आज ब्लागजगत में हजारों हिंदी लेख रोज छापे जा रहे हैं, अक्सर हर व्यक्ति की एक ही इच्छा होती है !
ऐसा कुछ कर पायें ..यादों में बस जाएँ
सदियों जहान में हो , चर्चा हमारा !
दिल करदा,हो यारा दिलदार मेरा दिल करदा ....
और यह सोई इच्छा पूरी कर दी मुफ्त में प्रकाशित हुए, उनके अपने लेखों ने, जो एक क्लिक के साथ सारे, विश्व में बिना कोई पैसा दिए, पढवाए जा सकते हैं ! जिस सतीश सक्सेना को ४० किलोमीटर के दायरे में रहने वाले चंद लोग ही जानते थे उसे आज हज़ारों मील दूर बैठे राज भाटिया और समीरलाल भी आसानी से बिना किसी प्रयत्न किये जान गए !
शुरू शुरू में चंद रचनाएँ लिखने के बाद, देखा कि कमेंट्स नहीं आते थे कोई पढता ही नहीं था अतः ब्लाग जगत के मशहूर लोगों की एक लम्बी लिस्ट बनाई जिसमें दिग्गज समीरलाल ,ज्ञानदत्त जी, अनूप शुक्ल,देवाशीष इत्यादि लोग शामिल थे ! जब भी कोई पोस्ट लिखते, बिना इनकी तकलीफ को जाने ,अपनी " बहुमूल्य रचना " की कापी इन सबको मेल के जरिये भेज देते थे ! जवाब में केवल समीर लाल थे, जो टिप्पणी दे जाते थे ! एक दिन ऐसे ही मेरे एक इमेल का जवाब आया तो मन खुश हो गया ऊपर देवाशीष का नाम लिखा देख ! शुरू की लाइने पढ़ कर ही बहुत खराब लगा ......
कृपया मेरा नाम अपनी लम्बी मेलिंग लिस्ट से तुरंत हटा दें ....
मुझे भविष्य में कोई रचना न भेजें ...
मुझे जो पढना होता है उसके लिए मेरे पास बहुत तरीके हैं ...
आदि आदि
उसके बाद गुस्से में पहला काम यह किया कि देवाशीष का नाम ही, अपनी लिस्ट के अलावा ,स्मरण लिस्ट से भी हटा दिया ! आज जब मुझे ग्रुप मेल मिलती है और उसके बाद अनजान अनचाहे पत्रों की बाढ़ आ जाती है तो पता चलता है कि देवाशीष बिलकुल ठीक कह रहे थे !
मुझे याद है एक बार एक ग्रुप मेल २०० से अधिक ईमेल पतों के साथ आयी थी और उसके बाद रोज नए पतों से मेरे पास इमेल का ताँता लग गया !
कैसे समझाऊँ ....बड़े नासमझ हो...
ऐसा कुछ कर पायें ..यादों में बस जाएँ
सदियों जहान में हो , चर्चा हमारा !
दिल करदा,हो यारा दिलदार मेरा दिल करदा ....
और यह सोई इच्छा पूरी कर दी मुफ्त में प्रकाशित हुए, उनके अपने लेखों ने, जो एक क्लिक के साथ सारे, विश्व में बिना कोई पैसा दिए, पढवाए जा सकते हैं ! जिस सतीश सक्सेना को ४० किलोमीटर के दायरे में रहने वाले चंद लोग ही जानते थे उसे आज हज़ारों मील दूर बैठे राज भाटिया और समीरलाल भी आसानी से बिना किसी प्रयत्न किये जान गए !
