इस समय कुछ "समझदार" लोग एक दूसरे की धार्मिक आस्थाओं में खोट निकाल कर खूब मज़ाक उड़ा रहे हैं ! जब हम दूसरे की गालियाँ देखते हैं तो बहुत गुस्सा आता है मगर हम खुद क्या लिख रहे हैं , इसको देखने की जहमत नहीं उठाते मगर यदि हम कुछ लोगों के कारण, पूरी कौम पर शक कर रहे हैं, तो हम भयानक भूल कर रहे हैं ...एक ही घर में शंकित मन, के साथ रहते , इन भाइयों के मन में, ये बीज डाल हम अपने बच्चों का सबसे अधिक अहित कर रहे हैं ! आने वाली पीढ़ी हमेशा शक ,रंजिश और एक भय लेकर जीयेगी शायद इस तथ्य को आप भी नकार नहीं सकते ! शक्तिशाली भारत के जनमानस और सरकार के होते अब द्विराष्ट्रवाद की कल्पना भी नहीं की जा सकती तब इस घ्रणित माहौल को ख़त्म करने की चेष्टा क्यों न करें ! आइये क्यों न हम , अल्लाह ओ अकबर और हर हर महादेव के जोशीले नारों के मध्य कमर कस ,घर में बोये गए, नफरती बबूल के यह पेंड़ , उखाड़ने के लिए प्रतिबद्ध होने की कसम खाने की चेष्टा करें !
एक ऐतिहासिक तथ्य है कि मुस्लिम भाइयों के आधे रिश्तेदार पाकिस्तान में हैं और इस कारण अब भी हो रहे शादी विवाहों के कारण उनकी दुआ रहती है कि भारत पाकिस्तान से रिश्तें अधिक न बिगड़ें ! मगर युद्ध की दशा में मुस्लिम, आपसी शक के बावजूद ,हमारे दुश्मनों से अपने देश की रक्षा में खूब लडें हैं और शहादत दी है , यह एक तथ्य है ! हम बहुसंख्यक और सहिष्णु हैं इस नाते उनपर शक करना और उनकी मान्यताओं पर चोट करना, छोड़ने का प्रयत्न कर, आशा की लौ तो जगाएं ! यह मत भूलिए कि हम हर धर्म का आदर करते हैं और यह सहिष्णुता ही हमारी पहचान है जो हमें औरों से, अलग पहचान देती है !
अफ़सोस है कि हमारे कुछ भाइयों ने कुछ लोगो अथवा अनाम लोगों के कारण, या जान बूझ कर अनाम लोगों का सहारा लेकर, गाली का बदला गाली से देने का विकल्प खोजा हुआ है यकीनन इससे साम्प्रदायिक सद्भाव को कम करने की कोशिश की जा रही है फलस्वरूप अकल्पनीय नुक्सान होगा ! ब्लाग जगत में फैलते, इस विद्वेष का जिम्मेवार किसी व्यक्ति विशेष को ना माने मगर उन लोगों को पहचानने का प्रयत्न करें जो भावनाएं भड़का कर अपने आपको, नेता स्थापित करने का प्रयत्न कर रहे हैं !
इस विषय की उपेक्षा कर ,आप,अपने आपको, आने वाले विषाक्त बादलों को न रोकने का प्रयास करने में सहभागी पायेंगे ! आशा है देश में फैले इस जहर के खिलाफ आपकी शक्तिशाली कलम जरूर उठेगी ! मैं यह उम्मीद करता हूँ कि संकीर्ण भावनाए भूल कर, आपकी कलम ईमानदारी से आगे आयेगी !
अंत में इन तथाकथित विद्वानों से निवेदन है ...अपने धर्म के खिलाफ छींटाकशी करने के विरोध के बहाने, ये कडवाहट तुरंत बंद कर दें ...और अगर मेरे कहे पर विश्वास न हो तो कृपया अपने ही लिखे लेख दुबारा पढ़े यह सिर्फ सौम्यता के साथ एक दूसरे का मखौल उडाना है, और माहौल को जहरीला बनाना है !
ऐसा करके निस्संदेह आप हमारे देश की शानदार और बेहतरीन सभ्यता के प्रति गुनाहगार सिद्ध होंगे और आपकी आने वाली पीढी भी , दूसरों के धर्म का मज़ाक बनाने वाली, आपकी कलम का सम्मान कभी नहीं करेगी !
मैं उन लोगों को भी लानत देता हूँ जो ब्लागजगत में नाम बदल बदल कर, अपमान जनक शब्द बोल कर आपको ऐसा लिखने का सुनहरा मौका देते हैं !
