले दिन आराम करना आवश्यक है
-सप्ताह में एक दिन साईकिल चलाना आवश्यक है इसके जरिये वे कमजोर मसल्स भी मजबूत होंगे जिनका उपयोग रनिंग के दौरान कम होता है अगर ऐसा न किया तब जांघों में विभिन्न तरह के दर्द महसूस होंगे जिस कारन आपको रनिंग करना मुश्किल होगा
-मसल्स इंजुरी से बचने के लिए, runner के लिए पहले और बाद की एक्सरसाइज करनी बेहद आवश्यक हैं यह एक्सरसाइज इन्टरनेट पर उपलब्ध हैं !
-जीपीएस वाच हो तो अच्छा है यह आपके रनिंग रिकॉर्ड को सहेजने में मददगार होगी जो भविष में आपको हिम्मत और प्रेरणा देगा
-हर रनर को पानी में नमक और नीम्बू क्रेम्प्स से बचने में मददगार हैं !
- अगर आप पांच किलोमीटर दौड़ने की प्रक्टिस कर रहे हैं तो सप्ताह में आपका एवरेज 10 km का होना चाहिए इसी तरह 10km रनर के लिए कम से कम 20 km हर सप्ताह और 21 km की ट्रेनिंग के लिए 42 km प्रति सप्ताह दौड़ना ही चाहिए !
एक तड़प सी उठती रही
अक्सर हमारी सांस से ,
जब तक रहेंगे हम यहाँ
कुछ काम होंगे,शान से !
गीत कुछ,ऐसे रचें जाएँ ,
जो सब के मन बसें !
हम विदा हो जाएँ तो, पदचिन्ह रहने चाहिए !
बात तो तब है कि वे
जगते रहे हों रात से !
और दरवाजे सजे हों
प्यार, बंदनवार से !
आहटें पैरों की सुनकर,
साज़ भी थम जाएँ जब,
देखकर हमको वहां , कुछ ढोल बजने चाहिए !