शुरू शुरू में चंद रचनाएँ लिखने के बाद, देखा कि कमेंट्स नहीं आते थे कोई पढता ही नहीं था अतः ब्लाग जगत के मशहूर लोगों की एक लम्बी लिस्ट बनाई जिसमें दिग्गज समीरलाल ,ज्ञानदत्त जी, अनूप शुक्ल,देवाशीष इत्यादि लोग शामिल थे ! जब भी कोई पोस्ट लिखते, बिना इनकी तकलीफ को जाने ,अपनी " बहुमूल्य रचना " की कापी इन सबको मेल के जरिये भेज देते थे ! जवाब में केवल समीर लाल थे, जो टिप्पणी दे जाते थे ! एक दिन ऐसे ही मेरे एक इमेल का जवाब आया तो मन खुश हो गया ऊपर देवाशीष का नाम लिखा देख ! शुरू की लाइने पढ़ कर ही बहुत खराब लगा ......
कृपया मेरा नाम अपनी लम्बी मेलिंग लिस्ट से तुरंत हटा दें ....
मुझे भविष्य में कोई रचना न भेजें ...
मुझे जो पढना होता है उसके लिए मेरे पास बहुत तरीके हैं ...
आदि आदि
उसके बाद गुस्से में पहला काम यह किया कि देवाशीष का नाम ही, अपनी लिस्ट के अलावा ,स्मरण लिस्ट से भी हटा दिया ! आज जब मुझे ग्रुप मेल मिलती है और उसके बाद अनजान अनचाहे पत्रों की बाढ़ आ जाती है तो पता चलता है कि देवाशीष बिलकुल ठीक कह रहे थे !
मुझे याद है एक बार एक ग्रुप मेल २०० से अधिक ईमेल पतों के साथ आयी थी और उसके बाद रोज नए पतों से मेरे पास इमेल का ताँता लग गया !
कैसे समझाऊँ ....बड़े नासमझ हो...
सतीश जी मैं तो किसी को ऐसा मेल नहीं करता ,लेकिन मेरे पास कुछ मेल जरूर आते हैं । मेरा मानना है कि इसमें कुछ भी गलत नही है । आखिर कोई आपको अपनेपन के साथ एक निवेदन ही तो करता है ।
ReplyDeleteआपके प्यार भरे दो शब्द ऊर्जा का संचार करते हैं सर ।
सतीश जी,
ReplyDeleteहम भी इन्हीं के सताये हुए हैं, चांस की बात है हमने भी ईमेल के ऊपर ही लिखा है लेकिन जुदा अंदाज में. आपके ब्लोग की साईड में दी निदा फाजली साहेब की लाईनों से प्रभावित होकर -
ब्लोग से पाठक बहुत दूर हैं, चलो यूँ कर लें
दूसरे ब्लोगरस को ग्रुप में लिंक मेल किया जाय
- निठल्ला चिंतन
जब पहली बार कोई मेल आती है तो उसे स्पैम मार्क करना बिल्कुल नहीं भूलता... फिर उस आई डी से कोई मेल नहीं आती...
ReplyDeleteऔर दूसरा ये सोचा जब आलतू फालतू.... बिल्कुल बकवास... फ्रोड की.. न जाने कितनी मेल रोजाना आती है तो ५-७ ऐसी मेल भी सही... कम से कम बैंक डिटेल तो नहीं मांग रहे... एक टिप्पणी ही तो मांग रहे है.. :)
सदियों और जहान का तो पता नहीं सतीश भाई ,बस दिल में जगह दी है आपको ,जम जाये तो बताइयेगा
ReplyDeleteऔर कंजस्टेड लगे तो भी :)
अतः ब्लाग जगत के मशहूर लोगों की एक लम्बी लिस्ट बनाई जिसमें दिग्गज समीरलाल ,ज्ञानदत्त जी, अनूप शुक्ल,देवाशीष इत्यादि लोग शामिल थे
ReplyDeleteआप को आते ही पता लग गया मशहूर लोगों का और तुरंत आपने दिग्गज लिस्ट बना डाली ताकि उनसे ईमेल पर संपर्क स्थापित कर ले । वाह भाई वाह क्या ब्लॉग ब्लॉग मैनर्स हैं !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
सबके अपने प्रयास हैं..मैं किसी को भी हतोत्साहित करने में भरोसा नहीं रखता. २० शब्दों को लिख उसे हतोत्साहित कर मना करने से उसका ईमेल डिलिट करना ज्यादा सरल है, एक क्लिक में हो जाता है...२० ईमेल डिलिट करने में जो समय लगेगा, वो एक को मना करने में.