ब्लोगिंग को धर्म का अखाडा बनाना सही नहीं है ।
ReplyDeleteगाली का गाली से ज़वाब देने के बजाय उसे उपेक्षित करना ही सही है ।
ऐसे लेखों को तबज्जो नहीं देना चाहिए ।
सार्थक अपील .. सार्थक बात
ReplyDeleteसद्भाव के माहौल के बिना सार्थक विकास सम्भव ही नहीं है. ब्लागजगत इस विद्वेष को कम करने का माध्यम बनना चाहिये न कि बढाने वाला.
सार्थक अपील ...!
ReplyDeleteधर्मों की ऐतिहासिक भूमिका समाप्त हो चुकी है। ये अब प्रासंगिक नहीं रहे। अब इन का काम सिर्फ और सिर्फ सडांध मारना रह गया है।
ReplyDeleteaapne sach kaha.........!
ReplyDeleteदिनेश जी से सहमत ...
ReplyDeleteआपने यह बहुत अच्छी बात कही है...सार्थक अपील...
ReplyDelete.
ReplyDelete.
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हमने तो आपकी आज्ञा का पालन कर दिया है।
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एक मछली पुरे तालाब को गंदा करती है.. i am with you!
ReplyDeleteडॉ.दराल से सहमत हूं
ReplyDeleteमुझे और कुछ नहीं कहना है इस विषय पर
सार्थक पोस्ट
ReplyDeleteआप से १००% सहमत हूँ .........एक बेहद उम्दा और सार्थक अपील !
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ReplyDeleteदिनेशराय द्विवेदी जी से सहमत है जी
ReplyDeleteसमय रह्ते हमें प्रयास कर देने चाहिये।
ReplyDeleteसद्भाव के माहौल हेतू किये जाने वाले प्रयासों को समर्थन।
सतीश जी, अगर टिप्पणी में "सार्थक अपील" "सार्थक प्रयास" "आपके विचारों से सहमत" लिख देने भर से ही खुद को सुधाराकांक्षी साबित किया जा सकता है तो क्या जरूरत पडी है कि खामखाँ पोस्ट लिखने में फालतू में समय नष्ट किया जाए....
ReplyDeleteआपसे मुझे यही उम्मीद थी जी। लेकिन मुझे नहीं लगता कि आपकी अपील कोई सुनेगा भी। यहां पर पढकर चले जायेंगें और फिर वही कांव-कांव होगी।
ReplyDeleteबल्कि किसी को बुराई ही लिखनी है तो सबसे पहले अपने कुयें की लिखनी चाहिये। जिसका पानी वो जन्म से पीता आया है, जिसमें रहता आया है, जिसमें डुबकी लगाता आया है। दूसरे के कुयें से ज्यादा हमें अपने कुयें के पानी की मिठास का पता होता है।
धर्मों के नाम से जो उपद्रव है, वह धर्मों का नहीं, अहंकारों का उपद्रव है।
नहीं तो इतने आदमी कैसे राजी हो जाते
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आपकी भावनाएँ मेरे लिए इसलिए आदर योग्य हैं क्योंकि ऐसा लगता है जैसे यह बात मैं ही कह रहा हूँ.
ReplyDeleteआपकी भावनाएँ मेरे लिए इसलिए आदर योग्य हैं क्योंकि ऐसा लगता है जैसे यह बात मैं ही कह रहा हूँ.
ReplyDeleteचन्दन विष व्यापत नहीं लिपटे रहत भुजंग | यदि चन्दन भुजंग का विष आत्मसात नहीं करता तो भुजंग का विष भी चन्दन से लिपटे रहने के बाद भी कम नहीं होता | इस तरह की किसी भी अपील का ऐसे लोगों पर कोई असर नहीं होगा जिनके अन्दर दूसरो के लिए जहर भरा हुआ है चाहे वो धर्म को लेकर हो या वाम पंथ दक्षिण पंथ को लेकर हो | हा एक फायदा है ऐसे लेखो का कम से कम इससे उनकी सोच का पता चल जाता है |
ReplyDeleteसर जी! आपकी बात से सहमत भी और नहीं भी.
ReplyDeleteदेखिये न! आपने भी बहुसंख्यक शब्द का इस्तेमाल हिदू धर्म को मानने वाले के लिये किया जैसे अल्प संख्यक का शब्द का इस्तेमाल आमतौर पर मुस्लिम धर्म को मानने वाले कि लिये किया जाता है!