ReplyDeleteउसे मन का करने दें, एक बार स्थापित हो जायेगा तो खुद समझ जायेगा.
मेरी सोच है,,कोई भी बाध्य नहीं. ईमेल करने में उसे भी मेहनत ही लगती होगी.
सुन्दर भाव हैं अच्छा लिखा है।
ReplyDeleteअब सुनिये मेरे विचार! मेरी समझ में ब्लॉग मैनर्स जिन्दगी के मैनर्स से अलग नहीं होते। अब आप अपनी इस पोस्ट को ही देखिये।
इसमें आपने तीन चार नाम लिखे और आदि बताकर कहा कि इनको आप अपनी पोस्ट मेल करते थे। इसमें समीरलाल टिप्पणी दे जाते थे। आपके मन में भले ही बाकी लोगों के लिये आज भी अच्छे विचार हों लेकिन यहां जिस तरह से लिखा उससे लगता है कि मशहूर लोगों में ज्ञानदत्तजी, अनूप शुक्ल टिप्पणी नहीं करते और देबाशीष ने खराब लगने वाली बात कही।
यह आपके लेखन की कमजोरी है।(व्यवहार की नहीं लेखन की) आप इसी बात को इस तरह भी कह सकते थे- अतः ब्लाग जगत के मशहूर लोगों की एक लम्बी लिस्ट बनाई जब भी कोई पोस्ट लिखते, बिना इनकी तकलीफ को जाने ,अपनी " बहुमूल्य रचना " की कापी इन सबको मेल के जरिये भेज देते थे ! जवाब में केवल समीर लाल थे, जो टिप्पणी दे जाते थे !
मुझे यह मानने में कोई एतराज नहीं है कि मैंने आपकी बहुत सारी पोस्टें पढ़ीं लेकिन ज्यादातर में टिप्पणियां नहीं कीं क्योंकि एक तो समझ में नहीं आया कि क्या लिखें और आया भी तो लिखा नहीं यह सोचकर कि एक भले आदमी को क्यों परेशान करें। कुछ पोस्टों पर तो ऐसे-ऐसे खुराफ़ाती कमेंट आये मन में क्या बतायें! :)
यह मेरे सहज विचार हैं। ऐसे ही तमाम पोस्टों में भी करता तो आप असहज हो जाते क्योंकि आप बहुत संवेदनशील हैं।
यहां मैंने आपको जो लिखा वह सहज भाव हैं। इसमें मेरी आपसे या समीरलालजी से कोई नाराजगी नहीं है। अब बताइये इस तरह की टिप्पणियां आपको शुरू में करते तो आपको अच्छी लगतीं? हमारा भी हाल देबू की तरह ही होता- निकल जाते आपकी मेलिंग लिस्ट से।
जहां तक देबाशीष का सवाल है ब्लॉगजगत के शुरुआती दिनों में उसने जो मेहनत की और तमाम काम और दिशायें तय कीं वैसा मेरे समझ में किसी और ने नहीं किया। वह अकेला ऐसा ब्लॉगर था जो जब सक्रिय था तब हिन्दी और अंग्रेजी दोनों के ब्लॉगरों में उसकी बराबर धाक थी। :)
जनाब blog manners सिखा रहे है, या नए bloggers को हथकंडा सुझा रहें है!
ReplyDeleteइस पोस्ट के माध्यम से अच्छी सीख दी है ...समझदार को इशारा काफी ..