यही दिखाता है कि धार्मिक पहचान हमारे मन-मस्तिष्क में कितनी गहरी पैठी हुई है. वरना हम कहते धार्मिक बहुसंख्यक या धार्मिक अल्पसंख्यक.
जिस दिन हम आपस में एक दूसरे को सिर्फ भाई या बहन कहेंगें..और हिदू भाई या मुस्लिम बहन कहकर नहीं पहचानेगें तब बात आगे बड़ेगी...
आपने कहा है कि "यह मत भूलिए कि हम हिन्दू हैं और हम हर धर्म का आदर करते हैं और यह सहिष्णुता ही हमारी पहचान है जो हमें औरों से अलग पहचान देती है !"
सर, यही मनोविज्ञान हमारी समस्या है,..हिन्दू-मुस्लिम एकता का फलसफा समझाने वाले अंत में अपनें तथाकथित धर्म की विशिष्टता बताने का मोह नहीं छोड़ पाते.
यही बात किसी मुस्लिम धर्म को मानने वाले (जानने वाले नहीं)नें कही होती तो इस तरह होती शायद:
"यह मत भूलिए कि हम मुस्लिम हैं और कुरान पाक मानवता का पाठ पढ़ाती है, यही हमारी बात है जो हमें औरों से अलग पहचान देती है !"
एकता की बात करते हुए कितनी खूबसूरती से अलग हो गये दोनों..हज़ारों साल की धार्मिक वर्चस्व की यह लड़ाई भला यू खत्म होगी, क्या?
सभी तरह की बातें करनी होंगीं,सभी धर्मों का पोस्ट-मार्टम करना होगा.
बचते फिरेंगे विवादों से,
तो हो लिया स्वस्थ चिंतन !!
अगर धर्म का मतलब हिंसा और घृणा है तो उसे कूड़ेदान में डाल देना चाहिए।
ReplyDelete...saarthak abhivyakti !!!
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteराजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
बहुत सार्थक और सामयिक पोस्ट.
ReplyDeleteरामराम
सार्थक अपील
ReplyDeleteभाईचारा ज़िन्दाबाद ।धर्म के नाम पर लड-आने वालों से सावधान ।
ReplyDeleteमाहौल विषाक्त न बनाया जाये।
ReplyDeleteसमझाने से अगर "समझदार" समझ जाये तो बेहतर हैं पर मुझे आशा नही
ReplyDeleteआपकी पोस्ट से सहमत होने का मन करता है।
ReplyDeleteलेकिन वत्स जी, अन्तर सोहिल व अंशुमाला के कमेंट्स से ज्यादा सहमत हैं जी हम तो।
ताली अगर एक हाथ से नहीं बजती तो चौन, अमन, सुख, शांति और सद्भाव जैसी अच्छाईयों(कमियों) की अपेक्षा भी किसी एक पक्ष से नहीं करनी चाहिये।
आज ही अखबार में कश्मीर की सचित्र खबर थी, महिलाओं व बच्चों को आगे करके सुरक्षा बलों पर हमले की।
सक्सेना साहब, आपकी भावना से पूरी तरह सहमत हूँ, लेकिन इसके असर से आशान्वित नहीं।
सादर।
@ प्रवीण शाह ,
ReplyDeleteआपका हार्दिक आभारी हूँ, प्रवीण जी !
महत्वपूर्ण सुझाव के लिए साधुवाद!
ReplyDeleteनिज व्यथा को मौन में अनुवाद करके देखिए।
कभी अपने आप से संवाद करके देखिए।।
जब कभी सारे सहारे आपको देदें दग़ा-
मन ही मन माता-पिता को याद करके देखिए।।
दूसरों के काम पर आलोचना के पेशतर-
पहले कुछ दायित्व खु़द लाद करके देखिए।।
क्षेत्र-भाषा-जाति-मजहब सब सियासी बेडि़याँ-
कभी इनसे आप को आजाद करके देखिए।।
सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
सतीश जी, आपने बहुत ही अहम मुद्दे को बड़ी ही सरलता से पेश किया है , मैं भी आपसे सहमत हूँ !!
ReplyDeleteआपने एक ज्वलंत मुद्दे को बड़ी ही सरलता से पेश किया हैं, में भी आपसे सहमत हूँ इस बात पर !!
ReplyDelete... लेकिन जिन्हें सुनना चाहिए वो सुनें तब न.
ReplyDeleteसार्थक और सामयिक पोस्ट. कबूतर की तरह आँख बंद कर लेने समस्या का अंत नहीं होगा. सार्थक प्रयास ही आवश्यक है
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