ReplyDeletemail न जाए कहाँ जाएंगी 'मजाल',
ReplyDeleteहमारी तो comments भी 'approval' में जाती है!
"जितने लोग.......... उतने विचार .......वही करो जो दिल को भाये, यार !"
ReplyDeleteआगे आप सब ज्ञानी है ........यह बात हमने जानी है !
वैसे आप तो अब लाइफ टाइम मेम्बर है इस दिल के सो ........टेंशन नहीं लेने का !
मैं तो किसी को ऐसे मना नहीं कर सकता ।
ReplyDeleteमैं ने भी एक-आध बार कुछ मित्रों को मेल किया था, तब जब मुझे किसी अन्य ब्लॉग ने मुझे विषय बनाया या किसी ब्लॉग ने कुछ अनूठा पोस्ट किया. मेल बहुतेरी आती हैं लेकिन मन खिन्न तब होता है जब एक मेल २०० नामों के साथ होती है. उस समय यही लगता है सब धान बाईस पंसेरी.
ReplyDeleteआप मामूली मामूली मुद्दों को महत्वपूर्ण विषय बनाने में महारत हासिल कर चुके हैं.
ये फोटो लगाकर किसे डराने का प्रयास है?
यह व्यंग्य है या आत्मविश्लेषण?
ReplyDeleteलेकिन आपकी बात समझ आ गई जी।
लेकिन मुझे ईमेल पाना उनका ही सुखद लगता है जी, जिन्हें मैं जानता हूँ या जो मुझे जानते हैं। कम से कम नाम से ही सही। लेकिन किसी अजनबी की मेल जिसमें केवल टिप्पणी के लिये आमंत्रण हो, मुझे अच्छा नहीं लगता है। मैं तो साफ कह देता हूँ कि दोबारा मत भेजियेगा। उनको बताता हूँ कि आप जिस ईमेल आईडी की लिस्ट का इस्तेमाल कर रहे हैं अगर उनकी पोस्ट पढकर वहां टिप्पणी देंगें तो इस लिस्ट से ज्यादा पाठक (टिप्पणियां भी) मिलेंगें।
प्रणाम स्वीकार करें
जाकी रही भावना जैसी ....
ReplyDeleteआज भी सबसे बड़ा सच है और हम अकिंचन, दुनिया को नहीं बदल सकते और न इनकी सोच को ...इस पोस्ट पर लिखे का अर्थ मेरी समझ में बहुत स्पष्ट है मगर अपनी अपनी भावना से पढ़ा और समझा जाने के कारण, अर्थ अलग अलग समझे गए, बिना पढ़े ही टिप्पणी देने पर क्या शिकायत करूँ ....!
यहाँ यह अर्थ बिलकुल नहीं कि मैं समूह मेल को गलत मानता हूँ बल्कि मैं खुद ऐसा करता रहा हूँ और अब भी चुनिन्दा लोगों को पढवाने मेल भेजता हूँ ! हाँ इतनी समझ देवाशीष काण्ड के बाद आ गयी कि लिस्ट को बीसीसी कालम में भेजता हूँ जिससे कि किसी को भी अन्य मित्रों की इमेल पते न मिलें ! देवाशीष का मैं आज भी सम्मान करता हूँ और उनके कारण ही मुझे यह समझ आई कि कौन सा तरीका ठीक है !
कुछ कमेंट्स गूगल में टेक्नीकल समस्या के कारण दिख नहीं पा रहे शायद कुछ समय के बाद दिख जाएँ ! इस समस्या का समाधान बताने की कृपा करें !
सादर
@ अली साहब ,
ReplyDeleteआपके स्नेह का आभारी हूँ ....रास्ता दिखाते रहिएगा !
सतीश जी ब्लाग मेनर्स की बात आपने कही। लेकिन बात पूर्ण नहीं कर पाए। मुझे इसमें नागवार नहीं गुजरता कि कोई मुझे मेल करे और आग्रह करे कि मेरी पोस्ट पढना। उसने आपको लिखा है आपको यदि रुचि हो तो पढे या ना पढे यह आपका विषय है। मुझे तो एक बात बहुत अखरती है लेकिन उसके लिए सभी के अपने तर्क भी हैं कि हम टिप्पणियों की आकांक्षा रखते हैं लेकिन जब कोई टिप्पणी करता है तब उसे एप्रू करते हैं। यह ऐसा ही लगता है जैसे आप अपनी पुस्तक को समीक्षा के लिए भेजे और यदि आपकी मर्जी की समीक्षा हुई तो प्रकाशित करेंगे और नहीं तो कचरे में डाल देंगे। यदि कोई व्यक्ति अश्लील बातें लिखता भी है तो आप उसे बाद में डिलिट कर दें, उसका ब्लाग स्पेम में डाल दें। लेकिन सभी पर अविश्वास करना और अधिकार अपने हाथ में रखना यह कुछ उचित नहीं लगता है। यही कारण है कि अक्सर टिप्पणियों में विशेष विचार नहीं आ पाते हैं।
ReplyDeleteआपकी पोस्ट और तमाम टिप्पणियों को गौर फ़रमाने के बाद "ताऊ अदालत" इस नतीजे पर पहुंची है कि आपको सत्य बोलने का दोषी करार दिया जाता है. और आपको बार बार ये गुनाह करने का दोषी भी पाया गया है. लिहाजा ताऊ अदालत आपको अंतिम चेतावनी जारी करती है कि आप बात को सीधा सपाट कहने की बजाय हमेशा गोल गोल घुमा कर कहने की आदत डाले जैसा की इस पोस्ट की एक टिप्पणी में उदाहरण सहित समझाया गया है.:)
ReplyDeleteरामराम.
ताऊ रामपुरिया से कतई सहमत हूँ भाई .....
ReplyDelete@अनूप शुक्ल जी ,
ReplyDeleteखेद है कि आप सामान्य पोस्ट का अर्थ भी अपने हिसाब से निकालते हैं , आपकी इस टिप्पणी को लेकर मैं एक पोस्ट लिखूं यह मैं अब उचित नहीं मानता ! मेरे ख़याल में आपकी यह टिप्पणी आपकी सोच बताने के लिए काफी है ! मेरे लिए इतना ही काफी है
देबाशीष बाबू ने शीष मेरा भी काटा था
ReplyDeleteमुझे भी ई मेल में इस तरह एक नहीं
अनेक बार डांटा था
वे चाह रहे होंगे कि डर जायेंगे हिंदी वाले
कर देंगे ब्लॉगिंग बंद
पर हमने अपने ब्लॉग पोस्टों और
टिप्पणियों की चोंचें काफी तीखी कर ली हैं
वे तेवर आप घेवर की इस ऋतु में
सतीश भाई की सक्सेस ना नहीं हां
वाली इस पोस्ट में देख चुके हैं
जिनकी खाल उधेड़ रहे हैं
उन्हीं देवता की जय बोल रहे हैं
आज अपने शिष्य पर फख्र है मुझे
गुरु वे मानते हैं
और मैं मान रहा हं उन्हें।
भैया,हमने तो मेल करने की बीमारी पाली ही नहीं।
ReplyDeleteजय राम जी की।
ऐसे लोगों को तो मैं ज़वाब में अपनी ही एक पोस्ट का लिंक भेज देता हूँ कि ब्लॉग पढ़वाने के लिए ईमेल क्यों भेजना? आपकी पोस्ट खुद चल कर जाती है, ईमेल में!
ReplyDeleteमेरा संदेश भी पहुँच जाता है ,उनका काम भी बन जाता है और मेरे ब्लॉग का ट्रैफ़िक भी बढ़ जाता है :-)
नए चिट्ठाकारों का मार्गदर्शन करने वाली बहुत बढ़िया पोस्ट.
ReplyDeleteआभार